Monday, 29 April 2019

क्या भोपाल में 35 साल का कांग्रेसी सूखा खत्म कर पाएंगे?

35 साल। जी हां... पूरे 35 साल हो गए हैं, भोपाल से किसी कांग्रेसी उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव में विजयी हुए। इस दृष्टि से मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह कांग्रेस के लिए संभावना की किरण के रूप में हैं, देखना यह होगा कि तीन दशकों का सूखा मिटाकर वह कांग्रेस के लिए लगभग बंजर हो चुकी भोपाल संसदीय सीट की जमीन पर वोटों की फसल लहलहा पाते हैं या नहीं? एक दशक तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और दो बार कांग्रेस अध्यक्ष के नाते दिग्विजय को प्रदेश के मुद्दों की गहरी समझ भी है और पकड़ भी। विवाद उन्हें ताकत देते हैं। खासतौर पर आरएसएस, हिन्दुत्व और भाजपा को लेकर उनके विवादित ट्वीट्स को लेकर सोशल मीडिया पर जितनी आलोचना उनकी हुई है शायद ही किसी दूसरे कांग्रेसी नेता की हुई हो। दिग्विजय की लोकप्रियता, जनसम्पर्प और भीतरघात के खतरे से वंचित दिग्विजय सिंह ने शायद यह कभी नहीं सोचा होगा कि भाजपा उनके सामने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारकर एक चुनौती के रूप में पेश करेगी। प्रज्ञा ठाकुर को इस सीट से उतारने के पीछे भाजपा का वोटों का ध्रुवीकरण करना है। दिग्विजय सिंह भाजपा की चाल को समझ गए और उन्होंने साध्वी के मैदान में आते ही भगवा आतंकवाद, हिन्दुत्व जैसे विषयों को छूना बंद कर दिया। दिग्विजय भाजपा के दांव में तो नहीं आए अलबत्ता साध्वी खुद चूक कर बैठीं। आतंकवादी हमले में शहीद हुए महाराष्ट्र के एटीएस के अफसर हेमंत करकरे के बारे में दिए उनके बयान ने पूरे देश में भूचाल ला दिया। भाजपा को जब लगा कि वह बेवजह कठघरे में आ रही हैं, जिसका खामियाजा महाराष्ट्र समेत दूसरी सीटों पर भी भुगतना पड़ेगा तो उन्होंने साध्वी से माफी मांगने को कहा और साध्वी ने बेशक अपना बयान वापस ले लिया पर जो नुकसान होना था वह तो हो गया। साध्वी के साथ जो कुछ भी उनकी कैद होने पर हुआ हो पर उन्हें समझ नहीं कि राजनीति कितना खतरनाक खेल है और चुनाव में हर बात का असर होता है। हेमंत करकरे का श्राप, उसके बाद बाबरी मस्जिद ढहाने पर दिए बयानों के बाद अब प्रज्ञा ठाकुर ने कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह को आतंकी तक कह दिया। दिग्विजय पर निशाना साधते हुए कहाö16 साल पहले उमा दीदी (उमा भारती) ने उसे हराया था और वह 16 साल तक मुंह नहीं उठा पाया। अब फिर से सिर उठा रहा है तो दूसरी संन्यासी सामने आ गई है, जो उसके कर्मों का प्रत्यक्ष प्रमाण है। एक बार फिर ऐसे आतंकी का समापन करने के लिए संन्यासी को खड़ा होना पड़ा है। हालांकि बाद में प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि मैंने दिग्विजय को आतंकी नहीं कहा।

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