Friday, 12 April 2019

कठिन है डगर भाजपा की जम्मू-उधमपुर चुनाव में

आतंकी हमले की दहशत झेल रहे जम्मू-कश्मीर की दो सीटों पर दूसरे चरण में 18 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। जम्मू तथा बारामूला के दो संसदीय क्षेत्रों में किस्मत आजमा रहे 33 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 33 लाख मतदाता करेंगे। जम्मू संसदीय क्षेत्र में 24 उम्मीदवार मैदान में हैं जबकि बारामूला में नौ उम्मीदवार सीट के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। जम्मू संसदीय क्षेत्र चार जिलों में 20 विधानसभा क्षेत्रों में फैला हुआ है, जिनमें जम्मू, सांबा, पूंछ और राजौरी शामिल हैं। संसदीय सीट पर कुल 20,472,29 वोटर हैं। जम्मू-पूंछ तथा उधमपुर, कठुआ के संसदीय क्षेत्रों में भाजपा के लिए अपना गढ़ बचाए रखने की चुनौती पैदा हो गई है। ऐसा तीन विपक्षी दलों द्वारा किए गए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समझौते के कारण है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवारों को सिर्प मोदी के नाम का सहारा है। भाजपा ने दोनों ही लोकसभा सीटों पर अपने पुराने चेहरों को मैदान में उतारा है। जम्मू से वर्तमान सांसद जुगल किशोर शर्मा तथा उधमपुर से मंत्री व सांसद जितेन्द्र सिंह किस्मत आजमा रहे हैं। हालांकि दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवार दम-खम तो नहीं रखते पर चिन्ता का विषय यह है कि कांग्रेस के उम्मीदवार को मगर प्रत्यक्ष तौर पर नेशनल कांफ्रेंस तथा अप्रत्यक्ष तौर पर पीडीपी का समर्थन प्राप्त है। जम्मू से कांग्रेस की ओर से पूर्व मंत्री रमण भल्ला को उतारा है। वह राज्य सरकार में विकास-पुरुष के नाम से जाने जाते थे। जबकि उधमपुर से कांग्रेसी उम्मीदवार डॉ. कर्ण सिंह के सुपुत्र विक्रमादित्य राजघराने से हैं। उनके पिता डॉ. कर्ण सिंह चार बार इस लोकसभा क्षेत्र से विजयी हो चुके हैं। जानकारी के लिए पिछले चुनावों में भी दोनों संसदीय क्षेत्रों से नेशनल कांफ्रेंस ने बिना समझौते के इन लोकसभा क्षेत्रों से प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारे थे लेकिन इस बार बाकायदा दोनों दलों में समझौता हुआ है और पीडीपी ने सांप्रदायिक वोटों को बंटने से रोकने की खातिर दोनों ही संसदीय क्षेत्रों से मैदान में अपने उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया है। विपक्ष के साझे उम्मीदवारों के अतिरिक्त भाजपा को अपने ही असंतुष्ट और दबंग नेता चौधरी लाल सिंह से भी निपटना होगा। वह भाजपा को छोड़कर डोगरा लोगों के हितों की रक्षा के लिए बना गए संगठन डोगरा-स्वाभिमान के बैनर तले दोनों ही संसदीय क्षेत्रों से किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा को पीडीपी सरकार बनाने का भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जम्मू क्षेत्र की अपेक्षा की गई और उतना विकास नहीं हुआ जिसकी भाजपा से उम्मीद की जा रही थी। पिछले पांच सालों में जम्मू क्षेत्र में आतंकवाद भी बढ़ा और आतंकी हमले भी ज्यादा हुए। जम्मू क्षेत्र के यह चुनाव राष्ट्र महत्व रखते हैं। हिन्दू बहुल इस क्षेत्र में अगर भाजपा पिछड़ जाती है तो घाटी में तो उसका सफाया तय है। भाजपा नेतृत्व को आरंभ से ही समीक्षा करनी होगी कि जब उनकी सरकार थी तो उन्होंने जम्मू क्षेत्र को क्यों नजरंदाज किया? मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम विपक्षी सांझे उम्मीदवार के बीच होगी। कोई भी हारे-जीते अंतत जीत तो भारतीय लोकतंत्र की ही होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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