Friday, 31 January 2020

अदनान सामी को पद्मश्री पुरस्कार?

पाकिस्तानी मूल के गायक अदनान सामी को पद्मश्री के लिए चुने जाने को लेकर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है। राजनीतिक दलों में 2016 में भारतीय नागरिक बने सामी के भारत में योगदान को लेकर बहस छिड़ना स्वाभाविक ही है। कांग्रेस और एनसीपी ने जहां उन्हें यह सम्मान देने का विरोध किया वहीं भाजपा और उसके सहयोगियों ने कहा कि अदनान इस सम्मान के अत्याधिक हकदार हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने सामी को पाक सेना के पूर्व अफसर अरशद सामी खान का बेटा बताया। अदनान के पायलट पिता ने 1965 में भारत के खिलाफ जंग लड़ी थी। 1965 के भारत-पाक युद्ध में सामी के पिता पाकिस्तानी एयरफोर्स के पायलट थे। पाकिस्तानी एयरफोर्स म्यूजियम की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है, फ्लाइट लेफ्टिनेंट खान ने भारत के साथ युद्ध के दौरान अधिकतम युद्धक अभियानों में उड़ानें भरी थीं। उन्होंने प्रेरणादायी निश्चय से युद्ध क्षेत्र में हवाई टुकड़ी का नेतृत्व किया और बेजोड़ परिणाम हासिल किए। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल अयूब खान ने 1965 के युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देने के लिए अदनान के पिता को सितारा--जुर्रत से नवाजा था। यह पुरस्कार पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा सैन्य पुरस्कार है। अदनान के पिता ने बाद में तीन पाकिस्तानी राष्ट्रपतियों के सहायक के रूप में काम किया और डिप्लोमेट भी बने। अदनान के पिता की साल 2009 में कैंसर से मौत हो गई। महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक विकास मंत्री और राकांपा प्रवक्ता नवाब मलिक ने चुटीले अंदाज में कहा कि अब कोई भी पाकिस्तानी गायक भारत की नागरिकता ले सकता है। लंदन में पाकिस्तान वायुसेना के एक पूर्व अधिकारी के यहां जन्मे अदनान सामी ने 2015 में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था और वह जनवरी 2016 में भारत के नागरिक बन गए थे। मलिक ने कहाöभारत के अनेक मुस्लिम इस पुरस्कार के हकदार हैं। अदनान सामी को प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करना 130 करोड़ भारतीयों का अपमान है। एनडीए सरकार सीएए, एनआरसी तथा एनपीआर के मुद्दों पर भारतीयों और दुनियाभर के लोगों के सवालों पर क्षतिपूर्ति की कोशिश कर रही है। मलिक ने कहा कि अब कोई भी पाकिस्तानी गायक जय मोदी का नारा लगाकर भारत की नागरिकता ले सकता है। शनिवार को पद्म पुरस्कार के लिए घोषित 118 लोगों की सूची में उनका भी नाम है। गृह मंत्रालय की सूची में उनका गृह राज्य महाराष्ट्र बताया गया है। मलिक ने कहाöअगर पाकिस्तान से आकर कोई जय मोदी का नारा लगाता है तो वह भारत की नागरिकता के साथ-साथ देश का प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री भी पा सकता है।
-अनिल नरेन्द्र
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दिल्ली की चुनावी बिसात पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए)

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर उपजे आंदोलन की आवाज दिन-प्रतिदिन थमने की जगह उल्टी तेज हो रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को मुश्किल से चन्द दिन बचे हैं और जिस तरह शाहीन बाग सुर्खियों में आ रहा है उससे तो यह नहीं लगता कि इस आंदोलन की आंच विधानसभा चुनावों तक नहीं पहुंचेगी। खासकर मुस्लिम मतदाता और दिल्ली विधानसभा की मुस्लिम बहुल सीटों पर इसका असर जरूर दिखने वाला है। हालांकि राजनीतिक दल आंदोलन की आवाज के मुताबिक अपनी रणनीति पर चल रहे हैं। दिल्ली की चुनावी बिसात पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 12 प्रतिशत से अधिक है और इन्हें नजरंदाज करना संभव नहीं है। दिल्ली की सियासत में 70 विधानसभा में से आठ सीटों को मुस्लिम बहुल माना जाता है। इसमें बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, चांदनी चौक, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बाबरपुर और किराड़ी शामिल हैं। यह ऐसी सीटें हैं, जहां प्रत्याशियों का भाग्य तय करने में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका होती है। मुस्लिम मतदाताओं के लिहाज से त्रिलोकपुरी और सीमापुरी भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। यहां भी मुस्लिम मतदाता चुनाव नतीजों को प्रभावित करने में सक्षम हैं। दिल्ली विधानसभा भले ही मात्र 70 सीटों की हो, लेकिन यह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति पर कम असर डालने वाला नहीं है। सीएए को लेकर शाहीन बाग की सुर्खियां जहां तेजी से अन्य राज्यों में बढ़ रही हैं, उस लिहाज से दिल्ली विधानसभा का चुनाव काफी महत्वपूर्ण लग रहा है। हालांकि दिल्ली में मुस्लिम मतदाता एक सुनियोजित तरीके से वोट करता रहा है और उसका झुकाव जगजाहिर है, वह किधर जाएगा। दूसरी तरफ नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों को लेकर अल्पसंख्यकों में नाराजगी के मद्देनजर दिल्ली में भाजपा विरोधी दलों को भाजपा के पक्ष में बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण होने का डर भी सता रहा है। जिस तरह सीएए को लेकर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण होता दिख रहा है, उसकी तीखी प्रतिक्रिया हिन्दू मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में होने लगी है, जिससे विरोधी दल चिंतित जरूर हो गए हैं। यदि मतदाताओं का यह समूह भाजपा के पक्ष में खड़ा हुआ तो निश्चित रूप से चुनाव में भाजपा विरोधियों के लिए मुश्किल हो जाएगी। देश में राज्यों के विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा के, अकसर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण भाजपा के विरोध में दिखता है। चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन अकसर उसी दल व प्रत्याशी को दिखाई देता है, जो प्रत्याशी भाजपा को हराने में सक्षम हो, दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं को आम आदमी पार्टी (आप) को मजबूती का अंदाजा नहीं था इसलिए उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया था। 2015 के विधानसभा चुनाव में यह आम आदमी पार्टी के साथ खड़े हुए तो दोनों कांग्रेस और भाजपा का सफाया हो गया। इस बार मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में बंटे दिखते हैं।

Thursday, 30 January 2020

राज्य एक राजधानियां तीन-तीन

आंध्र प्रदेश के राजधानी प्रकरण में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। आंध्र प्रदेश की वाईएस जगन मोहन रेड्डी सरकार ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच राज्य की तीन राजधानियां बनाने के प्रावधान वाला बिल सोमवार 20 जनवरी को विधानसभा में पेश किया। हंगामे के बीच देर रात इसे सदन ने पास भी कर दिया। इस बिल में अमरावती को विधि, विशाखापत्तनम को कार्यकारी और कुर्नूल को न्यायिक राजधानी बनाने का प्रावधान है। राज्य सरकार के अनुसार तीन राजधानियां बनाने का मकसद राज्य में विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्र के समान विकास को सुनिश्चित करना है। राज्य के शहरी मंत्री बी. सत्यनारायण ने विपक्ष के भारी हंगामे के बीच आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्रों के समान विकास के लिए एक्ट 2020 पेश किया। करीब छह साल पहले राज्य के विभाजन के समय इस प्रदेश ने अपनी राजधानी खो दी थी। मौजूदा राजधानी (हैदराबाद) प्रदेश से कटकर अलग बनाए गए राज्य तेलंगाना के हिस्से में आ गई थी और विभाजन ने आंध्र प्रदेश को एक नई राजधानी के निर्माण की मजबूती दे दी थी। उस समय के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को एक अत्याधुनिक महानगर के रूप में नई राजधानी बनाने का बड़ा सपना देखा था। इसे उन्होंने प्रतिष्ठा का इतना बड़ा सवाल बना लिया था कि जब अमरावती परियोजना के लिए आर्थिक मदद देने के मामले में मोदी सरकार ने हाथ खड़े किए तो नायडू ने न सिर्प एनडीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, बल्कि भाजपा से भी अपने पुराने रिश्ते तोड़ लिए थे। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में जब उनकी पार्टी को सत्ता नहीं मिली तो अमरावती का भविष्य भी खटाई में दिखने  लगा। राज्य के नए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने वहां चल रही तमाम परियोजनाओं पर विराम लगा दिया और यह लगने लगा कि अमरावती अब प्रदेश की राजधानी नहीं होगी। इससे न सिर्प कई परियोजनाओं पर इस बीच विराम लगने का खतरा पैदा हो गया, बल्कि जिले के वह किसान भी नाराज हो उठे, जिससे उनकी जमीन के बदले अच्छी कीमत देने का वादा किया गया था। सवाल यह है कि क्या सचमुच आंध्र प्रदेश को तीन राजधानियों की जरूरत है? एक राजधानी से चले प्रशासन ने ही आंध्र प्रदेश को देश का एक अग्रणी राज्य बना दिया था। समृद्धि और उद्योग-धंधों के मामले में राज्य ने काफी तरक्की की थी। क्षेत्रीय भावनाओं को देखते हुए कई प्रदेशों ने दो राजधानियों के प्रयोग किए हैं, सिवाय क्षेत्रीय भावनाओं को संतुष्ट करने के अलावा उनके अन्य फायदे कभी सामने नहीं आए। इससे सरकारी खर्चा भी बढ़ेगा, जिसका सीधा असर राज्य के विकास और जन नीतियों पर पड़ना लाजिमी है।

-अनिल नरेन्द्र

शाहीन बाग मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है

दिल्ली की सत्ता का वनवास खत्म करने की कोशिश में लगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए शाहीन बाग का मुद्दा सबसे अहम हो गया है और पार्टी नेताओं का सारा जोर इसी पर लगा हुआ है। पिछले कुछ दिनों से पार्टी का चुनाव प्रचार शाहीन बाग के इर्द-गिर्द घूम रहा है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर शाहीन बाग में पिछले 35 दिनों से ज्यादा विरोध प्रदर्शन, नारेबाजी हो रही है। भाजपा का सारा जोर शाहीन बाग के जरिये भाजपा शाहीन बाग को देश की सुरक्षा व राष्ट्रवाद से जोड़ने का प्रयास कर रही है। सोमवार को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दिल्ली प्रदेश कार्यालय में एक प्रेस वार्ता में कहाöशाहीन बाग में लोग भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध हो रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार में आचार संहिता को दरकिनार कर बिगड़े बोल की ओच्छी राजनीति शुरू हो गई है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने सोमवार को रिठाला में एक नुक्कड़ सभा में कथित तौर पर गोली मारो के नारे लगवाए। उन्होंने शाहीन बाग का खास जिक्र करते हुए नारा दियाöदेश के गद्दारों को... उनके समर्थकों ने नारा पूरा करते हुए कहाöगोली मारो...। क्या एक केंद्रीय मंत्री को इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करना शोभा देता है? इस बात को छोड़िए कि चुनाव आयोग इसका संज्ञान लेकर क्या कार्रवाई करता है पर क्या एक मंत्री को ऐसे भड़काऊ शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए? भाजपा के नेता तो आजकल सारी हदें पार कर रहे हैं। चुनाव तो आते-जाते हैं पर हमें मर्यादा के अंदर रहना चाहिए। पश्चिम दिल्ली से भाजपा सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा के सुपुत्र प्रवेश वर्मा ने शाहीन बाग की तुलना कश्मीर से कर दी। वर्मा ने यहां तक कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो एक घंटे के भीतर शाहीन बाग को खाली करा दिया जाएगा। वर्मा ने केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के विवादित बयान गोली मारो... का भी बचाव किया और कहा कि देश की जनता भी गद्दारों के साथ ऐसा ही सुलूक चाहती है। दिल्ली की जनता जानती है कि एक आग कुछ साल पहले कश्मीर में लगी थी। वहां कश्मीरी पंडितों की बहन-बेटियों के साथ रेप हुआ था। उसके बाद वह आग उत्तर प्रदेश, हैदराबाद, केरल में लगती रही। आज वह आग दिल्ली के एक कोने में लग गई है। वहां पर लाखों लोग इकट्ठे हो जाते हैं और वह आग दिल्ली के घरों तक पहुंच सकती है। दिल्ली के लोगों को सोच-समझ कर फैसला लेना होगा। यह लोग आपके घरों में घुसेंगे, आपकी बहन-बेटियों को उठाएंगे, रेप करेंगे, उनको मारेंगे। इसलिए आज समय है। कल मोदी और अमित शाह नहीं आएंगे बचाने। उन्होंने कहा कि शाहीन बाग में कौन लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्हें कौन समर्थन दे रहा है सबको पता है। अगर भाजपा सत्ता में आएगी तो हम एक घंटे में शाहीन बाग को खाली करा लेंगे। इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि मैं किसी सूरत में बयान वापस नहीं लूंगा।

Wednesday, 29 January 2020

यह गद्दार आईएसआई के एजेंट

हाल ही में है। वर्दी वाला गद्दार देविंदर सिंह क्या पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के देश सकते में आ गया, जब जम्मू-कश्मीर पुलिस का डीएसपी देविंदर सिंह आतंकियों के साथ पकड़ा गया। उसके पुलवामा हमले तक में शामिल होने की बात कही जा रही लिए काम करता था? क्या उसके संबंध आतंकवादियों से थे? क्या वह पैसा लेकर आतंकियों को पनाह देता था? इन तमाम बातों का खुलासा देविंदर सिंह धीरे-धीरे एनआईए के सामने कर रहा है। उसकी गिरफ्तारी के बाद कई सवाल उठ खड़े हुए हैं, मसलन क्या पहले से उस पर किसी को किसी तरह का शक नहीं था, देविंदर सिंह के इस राज का कोई तो राजदार नहीं है, जो उसे बार-बार बचाता रहा है। फिलहाल एनआईए ने निलंबित डीएसपी का पकड़े गए आतंकियों से आमना-सामना नहीं करवाया है। दैनिक भास्कर की एक खोजी रिपोर्ट में देविंदर जैसे अन्य वर्दीधारी गद्दारों की पड़ताल में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पिछले नौ वर्षों में 32 अन्य सैन्यकर्मी और बीएसएफ के जवान पाकिस्तान के लिए जासूसी करते पकड़े गए या पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के हनीट्रेप में फंसे। इनमें से अधिकांश मामलों में यह जवान स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के चक्कर में हनीट्रैप में फंसे हैं। जासूसी के आरोप में पकड़े गए इन सर्विस पर्सनल में 15 आर्मी के, सात नेवी के और दो एयरफोर्स के हैं। इनके अलावा डीआरडीओ की नागपुर स्थित ब्रह्मोस मिसाइल यूनिट का इंजीनियर, सिविल डिफेंस का एक, बीएसएफ के चार जवान और तीन एक्स-सर्विसमैन शामिल हैं। इस बात पर चिन्ता जाहिर करते हुए सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर रवीन्द्र कुमार बताते हैं कि रिकूटमेंट के समय से ही दुश्मनों की नजर जवानों पर रहती है। कुछ लोग पहले से ही आतंकियों व आईएसआई के सम्पर्प में होते हैं। यह सेना में भर्ती हो जाते हैं, जिनका पता नहीं चलता। परन्तु अब अधिकांश लोग हनीट्रैप के जरिये निशाना बनाए जाते हैं। पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स की बजाय सेना ही उनके टारगेट पर होती है, इसलिए ज्यादा गद्दार सेना से ही निकलते हैं, ब्रिगेडियर रवीन्द्र कहते हैं कि कश्मीर व नक्सल प्रभावित जगहों पर पुलिस पर लोकल राजनीति का ज्यादा असर होता है और वह ही पैरामिलिट्री फोर्स में डेपुटेशन पर आते हैं। परन्तु आईएसआई के हनीट्रैप में नादान सैनिक आसानी से फंस जाते हैं। हालांकि 15 लाख की फौज में गद्दारों की यह संख्या समुद्र में बूंद के समान है। लेकिन जिस तरह से एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है, जहर की एक बूंद भी आदमी को मार देती है। फौजी अदालतें इसलिए ही सख्त मानी जाती हैं। वहां ऐसे अपराधों में 100 प्रतिशत सजा मिलती है, सिविल कोर्ट की तरह कानूनी पैंतरा इन अदालतों में ज्यादा नहीं चल पाता। 2010 से 2018 तक पकड़े गए देश के गद्दारों में 12 दोषियों को सजा हो चुकी है। बचे हुए 16 दोषी सेवा से बर्खास्त हो चुके हैं, वे जेलों में हैं।

-अनिल नरेन्द्र

राष्ट्रपति अधिसूचना जारी नहीं कर सकते थे?

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निप्रभावी करने संबंधी केंद्र के फैसले के खिलाफ गत मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की सुनवाई संविधान पीठ के समक्ष दिनभर चली। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि जम्मू-कश्मीर को लेकर पांच और छह अगस्त की अधिसूचना जारी करने की संवैधानिक शक्ति राष्ट्रपति के पास नहीं थी। भारत का पूरा संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। इसी बीच याचिकाकर्ताओं के वकील ने मामला बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग की। वहीं केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया। जस्टिस एनवी रमना, संजय किशन कौल, सुभाष रेड्डी, सूर्यकांत और बीआर गवई की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट कहा कि अनुच्छेद 370 का मुद्दा फिलहाल सात सदस्यीय बड़ी संवैधानिक पीठ को नहीं भेजा जाएगा। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा कि जब तक याचिकाकर्ताओं की तरफ से अनुच्छेद 370 से जुड़े अदालत के दोनों फैसले (1959 का प्रेमनाथ कौल बनाम जम्मू-कश्मीर और 1970 का संपत प्रकाश बनाम जम्मू-कश्मीर) के बीच कोई सीधा टकराव साबित नहीं किया जाता, वह इस मुद्दे को वरिष्ठ पीठ को नहीं भेजेगी। बता दें कि दोनों ही फैसले पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने ही सुनाए थे। पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों को पिछले दोनों फैसलों के बीच सीधा टकराव होने से जुड़े तथ्य दाखिल करने का आदेश दिया और सुनवाई को स्थगित कर दिया। अब अगली सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला वापस लेना मुमकिन नहीं है। बहस के दौरान अटार्नी जनरल ने कोर्ट में इसे हटाए जाने का पूरा ब्यौरा दिया। उन्होंने इस दौरान कहा कि इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। मैं यह बताना चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता वास्तव में अस्थायी थी। हम राज्यों के एक संघ हैं। इससे पहले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश अधिवक्ता डॉ. राजीव धवन ने कहाöपहली बार भारत के संविधान के अनुच्छेद तीन का उपयोग करते हुए एक राज्य को एक केंद्रीय शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। यदि वह (केंद्र) एक राज्य के लिए ऐसा करते हैं, कर सकते हैं तो यह ठीक नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को साफ कहा कि इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच को तभी सौंपा जाए जब सर्वोच्च न्यायालय के पहले दो फैसलों में विरोधाभास साबित हो, बुधवार को संदर्भ की बात सुनकर जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन द्वारा जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ को बताया गया कि पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का केंद्र का फैसला अवैध था। जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता में पीठ सुनवाई कर रही है और अब मामला अगली सुनवाई तक जारी रहेगा।

Tuesday, 28 January 2020

स्पीकर की शक्तियों पर विचार करें

देश के अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं में अकसर इस बात पर हमेशा बहस होती है कि सदस्यों के आचरण या फैसलों को लेकर सदन के अध्यक्ष ने जो व्यवस्था दी, वह कितनी सही है, कितनी न्यायसंगत है? सदन में भागीदारी करने वाले दलों की ओर से ऐसे आरोप लगते ही रहते हैं कि चूंकि विधानसभा अध्यक्ष किसी खास पार्टी के सदस्य के रूप में हैं, इसलिए उनका फैसला इससे प्रभावित होता है। मणिपुर के एक मंत्री को अयोग्य ठहराए जाने से संबंधित कांग्रेस विधायकों की एक याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित विधानसभा अध्यक्ष को चार सप्ताह में इस पर फैसला लेने के लिए तो कहा ही है, अदालत ने दलबदल मामलों पर फैसला लेने के लिए एक स्वतंत्र प्रणाली गठित करने का संसद को जो सुझाव दिया है, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। अदालत ने कहा कि विधायकों और सांसदों को अयोग्य ठहराने संबंधी सदन के स्पीकर की शक्तियों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। साफ तौर पर अदालत का आशय है कि अध्यक्ष से पूर्ण निष्पक्षता की अपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि वह भी किसी राजनीतिक दल का सदस्य होता है। अदालत की यह टिप्पणी का बिल--गौर है कि 10वीं अनुसूची के तहत दलबदल कानून की रक्षा करना लोकतंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल मणिपुर के वन मंत्री टी. श्याम कुमार 2017 में कांग्रेस की टिकट पर जीते थे, पर मंत्री बनने के लिए वह भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस ने दलबदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए स्पीकर के सामने कम से कम एक दर्जन याचिकाएं दीं, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रोहिंग्टन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सांसदों-विधायकों की अयोग्यता का फैसला लेने की स्पीकर की शक्तियों पर संसद को गंभीरता से विचार करना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक दल से जुड़े होने के कारण स्पीकर के फैसले में पक्षपात की गुंजाइंश होती है। हर कोण से मामले को देखने और समझने के बाद अदालत ने कुछ अहम सुझाव भी दिए, जिससे सदन की विश्वसनीयता कहीं से भी दरके नहीं। मसलन अदालत ने केंद्र सरकार से यह विचार करने को कहा है कि क्या विधायकों और सांसदों की अयोग्यता पर फैसले का अधिकार स्पीकर के पास रहे या इसके लिए रिटायर्ड जजों का ट्रिब्यूनल जैसा स्वतंत्र निकाय गठित हो। स्वाभाविक है कि भारतीय लोकतंत्र की भूमिका को अक्षुण्य बनाए रखने में सदन के अध्यक्षों की महत्ती भूमिका है परन्तु इस पद में अंतर्निहित विरोधाभासों ने हमें लज्जित किया है। शीर्ष अदालत में इस मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए कई वर्षों से मंथन हो रहा था कि स्पीकर के पद को कैसे पवित्र और निष्पक्ष रखा जाए अपने सुझाव दिए हैं। अब केंद्र सरकार को आगे फैसला करना है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को बरकरार रखने हेतु स्पीकर का रोल महत्वपूर्ण बन जाता है।

-अनिल नरेन्द्र

ब्रांड मोदी बनाम ब्रांड केजरीवाल

हालांकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है पर सत्य तो यह है कि पार्टी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की काट नहीं मिल पा रही है। पार्टी रणनीतिकार अमित शाह एक-एक दिन में दर्जनों नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं, कार्यकर्ताओं के घर भोजन भी कर रहे हैं पर इसके बावजूद आम आदमी पार्टी (आप) को हराना मुश्किल लग रहा है। देश की राजनीति को हमेशा से प्रभावित करने वाली देश की राजधानी दिल्ली के  लिए सातवीं बार विधानसभा चुनाव के लिए मुश्किल से चन्द दिन बचे हैं। वर्ष 2013 के चुनाव की तरह भी बेहद खास है। तब अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार आंदोलन के कारण वैकल्पिक राजनीति की हवा ने कांग्रेस की सियासत की सेहत खराब कर दी थी तो इस बार एक और दो लोकसभा चुनाव में भाजपा को धमाकेदार जीत दर्ज कराने वाले ब्रांड मोदी हैं तो दूसरी ओर 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को 67 सीटें दिलाने वाले ब्रांड केजरीवाल। कौन-सा ब्रांड सियासत के बाजार में खरा उतरता है यह समय ही बताएगा। दिल्ली के चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाले मुख्य रूप से तीन कारक होंगे। पहला कारक मोदी होंगे। मसलन क्या दिल्ली की जनता लोकसभा चुनाव की तरह ब्रांड मोदी पर भरोसा करेगी? अगर इसका जवाब हां है तो चुनाव परिणाम का सारा तिलस्म यहीं बिखर जाता है। बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को करीब 57 प्रतिशत वोट हासिल हुए, जो कांग्रेस और आप के मत प्रतिश्त से क्रमश 35 और 39 प्रतिशत ज्यादा थे। हालांकि लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोटों में हरियाणा में 22 प्रतिशत, झारखंड में 17 प्रतिशत वोटों की गिरावट दर्ज की गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप करने के बाद विधानसभा चुनाव में महज तीन सीटों तक सिमटना बताता है कि महज मोदी के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना इतना भी आसान नहीं है। दूसरा अहम कारक कांग्रेस का प्रदर्शन है। करीब-करीब एक ही वोट बैंक के कारण आप की सारी उम्मीदें कुछ हद तक इस बार कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी टिकी हैं। मजबूत कांग्रेस भाजपा को तो कमजोर, कांग्रेस आप को अजेय बनाती है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन में मामूली सुधार ने सातों सीटों को भाजपा की झोली में डाल दी थीं। ऐसे में सवाल है कि दो दिग्गजों शीला दीक्षित के दिवंगत होने और अजय माकन के गायब होने के कारण नेतृत्वहीन कांग्रेस इस चुनाव में अपनी सेहत में कितना सुधार करेगी। कांग्रेस ने हालांकि कई दिग्गजों को चुनाव लड़ने पर मजबूर किया है पर इनकी परफार्मेंस पर कांग्रेस का भविष्य निर्भर करेगा। तीसरा अहम कारक वैकल्पिक राजनीति के नारे से सियासत में खड़ा हुआ ब्रांड केजरीवाल है। पार्टी का वैचारिक पक्ष रखने वाले योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास सहित तमाम दिग्गजों ने या तो आप से तौबा कर ली या उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यह पहला आम आदमी पार्टी (आप) का चुनाव है जब पुरानी टीम नहीं है और सारा दारोमदार ब्रांड केजरीवाल पर है।

Sunday, 26 January 2020

चार मीनार मेरे बाप ने बनवाया है, तेरे बाप ने नहीं

ऑल इंडिया मजलिस--इत्तेहाद मुसलमीन के नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को एक बार फिर विवादित टिप्पणी की है। हैदराबाद की एक सभा में ओवैसी ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए केंद्र पर निशाना साधा। ओवैसी ने हैदराबाद में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जो लोग कागज देखने के लिए घर आएं उनसे कह दो कि हमने इस देश में 800 साल से राज किया है। यह चार मीनार मेरे बाप-दादा ने बनवाया है, तेरे बाप ने नहीं। ओवैसी ने सभा को संबोधित करते हुए कहाöकिसी को भी डरने और घबराने की जरूरत नहीं है। हमको इनकी बातों में आने की जरूरत नहीं है। जो लोग पूछ रहे हैं कि मुसलमान के पास क्या है, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि तू मेरे कागज देखना चाहता है। मैंने 800 बरस तक इस मुल्क में हुक्मरानी और जांबाजी की है। यह मुल्क मेरा था, मेरा है और मेरा रहेगा। मेरे अब्बा और दादा ने इस मुल्क को चार मीनार दिया, कुतुब मीनार दिया, जामा मस्जिद दिया। हिन्दुस्तान के पीएम जिस लाल किले पर झंडा फहराते हैं उसे भी हमारे पूर्वजों ने ही दिया है। बता दें कि ओवैसी इससे पहले भी कई बार विवादित बयान दे चुके हैं। इससे पहले भी ओवैसी कई बार हिन्दुओं के खिलाफ ऊटपटांग टिप्पणियां करते रहे हैं। मैं हलवा नहीं, लाल मिर्ची। हलवा अरबी शब्द है। वित्तमंत्री ने हलवे की पूजा की। सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि भाजपा उन्हें हलवा समझने की भूल करती है, लेकिन वह हलवा नहीं लाल मिर्ची हैं। ओवैसी ने बजट की छपाई प्रक्रिया से पहले होने वाले हलवा सेरेमनी पर तंज कसा। ओवैसी ने कहा कि हलवा तो अरबी शब्द है, लेकिन वित्तमंत्री उसकी पूजा कर रही थीं, क्या यह लोग इनका भी नाम बदलेंगे? बता दें कि मोदी सरकार की दूसरी पारी का पहला बजट एक फरवरी को आने वाला है। इसके लिए हलवा सेरेमनी के साथ बजट छपने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने गृहमंत्री को बुधवार को चुनौती भी दी कि वह विपक्ष के नेताओं की बजाय सीएए पर उनके साथ बहस करें। शाह ने विपक्ष पर सीएए के खिलाफ लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और मायावती को सार्वजनिक तौर पर इस पर बहस करने की चुनैती दी थी। शाह की चुनौती पर प्रतिक्रिया देते हुए ओवैसी ने कहाöमैं यह हूं... मेरे साथ बहस करें... इन लोगों के साथ बहस करनी हैöदाढ़ी वाले से करो न। हम सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर बहस और बात करेंगे। उन्होंने कहाöवह (भाजपा) कहते हैं कि वह नाम बदलेंगे। इंशा अल्लाह देश के लोग आपको बदलेंगे। याद रखें मैं हलवा नहीं, लाल मिर्च हूं।

-अनिल नरेन्द्र

और अब कोरोना वायरस

चीन में कोरोना वायरस का दायरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इसने अब भारत में भी दस्तक दे दी है। चीन से हाल के दिनों में भारत लौटे सैकड़ो लोगों में से 10 को घातक कोरोना वायरस से संक्रमण की जांच के लिए अस्पतालों में निगरानी के लिए रखा गया है। इनमें से सात केरल में, दो मुंबई में और एक हैदराबाद में है। इस वायरस को रोकने के लिए चीन ने सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले शहरों वुहान, रझोरू से लोगों को बाहर जाने पर रोक लगा दी है। अधिकारियों के मुताबिक हालात सुधरने तक यहां से बाहर जाने वाली बसों, ट्रेनों, उड़ानों पर भी रोक रहेगी। सतर्पता इसलिए भी बरती जा रही है क्योंकि शनिवार से चीनी नववर्ष शुरू हो रहा है। चीन में देश-विदेश के करीब 40 करोड़ लोग यह त्यौहार मनाते हैं। वह सड़कों पर नाचते हैं-गाते हैं। इधर चीन के नानजिंग शहर में 3-9 फरवरी तक होने वाले महिला ओलंपिक फुटबॉल क्वालीफाइंग मैच अब दूसरी जगह होंगे। चीन में 31 दिसम्बर से अब तक कोरोनो वायरस के 630 मामले सामने आए हैं। 19 लोगों की मौत हो चुकी है। इसका असर अमेरिका समेत नौ देशों में है। कोरोना वायरस आमतौर पर पालतू पशुओं को संक्रमित करते हैं। कई बार उनमें न्यूटेशन होता है और वह मनुष्यों को भी अपनी चपेट में लेने लगते हैं। वुहान से शुरू हुआ यह वायरस भी इसी तरह का है, जो कैसे शुरू हुआ, यह अभी ठीक से पता नहीं है। फिलहाल माना जा रहा है कि यह सी-फूड के जरिये फैला है। पिछले कुछ समय में पशु-पक्षियों से मनुष्य में फैलने वाले वायरस संक्रमण बढ़े हैं। सार्स, मर्स, इबोला, स्वाइन फ्लू व बर्ड फ्लू वगैरह इसी श्रेणी के संक्रमण है। इन सभी ने दुनिया को आतंकित किया है। अभी सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वुहान को चारों तरफ से बंद करने से इस रोग को फैलने से रोका जा सकेगा? खासकर तब जब यह अमेरिका तक पहुंच चुका है और चीन यात्रा करने वाले डेढ़ दर्जन अमेरिकी इससे संक्रमित पाए गए हैं। जाहिर है कि यह संक्रमण चीन के दूसरे हिस्सों में भी फैल चुका होगा, इसलिए इसे रोकने का आपातकालिक उपाय शायद उसे अभी नहीं दिखा होगा। अब चुनौती इस वायरस को दुनियाभर में फैलने से रोकने की है।

नसीरुद्दीन शाह बनाम अनुपम खेर

नए नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में आंदोलन हो रहा है, कुछ लोग इसके हक में हैं तो कुछ लोग इसके विरोध में। इस विवाद से हमारी फिल्म इंडस्ट्री भी अछूती नहीं रह सकी। बॉलीवुड के दो बड़े कलाकारों में भयंकर शब्द जंग छिड़ गई है। एक तरफ हैं अनुपम खेर तो सामने हैं नसीरुद्दीन शाह। इसकी शुरुआत एक साक्षात्कार में नसीरुद्दीन शाह के अनुपम खेर को जोकर कहने से हुई। नसीरुद्दीन ने एक वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में नागरिकता संशोधन कानून पर भी अपनी राय रखी, जिसे लेकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। बता दें कि अनुपम की अभिनेत्री पत्नी खेर भाजपा सांसद हैं। नसीरुद्दीन शाह ने साक्षात्कार में कहाöअनुपम खेर बहुत बोलते आए हैं। मुझे नहीं लगता कि उन्हें ज्यादा गंभीरता से लेना चाहिए। वह एक जोकर हैं और एनएफडी एवं एफटीआईआई के उनके सहयोगी उनकी चापलूसी के साक्षी हैं। यह उनके खून में है और इसमें उनका दोष नहीं है। लेकिन बाकी लोग जो इनका समर्थन कर रहे हैं उन्हें फैसला करना चाहिए कि आखिर वह किसका समर्थन कर रहे हैं। बॉलीवुड हस्तियों में अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, ऋचा चड्ढा और अन्य कई लोग भी सीएए को लेकर अपनी चिंता जता चुके हैं। वह सीधे तौर पर इसका विरोध कर रहे हैं। अनुपम इन दिनों अमेरिका में अपने शो `न्यू एम्सटर्डम' की शूटिंग कर रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह से सवाल उठाया कि भारत में 70 साल से रहना क्या यहां का नागरिक होने का पर्याप्त सुबूत नहीं है? साथ ही कहा कि दूसरे लोगों की तरह मैं भी अपना प्रमाणपत्र नहीं दिखा सकता हूं। इसके बाद अनुपम खेर ने ट्विटर पर वीडियो पोस्ट के जरिये सह-अभिनेता को करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि प्यारे नसीरुद्दीन जी मैंने आपका दिया साक्षात्कार देखा। आपने मेरी तारीफ में कुछ बातें कहीं। आपने कहा कि मैं जोकर हूं। मुझे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए और यह मेरे खून में है। उन्होंने आगे कहा कि इस तारीफ के लिए शुक्रिया पर मैं आपको और आपकी बातों को बिल्कुल गंभीरता से नहीं लेता हूं। आपने अपनी पूरी जिंदगी कामयाबी मिलने के बाद भी खीझते हुए ही बिताई है। अनुपम खेर ने आगे कहा कि अगर आप एक से एक दिग्गज हस्तियों की आलोचना कर सकते हैं तो मैं क्या चीज हूं। अनुपम खेर ने फिर कहा कि आप ऐसी टिप्पणी करके सिर्प एक-दो दिन सुर्खियों में रह सकते हैं। मेरे खून में सिर्प हिन्दुस्तान है। अनुपम ने वीडियो साझा करते हुए लिखा कि जनाब नसीरुद्दीन शाह साहब के लिए मेरा प्यार भरा पैगाम। वह उम्र में भी मुझसे बड़े हैं, तजुर्बे में भी। मैं हमेशा से उनकी कला की इज्जत करता आया हूं और करता रहूंगा। पर कभी-कभी कुछ बातों का दो टूक जवाब देना बहुत जरूरी होता है। यह है मेरा जवाब। अनुपम ने आगे कहा कि आपने अपनी पूरी जिंदगी में इतनी कामयाबी मिलने के बावजूद पुंठा में गुजारी है। अगर आप दिलीप कुमार साहब, अमिताभ बच्चन साहब, राजेश खन्ना, शाहरुख खान, विराट कोहली की आलोचना कर सकते हैं, तो मुझे इस बात का यकीन है कि मैं अच्छी संगत में हूं।

Saturday, 25 January 2020

सांई बाबा के जन्म स्थान को लेकर अब उपजा विवाद

महाराष्ट्र सरकार द्वारा पाथरी को तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने के निर्णय पर शुक्रवार को कोहराम मच गया। शिरडी के सांई बाबा के नाम पर एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है। इस बार विवाद उनकी जन्मस्थली पाथरी को लेकर है। पाथरी को सांई बाबा का जन्म स्थान बताकर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की सरकार ने इसके विकास की घोषणा की है। इससे नाराज उनकी कर्मस्थली शिरडी के बाशिंदों ने दो दिन शहर बंद रखने की घोषणा की है। हालांकि श्री सांई बाबा संस्थान न्यास के जनसम्पर्प अधिकारी मोहद यादव ने कहा कि मंदिर बंद नहीं होगा। भाजपा सांसद सुजय विखे पाटिल ने पूछा कि पाथरी को सांई बाबा का जन्म स्थान बताने के मुद्दे नई सरकार के आने के बाद ही क्यों उठ खड़ा हुआ है? पाटिल ने यह भी कहा कि शिरडी के लोग इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई भी लड़ सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कहा कि जन्म स्थल पर विवाद के कारण पाथरी में श्रद्धालुओं को दी जाने वाली सुविधाओं का विरोध नहीं होना चाहिए। सांई बाबा की जन्मभूमि को लेकर विवाद तब पैदा हुआ जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने परमणी जिले के पाथरी गांव के विकास के लिए 100 करोड़ रुपए देने की घोषणा की। पाथरी को सांई बाबा का जन्मस्थली कहा जाता है। शिरडी ग्राम सभा का कहना है कि इससे पहले भी सांई बाबा और उनके माता-पिता के बारे में अनेक बोगस दावे किए जा चुके हैं। अब पाथरी को उनकी जन्मभूमि का दावा कर सांई बाबा पर एक जाति विशेष का लेबल लगाने की कोशिश की जा रही है। ग्राम सभा के लोगों का कहना है कि उनका विरोध पाथरी के विकास के लिए 100 करोड़ रुपए दिए जाने को लेकर नहीं, बल्कि उसे सांई बाबा की जन्मभूमि की पहचान देने से है। ग्राम सभा का यह भी कहना है कि सांई बाबा ने अपना नाम, पता, जाति, धर्म को कभी किसी को नहीं बताया। इसलिए वह दुनियाभर में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं। पाथरी के स्थानीय विधायक और एनसीपी नेता दुर्रानी अब्दुल्ला खान का कहना है कि हमारे पास पर्याप्त सुबूत हैं कि सांई बाबा का जन्म परमणी जिले के पाथरी में हुआ था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी पहले इस तथ्य का समर्थन कर चुके हैं। लोग इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अगर महाराष्ट्र के इस शहर का विकास होता है तो शिरडी का महत्व कम हो जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया था कि शिरडी निवासी कमाई बांटने के डर से विरोध कर रहे हैं। बता दें कि 1854 में पहली बार शिरडी आए सांई। 16 वर्ष की थी उस समय बाबा की उम्र। 1918 में शिरडी में ही समाधि ली थी सांई बाबा ने। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस विवाद को जल्द हल कर लिया जाएगा। करोड़ों के अराध्य हैं शिरडी के सांई बाबा।

-अनिल नरेन्द्र

प्रशांत किशोर ने दी अमित शाह को चुनौती

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के इस कथन से कि नागरिकता संशोधन कानून किसी सूरत में वापस नहीं होगा, जिसने इसका विरोध करना है करे, से यह तो स्पष्ट हो गया कि सरकार किसी हालत में अपने कदम पीछे नहीं लेगी। यह सख्त चुनौती उन लोगों के लिए है जो देशभर में इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों की मांग है कि सरकार नागरिकता संशोधन कानून वापस ले। लेकिन सरकार अपने फैसले पर दृढ़ है और तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद उसने गजेटियर में कानून को शामिल कर लिया। इस तरह संवैधानिक रूप से नागरिकता संशोधन कानून अमल में आ गया है। बिहार में जनता दल (जदयू) भाजपा के सहयोग से सरकार चलाने वाली पार्टी के नेता स्वयंभू चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान कि जिसे विरोध करना है करे, सीएए वापस नहीं होगा पर पलटवार करते हुए बुधवार को कहा कि यदि शाह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी. (एनआरसी) का विरोध करने वालों की परवाह नहीं करते तो मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि अपने वादे के मुताबिक इस कानून को लागू क्यों नहीं करते? शाह तो संसद में सीएए और एनआरसी लागू करने की घोषणा भी कर चुके हैं। गौरतलब है कि शाह ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कथा पार्प में सीएए के समर्थन में आयोजित विशाल जनसभा में सीएए का विरोध कर रहे विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा थाöमैं डंके की चोट पर कहता हूं कि जिसे विरोध करना है करे लेकिन सीएए वापस नहीं होने वाला है। प्रशांत किशोर सीएबी से लेकर सीएए और एनआरसी का लगातार विरोध कर रहे हैं। एनआरसी और सीएए का लगातार विरोध कर रहे प्रशांत ने आगे कहा कि नागरिकों की असहमति को खारिज करना किसी भी सरकार की ताकत का संकेत नहीं हो सकता है। अमित शाह, अगर आपको सीएए का विरोध करने वालों की फिक्र नहीं है तो फिर आप इन कानूनों को आगे क्यों नहीं बढ़ा रहे हैं? आप कानून को उसी तरह लागू करें जैसे कि आपने देश को इसकी क्रोनोलॉजी समझाई थी। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से सीएए की धाराओं पर स्पष्टीकरण मांगा और उन्होंने केंद्र पर इस मुद्दे को लेकर झूठ फैलाने का आरोप भी लगाया। दार्जिलिंग में सीएए के खिलाफ चार किलोमीटर लंबे विरोध मार्च का नेतृत्व करने के बाद एक रैली को संबोधित करते हुए ममता ने कहा कि केंद्र सरकार केवल गैर-भाजपा शासित राज्यों में सीएए को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के गृहमंत्री हर दिन नए उपदेश दे रहे हैं। मैं उनसे यह स्पष्ट करने के लिए कहना चाहूंगी कि क्या किसी व्यक्ति को पहले विदेशी घोषित किया जाएगा और उसके बाद उसे सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन की अनुमति होगी?

Friday, 24 January 2020

कर्ज चुकाने हेतु पाक पीओके का हिस्सा चीन को देगा

द यूरेशियन टाइम्स की भारत के लिए चिंताजनक रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार चीन के शिनजियांग प्रांत को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) प्रोजेक्ट के कर्ज का बोझ पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए भारी साबित होने लगा है। विशेषज्ञों ने पहले ही सीपीईसी प्रोजेक्ट को पाकिस्तान के लिए ऋण के अंधे कुएं सरीखा बता चुके हैं। इस प्रोजेक्ट के निर्माण की सारी जिम्मेदारी चीनी कंपनियों को ही दी गई है, जो चीनी प्रशिक्षित मजदूरों को ही लाकर काम कर रही है और निर्माण सामग्री भी चीन से ही आयात की जा रही है, जिसका बोझ पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस प्रोजेक्ट के चलते पाकिस्तान में स्थानीय स्तर पर न के बराबर रोजगार सृजित हुए हैं और न के बराबर ही वहां की अर्थव्यवस्था को सामग्री को खरीदने-बेचने से गति मिली है। विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि अपनी लगातार गिरती अर्थव्यवस्था से जूझ रहा पाकिस्तान इस कर्ज को उतारने के लिए अपने कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का कुछ हिस्सा चीन को सौंप सकता है। द यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की तरफ से यह कदम उठाए जाने पर चीन को भारत की तरफ से कड़ा प्रतिरोध किए जाने का डर है, जो पहले ही सीपीईसी को पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से गुजारने को अपनी संप्रभुता का हनन बताते हुए विरोध जता चुका है। भारत का दावा है कि यह क्षेत्र उनके अखंड जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा है। करीब 61 अरब डॉलर के सीपीईसी प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान दिसम्बर, 2019 तक चीन से करीब 21.7 अरब डॉलर कर्ज ले चुका था। इनमें से 15 अरब डॉलर का कर्ज चीन की सरकार ने और शेष 6.7 अरब डॉलर का कर्ज वहां के वित्तीय संस्थानों से लिया गया था। पाकिस्तान के सामने इस कर्ज को वापस लौटाना अब बड़ी समस्या बन गया है क्योंकि अर्थव्यवस्था के पूरी तरह ध्वस्त हो जाने से उसके पास महज 11.5 अरब डॉलर की ही विदेशी मुद्रा भंडार रह गया है। भारत पूरे पीओके को अपना हिस्सा मानता है और यह बात भारत की संसद में भी स्वीकार हो चुका है। अब सवाल यह उठता है कि अगर पाकिस्तान ने चीन को पीओके का कुछ हिस्सा कर्ज चुकाने के लिए दे दिया तो भारत के पास क्या विकल्प बचेगा?

-अनिल नरेन्द्र

शाहीन बाग आंदोलन से प्रभावित जनता

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) व एनआरसी के विरोध में सवा महीने से दिल्ली-नोएडा मार्ग पर शाहीन बाग में चल रहे धरने के कारण पड़ोसी कॉलोनियों के निवासियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है। लाखों लोगों को आने-जाने में परेशानी हो रही है। यह मार्ग बंद होने के कारण डीएनडी, मथुरा रोड, रिंग रोड, आगरा रिंग रोड व बारापूला पर भयंकर जाम लग रहा है। वहीं मदनपुर खादर गांव, जैतपुर व सरिता विहार आदि इलाकों में लोगों को भयंकर परेशानी हो रही है। हालत यह है कि लोगों को मदनपुर खादर की पुलिया व यहां पर टूट चुके लोहिया पुल के अवशेष से होकर आना-जाना पड़ रहा है। 12 जनवरी को मदनपुर खादर, अली गांव, प्रियंका कैंप, मोड़ बंद, सरिता विहार और आसपास की दर्जनों जेजे कॉलोनियों के लोग भी सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन को उतारू हो गए। उस दौरान पुलिस ने इन लोगों को यह कहकर शांत कराया था कि मार्ग जल्दी खुलवाया जाएगा, लेकिन ऐसा अब तक नहीं हो पाया। कॉलोनियों के निवासियों के बच्चों की बोर्ड परीक्षाएं 10 फरवरी से शुरू हो रही हैं। बाकी बच्चे भी समय से स्कूल नहीं पहुंच पा रहे हैं। जेजे कॉलोनियों में रहने वाले मजदूर वर्ग के जो लोग नोएडा-फरीदाबाद जाते हैं, वह रोज काम पर देर से पहुंच रहे हैं। ठेकेदार उन्हें वापस लौटा देता है। खबर है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शनकारियों ने हटना तो दूर रहा लड़ाई तेज करने का संकल्प लिया है। शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों ने 29 जनवरी को भारत बंद का आह्वान किया है। शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि सरकार यदि कोई अपना प्रतिनिधि भेजती भी है तो भी विरोध जारी रहेगा। इस बीच दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मंगलवार को शाहीन बाग के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और प्रदर्शन खत्म करने की अपील की। शाहीन बाग के प्रतिनिधिमंडल से उपराज्यपाल ने सीएए खत्न करने की मांग की। उपराज्यपाल ने उनकी बात उपयुक्त जगह पहुंचाने का भरोसा दिया। उपराज्यपाल ने प्रदर्शनकारियों से अपील की वह क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बनाने में सहयोग दें। उन्होंने दल से कहा कि पिछले 39 दिन से सड़क बंद है। इस कारण स्कूली बच्चों, मरीजों, दैनिक यात्रियों व स्थानीय निवासियों को परेशानी हो रही है। लोगों की परेशानी को देखते हुए वह आंदोलन समाप्त कर दें। उधर इस आंदोलन से प्रभावित हुए लोगों ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। इसके बाद वह अगले दो दिन पुलिस की कार्रवाई करने का इंतजार करेंगे। इसके बाद नोएडा, फरीदाबाद और दिल्ली की 50 आरडब्ल्यूए के लोग रास्ता खुलवाने के लिए खुद सड़कों पर उतरेंगे। उधर शाहीन बाग में आंदोलन कर रही महिलाओं को सीएए के बारे में सही जानकारी भी नहीं है। वह तो बस इस डर से पहुंच रही हैं क्योंकि उन्हें बताया गया है कि इस कानून के तहत उन्हें देश से निकाल दिया जाएगा। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि सरकार की तरफ से कोई जिम्मेदार व्यक्ति शाहीन बाग नहीं गया जो सही स्थिति समझा सके।

Wednesday, 22 January 2020

रूस की द जनवरी रिवोल्यूशन

रूस की आंतरिक राजनीति में क्या कुछ घट रहा है, आमतौर पर इसकी कम ही खबर सुनने को मिलती है। पर गत सप्ताह एक चौंकाने वाली खबर आई है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने देश में व्यापक संवैधानिक सुधारों का प्रस्ताव रखने के बाद रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव और उनकी पूरी कैबिनेट ने अचानक इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री मेदवेदेव ने कहा कि राष्ट्रपति पुतिन के इन प्रस्तावों में सत्ता संतुलन में काफी अहम बदलाव आएंगे। उन्होंने कहा कि यह बदलाव जब लागू हो जाएंगे तो न सिर्प संविधान के सभी अनुच्छेद बदल जाएंगे बल्कि सत्ता संतुलन और ताकत में भी बदलाव आएगा। एग्जीक्यूटिव की ताकत, विधानमंडल की ताकत, न्यायपालिका की ताकत, सबमें बदलाव होगा। इसलिए मौजूदा सरकार ने इस्तीफा दिया है। राष्ट्रपति पुतिन ने संविधान में बदलाव के जो प्रस्ताव रखे हैं उनके लिए देशभर में वोट डाले जाएंगे। इसके जरिये सत्ता की ताकत राष्ट्रपति के बजाय संसद के पास ज्यादा होगी। पुतिन ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ रहे दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का डिप्टी चेयरमैन बनाने का फैसला किया है। रूस में राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ साबित करते हुए गत गुरुवार को प्रधानमंत्री पद के लिए मिखाइल वी. मिशुस्तिन का नाम प्रस्तावित किया। चन्द मिनटों में ही उनके नाम पर पार्टी ने सर्वसम्मति की मुहर लगा दी। संसद में अपने पहले संबोधन में मिगस्टीन ने कहाöहमें ऐसे कार्य करने हैं जिनसे जनता अपने जीवन में बेहतरी महसूस करे। पुतिन की इच्छा पर बुधवार को ही प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव ने मंत्रिपरिषद के साथ इस्तीफा दे दिया था। रूसी संसद के निचले सदन ड्यूमा में अब प्रधानमंत्री के तौर पर मिशुस्तिन के नाम की स्वीकृति के लिए मतदान होगा। पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी को ड्यूमा में बहुमत प्राप्त है। इसलिए संसद की स्वीकृति में कोई कठिनाई नहीं होगी। मिशुस्तिन (53) रूस में राजस्व सेवा के अधिकारी थे। जब उन्होंने अप्रत्याशित तरीके से देश का संग्रह बढ़ाया तो वह चर्चा में आए और उन्हें लोगों की तारीफ मिली। यही बात उन्हें पुतिन की नजरों में लाई। नतीजा पुतिन ने मिशुस्तिन को क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े देश का प्रधानमंत्री बना दिया। आलोचकों के अनुसार खुफिया अधिकारी रह चुके पुतिन राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने मेदवेदेव की जगह राजनीतिक तौर पर कमजोर मिशुस्तिन को प्रधानमंत्री बनाया है। संविधान में बदलाव कर पुतिन 2024 में राष्ट्रपति पद का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी सत्ता में अपने लिए महत्वपूर्ण भूमिका का प्रावधान कर सकते हैं। पुतिन रूस की सत्ता पर पिछले 20 साल से काबिज हैं। विपक्ष के नेता लियोनिद वोलकोव ने कहा है कि पुतिन जीवनभर सत्ता में बने रहने के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं। द कोमसेंट बिजनेस डेली ने पुतिन के इस कदम को द जनवरी रिवोल्यूशन की संज्ञा दी है जिसमें उन्होंने बड़े बदलाव की नींव रख दी है। इसके तहत अभी और कई काम होने हैं।

-अनिल नरेन्द्र

अमित शाह की छाया से निकलना नड्डा के लिए बड़ी चुनौती होगी

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अमित शाह की जगह नया अध्यक्ष मिल गया है। सोमवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। पिछले साल जून से वह कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका में थे। भाजपा के 11वें अध्यक्ष बने नड्डा मूल रूप से हिमाचल प्रदेश से हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि नड्डा जी बहुत पुराने साथी रहे हैं। कभी स्कूटर पर बैठकर चलते थे और काम करते थे। इन पर जितना हक हिमाचल वालों का है, उससे ज्यादा हक बिहार वालों का है। नड्डा की पढ़ाई से लेकर कैरियर की शुरुआत तक सब बिहार से हुई है। अमित शाह का स्थान लेने से नड्डा जी के सामने कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि अमित शाह की छाया से निकलने की? अमित शाह ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने के बाद पार्टी को जिस मुकाम तक पहुंचाया, नड्डा की तुलना उससे होगी ही। अमित शाह के कार्यकाल में भाजपा ने यूपी जैसे बड़े राज्य में जीत हासिल की, जहां माना जा रहा था कि जाति समीकरणों के हिसाब से भाजपा की राह आसान नहीं है। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने फिर से धमाकेदार वापसी की। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अमित शाह की इमेज एक सख्त नेता की है। अनौपचारिक बातचीत में पार्टी के कई नेता इस बारे में बता चुके हैं कि पार्टी में नेता का एक डर रहना चाहिए, क्योंकि इससे कार्यकर्ताओं में अनुशासन बना रहता है, लेकिन नड्डा की छवि सॉफ्ट नेता की है। उनके पद संभालने के बाद यह तुलना भी होगी। भाजपा शासित कई राज्यों में गुटबाजी की खबरें आम हैं। खुलकर तो कहीं अंदरखाते भाजपा के नेता दूसरे पार्टी नेताओं की जड़ें काटने की फिराक में रहते हैं। नड्डा इसे कितना रोक पाएंगे और अनुशासनहीनता पर कितना लगाम लगा पाएंगे, इस पर भी नजरें रहेंगी। कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नड्डा अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाए। उनके कार्यकाल में महाराष्ट्र, झारखंड और ह]िरयाणा के विधानसभा चुनाव हुए। भले ही सारे फैसलों पर अमित शाह की छाप थी, लेकिन नड्डा यहां अपनी सशक्त मौजूदगी भी दर्ज नहीं करा पाए। नड्डा की पहली चुनौती चुनावों की दृष्टि से दिल्ली विधानसभा चुनाव है। इसी साल बिहार के भी चुनाव होने वाले हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी इस समय बड़ी चुनौतियों से भी घिरी है। सीएए, एनआरसी आदि पर देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। कई राज्यों में सत्ता जा चुकी है। नड्डा के लिए अच्छा यह है कि पार्टी की धुरी और ब्रांड पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का सहयोग और आशीर्वाद साथ है। भाजपा उनके साथ देशभर में पूरी तरह खड़ी है। लेकिन कश्मीर में 370 हटाने के फैसले से मिली माइलेज के बाद सीएए और एनपीआर तक पर भी विरोध की आवाजों के बीच नड्डा को पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना होगा। नड्डा जी के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर बधाई।

Tuesday, 21 January 2020

जाना अश्विनी चोपड़ा (मिन्ना) का

करनाल के पूर्व सांसद एवं पंजाब केसरी के पूर्व संपादक अश्विनी चोपड़ा (मिन्ना) का शनिवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। एक वरिष्ठ पत्रकार व दोस्त मिन्ना इस दुनिया से चल बसा। हमारे परिवार की तरह मिन्ना का परिवार भी देश के विभाजन के बाद भारत आकर बस गया। हमारा परिवार दिल्ली आ गया और मिन्ना के दादा लाला जगत नारायण जालंधर आकर बस गए। दोनों ही परिवारों ने भारत में अपनी नई जिंदगी शुरू की। पंजाब में आतंकवाद के शिकार लाला जगत नारायण भी हुए और उनके बेटे (मिन्ना के पिता) रमेश चंद्र जी भी हुए। जमीन से दोनों परिवारों ने नई जिंदगी आरंभ की। मिन्ना काफी समय से फेफड़े के कैंसर से पीड़ित थे। अश्विनी ने शनिवार को 11.45 बजे अंतिम सांस ली। बीमारी की वजह से उन्होंने 2019 में चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। 63 वर्षीय अश्विनी चोपड़ा हिन्दी समाचार पत्र पंजाब केसरी के संपादक थे। उन्हें मिन्ना के नाम से भी जाना जाता था। काफी समय तक उनका विदेश में भी इलाज चला। पिछले दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी मेदांता पहुंचकर अश्विनी का हालचाल जाना था। वह 2014 में भाजपा की सीट पर करनाल लोकसभा से जीतकर संसद पहुंचे थे। 2019 में पार्टी फिर उन्हें सीट देना चाहती थी, लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने मना कर दिया था। अश्विनी चोपड़ा ईमानदारी और बेबाकी के लिए हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगे। अश्विनी के निधन की खबर आते ही देश के प्रधानमंत्री सहित तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, बुद्धिजीवियों व खिलाड़ियों के अंदर शोक की लहर फैल गई। अश्विनी मिन्ना एक शानदार क्रिकेटर भी रहे। वह पंजाब की रणजी टीम में खेले और सीके नायडू ट्रॉफी जीतने वाली नॉर्थ जोन की टीम के सदस्य भी रहे। दाएं हाथ के लोग ब्रेक गेंदबाज अश्विनी को युवावस्था के दिनों में भारतीय स्पिन गेंदबाज का उभरता सितारा माना जाता रहा था। उनकी स्पिन गेंदबाजी का जलवे के कारण भारत के शीर्ष स्पिनर बिशन सिंह बेदी, वेंकट राघवन और चद्रशेखर ने उन्हें भारत के आगामी शीर्ष स्पिनरों में शुमार होने के काबिल बताया था। परिवार में हुई अचानक त्रासदियों ने उन्हें अपना क्रिकेट कैरियर छोड़कर पत्रकारिता करने के लिए मजबूर किया तो उन्होंने यहां भी अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाया। वह भारतीय टीम के चयन के लिए दावेदार थे लेकिन उससे पहले ही उन्हें क्रिकेट छोड़नी पड़ी। जब अटल जी न्यूयॉर्प संयुक्त राष्ट्र संघ के संबोधन के लिए गए थे तो अश्विनी (मिन्ना) और मैं भी उस टीम में शामिल था। हमने यात्रा के दौरान घंटों बातें कीं। अश्विनी की इतनी शानदार तरीके से अंतिम यात्रा के लिए जिस तरह नेता से लेकर आम आदमी, पत्रकार शामिल हुए उससे उनकी लोकप्रियता का पता चलता है। हम शोकाकुल परिवार को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं। मैंने तो एक साथी पत्रकार, एक दोस्त खो दिया। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे। ओम शांति-शांति-शांति।

-अनिल नरेन्द्र

एक फरवरी को फांसी पर अब भी अनिश्चितता बरकरार

तिहाड़ जेल में बंद निर्भया मामले के कैदियों की फांसी की अगली तारीख भले ही एक फरवरी तय कर दी गई हो लेकिन अभी भी पक्का नहीं कि उस दिन फांसी होगी? अगर इनमें से दो कैदियों में किसी एक भी कैदी ने अपनी अपील डाल दी तो फांसी टालने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। कानून व जेल के कामकाज के विशेषज्ञों की मानें तो जेल प्रशासन के लचर रवैये के कारण भी मामले में देरी हुई है। जेल के पूर्व कानूनी अधिकारी सुनील गुप्ता का कहना है कि जेल में बंद इन चारों कैदियों को एक ही दिन फांसी होनी है, क्योंकि यह चारों एक ही मामले में दोषी हैं। इसलिए एक दिन में इन सभी को फांसी होने के लिए जरूरी है कि किसी के खिलाफ कोई मामला लंबित न हो। उन्होंने बताया कि चार में अभी तक केवल एक कैदी ने दायर याचिका डाली है। बाकी तीन के मामले में दया याचिका का विकल्प क्या है, अगर इनमें से किसी ने भी यह याचिका डाली तो उसमें फैसला आने तक किसी को फांसी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट से फांसी का फैसला आने के बाद सात दिन के भीतर जेल प्रशासन को चाहिए था कि वह कैदियों को नोटिस देता कि अगर उन्हें कोई कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करना है तो सात दिन में करें। लेकिन यह नहीं किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि जेल प्रशासन ने अगर इस मामले में लचर रवैया रखा तो दिल्ली सरकार को इस बारे में आगे आकर जेल प्रशासन को आदेश जारी करना चाहिए था। क्योंकि तिहाड़ जेल मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के अधिकार क्षेत्र में आता है। निर्भया के दरिन्दों का डेथ वारंट बार-बार टलता जा रहा है। इसकी एक बड़ी वजह कानून के ही कुछ प्रावधान हैं। फांसी से बार-बार बचने की सबसे बड़ी वजह सामने जो आई है वह फांसी का फैसला हो जाने के बाद उसके अमल के लिए समयबद्ध प्रक्रिया का न होना। निर्भया केस समेत सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं जहां सजा तो हो गई पर अमल नहीं हो सका। निर्भया मामले में ही सजा हुए सात साल से ज्यादा हो गया है और अब भी मामला कानूनी दाव-पेच में फंसा हुआ है। दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज एसएन ढींगरा और जस्टिस आरएस सोढी का मानना है कि इस प्रक्रिया को समयबद्ध पूरा करना होगा, तभी समय पर सजा मिलेगी और न्यायिक तंत्र का मजाक नहीं बनेगा। ऐसी ही कानूनी पेचीदगियों को दूर करने के लिए पूर्व जजों ने कानून में संशोधन की वकालत भी की। जस्टिस ढींगरा ने कहा कि फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद रिव्यू पिटिशन, क्यूरेटिव और दया याचिका दायर करने के लिए निश्चित समय तय करना होगा। निर्भया के मामले में यही हुआ कि फांसी सुनाई जाने के बाद न दोषियों ने याचिकाएं दीं और न जेल ने डेथ वारंट की प्रक्रिया शुरू की। ढाई साल बाद निर्भया की मां कोर्ट पहुंची तो फांसी की प्रक्रिया शुरू हुई। इसलिए कानून में स्पष्ट करना होगा कि जेल समयबद्ध तरीके से प्रक्रिया पूरी नहीं करता तो कार्रवाई होगी।

Sunday, 19 January 2020

सद्दाम के बंकरों ने बचाई अमेरिकी सैनिकों की जान

अमेरिका से चल रहे तनाव के बीच ईरान ने फिर एक बार अमेरिकी सेना को निशाना बनाया है। ईरान ने गत मंगलवार देर रात बगदाद के नजदीक स्थित एक एयरबेस को निशाना बनाकर कत्यूरा रॉकेट से हमला किया। इराकी सेना ने बताया कि इस एयरबेस पर अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। इस हमले में हालांकि किसी के हताहत होने या नुकसान की जानकारी सामने नहीं आ सकी। ईरान के हमले से बचने के लिए अमेरिकी सैनिकों ने अपदस्थ इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन के समय बने बंकरों में छिपकर अपनी जान बचाई थी। अब सामने आई तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि इराक स्थित अमेरिकी एयरबेसों पर ईरानी मिसाइलों ने किस कदर तबाही मचाई। अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने बताया कि पहला मिसाइल हमला सात जनवरी की रात करीब 1.34 बजे पर हुआ। फिर 15-15 मिनट पर दो घंटे तक मिसाइलें गिरती रहीं। सैनिकों की रात डर व भय के साथ गुजरी, हालांकि करीब ढाई घंटे पहले ही हमले की चेतावनी मिलने से जान बच गई। अमेरिकी वायुसेना के कमांडर कैप्टन लिबिंगस्वेन के मुताबिक सेना अपना बचाव अपने आप कर सकती है, पर मिसाइल हमले से बचाव करना नामुमकिन-सा है। कई टुकड़ियों ने सद्दाम राज में बने बंकरों में छिपकर जान बचाई। यह बंकर मिट्टी जैसे रंग के पिरामिड आधार के हैं। इनकी फिसलन भरी दीवारें दशकों पुरानी हैं। यह बंकर 1980 से 1988 के बीच बगदाद और ईरान के बीच हुए खूनी युद्ध के दौरान बने थे। अमेरिकी सेना जब बंकरों में जान बचाने के लिए पहुंची तो उसे इल्म नहीं था कि उन पर बैलिस्टिक मिसाइल का भी असर नहीं होगा। यह बंकर अमेरिकी सेना के लिए बनाए गए बंकरों से भी मजबूत निकले, जो रॉकेट और मोर्टार हमले को भी झेल सकते हैं। अमेरिकी सैनिक अकील फर्गुसन बताते हैं कि जब पता चला कि मिसाइल हमला होने वाला है तो हड्डियां कांप गईं। बेटी की याद आने लगी। मैं मरने के लिए भी 100 प्रतिशत तैयार हो चुका था, लेकिन बंकर ने जान बचा ली। आधे टन की मिसाइलों से सात फुट गहरा और नौ फुट चौड़ा गड्ढा हो गया। ईरान ने कमांडर कासिम सुलेमानी के अमेरिकी एयर स्ट्राक में मौत के बाद बदला लेते हुए मिसाइलें दागी थीं। ईरान ने इसमें कई अमेरिकी सैनिकों के हताहत होने का दावा किया था लेकिन वाशिंगटन ने इस दावे को खारिज कर दिया था। हालांकि ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड ने यह स्वीकारा था कि हमने मिसाइलों का हमला अमेरिकी सैनिकों को टारगेट करने के लिए नहीं किया था, उनका मकसद सिर्प अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना था।

-अनिल नरेन्द्र

अमेजन बिलियन डॉलर निवेश कर भारत पर अहसान नहीं कर रहा

मल्टी नेशनल दिग्गज कंपनी अमेजन के चीफ जेफ बेजोस द्वारा भारत में एक बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करने के बयान पर केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के कटाक्ष से सियासी गर्मी भी बढ़ गई है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को कहा कि अमेजन भारत में निवेश कर कोई उस पर अहसान नहीं कर रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि ऑनलाइन कारोबार मंच उपलब्ध कराने वाली कंपनी अगर दूसरों का बाजार बिगाड़ने वाली मूल्य नीति पर नहीं चल रही है तो उसे इतना बड़ा घाटा कैसे हो सकता है। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस के भारत में एक अरब डॉलर के निवेश के ऐलान के बाद गोयल ने यह बात कही। यही नहीं पीयूष गोयल ने बेजोस को मिलने का समय भी नहीं दिया। इससे पहले पीएम मोदी से भी बेजोस ने मिलने का समय मांगा था, लेकिन उन्हें भी इससे इंकार कर दिया था। पीयूष गोयल ने कहा कि ई-कॉमर्स कंपनियों को भारतीय नियमों का पालन करना होगा। उन्हें कानून में सुराख ढूंढ कर पिछले दरवाजे से भारतीय बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। भारत बहु-बांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को 49 प्रतिशत से अधिक की निवेश करने की अनुमति नहीं देता। सरकार ने इस क्षेत्र में अभी किसी भी विदेशी खुदरा कंपनी को कारोबार की अनुमति नहीं दी है। दिल्ली में चल रहे वैश्विक संवाद सम्मेलन रायसीना डायलॉग में उन्होंने तल्ख अंदाज में कहा कि अमेजन एक अरब डॉलर निवेश कर सकती है, लेकिन अगर उन्हें अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है तो वह उस अरब डॉलर का इंतजाम भी कर रही होगी। इसलिए ऐसा नहीं है कि वह एक अरब डॉलर का निवेश कर भारत पर कोई अहसान कर रहे हैं। बता दें कि अमेजन और एक अन्य कंपनी द्वारा भारत में रिटेल कारोबार के दौरान  गलत प्रेक्टिस अपनाने का आरोप लगा देश के व्यापारिक वर्ग में तो पहले से ही नाराजगी थी। अब गोयल के बयान पर कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम की प्रतिक्रिया मिलने से और सियासत होने की संभावना है। पीयूष के बयान को चिदम्बरम ने गलत बताया है। चिदम्बरम ने तंज कसते हुए कहा कि कॉमर्स मिनिस्टर को भारत की अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के लिए इसी तरह औरों को भी झिटकना चाहिए। वहीं कई जानकार इतनी बड़ी कंपनी पर सरकार के वरिष्ठ मंत्री द्वारा इतने खुले और कड़े बयान पर हैरानी भी जता रहे हैं। इसके असर की बातें भी की जा रही हैं। लेकिन अमेजन और फिल्पकार्ट द्वारा गलत तरीके अपनाने के आरोप लगाकर शिकायत करने वाले संगठन कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन ट्रेडर्स (कैट) ने गोयल के बयान पर खुशी जाहिर की है। कैट की शिकायत और देशभर में आंदोलन के बाद ही सरकार इस मामले की जांच कर रही है। कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि चिदम्बरम के बयान का नुकसान कांग्रेस को देशभर में भुगतना पड़ेगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर पड़ेगा। कैट की अगुवाई में दिल्ली के व्यापारी इस मामले की वजह से कांग्रेस को वोट न देने का भी फैसला कर सकते हैं।

Saturday, 18 January 2020

ताइवान ने दिया चीन को जबरदस्त झटका

ताइवान में राष्ट्रपति साई इंग-विन का दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव जीतना चीन के लिए इसलिए भारी झटका है क्योंकि चीन ने उन्हें हराने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। चीन की धमकियों के आगे ताइवान बिल्कुल नहीं झुका। राष्ट्रपति चुनाव में एक तरफ थी साई इंग-विन तो दूसरी तरफ मुख्य प्रतिद्वंद्वी और चीन समर्थक थे एमटी पार्टी के मुखिया हॉन कू-यू थे। शनिवार को आए चुनाव परिणाम में इस द्विपीय देश में पहली महिला राष्ट्रपति को दोबारा सत्ता हासिल हुई है। केंद्रीय चुनाव आयोग के अनुसार देश के 22 शहरों और काउंटी में करीब 1,93,10,000 मतदाता हैं। कुल मतदाताओं में छह प्रतिशत 20 से 23 वर्ष के आयु के बीच हैं। चीन ताइवान की स्वतंत्रता स्वीकार नहीं करता, वह उसे अपना हिस्सा मानता है। ताइवान के मामलों में किसी देश का बोलना भी चीन को पसंद नहीं है। साई की जीत पर अमेरिका ने खुशी जाहिर की है और उन्हें बधाई दी है। विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने आशा जताई है कि वह चीन की कूरतापूर्ण दबाव को भुलाकर उसके साथ संबंधों में स्थिरता लाने की कोशिश करेंगे। मतों के बढ़ते अंतर के बीच मतगणना के बीच साई (63) ने अपनी पार्टी के मुख्यालय में अपने समर्थकों के बीच आकर उन्हें बधाई दी। हाथों में देश और पार्टी की झड़ियां लिए हजारों हर्षतिरेक समर्थकों ने नारेबाजी करते हुए उनका स्वागत किया। साई ने दुनिया को दिखा दिया है स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक तरीके की जीवनशैली से उसे कितना प्यार है। हम अपने देश से प्यार करते हैं, यह हमारा गौरव है। चीन की तमाम धमकियां बेअसर रहीं। चीन समर्थक केएमटी पार्टी के मुखिया हॉन कू-यू ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। परिणामों के अनुसार साई की डेमोकेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को 80 लाख मतों में 57 प्रतिशत मतों का बड़ा हिस्सा मिला जबकि हॉन की पार्टी को 38 प्रतिशत मत मिले। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा मतों की गिनती पूरी भी नहीं हुई थी कि हॉन ने मतों के बड़े अंतर को देखते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली। ताइवान का नतीजा चीन के लिए बड़े झटके से कम नहीं है। उसने साई को राष्ट्रपति पद पर न लौटने देने के लिए हान के पक्ष में पूरी ताकत झोंक दी थी। पिछले चार साल से चीन ने ताइवान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बना रखा था जिसे वहां की जनता साई के शासन से उकता जाए। लेकिन उसकी यह नीति काम नहीं आई और साई की पार्टी उम्मीद से ज्यादा मतों से जीतकर सत्ता पर फिर काबिज हो गई। उधर हांगकांग भी चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है। तमाम प्रयासों के बावजूद हांगकांग में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। दूसरे मुल्कों को घेरने की चीन की रणनीति उल्टी ही पड़ रही है। ताइवान ने एक बार फिर दिखा दिया कि चीन को भी शिकस्त दी जा सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

जान की बाजी दांव पर लगाकर हमारे सैनिक ड्यूटी पर डटे हुए हैं

पिछले कई दिनों से कश्मीर में हो रही जबरदस्त बर्पबारी ने एलओसी के इलाके में भयानक तबाही मचाई हुई है। खासकर सैन्य प्रतिष्ठान और सैनिक इसके शिकार हो रहे हैं। तीन दिनों में बर्फीले तूफान और हिमस्खलन 13 लोगों की जानें भी लील चुके हैं। यही नहीं घुसपैठियों को रोकने की खातिर लगाई गई तारबंदी भी कई स्थानों पर ढह गई है जिस कारण सेना को मौसम की भयानक परिस्थितियों में चौकसी और सतर्पता को बढ़ाना पड़ा है। हमारे सैनिकों की इन परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी निभाना अत्यंत खतरनाक और मुश्किल हो गया है। यह किन परिस्थितियों में गुजर रहे हैं इस एक घटना से पता चलता हैöसामने से बर्प का पह़ाड़ आ रहा था और अग्रिम पोस्ट पर तैनात भारतीय सेना के जवान जान की परवाह न करते हुए अपनी ड्यूटी पर डटे थे। उनके पास 40-50 मीटर तक ही इधर-उधर जाने का मौका था। यदि जान बचाने को दूर जाते तो ताक में बैठा दुश्मन घुसपैठ कर सकता था। उन्हें भरोसा था कि बर्प के नीचे दब गए तो उन्हें बचाने के लिए साथी जवान जरूर आ जाएंगे। इसी विश्वास के साथ चौकियों पर डटे जवानों को तो बचा लिया गया, लेकिन चार जवान मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। पिछले 48 घंटे में उत्तरी कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में औसत से अप्रत्याशित तौर पर ज्यादा बर्पबारी हुई है। गुरेज सैक्टर में 51 सेंटीमीटर, माछिल में 117, केरन और तंगधार सैक्टर में 56, नौगांव में 112 और उरी व गुलमर्ग सैक्टर में 61 सेंटीमीटर बर्प पड़ी है। इसके कारण क्षेत्र में अब तक का सबसे कम शून्य से 57 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया। सेना के सूत्रों के अनुसार सैनिक पोस्टों के आसपास बर्प के 32 पहाड़ हिमनद बनकर खिसके। कंजालवन के गुरेज सैक्टर में 200 से अधिक सैन्य कर्मी तैनात थे। हिमस्खलन आते देख सेना ने अपने जवानों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दिया था। लेकिन माछिल सैक्टर में आए हिमस्खलन में पांच सैनिक बर्प के नीचे दब गए। बचाव कार्य के दौरान चार सैनिकों को निकाल लिया गया, इनमें से तीन की मौत हो गई और एक गंभीर रूप से घायल हो गया। एक सैनिक लापता था, उसका भी शव बरामद हुआ है। सेना ने बर्प में फंसे बीएसएफ के चार जवानों को भी बचाया था, लेकिन हार्ट अटैक के कारण एक जवान की मौत हो गई। सेना के सूत्रों का कहना है कि विकट परिस्थितियों में जवान अपनी पोस्ट नहीं छोड़ सकता। उसे पता है कि मौत सामने है लेकिन वह अपनी ड्यूटी पर अडिग रहता है। क्योंकि दुश्मन घुसपैठ करने और चौकी पर कब्जा करने की फिराक में रहता है। देशवासियों को इस बात का अंदाजा भी नहीं हो सकता कि हमारे बहादुर सैनिक अपनी जान की बाजी दांव पर लगाकर हमारी रक्षा कर रहे हैं। इन जवानों को हमारा सलाम। जय हिन्द।

Friday, 17 January 2020

सीएए के खिलाफ केरल से खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), 2019 के खिलाफ केरल रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाता जा रहा है। अब यह देश का पहला राज्य बन गया है जिसने सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केरल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया है। इससे पहले राज्य में सीएए लागू नहीं करने का प्रस्ताव विधानसभा में पास कर रिकॉर्ड बनाया जा चुका है। वह ऐसा करने वाला देश का पहला और अकेला राज्य है। सरकार ने मांग की है कि इस कानून को संविधान में प्रदत्त समता, स्वतंत्रता व पंथनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला करार दिया जाए। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली केरल की सरकार ने याचिका में पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियम 2015 और विदेशी (संशोधन) आदेश 2015 की वैधता को भी चुनौती दी है। यह नियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों के यहां रहने को नियमित करती है जो 31 दिसम्बर 2014 से पहले इस शर्त पर भारत में दाखिल हुए थे कि वह अपने घर से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भाग आए थे। याचिका में कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव और भारत सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है। सीएम पिनराई विजयन ने कहा कि राज्य सीएए के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में इसलिए गया क्योंकि यह कानून संवैधानिकता शुचिता के खिलाफ है। यह संविधान के भीतर रहते हुए नागरिक अधिकारों की रक्षा करने की हमारी ओर से हस्तक्षेप किया गया है। गौरतलब है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के प्रावधान वाले सीएए का विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानों को नहीं रखा गया है जो धार्मिक आधार पर भेदभाव का मामला है। विपक्षी दलों का कहना है कि संविधान धार्मिक आधार पर भेदभाव की इजाजत नहीं देता है। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि चूंकि तीनों पड़ोसी देशों में गैर-मुस्लिमों के साथ धार्मिक आधार पर ही उत्पीड़न होते हैं, इसलिए उन्हें नागरिकता देने का विशेष प्रबंध किया गया है। केंद्र सरकार का कहना है कि इससे विदेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता नहीं देने का कहीं उल्लेख नहीं है। सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहले ही 60 याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। कोर्ट इन याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई करेगी। पिछली सुनवाई में इस कानून पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया था। संशोधित कानून 10 जनवरी से लागू हो गया है। इस कानून में 31 दिसम्बर 2014 तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रताड़ित हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। देखें, 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में क्या होता है?

-अनिल नरेन्द्र

डीएसपी देवेंद्र की गिरफ्तारी पर सियासत गरमाई

कश्मीर में आतंकियों के साथ गिरफ्तार डीएसपी देवेंद्र सिंह की भूमिका पर मंगलवार को कांग्रेस ने गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने कहा है कि पुलवामा हमले के वक्त देवेंद्र सिंह वहीं तैनात थे। इस हमले की फिर से जांच होनी चाहिए। पार्टी मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी बयान देना चाहिए। 2001 में संसद और पुलवामा आतंकी हमले में भी देवेंद्र सिंह का नाम आया है। इससे पहले लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ट्वीट कर कहा कि पुलवामा जैसी घटनाओं के असली दोषी कौन थे, इस पर नए सिरे से जांच होनी चाहिए। तब हमारे 42 जवान शहीद हो गए थे। चौधरी ने आगे कहा कि अगर डीएसपी का नाम देवेंद्र खान होता तो आरएसएस की ट्रोल रेजीमेंट की प्रतिक्रिया बेहद स्पष्ट और मुखर होती। `देश के दुश्मनों' की रग, पंथ और संप्रदाय से इतर निंदा होनी चाहिए। भाजपा ने मंगलवार को कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि विपक्षी दल भारत पर प्रहार करने और पाकिस्तान को बचाने में माहिर है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने डीएसपी देवेंद्र सिंह की गिरफ्तारी पर कांग्रेस द्वारा धर्म खोजने को लेकर विपक्षी दल पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पाक को ऑक्सीजन देने और भारत पर प्रहार करने वाले के तौर पर सिमट गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी दल का पड़ोसी देश का बचाव करने का इतिहास रहा है। उन्होंने कांग्रेस को यह स्पष्ट करने की चुनौती दी कि क्या उन्हें पुलवामा हमले के गुनाहगारों को लेकर कोई संदेह है? उन्होंने कहा कि ऐसे कई संयोग सामने आए हैं जो साजिश दर्शाते हैं। कांग्रेस पाकिस्तान की भाषा बोलती है। कांग्रेस ने फिर आतंकवाद में धर्म खोज लिया है। इसी ने हिन्दू आतंकवाद की बात भी की थी। कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने पीएम मोदी को हिन्दू जिन्ना कहा था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी कहा था कि हमें सिमी या इस्लामिक आतंकवाद से डर नहीं है। हमें हिन्दुओं से डर है। यह पार्टी रोज किसी न किसी बात पर पाकिस्तान की पीठ सहलाती है और हिन्दुस्तान की पीठ में खंजर घोंपती है। डीएसपी देवेंद्र सिंह पहले भी कई मामलों में चर्चित रहे हैं। 1990 में वह सब-इंस्पेक्टर के तौर पर नियुक्त हुआ था। प्रोवेंशन के दौरान उसने व उसके साथी ने एक ट्रक से बरामद नशीले पदार्थ बेच दिया था। उसकी बर्खास्तगी तत्कालीन आईजी ने मानवीय आधार पर रोक दी थी। इसके बाद दोनों को एसओजी में भेज दिया गया था। 1997 में बडगांव में तैनाती के दौरान फिरौती मांगे जाने पर उसे पुलिस लाइन भेजा गया था। 2015 में तत्कालीन डीजीपी के. राजेंद्रा ने उसकी तैनाती शोपियां और पुलवामा जिला मुख्यालय में की थी। पुलवामा में गड़बड़ी की शिकायत पर तत्कालीन डीजीपी एसपी वैध ने अगस्त 2018 में उसे एंटी हाइजैकिंग विंग में भेज दिया था। देखें, जांच में और कितने रहस्य खुलते हैं?

Thursday, 16 January 2020

अमेरिका-ईरान युद्ध के छंटते बादल?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को संकेत दिया कि वह इराक में अमेरिकी ठिकानों पर ईरानी मिसाइल हमलों का जवाब सैन्य तरीके से नहीं देगा, जिसके बाद दोनों देशों में युद्ध की स्थिति में पहुंचने से पहले अपने कदम थामते दिखे। ईरानी नेताओं और लोगों को सीधा संदेश देते हुए ट्रंप ने कहा कि अमेरिका उन सभी के साथ शांति के लिए तैयार है, जो शांति चाहते हैं। उन्होंने कहाöईरान के नेताओं और लोगों के लिए हम चाहते हैं कि आपका शानदार भविष्य हो जिसके आप हकदार हैं। ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने ट्वीट के जरिये कहा है कि ईरान युद्ध बढ़ाना नहीं चाहता। साफ तौर पर इससे यह समझना चाहिए कि आगे अगर अमेरिका कोई जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा, तो ईरान भी कुछ नहीं करेगा। यह संतोष की बात है कि जो युद्ध के बादल छाए थे वह धीरे-धीरे छंटने लगे हैं। बेशक दोनों के पीछे हटने के अपने-अपने कारण हों। ईरान और अमेरिका युद्ध नहीं चाहते हैं, इसलिए तनाव कम करने के लिए कदम उठाते दिख रहे हैं। ऐसा राष्ट्रपति ट्रंप के बयान और ईरान के  मिसाइल अटैक में भी देखने को मिली। ईरान इसलिए भी युद्ध से पीछे हट रहा है, क्योंकि उसके आर्थिक और अंदरूनी हालात अच्छे नहीं हैं। अमेरिका के लोग युद्ध नहीं चाहते हैं। ट्रंप ऐसा पहले कई बार कह चुके हैं। वहां इस साल राष्ट्रपति चुनाव भी होना है, यदि युद्ध होता है तो ट्रंप को कैंपेन में इसके नतीजों का जनता को जवाब देना होगा। ईरान का पुराना रिकॉर्ड हमेशा तार्पिक फैसले लेने वाला रहा है। खाड़ी में तनाव का कम होना हर किसी के लिए फायदेमंद है। चीन, रूस, सऊदी अरब, इजरायल और यूरोपीय देश भी युद्ध नहीं चाहते हैं। इसलिए वह शांति और संयम बरतने की बार-बार सलाह दे रहे हैं। क्योंकि दुनिया का कोई भी देश फिलहाल युद्ध को अफोर्ड करने की हालात में नहीं है। हालांकि ईरान-अमेरिका के बीच बातचीत सीधी ही संभव है, किसी तीसरे पक्ष की गुंजाइश नहीं है। ईरान कोई भी गैर-जिम्मेदाराना कदम उठाता है तो दुनिया के अन्य देश उसके खिलाफ हो जाएंगे, जो अभी साथ हैं। खाड़ी में तनाव कम होना हर लिहाज से भारत के लिए फायदेमंद होगा। खाड़ी में बड़ी संख्या में भारतीय हैं, इसलिए नौसेना लोगों को निकालने के लिए तैयार है। हालांकि अभी ऐसी नौबत नहीं आई है। भारत में सबसे ज्यादा पैसा और तेल यहीं से आता है। खासकर इराक के हालात, क्योंकि खाड़ी में इराक भारत को तेल निर्यात करने वाला दूसरा बड़ा देश है। ईरान के चाबहार पोर्ट में भी भारत का बड़ा निवेश है। हम अमेरिका और ईरान के युद्ध के बादल छंटने पर बधाई देते हैं। इन दोनों में युद्ध पूरे विश्व को प्रभावित करेगा। सभी को इसे टालने का प्रयास करना चाहिए। दोनों देशों को संयम से काम लेना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

आर्थिक मोर्चे पर डबल झटका

सन 2020 आर्थिक मोर्चे पर चिंताजनक खबरें लेकर आया है। देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने देश में आर्थिक सुस्ती की चिंताजनक तस्वीर पेश की है। बैंक के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर डॉ. सौम्या कांति घोष की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में करीब 16 लाख नौकरियां ही मिलेंगी। वर्ष 2018-19 में 89.7 लाख नौकरियां मिली थीं। इस लिहाज से इस साल 16 लाख रोजगार घटेंगे। ईपीएफओ डेटा पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल-अक्तूबर 2019 तक 43.1 लाख नई नौकरियां मिली थीं। पूरे वर्ष के लिए इसका औसत 73.9 लाख है। एनपीएस रुझानों के अनुसार सरकारी नौकरियों की संख्या भी 39 हजार कम रहने की बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार दूसरे राज्यों में नौकरी कर रहे लोग अपने घर कम पैसा भेज रहे हैं। दिवालिया प्रक्रिया के फैसलों में देरी के कारण कंपनियां श्रमिक संख्या में कटौती कम रही है। यह इसकी वजह हो सकती है। साथ में इंक्रीमेंट भी कम ही लगने की आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्षों में उत्पादकता वृद्धि दर 9.4 प्रतिशत से 9.9 प्रतिशत के बीच रही। इससे कम वेतन वृद्धि की आशंका है। इसकी वजह से कारपोरेशंस और अन्य लोग गैर-जरूरी कर्ज भी ले सकते हैं। यह रिपोर्ट चेतावनी वाली है क्योंकि बलूमबर्ग के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे ज्यादा है। सरकार खुद एक दशक की सबसे कम वृद्धि दर से जूझ रही है। ऐसे में घटते रोजगार से सरकार पर और दबाव बनेगा। एनसीआर डेटा के अनुसार 2018 में 12 हजार से ज्यादा बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी। एक तरफ बढ़ती बेरोजगारी तो दूसरी तरफ बढ़ती महंगाई की मार ने जनता की कमर तोड़ दी है। दिसम्बर 2019 में खुदरा महंगाई दर 7.35 प्रतिशत पहुंच गई। यह साढ़े पांच साल में सबसे अधिक है। इससे पहले मोदी सरकार के शुरुआती दिनों में जुलाई 2014 में यह सबसे अधिक 7.39 प्रतिशत दर्ज हुई थी। महंगाई दर बढ़ने का सबसे बड़ा कारण खाने-पीने की चीजों, खासकर प्याज का 10 गुना तक महंगा होना रहा। सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार दिसम्बर 2018 की तुलना में दिसम्बर 2019 में सब्जियां 60.5 प्रतिशत महंगी हुईं। खाने-पीने के सामान में महंगाई दर 14.12 प्रतिशत रही, जो दिसम्बर 2018 में -2.65 प्रतिशत थी। नवम्बर 2019 में खाद्य महंगाई दर 10.01 प्रतिशत थी। उल्लेखनीय है कि दिसम्बर में प्याज 150 रुपए प्रतिकिलो तक बिका था। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक सुधार के पर्याप्त उपाय नहीं हुए तो देश स्टैगफ्लेशन में जा सकता है। बढ़ती बेरोजगारी के साथ-साथ ऊंची महंगाई दर और मांग की कमी को स्टैगफ्लेशन कहते हैं। क्रसिल रेटिंग एजेंसी ने कहा कि जनवरी के आंकड़ों में सुधार की उम्मीद है। आरबीआई को खुदरा महंगाई दर दो से छह प्रतिशत की सीमा के अंदर रखनी होती है।

Wednesday, 15 January 2020

क्वेटा में तालिबानी बैठक में आत्मघाती हमला

पाकिस्तान में बम धमाकों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। गत शुक्रवार को पाकिस्तान के क्वेटा शहर के एक मस्जिद में तालिबान की बैठक के दौरान हुए धमाके में 30 लोग मारे गए हैं। इस बैठक में तालिबान के सुप्रीम जज शेख अब्दुल हकीम और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के तीन अधिकारी भी मौजूद थे। एसआईटीई खुफिया के मुताबिक आईएसआईएस ने इसकी जिम्मेदारी ली है। हालांकि पाकिस्तानी समाचार एजेंसी ने यह धमाका एक मदरसे में होने की बात कही है। आईएसआईएस ने मस्जिद के अंदर हुए इस हमले पर पाकिस्तान टेलीग्राम चैनल पर और कुछ विदेशी समाचार एजेंसियों पर पोस्ट किए अपने संदेश में कहा कि उसने कुछ अफगान तालिबान सदस्यों को निशाना बनाते हुए यह हमला किया। तालिबान प्रवक्ता ने इस बात से इंकार किया है कि मस्जिद के अंदर कोई अफगान तालिबान सदस्य मौजूद था। ब्लूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता लियाकत शाहवसी ने एक बयान में कहा कि इस आत्मघाती विस्फोट में 16 लोग मारे गए और 19 अन्य घायल हुए। मरने वाले नमाजियों पर भी कंफ्यूजन है, क्योंकि एक सूत्र कह रहा है कि हमले में 30 लोग मारे गए, तो दूसरा सूत्र कह रहा है कि 16 लोग मारे गए। घटना के वक्त करीब 60 लोग शाम की नमाज अदा कर रहे थे। इस घातक विस्फोट से तीन दिन पहले क्वेटा में ही हुए बम विस्फोट में दो लोगों की जान चली गई थी। विस्फोट की ताजा घटना घटने पर अपनी प्रतिक्रिया में राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और प्रधानमंत्री इमरान खान ने विस्फोट की निन्दा की तथा लोगों की मौत पर दुख प्रकट किया। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए और घायलों के स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना की। प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक रिपोर्ट मांगी है। उन्होंने ट्विटर पर कहा कि क्वेटा में मस्जिद और नमाज अदा कर रहे लोगों को निशाना बनाकर किए गए निंदनीय कायराना आतंकवादी हमले पर मैंने तत्काल रिपोर्ट मांगी है। प्रांतीय सरकार से घायलों को हर संभव चिकित्सीय सुविधा सुनिश्चित करने को कहा है। क्वेटा के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) अब्दुल रज्जाक चीमा ने बताया कि 16 मृतकों में पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) अमानुल्ला शामिल हैं। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक दिवंगत पुलिस अधिकारी संभावित निशाने पर रहे होंगे। एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार की खबर के मुताबिक पिछले महीने अज्ञात बंदूकधारियों ने डीएसपी के बेटे की क्वेटा में हत्या कर दी थी। आईएसपीआर ने सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा के हवाले से कहाöपुलिस एवं नगर प्रशासन को हर संभव मदद की जाएगी। जिन लोगों ने मस्जिद में बेगुनाहों को निशाना बनाया वह कभी सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते। हारे हुए आतंकवादियों के मंसूबे कभी सफल नहीं होने दिए जाएंगे। घटना में हताहतों के बारे में कहा जा रहा है कि यह संख्या बढ़ सकती है, कयोंकि कुछ घायलों की स्थिति गंभीर बनी हुई है।

-अनिल नरेन्द्र

डीएसपी का आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार होना

जम्मू-कश्मीर के दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के मीर बाजार इलाके से हिजबुल कमांडर नवीद बाबू समेत दो आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। चौंकाने वाली बात यह थी कि चैपिंग के दौरान गाड़ी से जब हिजबुल मुजाहिद्दीन के तीन आतंकियों को गिरफ्तार किया गया तो उनके साथ जम्मू-कश्मीर पुलिस का एक उपाधीक्षक (डीएसपी) भी मौजूद था, सुरक्षा बलों ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया है। डीएसपी राष्ट्रपति पुलिस मैडल विजेता है। पकड़े गए पुलिस अधिकारी की पहचान श्रीनगर एयरपोर्ट एंटी हाइजैकिंग स्क्वॉड में तैनात डीएसपी देवेंद्र सिंह के रूप में हुई है। पकड़े गए आतंकियों में सैयद नवीद मुश्ताक उर्प नवीद बाबू भी है, जिसका नम्बर आतंकी सरगना रियाज नाइक के बाद आता है। दूसरे आतंकी का नाम आसिफ शकर है। पुलिस ने तीनों को कुलगाम जिले में काजीपुंड के मीर बाजार इलाके से गिरफ्तार किया। नवीद हिजबुल का टॉप कमांडर है जबकि शकर तीन साल पहले इस आतंकवादी संगठन से जुड़ा था। अधिकारियों ने बताया कि डीएसपी आतंकियों को घाटी से बाहर निकालने में मदद कर रहा था। बताया जा रहा है कि डीएसपी की मदद से आतंकी दिल्ली आने वाले थे। उधर डीएसपी के घर पर छापेमारी के दौरान पांच ग्रेनेड और तीन एके-47 बरामद हुई हैं। देवेंद्र सिंह को पिछले साल ही 15 अगस्त को राष्ट्रपति मैडल से नवाजा गया था। वह जम्मू-कश्मीर पुलिस के एंटी हाइजैकिंग स्क्वॉड में शामिल था। अभी उसकी तैनाती श्रीनगर एयरपोर्ट पर थी। इससे पहले 2001 में संसद पर हमले के बाद उनका नाम चर्चा में आया था। तब वह इंस्पेक्टर के रूप में स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप का हिस्सा थे। प्राथमिक पूछताछ में सामने आया है कि डीएसपी की कार में सवार दोनों आतंकियों से कथित तौर पर 12 लाख रुपए में डील हुई थी। इसके बदले वह उन आतंकियों को घाटी से निकालकर चंडीगढ़ और दिल्ली ले जाने वाला था। इतनी ही नहीं, अपने मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उसने बाकायदा चार दिन की छुट्टी भी ले ली थी। जम्मू-कश्मीर पुलिस और आतंकियों के गठजोड़ से सुरक्षा एजेंसियां भी चकरा गई हैं। इनकी साठगांठ की परतें अब आईबी और रॉ जैसी केंद्रीय एजेंसियों की संयुक्त जांच में खुलेंगी। सूत्रों की मानें तो कुख्यात आतंकियों के लिए हथियारों की डील करवाने का जिम्मा भी डीएसपी के पास ही था। अभी इस मामले में सुरक्षा एजेंसियां पूछताछ कर रही हैं। इसमें बड़े मामले खुल सकते हैं। रविवार को राज्य पुलिस के महानिरीक्षक विजय कुमार ने कहा कि डीएसपी देवेंद्र सिंह ने जघन्य अपराध किया है। पूरी सच्चाई तो हालांकि जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन फिलहाल यह सवाल तो उठेगा कि ऐसे संदिग्ध व्यक्ति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी और फिर पिछले साल ही राष्ट्रपति पदक आखिर किस आधार पर दिया गया? यह मामला गहन जांच की मांग तो खैर करता ही है, बल्कि अब इसकी भी व्यापक पड़ताल करने की जरूरत है कि वहां पुलिस और सुरक्षा बलों में ऐसे कितने लोग हैं, जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सुनियोजित ढंग से इस लड़ाई को अंदर से खोखला कर रहे हैं? इस तरह तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई मुश्किल हो जाएगी।

Tuesday, 14 January 2020

सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं को अनिश्चितकाल तक बंद नहीं किया जा सकता। इंटरनेट का इस्तेमाल संविधान की अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार है। हालांकि पिछले साल अगस्त में जब धारा 144 लागू करने के साथ-साथ कश्मीर में इंटरनेट पर पूरी तरह रोक लगा दी गई थी, तभी से अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों और राजनीतिक दलों ने सरकार के इस फैसले की सख्त आलोचना की थी। इसे अभिव्यक्ति की आजादी बाधित किए जाने के तौर पर देखा गया था और सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की गई थी। तमाम आलोचनाओं व विरोध के बावजूद सरकार ने इस मांग को नजरंदाज किया। इतने महीनों से अशांति फैलाने की आशंका का हवाला देकर कश्मीर में धारा 144 के साथ-साथ इंटरनेट पर पाबंदी को कायम रखा गया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में जो टिप्पणियां की हैं, वह सरकार के इस फैसले को एक तरह से कठघरे में खड़ा करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को संविधान के अनुच्छेदद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों की एक हफ्ते के अंदर समीक्षा करने को कहा है। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से बैंकिंग, अस्पताल, शिक्षण संस्थानों समेत सभी जरूरी सेवाएं देने वाले संस्थानों में इंटरनेट सेवा बहाल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि इंटरनेट को सरकार अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं कर सकती। कोर्ट ने इंटरनेट के इस्तेमाल को अभिव्यक्ति के अधिकार का हिस्सा माना है। जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि लोगों को असहमति जताने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 144 का जिक्र करते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल सोच-समझकर ही किया जाना चाहिए। विरोधी विचार को कुचलने के औजार के तौर पर इसका दुरुपयोग न हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कश्मीर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। हमें स्वतंत्रता और सुरक्षा में संतुलन बनाए रखना होगा। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है। इंटरनेट को जरूरत पड़ने पर ही बंद किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का हिस्सा है। इंटरनेट इस्तेमाल की स्वतंत्रता भी आर्टिकल 19(1) का हिस्सा है, कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि धारा 144 का इस्तेमाल किसी के विचारों को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता। पांच अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद से पूरे प्रदेश में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। नए साल में मोदी सरकार के लिए पहला बड़ा झटका करार देते हुए शुक्रवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने दावा किया कि सरकार ने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की थी और इस बार शीर्ष अदालत किसी दबाव में नहीं आई। कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। चिदम्बरम ने कहा कि अदालत का फैसला केंद्र के अहंकारी रुख को खारिज करता है। निश्चित रूप से यह मोदी सरकार के लिए करारा झटका है।

-अनिल नरेन्द्र

यूकेन का विमान ईरानी सेना की गलती का शिकार हुआ

ईरान के अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले के ठीक बाद तेहरान से यूकेन जा रहा यात्री विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। वहीं ईरान के परमाणु ठिकाने के पास भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे। ईरान ने दोनों घटनाओं में किसी तरह की साजिश से इंकार किया था लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो से पूरे मामले का रहस्य गहरा गया। ईरान की एक न्यूज एजेंसी ने तेहरान अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के एक अधिकारी के हवाले से कहा कि तकनीकी वजह से विमान इंजन में आग लग गई थी। दूसरी तरफ विशेषज्ञ दावा कर रहे थे कि विमान मिसाइल का शिकार हुआ है। उधर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टुडो ने कहा कि अनेक खुफिया जानकारी इस ओर इशारा कर रही हैं कि ईरान ने विमान को मार गिराया और बुधवार को हुए इस हादसे में 176 लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे में कनाडा के 63 नागरिक थे। इस विमान में ईरान के 63, यूकेन के 11, स्वीडन के 10, अफगानिस्तान के चार, जर्मनी के तीन और ब्रिटेन के तीन और अन्य देशों के नागरिक सवार थे। कनाडा और ब्रिटेन के साथ ही कई देशों का मानना था कि यह विमान ईरान की मिसाइल की चपेट में आने से गिरा था। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि अब ऐसी जानकारी मिली है कि ईरान में दुर्घटनाग्रस्त हुआ यूकेन का बोइंग 747 विमान ईरान की मिसाइल की चपेट में आ गया था। जॉनसन ने इस हादसे पर एक बयान जारी करते हुए कहाöऐसी जानकारी है कि सतह से हवा में मार करने वाली ईरान की मिसाइल ने यह विमान गिराया है। यह हो सकता है कि ऐसा जानबूझ कर नहीं किया गया हो। सोशल मीडिया में ऐसे अनेक वीडियो डाले गए हैं जिनमें दावा किया जा रहा है कि यह विमान को गिराए जाने के समय के हैं। न्यूयार्प टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहाöउसने एक वीडियो का सत्यापन किया है, जिसमें वीडियो में कोई वस्तु आकाश की तरफ उठती दिखाई दे रही है और इसके बाद इसका प्रकाश मद्धिम होता है और यह तेजी से आगे बढ़ती जा रही है और कुछ सेकेंड के बाद तेज धमाके की आवाज सुनाई देती है। तमाम आरोपों के बाद पहले मना करने वाले ईरान को अंतत मानना पड़ा कि विमान ईरानी मिसाइलों से ही विमान को गलती से निशाना बनाया था। ईरान ने कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के दावे के बीच शुक्रवार को कहा था कि उसकी मिसाइल से यूकेन का विमान नहीं गिरा था। बता दें कि कमांडर कासिम सुलेमानी के एयर स्ट्राइक में मारे जाने के बाद बदले की कार्रवाई करते हुए ईरान ने इराक में मौजूद अमेरिकी एयरबेस को निशाना बनाने के लिए मिसाइलें दागी थीं। उसी दौरान यूकेन का एक बोइंग 747 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। अब ईरान ने स्वीकार किया है कि यह विमान मानवीय चूक के कारण ईरान की मिसाइल से ही गिरा। सवाल उठता है कि विमान में सवार निर्दोष 176 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है, क्या ईरान उनके परिजनों को अब मुआवजा देने को तैयार है?