Friday, 10 January 2020

डेथ वारंट ः सात साल 22 दिन बाद न्याय

आखिर सात साल 22 दिन बाद देश को विचलित करने वाले निर्भया कांड के चारों गुनाहगारों को फांसी पर लटकाने का समय आ गया है। फांसी की सजा पर पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को चारों दरिन्दों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया। इसके मुताबिक दोषी अक्षय कुमार (31), पवन गुप्ता (25), मुकेश (32) और विनय शर्मा (26) को 22 जनवरी की सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी जाएगी। अडिशनल सेशन जज सतीश कुमार अरोड़ा ने डेथ वारंट जारी करने से पहले चारों दोषियों का रुख जाना। चारों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पेश किया गया। सूत्रों के मुताबिक जज ने दोषियों को उनकी याचिकाओं की स्थिति की जानकारी दी। बताया गया कि उन्हें मिली मौत की सजा के खिलाफ उनकी कोई भी अपील अब किसी भी अदालत में लंबित नहीं है, उनकी पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी हैं। राष्ट्रपति के पास किसी की दया याचिका भी नहीं है। इसके बाद जज ने दोषियों से पूछाöक्या तुम लोगों को कुछ कहना है? तो विनय और पवन की ओर से जवाब आया। दोनों ने कहा कि हमारी ओर से सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन (सुधारात्मक याचिका) देने की प्रक्रिया चल रही है। इस पर जज ने उन्हें बताया कि डेथ वारंट जारी होने के बाद भी उनके लिए कानूनी विकल्प खुले हैं। यह सारी बातें शाम चार बजे से 4.45 बजे के बीच बंद कमरे में हुई। जब कोर्ट का  दरवाजा खुला तो सबसे पहले वहां से फांसी की तारीख और वक्त तय होने की खबर निकली। हालांकि दोषियों के वकील ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करेंगे। लेकिन जानकार कहते हैं कि यह रास्ता भी लगभग बंद हो चुका है, क्योंकि इस मामले में दोषियों की रिव्यू पिटिशन को ओपन कोर्ट में सुनकर खारिज किया गया है। सुनवाई बंद कमरे में होती तो क्यूरेटिव पिटिशन में कह सकते थे कि उनकी दलील ठीक से नहीं सुनी गई। चारों दोषियों के पास राष्ट्रपति के समक्ष 22 जनवरी तक दया याचिका दाखिल करने का अधिकार है। दोषी अगर फिर दया याचिका देते हैं तो डेथ वारंट पर रोक अब भी लग सकती है, क्योंकि राष्ट्रपति के सामने उसके निपटारे की समय सीमा नहीं है। पर हमें लगता है कि गुनाहगारों का बच पाना मुश्किल ही नहीं असंभव होता है। सबसे बड़ी बात है कि तारीख का जो समय गुनाहगारों को अपील करने का मिलता है वह एक कानूनी प्रक्रिया का दुर्लभ प्रवृत्ति का है और अब उनका बचना किसी भी सूरत में नहीं है। निर्भया के गुनाहगारों को फांसी देने के लिए तिहाड़ जेल में नया फांसी घर बनकर तैयार है। जेल संख्या तीन में पुराने फांसी घर से 10 फुट की दूरी  पर नया फांसी घर बनाया गया है। निर्भया के दोषियों को फांसी देने के लिए तिहाड़ में काफी समय से तैयारियां चल रही हैं। इस दौरान यह बात सामने आई कि तिहाड़ में केवल एक साथ दो दोषियों को ही फांसी देने की व्यवस्था है। इसके बाद 25 लाख की लागत से एक और फांसी घर बनाने की मंजूरी दी गई। जेल महानिदेशक संदीप गोयल ने बताया कि चारों दोषियों को एक साथ ही फांसी दी जाएगी। इसकी व्यवस्था कर ली गई है। डेथ वारंट जारी होते ही जेल में उनके फांसी देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन दिन पहले उनके गुनाहगारों के डमी को फांसी पर लटकाया जाएगा। इसका समय भी वही होगा जो 22 जनवरी को कोर्ट की ओर से मुकर्रर किया गया है। जेल सूत्रों का कहना है कि अदालत से ब्लैक वारंट जारी होने के बाद फांसी देने तक की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की है। जेल अधिकारियों का कहना है कि जेल मैनुअल के मुताबिक फांसी देने से पहले डमी के जरिये इसका अभ्यास पूरा किया जाता है। फांसी के दो घंटे बाद डाक्टर शवों का परीक्षण करता है और फिर सर्टिफिकेट देता है कि सजा पूरी हुई है। जिस दिन फांसी दी जाती है, उस दिन सुबह पांच बजे उन्हें जगा दिया जाता है। नहाने के बाद दोषी को फांसी घर के सामने खुले अहाते में लाया जाता है। यहां जेल अधीक्षक, उप अधीक्षक, मेडिकल ऑफिसर, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट व सुरक्षा कर्मचारी मौजूद होते हैं। यदि दोषी इच्छा जाहिर करे तो वहां एक धार्मिक व्यक्ति भी रहता है। अहाते में मौजूद मजिस्ट्रेट दोषी से उसकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछते हैं। इस दौरान आमतौर पर सम्पत्ति किसी के नाम करनी है या किसी के नाम पत्र लिखने की बात सामने आती है। करीब 15 मिनट का वक्त दोषी के पास रहता है। इसके बाद जल्लाद वहीं कैदी को काले कपड़े पहनाता है। उसके हाथों को पीछे कर उसे रस्सी या हथकड़ी से बांध दिया जाता है। यहां से फांसी घर पर कैदी को ले जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। फांसी घर तक पहुंचने के बाद सीढ़ियों के रास्ते दोषी को छत पर ले जाते हैं। यहां जल्लाद दोषी के मुंह पर काला कपड़ा बांधता है और उसके गले में फंदा डाल दिया जाता है। फंदा डालने के बाद दोषियों के पैरों को रस्सी से बांध दिया जाता है। जब जल्लाद अपने इंतजाम से संतुष्ट हो जाता है, तब वह जेल अधीक्षक को बताता है कि उसके इंतजाम अब पूरे हो चुके हैं। इसके बाद जल्लाद जेल अधीक्षक के आदेश की प्रतीक्षा करता है। जेल अधीक्षक जैसे ही जल्लाद को इशारा करते हैं, वह लीवर खींच लेता है। एक ही झटके में दोषी फंदे पर झूल जाता है। इसके दो घंटे बाद मौके पर मौजूद मेडिकल ऑफिसर फांसी घर के अंदर जाकर यह सुनिश्चित करता है कि फांसी पर झूल रहे शख्स की मौत हुई है या नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

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