Saturday 18 January 2020

ताइवान ने दिया चीन को जबरदस्त झटका

ताइवान में राष्ट्रपति साई इंग-विन का दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव जीतना चीन के लिए इसलिए भारी झटका है क्योंकि चीन ने उन्हें हराने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। चीन की धमकियों के आगे ताइवान बिल्कुल नहीं झुका। राष्ट्रपति चुनाव में एक तरफ थी साई इंग-विन तो दूसरी तरफ मुख्य प्रतिद्वंद्वी और चीन समर्थक थे एमटी पार्टी के मुखिया हॉन कू-यू थे। शनिवार को आए चुनाव परिणाम में इस द्विपीय देश में पहली महिला राष्ट्रपति को दोबारा सत्ता हासिल हुई है। केंद्रीय चुनाव आयोग के अनुसार देश के 22 शहरों और काउंटी में करीब 1,93,10,000 मतदाता हैं। कुल मतदाताओं में छह प्रतिशत 20 से 23 वर्ष के आयु के बीच हैं। चीन ताइवान की स्वतंत्रता स्वीकार नहीं करता, वह उसे अपना हिस्सा मानता है। ताइवान के मामलों में किसी देश का बोलना भी चीन को पसंद नहीं है। साई की जीत पर अमेरिका ने खुशी जाहिर की है और उन्हें बधाई दी है। विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने आशा जताई है कि वह चीन की कूरतापूर्ण दबाव को भुलाकर उसके साथ संबंधों में स्थिरता लाने की कोशिश करेंगे। मतों के बढ़ते अंतर के बीच मतगणना के बीच साई (63) ने अपनी पार्टी के मुख्यालय में अपने समर्थकों के बीच आकर उन्हें बधाई दी। हाथों में देश और पार्टी की झड़ियां लिए हजारों हर्षतिरेक समर्थकों ने नारेबाजी करते हुए उनका स्वागत किया। साई ने दुनिया को दिखा दिया है स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक तरीके की जीवनशैली से उसे कितना प्यार है। हम अपने देश से प्यार करते हैं, यह हमारा गौरव है। चीन की तमाम धमकियां बेअसर रहीं। चीन समर्थक केएमटी पार्टी के मुखिया हॉन कू-यू ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। परिणामों के अनुसार साई की डेमोकेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को 80 लाख मतों में 57 प्रतिशत मतों का बड़ा हिस्सा मिला जबकि हॉन की पार्टी को 38 प्रतिशत मत मिले। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा मतों की गिनती पूरी भी नहीं हुई थी कि हॉन ने मतों के बड़े अंतर को देखते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली। ताइवान का नतीजा चीन के लिए बड़े झटके से कम नहीं है। उसने साई को राष्ट्रपति पद पर न लौटने देने के लिए हान के पक्ष में पूरी ताकत झोंक दी थी। पिछले चार साल से चीन ने ताइवान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बना रखा था जिसे वहां की जनता साई के शासन से उकता जाए। लेकिन उसकी यह नीति काम नहीं आई और साई की पार्टी उम्मीद से ज्यादा मतों से जीतकर सत्ता पर फिर काबिज हो गई। उधर हांगकांग भी चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है। तमाम प्रयासों के बावजूद हांगकांग में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। दूसरे मुल्कों को घेरने की चीन की रणनीति उल्टी ही पड़ रही है। ताइवान ने एक बार फिर दिखा दिया कि चीन को भी शिकस्त दी जा सकती है।

-अनिल नरेन्द्र

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