Saturday, 4 January 2020

सवाल पीएफआई को बैन करने का

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में हुई हिंसा में खासकर उत्तर प्रदेश सरकार ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का हाथ होने का आरोप लगाया है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने पीएफआई के 25 सदस्यों को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हुई है। उन्हें आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। चरमपंथी इस्लामी संगठन पीएफआई का नाम इन दिनों चर्चा में है। पीएफआई 2006 में केरल में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के मुख्य संगठन के रूप में शुरू हुआ था। इससे पहले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को बैन करने का उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेजा था। उत्तर प्रदेश पुलिस की मानें तो राज्य के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर ऐसी हिंसा हुई वह इस संगठन की साजिश के चलते ही हुई। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पीएफआई को प्रतिबंधित करने की सिफारिश के बाद केंद्र सरकार क्या करती है, यह देखना होगा। हालांकि प्रदेश सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में जगह-जगह हुई हिंसा, आगजनी, उपद्रव आदि मे पीएफआई की संलिप्तता के जो सबूत दिए हैं, वे काफी ठोस हैं। पूरे प्रदेश में हुई गिफ्तारियों में पीएफआई के लोगों की संख्या दो दर्जन से ज्यादा है। यूपी पुलिस का कहना है कि विरोध प्रदर्शन कुछ तो तत्कालिक थे लेकिन उपद्रव, हिंसा व आगजनी पूर्व नियोजित थी। केवल पश्चिम उत्तर प्रदेश ही नहीं, लखनऊ में भी हिंसा के पीछे पुलिस पीएफआई की ही भूमिका के सबूत पेश कर रही है। पीएफआई झारखंड में पहले से ही प्रतिबंधित है और कुछ अन्य राज्यों में भी उसकी गतिविधियां संदिग्ध पाई गई हैं। तथ्य यह भी है कि इसे प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी के सहयोगी समूह के तौर पर देखा जाता है। पीएफआई ने कुछ ही समय में केरल से निकल कर जिस तरह देश के कई राज्यों में अपनी ज़ड़ें जमा ली हैं, उससे पता यही चलता है कि उसकी विचारधारा तेजी से फैल रही है। यह कोई शुभ संकेत नहीं, क्योंकि भले ही यह संगठन मुसलमानों और दलितों के अधिकारों की बात करता हो, लेकिन उसके तेवर और तौर-तरीके सवाल खड़े करने वाले हैं। पीएफआई के संदिग्धों के पकड़ में आने के बाद पुलिस की छापेमारी में जिस तरह के दस्तावेज व सामग्रियां बरामद हुई हैं तथा गिरफ्तार सदस्यों ने जो कुछ बताया उससे पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यह संगठन वास्तव में सिमी का ही बदला नाम है। यह सच है तो फिर सिमी की तरह इस पर प्रतिबंध लगना स्वाभाविक हो जाता है। सिमी पर प्रतिबंध लगाते समय 2001 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने इतने पुख्ता आधार बनाए थे कि उच्चतम न्यायालय ने भी उस पर अपनी मोहर लगा दी। वस्तुत किसी भी संगठन को प्रतिबंधित करने के लिए ठोस आधार होना आवश्यक है। नहीं तो न्यायालय में वह टिक नहीं पाएगा। पीएफआई ने यूपी पुलिस के आरोपों को खारिज किया है। संगठन के राष्ट्रीय महासचिव एम. मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा है कि यूपी पुलिस ने संगठन पर बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि लोगों ने अपने सभी मतभेदों की परवाह किए बिना हाथ मिलाया और देशभर के शहरों, गांवों में कानून के खिलाफ मार्च किया, यह केवल भाजपा शासित राज्य थे, जिन्होने विरोध को हिंसक कहकर दबाने की कोशिश की, बाकी राज्यों में लोकतांत्रिक अधिकारों का शांति से सम्मान किया।

-अनिल नरेन्द्र

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