6 दिसम्बर 2012 को हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में चारों दोषियों की फांसी पर अमल की तैयारी अंतिम चरण में है। चारों दोषियों अक्षय, पवन,
विनय और मुकेश के डैथ वारंट पर पटियाला हाउस कोर्ट ने 7 जनवरी को सुनवाई करते हुए उन्हें 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी पर लटकाने का फैसला दिया है। दोषियों ने क्यूरेटिव याचिका लगाने की बात तिहाड़ जेल पशासन को लिखकर दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि 19 दिसम्बर को दोषियों की पुनर्विचार याचिका सुपीम कोर्ट ने खारिज की थी। इसके एक माह में क्यूरेटिव अर्जी लगाई जा सकती है। फिर दया याचिका अंतिम विकल्प है। केस जघन्य श्रेणी का है। लिहाजा राहत की उम्मीद कम है। 2020 में सुपीम कोर्ट में कई ऐसे मामले हैं जो समाज से सरकार तक को देंगे नई दिशा। 2019 में अयोध्या राम जन्मभूमि मुकदमे को लेकर सुपीम कोर्ट पर सबकी निगाहें थीं और 2020 में भी निगाहें सुपीम कोर्ट पर रहेंगी, क्योंकि कोर्ट में इस वर्ष भी कई अहम मामलों की सुनवाई होगी। जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देनी वाली याचिकाएं सुपीम कोर्ट में लंबित हैं,
शीर्ष अदालत इन मामलों में सुनवाई करेगी। नागरिकता संशोधन कानून और केन्द्र में अनुच्छेद-370 खत्म करने के फैसले पर सुपीम कोर्ट में आधा दर्जन से अधिक याचिकाएं हैं। इन पर सुपीम कोर्ट इसी साल सुनवाई करने वाला है। इसके अलावा सुपीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के सभी मामलों को लेकर केन्द्र से जवाब मांगा है। इस पर 22 जनवरी को सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान के आर्टिकल 14, 21, 25 का उल्लंघन करता है। एससी/एसटी कीमीलेयर को कालेज में दाखिले व नौकरियों के आरक्षण की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी। 2018 में सुपीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था-
लाभ नहीं दिया जा सकता। केन्द्र सरकार ने 3 दिसम्बर को सुपीम कोर्ट से अपील की थी कि वह मामले में दोबारा विचार करे। इस पर सुपीम कोर्ट ने सुनवाई का आश्वासन दिया था। संभावना है कि इस साल मामले का निपटारा कर फैसला भी दे दिया जाएगा। सुपीम कोर्ट की 7 जजों की बड़ी बैंच सबरीमला मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर इस माह सुनवाई करेगी। सुपीम कोर्ट अन्य धर्मों के धर्मस्थलों पर लैगिंग भेदभाव खत्म करने की मांग पर भी सुनवाई करेगा। सुपीम कोर्ट जनवरी में ही निकाह,
हलाला और बहु विवाह जैसे मामले पर भी सुनवाई करेगा। याचिकाकर्ता ने इसे दुष्कर्म के समान अपराध घोषित करने की मांग की है। एडीआर और कामंस कॉज ने पार्टियों को इलेक्टोरल बांड से मिलने वाले चंदे पर रोक की अर्जी लगाई है। इनका कहना है कि इससे कालेधन को सफेद किया जा रहा है। कोर्ट ने 12 अपैल 2019 को अंतिम आदेश के तहत रोक से मना कर दिया था। कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे सील बंद लिफाफे में चुनाव आयोग को बताएं कि इलेक्टोरल बांड से किस-किस ने कितना चंदा दिया? किस खाते में इसे जमा कराया। सुपीम कोर्ट ने कहा था कि वह कानून में किए गए बदलावों का परीक्षण करेगा। ऐसे में नए साल में सुपीम कोर्ट इन अहम मुद्दों पर सुनवाई पर अपना फैसला देगा जिसका दूरगामी पभाव होगा। सभी की निगाहे इस साल भी सुपीम कोर्ट पर लगी रहेंगी।
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