Sunday, 5 January 2020

रिलायंस ने हाई कोर्ट में सरकार को सुनाई खरी-खरी

एशिया के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी की ब्लूमबर्ग के मुताबिक सम्पत्ति में 17 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है 2019 में, उनकी कुल सम्पत्ति बढ़कर 61 अरब डॉलर की हो गई। पिछले साल मुकेश अंबानी का भाग्य चमकाने में उनकी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों में सबसे ज्यादा श्रेय है, जिसमें 40 प्रतिशत की तेजी दर्ज हुई। इस दौरान सेंसेक्स में जितनी तेजी दर्ज की गई, उसकी दोगुनी तेजी रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर चढ़े। ऐसा कम ही सुनने को मिलता है, देखने को मिलता है कि एशिया के सबसे अमीर शख्स किसी प्रकार के मुकदमेबाजी में पड़े हों? और यह और भी कम सुनने को मिलता है कि रिलायंस और मुकेश अंबानी ने खुलकर केद्र सरकार का विरोध किया हो। मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने दिल्ली हाई कोर्ट में सऊदी अरब की कंपनी सऊदी अरामको के साथ 15 अरब डॉलर के सौदे पर रोक लगाने की केंद्र सरकार की दायर याचिका का विरोध किया है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके भागीदार ब्रिटिश गैस को अपनी सम्पत्तियों के बारे में जानकारी देने को कहा है। न्यायालय ने यह आदेश केंद्र सरकार की याचिका पर दिया है। केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में इन दोनों कंपनियों को अपनी सम्पत्तियां नहीं बेचने का निर्देश देने का आग्रह किया है। सरकार इन दोनों कंपनियों को उनकी सम्पत्तियों को बेचने से दूर रहने का आदेश देने के लिए अदालत पहुंची है। केंद्र सरकार का कहना है कि इन कंपनियों ने उसे 3.5 अरब डॉलर का भुगतान नहीं किया है। यह राशि पन्नामुक्त और ताप्ती के उत्पादन-भागीदारी अनुबंध मामले में मध्यस्थता अदालत के केंद्र सरकार के पक्ष में दिए गए फैसले के तहत दी जानी थी। केंद्र सरकार ने अपने आवेदन में कहा है कि रिलायंस भारी कर्ज के बोझ में है और यही वजह है कि कंपनी अपनी सम्पत्तियों को बेचने, हस्तांतरण करने की प्रक्रिया में है। ऐसा कर वह अपनी चल एवं अचल सम्पत्तियों में तीसरे पक्ष को ला रही है। रिलायंस यदि सम्पत्ति की बिक्री कर देती है तो मध्यस्थता अदालत के निर्णय को अमल में लाना मुश्किल होगा। 2019 वर्ष के अगस्त में आरआईएएल ने कहा था कि सऊदी अरामको ने 15 अरब डॉलर में कंपनी के पेट्रोलियम एवं कैमिकल बिजनेस में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने संबंधी गैर-बाध्यकारी करार किया है। सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि एक मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने रिलायंस और उसके साझेदारों से 3.5 अरब डॉलर भुगतान करने का आदेश दिया है। रिलायंस ने सरकार की याचिका के खिलाफ पेश हलफनामे में कहा है कि सरकार का यह दावा गलत है। किसी भी मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने कंपनी और उसके सांझेदारों के खिलाफ कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। केस चल रहा है, देखें आगे क्या होता है? जैसा मैंने कहा कि ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि रिलायंस और मुकेश अंबानी किसी प्रकार के कानूनी विवाद में पड़े। इस मामले में रिलायंस का सरकार के खिलाफ जाना और भी चौंकाने वाला है।

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