Thursday 30 January 2020

राज्य एक राजधानियां तीन-तीन

आंध्र प्रदेश के राजधानी प्रकरण में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। आंध्र प्रदेश की वाईएस जगन मोहन रेड्डी सरकार ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच राज्य की तीन राजधानियां बनाने के प्रावधान वाला बिल सोमवार 20 जनवरी को विधानसभा में पेश किया। हंगामे के बीच देर रात इसे सदन ने पास भी कर दिया। इस बिल में अमरावती को विधि, विशाखापत्तनम को कार्यकारी और कुर्नूल को न्यायिक राजधानी बनाने का प्रावधान है। राज्य सरकार के अनुसार तीन राजधानियां बनाने का मकसद राज्य में विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्र के समान विकास को सुनिश्चित करना है। राज्य के शहरी मंत्री बी. सत्यनारायण ने विपक्ष के भारी हंगामे के बीच आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्रों के समान विकास के लिए एक्ट 2020 पेश किया। करीब छह साल पहले राज्य के विभाजन के समय इस प्रदेश ने अपनी राजधानी खो दी थी। मौजूदा राजधानी (हैदराबाद) प्रदेश से कटकर अलग बनाए गए राज्य तेलंगाना के हिस्से में आ गई थी और विभाजन ने आंध्र प्रदेश को एक नई राजधानी के निर्माण की मजबूती दे दी थी। उस समय के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को एक अत्याधुनिक महानगर के रूप में नई राजधानी बनाने का बड़ा सपना देखा था। इसे उन्होंने प्रतिष्ठा का इतना बड़ा सवाल बना लिया था कि जब अमरावती परियोजना के लिए आर्थिक मदद देने के मामले में मोदी सरकार ने हाथ खड़े किए तो नायडू ने न सिर्प एनडीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, बल्कि भाजपा से भी अपने पुराने रिश्ते तोड़ लिए थे। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में जब उनकी पार्टी को सत्ता नहीं मिली तो अमरावती का भविष्य भी खटाई में दिखने  लगा। राज्य के नए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने वहां चल रही तमाम परियोजनाओं पर विराम लगा दिया और यह लगने लगा कि अमरावती अब प्रदेश की राजधानी नहीं होगी। इससे न सिर्प कई परियोजनाओं पर इस बीच विराम लगने का खतरा पैदा हो गया, बल्कि जिले के वह किसान भी नाराज हो उठे, जिससे उनकी जमीन के बदले अच्छी कीमत देने का वादा किया गया था। सवाल यह है कि क्या सचमुच आंध्र प्रदेश को तीन राजधानियों की जरूरत है? एक राजधानी से चले प्रशासन ने ही आंध्र प्रदेश को देश का एक अग्रणी राज्य बना दिया था। समृद्धि और उद्योग-धंधों के मामले में राज्य ने काफी तरक्की की थी। क्षेत्रीय भावनाओं को देखते हुए कई प्रदेशों ने दो राजधानियों के प्रयोग किए हैं, सिवाय क्षेत्रीय भावनाओं को संतुष्ट करने के अलावा उनके अन्य फायदे कभी सामने नहीं आए। इससे सरकारी खर्चा भी बढ़ेगा, जिसका सीधा असर राज्य के विकास और जन नीतियों पर पड़ना लाजिमी है।

-अनिल नरेन्द्र

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