Friday 31 January 2020

दिल्ली की चुनावी बिसात पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए)

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर उपजे आंदोलन की आवाज दिन-प्रतिदिन थमने की जगह उल्टी तेज हो रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को मुश्किल से चन्द दिन बचे हैं और जिस तरह शाहीन बाग सुर्खियों में आ रहा है उससे तो यह नहीं लगता कि इस आंदोलन की आंच विधानसभा चुनावों तक नहीं पहुंचेगी। खासकर मुस्लिम मतदाता और दिल्ली विधानसभा की मुस्लिम बहुल सीटों पर इसका असर जरूर दिखने वाला है। हालांकि राजनीतिक दल आंदोलन की आवाज के मुताबिक अपनी रणनीति पर चल रहे हैं। दिल्ली की चुनावी बिसात पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 12 प्रतिशत से अधिक है और इन्हें नजरंदाज करना संभव नहीं है। दिल्ली की सियासत में 70 विधानसभा में से आठ सीटों को मुस्लिम बहुल माना जाता है। इसमें बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, चांदनी चौक, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बाबरपुर और किराड़ी शामिल हैं। यह ऐसी सीटें हैं, जहां प्रत्याशियों का भाग्य तय करने में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका होती है। मुस्लिम मतदाताओं के लिहाज से त्रिलोकपुरी और सीमापुरी भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। यहां भी मुस्लिम मतदाता चुनाव नतीजों को प्रभावित करने में सक्षम हैं। दिल्ली विधानसभा भले ही मात्र 70 सीटों की हो, लेकिन यह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति पर कम असर डालने वाला नहीं है। सीएए को लेकर शाहीन बाग की सुर्खियां जहां तेजी से अन्य राज्यों में बढ़ रही हैं, उस लिहाज से दिल्ली विधानसभा का चुनाव काफी महत्वपूर्ण लग रहा है। हालांकि दिल्ली में मुस्लिम मतदाता एक सुनियोजित तरीके से वोट करता रहा है और उसका झुकाव जगजाहिर है, वह किधर जाएगा। दूसरी तरफ नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों को लेकर अल्पसंख्यकों में नाराजगी के मद्देनजर दिल्ली में भाजपा विरोधी दलों को भाजपा के पक्ष में बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण होने का डर भी सता रहा है। जिस तरह सीएए को लेकर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण होता दिख रहा है, उसकी तीखी प्रतिक्रिया हिन्दू मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में होने लगी है, जिससे विरोधी दल चिंतित जरूर हो गए हैं। यदि मतदाताओं का यह समूह भाजपा के पक्ष में खड़ा हुआ तो निश्चित रूप से चुनाव में भाजपा विरोधियों के लिए मुश्किल हो जाएगी। देश में राज्यों के विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा के, अकसर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण भाजपा के विरोध में दिखता है। चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन अकसर उसी दल व प्रत्याशी को दिखाई देता है, जो प्रत्याशी भाजपा को हराने में सक्षम हो, दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली के मुस्लिम मतदाताओं को आम आदमी पार्टी (आप) को मजबूती का अंदाजा नहीं था इसलिए उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया था। 2015 के विधानसभा चुनाव में यह आम आदमी पार्टी के साथ खड़े हुए तो दोनों कांग्रेस और भाजपा का सफाया हो गया। इस बार मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में बंटे दिखते हैं।

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