Tuesday, 31 January 2012

ईरान पर क्या अमेरिका इजराइल से हमला करवा सकता है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30th January  2012
अनिल नरेन्द्र
ईरान बनाम पश्चिम देश लड़ाई खतरनाक दौर में आती जा रही है। यूरोपीय संघ ने अमेरिका के नेतृत्व में ईरान के तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए ब्रुसेल्स में ईरानी नेतृत्व के खिलाफ नया मोर्चा खोल दिया है। अमेरिका एशियाई देशों से भी ईरान से कच्चे तेल का आयात रोकने का आग्रह कर रहा है। इससे ईरान पर चौतरफा दबाव बन रहा है और उसकी मुद्रा कमजोर हो रही है। अमेरिकी मुहिम के जवाब में ईरान के अधिकारियों ने फारस की खाड़ी के मुहाने पर स्थित होर्मुज जलडमरू बन्द करने की धमकी दी है। ईरान की इस धमकी की वजह से विश्वभर के तेल बाजारों में चिन्ता है। हालांकि सैन्य विशेषज्ञ ईरान की जलडमरू बन्द करने की क्षमता पर साल उठा रहे हैं। लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगी पहले ही जलडमरू मध्य बन्द करने पर तीव्र कार्रवाई करने की चेतावनी दे चुके हैं। ब्रिटेन और फ्रांस के जंगी जहाजों के साथ अमेरिका का विमानवाहक पोत यूएएएस अब्राहम लिंकन बिना किसी प्रतिरोध के फारस की खाड़ी में प्रवेश कर गया। दुनिया के कुल तेल उत्पादन का आधा हिस्सा तय समुद्री मार्गों से टैंकरों द्वारा ले जाया जाता है। हालांकि फारस की खाड़ी में होर्मुज जलडमरू मध्य पर यह प्रतिबंध अस्थायी है फिर भी इस प्रतिबंध की वजह से दुनिया में ऊर्जा की लागत में काफी वृद्धि हो सकती है। ईरान ने उससे कच्चा तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को पूरी तरह अनुचित बताते हुए कहा है कि इसे जल्द ही वापस लेना पड़ेगा। ईरान ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका परमाणु कार्यक्रम ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए है और वह तमाम प्रतिबंधों के बावजूद जारी रहेगा। दूसरी ओर यूरोपीय संघ की घोषणा करते हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने एक संयुक्त बयान में कहा कि हमारा संदेश साफ है। हमारी ईरानी जनता के साथ कोई लड़ाई नहीं है। लेकिन ईरानी नेतृत्व अपने परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण प्रवृत्ति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय विश्वास बहाल करने में नाकाम रहा है। यूरोपीय नेताओं ने कहा कि हम ईरान का परमाणु हथियार हासिल करना स्वीकार नहीं करेंगे। तीनों नेताओं ने ईरान के नेतृत्व से उसकी संवेदनशील परमाणु गतिविधियां तत्काल बन्द करने और अपनी अंतर्राष्ट्रीय बाध्यताओं को पूरी तरह पालन करने का आह्वान किया।
अमेरिका को इस बात की आशंका भी है कि कहीं इस विवाद का फायदा उठाते हुए इजराइल ईरान पर हमला न कर दे। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पेंटागन सूत्रों के हवाले से बताया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, रक्षामंत्री लियोन पेनेटा और अन्य शीर्ष अधिकारियों ने इजराइली नेताओं को कई निजी संदेश भेजे हैं जिसमें हमले के गम्भीर नतीजों की चेतावनी दी गई है। ओबामा ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतात्याहू से फोन पर बात भी की है। कुछ दिन पहले तेहरान में एक कार बम विस्फोट में ईरान के एक परमाणु वैज्ञानिक की मौत हो गई थी। ईरान ने इस हमले के लिए इजराइल को जिम्मेदार ठहराया था। ईरान के एक अधिकारी ने इस हमले के फौरन बाद कहा कि दो लोगों ने एक मोटरसाइकिल पर आकर जिस तरह वाहन को मैग्नेटिक बम से अपना निशाना बनाया, वह तरीका वैसा ही है जैसा पिछले दो साल में तीन और वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के लिए अपनाया था। ईरान की संसद में अमेरिकी मुर्दाबाद, इजराइल मुर्दाबाद के नारे तक लगे। ईरान और इन पश्चिमी देशों के बीच चल रहा तनाव सारी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। अगर तेल सप्लाई प्रभावित होती है तो भारत भी प्रभावित हो सकता है। ईरान का प्रयास होगा कि अगर लड़ाई की नौबत आती है तो वह इजराइल से पंगा लेना चाहेगा। दूसरी ओर अमेरिका भी इजराइल के माध्यम से ईरान पर हमला करवा सकता है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम से सबसे ज्यादा खतरा इजराइल को ही है और वह किसी भी कीमत पर ईरान को एक परमाणु सम्पन्न देश बनने से रोक सकता है। अगर इजराइल ईरान के खिलाफ किसी भी प्रकार की सैनिक कार्रवाई करता है तो सम्भव है कि मध्य पूर्व के अन्य अरब देश ईरान का साथ देने पर मजबूर हो जाएं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही डिस्टर्वड मध्य पूर्वी और डिस्टर्व हो जाएगा। अमेरिका की तो खैर यह नीति पुरानी है कि अरब देशों के तेल भंडारों पर उल्टे-सीधे बहाने बनाकर कब्जा करे। उम्मीद करते हैं कि टकराव टल जाए।
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क्या देश के अगले पीएम नरेन्द्र मोदी हो सकते हैं?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30th January  2012
अनिल नरेन्द्र
अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएं तो एक जनमत सर्वेक्षण के दावे के अनुसार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है और कांग्रेस की अगुवाई करने वाले राहुल गांधी के मुकाबले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में बढ़त मिल सकती है। ओआरजी-नील्सन द्वारा कराए गए इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार जाहिर किया गया है कि आज की स्थिति में चुनाव होने पर एनडीए को 180 से 190 सीटें और तीसरे मोर्चे को भी इतनी ही सीटें मिलेंगी जबकि यूपीए को 168-178 सीटें मिलने की उम्मीद जाहिर की गई है। सर्वेक्षण में एक दिलचस्प सवाल यह भी था कि अगर अन्ना हजारे और राहुल गांधी आमने-सामने एक ही सीट पर मुकाबला कर रहे हों तो आप किसको वोट देंगे। इस सवाल पर 60 प्रतिशत लोगों ने अन्ना हजारे के समर्थन में अपना मत दिया जबकि राहुल गांधी को 24 प्रतिशत ने वोट किया। सबसे दिलचस्प प्रश्न था प्रधानमंत्री किसको देखना चाहेंगे? प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में अगस्त 2010 के सर्वेक्षण के मुकाबले राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्रॉफ 24 प्रतिशत से घटकर 17 प्रतिशत आ गया है जबकि नरेन्द्र मोदी का ग्रॉफ 12 से बढ़कर 45 प्रतिशत पर पहुंच गया है। बाकी नेता बहुत नीचे हैं। उदाहरण के तौर पर इस सर्वे के मुताबिक भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता हालांकि 4 से बढ़कर 10 प्रतिशत हो गई है पर मोदी से वह बहुत पीछे हैं। ताजा सर्वेक्षण में आडवाणी, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी तीनों की लोकप्रियता एक साथ यानि 10-10 प्रतिशत आ गई है। यह सर्वेक्षण ऐसे समय आया है जब 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव भी चल रहे हैं। सर्वेक्षण में 19 राज्यों में अटकल से चुने गए 90 संसदीय क्षेत्रों के 12 हजार से अधिक लोगों की राय ली गई। नरेन्द्र मोदी आज जनता की नम्बर वन च्वाइस हैं। नरेन्द्र मोदी के मानना पड़ेगा कि सितारे तेज चल रहे हैं। विडम्बना देखिए कि मोदी की सबसे कट्टर राजनीतिक विरोधी पार्टी कांग्रेस ने भी गलती से उनकी तारीफ कर डाली। खबर अटपटी है पर ऐसा हुआ है। गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने गुजरात के कुछ हिस्सों में समाचार पत्रों के साथ दो पेज का एक विज्ञापन बंटवाया। इसमें यह बताने की कोशिश की गई है कि गुजरात अस्तित्व में आने के साथ ही प्रगतिशील राज्य बन गया। इसमें नरेन्द्र मोदी सहित राज्य के सभी मुख्यमंत्रियों का योगदान दर्शाया गया है। इसमें मोदी को तस्वीर के साथ उन्हें कुशल संगठनकर्ता और माहिर चुनावी रणनीतिकार बताया गया है। गुजरात में इस साल दिसम्बर में विधानसभा चुनाव होने हैं और प्रचार अभियान लगभग शुरू हो चुका है। विज्ञापन में मोदी की अहम उपलब्धियां भी शामिल की गई हैं। कहा गया है, मोदी गुजरात को ऊर्जावान राज्य में तब्दील करने के लिए बड़ी मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने बॉयोटैक्नोलॉजी के लिए अलग विभाग बनाया है। इस विज्ञापन के प्रकाशित होते ही कांग्रेस में घमासान मचना स्वाभाविक ही था। पार्टी के आला नेता जहां इसे मूर्खता-भरा कदम बता रहे हैं तो वहीं हाई कमान ने प्रदेश इकाई तथा प्रभारी मोहन प्रकाश से जवाब-तलब किया है। हालांकि कांग्रेस नेता व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने इसे मोदी की तारीफ वाला नहीं बल्कि उन पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष करने वाला बताया है। इस विज्ञापन में व्यंग्य कहां है अपनी समझ से तो बाहर है। सीधी मोदी की तारीफ है।
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Sunday, 29 January 2012

यूपी चुनाव में 69 उम्मीदवार जेल से ही ठोंकेंगे अपनी ताल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th January  2012
अनिल नरेन्द्र
अन्ना हजारे या चुनाव आयोग भले ही जितना भी जोर लगा दें, प्रतिबंध लगा दें, उत्तर प्रदेश में राजनीति का अपराधीकरण होने से नहीं रोक सकते। धन बल और बाहुबल के बढ़ते उपयोग पर अंकुश लगाने के तमाम प्रयासों के बावजूद यह परवान चढ़ती नहीं दिख रही है। यह पहला मौका है जब उत्तर प्रदेश के किसी चुनाव में तकरीबन 69 उम्मीदवार जेल से चुनाव लड़ रहे हैं। वह भी तब जबकि अपराधियों को टिकट न देने का दावा करते हुए कोई दल थकता नहीं है। बात यहीं तक नहीं रुकती, आपराधिक प्रवृत्ति के 77 उम्मीदवारों को राजनीतिक दलों ने उतारने से परहेज नहीं किया। राजनीति में अपराधियों की यह उपस्थिति सिर्प चार चरण के उम्मीदवारों के आधार पर ही आंकी गई है। पूरे उम्मीदवारों के नाम और उन पर चस्पा आरोपों के मद्देनजर विश्लेषण किया जाए तो यह आंकड़ा काफी बड़ा दिखाई देता है। यह स्थिति तो तब है जब तस्वीर अभी धुंधली है। तस्वीर जब साफ होगी तो सही स्थिति का पता चलेगा। उत्तर प्रदेश के इस 16वीं विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में अपराधियों को चुनावी दंगल में उतारने के मामले में सभी राजनीतिक दल बेनकाब हो गए हैं, हकीकत तो यह है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। शायद ही कोई ऐसा दल हो जिसने जेल में बन्द किसी न किसी को माननीय बनाने की न ठान ली हो। समाजवादी पार्टी ने अमर सिंह को फैजाबाद से उतारा है, जो इन दिनों जेल में बन्द हैं। पीस पार्टी ने यहीं से जितेन्द्र सिंह बबलू को जेल में रहते ही चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी थी। यही नहीं, पीस पार्टी ने सुल्तानपुर से भी दो दबंगों सोनू सिंह और मोनू सिंह को टिकट थमाए हैं। जो हाल ही में जेल से छूटे हैं। अपना दल ने जेल में बन्द अतीक अहमद और अंतर्राष्ट्रीय माफिया मुन्ना बजरंगी को माननीय बनाने की ठानी है। मुन्ना ने तिहाड़ जेल से नामांकन पत्र दाखिल किया है। मऊ से निर्दलीय मुख्तार अंसारी ने आगरा केंद्रीय जेल से नामांकन पत्र दाखिल किया है। इन्हें बीते लोकसभा चुनाव में बसपा ने वाराणसी से भाजपा के डॉ. मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ उतारा था। गुजरात के अहमदाबाद जेल में बन्द बृजेश सिंह चन्दौली जिले की सैयद रजा सीट पर प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। कबीना मंत्री नन्द गोपाल नन्दी पर जानलेवा हमले का आरोपी फतेहपुर जेल में बन्द विजय मिश्र सपा की टिकट से मिर्जापुर जिले की ज्ञानपुर सीट से मैदान में हैं। कांग्रेस ने अकेले गाजीपुर की जमनिया सीट से जेल में बन्द कलावती बिन्द को उम्मीदवार बनाया है। इसी जिले से कांग्रेस ने रासुका तथा गैंगस्टर एक्ट के तहत जेल में बन्द शैलेश सिंह को उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया है। जेल में बन्द फूलन देवी की हत्या के आरोपी शेर सिंह राणा ने भी गौतमबुद्ध नगर की जेवर सीट से राष्ट्रवादी प्रताप सेना के बैनर तले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। दागी उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में सभी दलों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। इसी का नतीजा है कि तकरीबन गम्भीर आपराधिक मामले वाले 15 फीसदी उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। भाजपा ने 14, सपा ने 15, कांग्रेस ने 17 फीसदी आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को उतारा है। बसपा भी पीछे नहीं, उसने भी 16 फीसदी आपराधिक छवि के उम्मीदवार को उतारा है। छोटे दलों की तो बात ही नहीं करते। इस हमाम में सभी नंगे हैं।
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उत्तराखंड में भाजपा का भविष्य भुवन चन्द्र खंडूरी की छवि पर टिका है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th January  2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी का उत्तराखंड में चुनाव से पहले श्री भुवन चन्द्र खंडूरी को रमेश पोखरियाल निशंक की जगह मुख्यमंत्री बनाना एक जुआ है। निशंक भ्रष्टाचार के आरोपों के लगने से काफी बदनाम हो चुके थे। खंडूरी की हमेशा से साफ-सुथरी छवि रही है। उन्होंने राज्य के लिए काम भी काफी किए पर उनकी मुश्किल यह है कि एक सख्त प्रशासक होने के कारण वह अपने विधायकों की भी जायज-नाजायज बातें नहीं मानते। अपने अड़ियल रुख की वजह से ही उन्हें हटना पड़ा था पर फिर भाजपा हाई कमान को लगा कि निशंक ने तो लुटिया डुबो दी इसलिए मजबूरन दोबारा खंडूरी को लाकर जुआ खेलना पड़ा। भाजपा का राज्य में पुन सत्ता हासिल करने का सपना अब भुवन चन्द्र खंडूरी की छवि पर ही टिका हुआ है। उत्तराखंड उन बहुत कम राज्यों में से है जहां लोकायुक्त की नियुक्ति हुई है और इसकी सार्वजनिक रूप से अन्ना हजारे ने सराहना भी की है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है पार्टी में एका नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने चुनाव के ऐन पहले खुद को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल कर लिया है। बुधवार को उन्होंने कहा कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे दो-एक सालों तक मुख्यमंत्री का पद सम्भाल सकते हैं। तिवारी नैनीताल जिले के रामनगर में कांग्रेस प्रत्याशी अमृता रावत के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे थे। अमृता रात कांग्रेसी नेता सतपाल जी महाराज की पत्नी हैं। यह पूछने पर कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो क्या वे मुख्यमंत्री बनेंगे? इस पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि एक या दो साल तक मैं मुख्यमंत्री का पद सम्भाल सकता हूं। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी अमृता रावत के पति तथा सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि तिवारी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और सभी उनका सम्मान करते हैं, जहां तक मुख्यमंत्री पद का सवाल है तो उसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को तय करना है। उन्होंने कहा कि कांग्रेसजनों में जबरदस्त उत्साह है और उनके अनुभव के आधार पर पार्टी विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल करेगी। वैसे नए परिसीमन ने उत्तराखंड की चुनावी तस्वीर बदल दी है। नए परिसीमन से इस पहाड़ी राज्य में मैदानी क्षेत्र का वर्चस्व बढ़ गया है तथा पहाड़ की सीटें कम हो गई हैं। इससे राजनीतिक दलों का हार-जीत का गणित गड़बड़ा-सा गया है। यह भी आशंका जताई जाने लगी है कि इस बार भले ही पर्वतीय क्षेत्र से मुख्यमंत्री बन जाए लेकिन अगले चुनावों में यह बात जोर पकड़ सकती है कि मैदान का नेता पहाड़ी राज्य का मुख्यमंत्री बने। खुद मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी मानते हैं कि नया परिसीमन पहाड़ के हित में नहीं है। नए परिसीमन के बाद उत्तराखंड में 36 सीटें मैदानी इलाके में तथा 34 सीटें पहाड़ी इलाके में आई हैं। इससे पहले तक 38 सीटें पहाड़ के खाते में थीं और 32 सीटें मैदानी क्षेत्र में। मुख्यमंत्री खंडूरी पहाड़ से लड़ते रहे हैं लेकिन इस बार वह मैदानी सीट कोटद्वार से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक डोईवाल से लड़ रहे हैं। उत्तराखंड एक मात्र ऐसा पहाड़ी राज्य है जिसका आधा हिस्सा मैदानी है और आधा पहाड़ी। उत्तराखंड विधानसभा में 70 सीटें हैं जिनमें अनुसूचित जाति के लिए 12 व अनुसूचित जनजाति के लिए तीन सीटें आरक्षित हैं। हाल ही में एक सर्वे के अनुसार भुवन चन्द्र खंडूरी के मुख्यमंत्री बनने से भाजपा का पलड़ा भारी है और वह पुन सत्ता में आ जाएगी जबकि कांग्रेस बहुत आश्वस्त है कि अगली सरकार वह बना रही है।
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Saturday, 28 January 2012

...और अन्ना ने कहा कि भ्रष्टाचारी को थप्पड़ मारो

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th January  2012
अनिल नरेन्द्र
कुछ माह पहले नासिक की एक सभा में अन्ना हजारे ने कहा था कि वह गांधी जी के विचारों में भरोसा करते हैं, लेकिन लोगों को गांधी के रास्ते में चलकर न समझाया जा सके तो शिवाजी का मार्ग अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए। जन लोकपाल मुद्दे पर सरकार से बार-बार मिले धोखे के बाद अब अन्ना खुद भी शिवाजी के रास्ते पर चलने की तैयारी करते दिख रहे हैं। तभी तो उन्होंने हिंसा का समर्थन करते हुए कहा है कि जब भ्रष्टाचार बर्दाश्त करने में आम आदमी की क्षमता जवाब दे जाती है तो उसके पास थप्पड़ मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। अन्ना ने मंगलवार रात अपने गांव रालेगण सिद्धि में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बनी फिल्म `गली-गली चोर है' के बाद यह विवादित टिप्पणी की। यह पहली बार नहीं जब अन्ना ने थप्पड़ पर टिप्पणी की हो। कुछ सप्ताह पहले दिल्ली में कृषि मंत्री शरद पवार को एक व्यक्ति द्वारा थप्पड़ मारे जाने की सूचना जब अन्ना को दी गई थी तो उन्होंने विनोदभाव से पूछा था, `सिर्प एक ही थप्पड़।' अन्ना के इस बयान की काफी आलोचना हुई थी और उनके विरोधियों द्वारा उन्हें छद्म गांधीवाद और हिंसा का समर्थक करार दिया गया था। अन्ना के ताजा बयान की राजनीतिक दलों में प्रतिक्रिया होनी लाजिमी थी। कांग्रेस महासचिव की टिप्पणी थी ः यह हिंसक बयान संघ की संगत का नतीजा है। उनके इस बयान के बाद मेरे मन में उनके प्रति सम्मान घटा है। मैं उन्हें एक गांधीवादी के तौर पर देखता हूं लेकिन वह जिस तरह से हिंसा की बात करते रहे हैं उससे उनका सम्मान कम हुआ है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह कहते हैं कि मैं उनसे सहमत नहीं हूं। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में मर्यादाओं का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन का समर्थन करता हूं लेकिन आंदोलन में मर्यादाओं का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। समाजवादी पार्टी के महासचिव आजम खान का कहना था कि अन्ना का लोकतंत्र में भरोसा नहीं है। जब कमांडर ही हिंसा की बात करता है तो टीम क्या करेगी? अन्ना अपने रास्ते से भटक गए हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर टीम अन्ना की अत्याधिक सक्रियता और राजनीतिक दलों पर की जा रही टीका-टिप्पणी अब लोगों के गले कम उतर रही है। आमजन के अलावा राजनीतिक दलों को भी टीम अन्ना का रवैया रास नहीं आ रहा है। कुछ माह पहले तक दिल्ली में अपने अनशन के दौरान देशभर में समर्थन मिलने से उत्साहित टीम अन्ना की अत्याधिक सक्रियता और आए दिन की अवांछित टिप्पणियों से टीम अन्ना को लेकर अब ज्यादा गम्भीर नजर नहीं आ रही है। राजनीतिक दलों को बार-बार चिट्ठी लिखने और तमाम सवालों पर कैफियत तलब करने की रणनीति की अब प्रतिक्रिया होने लगी है। यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में कहीं ऐसा न हो कि लोकपाल जैसे मुद्दे पर टीम अन्ना अलग-थलग पड़ जाए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पता चल जाएगा कि जनता में अन्ना के आंदोलन का क्या असर हुआ है? अगर ऐसे परिणाम आते हैं जिनसे यह लगता है कि अन्ना की बातों का ज्यादा असर जनता पर नहीं पड़ा तो अन्ना का आगे का रास्ता मुश्किल हो जाएगा और अगर यह लगा कि भ्रष्टाचार एक मुद्दा बना है तो निश्चित तौर पर लोकपाल बनाने का रास्ता आसान हो जाएगा पर हिंसात्मक बात करना अन्ना को शोभा नहीं देती।
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला टकराव पैदा कर सकता है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th January  2012
अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में विधायिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों की एक नई बहस शुरू कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संसद एवं विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता के बारे में स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। इस संबंध में स्पीकर का फैसला अंतिम नहीं माना जाएगा। न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति सीरिक जोसेफ की बैंच ने कर्नाटक के भाजपा एवं निर्दलीय विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के आदेश को गलत करार देते हुए बुधवार को इसके कारण बताए। हालांकि कोर्ट गत वर्ष के 13 मई को ही इस संबंध में फैसला सुना चुका था। अब विस्तार से जारी फैसले में कोर्ट ने कहा है कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची में सदस्यों की अयोग्यता के बारे में अर्द्ध न्यायिक प्राधिकरण की तरह फैसला करता है। ऐसे में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उसके अंतिम आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकता है। अब यह कानूनन तय हो चुका है कि स्पीकर का अंतिम आदेश संविधान में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को मिले अधिकारों पर रोक नहीं लगाता। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 एवं 136 और हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत स्पीकर के आदेश की समीक्षा कर सकते हैं। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को इन अनुच्छेदों में विशेष शक्तियां मिली हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि निर्दलीय विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दल-बदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। कानून में उनके समर्थन देने या वापस लेने पर कोई रोक नहीं है। सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों, रैलियों में निर्दलीयों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनीतिक दल में शामिल हो गए हैं। इसलिए उनके महज सरकार में शामिल होने या मंत्री बनने से उसके राजनीतिक दल ज्वाइन करना साबित नहीं होता। कोर्ट ने पक्षकारों की उन दलीलों को ठुकरा दिया जिनमें कहा गया था कि किसी सदस्य की अयोग्यता के बारे में स्पीकर का फैसला संवैधानिक प्रावधानों में अंतिम फैसला माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक के स्पीकर का विधायकों का अयोग्य ठहराने का आदेश दुर्भावनापूर्ण था। तथ्यों को देखने से पता चलता है कि स्पीकर सिर्प फ्लोर टेस्ट के पहले विधायकों को अयोग्य ठहराना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इतनी जल्दबाजी में कार्यवाही की जिससे विधायकों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निश्चित रूप से स्पीकर के अधिकारों पर टकराव पैदा करेगा। बेशक इसमें कोई सन्देह नहीं कि स्पीकर सत्तारूढ़ दल से संबंध रखता है और उसके प्रति उसकी हमदर्दी भी होती है और अक्सर फ्लोर टेस्ट से पहले वह सत्तारूढ़ दल की मुसीबत कम करने के लिए कुछ विधायकों को अयोग्य करार देकर वोट देने से वंचित रखते हैं पर वही स्पीकर कहेंगे कि सदन पे अन्दर की कार्यवाही और उससे संबंधित सभी मामलों में वह अंतिम पॉवर है। विधायिका व न्यायपालिका का इस मुद्दे पर टकराव होना स्वाभाविक ही है। चूंकि मामला अदालत और स्पीकर का है इसलिए इस पर और टिप्पणी नहीं की जा सकती।

Friday, 27 January 2012

People of Pakistan must have felt relieved

- Anil Narendra
People of Pakistan must have felt relieved. The fast-paced developments have taken a break. Looking at the way, the Zardari Government was having confrontation with the Pak Army and the Supreme Court, it appears that anything can happen any time. But all the players have restrained themselves and for the time being a dangerous situation has been averted. It cannot be said that for how long the danger has been averted. But it has been delayed at least up to 24th January, the date for the next Supreme Court hearing. Memogate episode will come up for hearing on 24th January and once again the Government and the Army will be confronting each other. For the time being, it can be said that democracy and people have been the winners in Pakistan. We must appreciate the Prime Minister, Yousuf Raza Gilani for putting his point of view with boldly before both the generals and Supreme Court and he has played his cards well. But one thing is certain that the people of Pakistan are not going to tolerate Army rule at any cost. So far as stability in Pakistan is concerned, only Allah knows the answer. Years 2012 and 2013 could prove very important for Pakistan in many ways. The US forces are to withdraw from Afghanistan during this period. The turn of events that are likely to take after this withdrawal will have direct bearing on Pakistan and India. The Chief Justice, Mohammad Iftikhar Chaudhary will be retiring in 2013. The Pak Parliament will complete its five years' term in March 2013. Then the term of Asif Ali Zardari as President of Pakistan will also be completed in September 2012. Three years' extension to Army Chief, General Ashfaq Kayani will also be coming to an end in November 2013. The ISI Chief Ahmad Shuja Pasha will also be completing his tenure in March this year and it is being said that he will not get any extension. Then the month of March in Pakistan is also important, as after three years half of the Senate seats (equivalent to Rajya Sabha) will fall vacant during this month. Political equations in
Senate will also change. The home coming of former President Parvez Musharraf has been delayed. Sometimes there are reports that he is returning home and then we hear that he is not coming. Though general elections in Pakistan are due in March next year, but Imran Khan and Nawaz Sharif are in favour of early elections. They see seat of power nearer, if elections are held earlier. On his arrival at the Supreme Court, the Pak Prime Minister, Yousuf Raza Gilani clearly said that he fully respect the judiciary, but is unable to reopen corruption cases against President Zardari, as under the Constitution, the President enjoys immunity in such matters. He was replying to a question by the seven-member Jury as to why Court order to write letter to reopen the money laundering case in Switzerland, was not obeyed? Gilani's counsel, Aiteraz Ehsaan said the Court should not pressurize Pakistan Government to write letter to Swiss Government, as it may lead to ridicule. The Swiss Government says that, President has got the immunity under the Vienna Pact. The Court asked, if the Government had ever contacted the Swiss Government in this regard. The Court has allowed Gilani one month's time to file his reply. It may be mentioned that a Court in Switzerland had convicted Pak President Asif Ali Zardari and his late wife and former Prime Minister of Pakistan, Benazir of fraud to the tune of millions of dollars in 2003. At that time, Benazir Bhutto was the Prime Minister of Pakistan. Later, both of them appealed against this decision in Switzerland. Then at the request of Pak Government, Switzerland Government dropped the investigation. Thousands of such cases against Benazir Bhutto were closed and that is why she was able to return to Pakistan to contest elections. After a few days, she was assassinated. The Supreme Court declared closing of these matters unconstitutional and the tension between the Government and the Supreme Court is continuing since then. In view of allegations of corruption and mal-administration, Presidency of Zardari is under threat. It cannot be said that for how long he will be able to remain as the head of the State. But, for the time being reprieve has been given.

Thursday, 26 January 2012

पंजाब विधानसभा चुनाव ः कैप्टन का पलड़ा भारी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th January  2012
अनिल नरेन्द्र
पंजाब विधानसभा चुनाव अब बिल्कुल करीब आ गए हैं। चुनाव से पहले के इस अंतिम सप्ताह में सियासी लड़ाई बहुत तेज हो गई है। कांग्रेस बनाम अकाली-भाजपा गठबंधन में से कौन अगले पांच साल पंजाब की गद्दी सम्भालेगा, जल्द तय हो जाएगा। इस बार पंजाब चुनाव में विदेशों में रहने वाले पंजाबी प्रवासी भी गहरी रुचि ले रहे हैं। राज्य के दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस व अकाली दल के पक्ष में यह प्रवासी भारतीय जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। पंजाब के अखबारों में बाकायदा इन पार्टियों के पक्ष में विज्ञापन देकर प्रचार किया जा रहा है। अमेरिका में बसे पंजाबी प्रवासियों का इस चुनाव में इतनी दिलचस्पी लेने के पीछे एक कारण है अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर पर अमेरिकी टेलीविजन शो के होस्ट जेम लेनो द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणी। अमेरिका में एनबीसी चैनल पर चल रहे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम द टूनाइट शो में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तस्वीर दिखाते हुए जेम लेनो ने कहा था कि यह अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी के लिए गर्मी के लिहाज से सम्भावित ठिकाना है। दुनियाभर के हमारे सिख भाइयों को लेनो की इस अपमानजनक टिप्पणी पर गुस्सा स्वाभाविक ही है। भारत सरकार ने इस पर सख्त आपत्ति की है। इस मुद्दे पर सारे सिख एक हैं, जो देश में हैं या दुनिया के किसी कोने में हैं। खैर! हम बात कर रहे थे पंजाब विधानसभा चुनाव की। पंजाब के मतदाता 30 जनवरी को 117 विधानसभा सीटों के लिए वोट डलेंगे। सभी राजनीतिक दल अंदरूनी मार से जूझ रहे हैं। कांग्रेस राज्य की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी भी सभी स्टेटों पर खड़ी है। बहुजन समाज पार्टी 110, पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब 91, सीपीएम 9 और सीपीआई 14 पर लड़ रहे हैं। मुख्य मुकाबला कांग्रेस व अकाली-भाजपा में है। पहले बात करते हैं कांग्रेस की। कांग्रेस के लिए पंजाब का चुनाव जिताने का सारा दारोमदार कैप्टन अमरिन्दर सिंह के कंधों पर है। वह न केवल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं बल्कि भावी मुख्यमंत्री भी हैं। अगर पंजाब में कांग्रेस सत्ता में आती है तो कैप्टन ही अगले मुख्यमंत्री होंगे। कैप्टन इन दिनों आत्मविश्वास से भरे हुए बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि अकाली-भाजपा सरकार स्वतंत्रता के बाद से पंजाब में अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है। उन्होंने इन चुनावों में अकालियों का भ्रष्टाचार पर असहनशीलता का दावा करने को सबसे बड़ा मजाक करार दिया। कैप्टन का दावा है कि वह 117 सीटों वाली विधानसभा में कम से कम 70 सीटें जीत रहे हैं। वहीं अकाली दल की कमान थामे सुखबीर बादल दावा कर रहे हैं कि उनकी ही सरकार बनेगी। हर राजनीतिक पार्टी का उम्मीदवार जाति, धर्म और बिरादरी के वोट पक्के करने में पूरा जोर लगा रहा है। पंजाब में मालवा क्षेत्र का खासा प्रभाव है। यहां करीब 40 विधानसभा सीटें हैं और यही अकाली दल का गढ़ माना जाता है। हालांकि 2007 में यहां शिरोमणि अकाली दल को भारी झटका लगा था। हालांकि बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक श्री कांशीराम पंजाब के ही थे और यहां दलितों की आबादी भी 30 प्रतिशत है और उनकी आर्थिक स्थिति भी दूसरे राज्यों के दलितों से बेहतर है पर पार्टी यहां अपने पांव जमा नहीं सकी। स्टार-न्यूज-नेलसन ने एक ताजा चुनाव पूर्व सर्वे किया है। सर्वे के अनुसार कांग्रेस 63 सीटें जीत रही है जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन को 53 सीटों से संतुष्ट होना पड़ेगा। तीसरे मोर्चे में सर्वे के मुताबिक पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब (मनप्रीत बादल) केवल अपनी ही सीट निकालने में कामयाब होंगे पर यह सर्वेक्षण गलत भी हो जाते हैं। फिलहाल हम यही कह सकते हैं कि कैप्टन का पलड़ा भारी लग रहा है।

पंजाब विधानसभा चुनाव अब बिल्कुल करीब आ गए हैं। चुनाव से पहले के इस अंतिम सप्ताह में सियासी लड़ाई बहुत तेज हो गई है। कांग्रेस बनाम अकाली-भाजपा गठबंधन में से कौन अगले पांच साल पंजाब की गद्दी सम्भालेगा, जल्द तय हो जाएगा। इस बार पंजाब चुनाव में विदेशों में रहने वाले पंजाबी प्रवासी भी गहरी रुचि ले रहे हैं। राज्य के दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस व अकाली दल के पक्ष में यह प्रवासी भारतीय जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। पंजाब के अखबारों में बाकायदा इन पार्टियों के पक्ष में विज्ञापन देकर प्रचार किया जा रहा है। अमेरिका में बसे पंजाबी प्रवासियों का इस चुनाव में इतनी दिलचस्पी लेने के पीछे एक कारण है अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर पर अमेरिकी टेलीविजन शो के होस्ट जेम लेनो द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणी। अमेरिका में एनबीसी चैनल पर चल रहे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम द टूनाइट शो में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तस्वीर दिखाते हुए जेम लेनो ने कहा था कि यह अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी के लिए गर्मी के लिहाज से सम्भावित ठिकाना है। दुनियाभर के हमारे सिख भाइयों को लेनो की इस अपमानजनक टिप्पणी पर गुस्सा स्वाभाविक ही है। भारत सरकार ने इस पर सख्त आपत्ति की है। इस मुद्दे पर सारे सिख एक हैं, जो देश में हैं या दुनिया के किसी कोने में हैं। खैर! हम बात कर रहे थे पंजाब विधानसभा चुनाव की। पंजाब के मतदाता 30 जनवरी को 117 विधानसभा सीटों के लिए वोट डलेंगे। सभी राजनीतिक दल अंदरूनी मार से जूझ रहे हैं। कांग्रेस राज्य की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी भी सभी स्टेटों पर खड़ी है। बहुजन समाज पार्टी 110, पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब 91, सीपीएम 9 और सीपीआई 14 पर लड़ रहे हैं। मुख्य मुकाबला कांग्रेस व अकाली-भाजपा में है। पहले बात करते हैं कांग्रेस की। कांग्रेस के लिए पंजाब का चुनाव जिताने का सारा दारोमदार कैप्टन अमरिन्दर सिंह के कंधों पर है। वह न केवल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं बल्कि भावी मुख्यमंत्री भी हैं। अगर पंजाब में कांग्रेस सत्ता में आती है तो कैप्टन ही अगले मुख्यमंत्री होंगे। कैप्टन इन दिनों आत्मविश्वास से भरे हुए बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि अकाली-भाजपा सरकार स्वतंत्रता के बाद से पंजाब में अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है। उन्होंने इन चुनावों में अकालियों का भ्रष्टाचार पर असहनशीलता का दावा करने को सबसे बड़ा मजाक करार दिया। कैप्टन का दावा है कि वह 117 सीटों वाली विधानसभा में कम से कम 70 सीटें जीत रहे हैं। वहीं अकाली दल की कमान थामे सुखबीर बादल दावा कर रहे हैं कि उनकी ही सरकार बनेगी। हर राजनीतिक पार्टी का उम्मीदवार जाति, धर्म और बिरादरी के वोट पक्के करने में पूरा जोर लगा रहा है। पंजाब में मालवा क्षेत्र का खासा प्रभाव है। यहां करीब 40 विधानसभा सीटें हैं और यही अकाली दल का गढ़ माना जाता है। हालांकि 2007 में यहां शिरोमणि अकाली दल को भारी झटका लगा था। हालांकि बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक श्री कांशीराम पंजाब के ही थे और यहां दलितों की आबादी भी 30 प्रतिशत है और उनकी आर्थिक स्थिति भी दूसरे राज्यों के दलितों से बेहतर है पर पार्टी यहां अपने पांव जमा नहीं सकी। स्टार-न्यूज-नेलसन ने एक ताजा चुनाव पूर्व सर्वे किया है। सर्वे के अनुसार कांग्रेस 63 सीटें जीत रही है जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन को 53 सीटों से संतुष्ट होना पड़ेगा। तीसरे मोर्चे में सर्वे के मुताबिक पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब (मनप्रीत बादल) केवल अपनी ही सीट निकालने में कामयाब होंगे पर यह सर्वेक्षण गलत भी हो जाते हैं। फिलहाल हम यही कह सकते हैं कि कैप्टन का पलड़ा भारी लग रहा है।
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नितिन गडकरी की ताजा मिसाइल नरेन्द्र मोदी पीएम

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th January  2012
अनिल नरेन्द्र
अपने विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने फिर नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। एक टीवी चैनल को दिए एक प्रश्न के उत्तर में गडकरी ने कहा, `नरेन्द्र मोदी पार्टी अध्यक्ष बन सकते हैं, उनमें पीएम बनने की भी काबलियत है।' पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इतने निकट हों और भाजपा अध्यक्ष ऐसा बयान दें? इससे पहले कुशवाहा प्रकरण में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी। इससे पार्टी सम्भली नहीं कि नितिन जी ने नया तीर चला दिया। इस बयान से जहां भाजपा में खलबली मची वहीं कांग्रेस अपने ढंग से इसका मतलब, उद्देश्य निकाल रही है। कांग्रेस का मानना है कि नितिन गडकरी ने यह सोचा-समझा बयान दिया है जिसका मकसद यूपी में हिन्दू वोट बैंक को संगठित करना है। नरेन्द्र मोदी की छवि का फायदा उठाने की कोशिश है। यूपी को खास ध्यान में रखकर दिया गया है यह बयान। यूपी में राहुल गांधी के दौरों से उपर कास्ट वोट कांग्रेस की तरफ झुक हा है। मायावती का अपना गणित भी भाजपा के परम्परागत वोट बैंक को हिलाता लग रहा है। इसी को ध्यान में रखकर पहले उमा भारती को यूपी में आगे किया गया और अब नरेन्द्र मोदी की पीएम की बात उछाली गई। वहीं भाजपा के अन्दर इस बयान ने नई हलचल पैदा कर दी है। नितिन के इस बयान का पार्टी के अन्दर यह अर्थ निकाला जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी गडकरी और संघ की पीएम की पहली च्वाइस होंगे। लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली सरीखे के नेताओं से दूर हटकर गडकरी ने अब मोदी के साथ खड़े होने की कोशिश की है। कुशवाहा प्रकरण के बाद पार्टी विद ए डिफरेंस के दूसरे मतलब भी अब सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक एवं जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने नितिन गडकरी की राय का खुलकर विरोध किया है। जब यादव से पूछा गया कि इस बारे में आपका क्या कहना है तो उन्होंने फौरन कहाöअभी 2014 बहुत दूर है। आप लोग 2012 की बात कीजिए। जब यह बात सामने आएगी, तब हम देखेंगे। अपने अध्यक्ष के बयान पर भाजपा ने सोमवार को कहा कि यह एक विशिष्ट प्रश्न पर दिया गया विशिष्ट उत्तर था। पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ऐसे मामलों पर पार्टी सामूहिक निर्णय करती है। इस बारे में दो राय नहीं है कि मोदी में भाजपा अध्यक्ष या प्रधानमंत्री बनने की पूरी क्षमता है। सारा देश और हम सभी यह बात मानते हैं। साथ ही उन्होंने कहा, लेकिन किसी को प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष बनाना भाजपा में कोई पारिवारिक मामला नहीं है। कौन पार्टी अध्यक्ष होगा या प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनेगा, इसे पार्टी उचित समय पर तय करेगी। भाजपा और कांग्रेस में सबसे बड़ा फर्प यही है। कांग्रेस में नेतृत्व स्पष्ट है और जो फैसला सोनिया गांधी कर दें वह अंतिम होता है। भाजपा में तो दर्जनों नेता सुप्रीमो हैं। कोई एक-दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं है। जिसके मुंह में जो आता है वह कह देता है। फिर अभी लोकसभा चुनाव दूर हैं। अभी से पीएम उम्मीदवार की बात छेड़ने से क्या फायदा होगा हमारी समझ से बाहर है। भाजपा का पहला उद्देश्य तो यूपी में अच्छा प्रदर्शन करने, पंजाब और उत्तराखंड में पुन सरकार बनाने का होना चाहिए। इन्हीं के परिणामों से एक संकेत मिलेगा कि पार्टी जनता की नजरों में खड़ी कहां है? घर बैठे-बैठे ख्याली पुलाव बनाने से शायद ही कोई फायदा हो?
Anil Narendra, BJP, Congress, Daily Pratap, Narender Modi, Nitin Gadkari, Vir Arjun

Wednesday, 25 January 2012

राजधानी में फल-फूल रहा है ड्रग्स का गोरखधंधा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th January  2012
अनिल नरेन्द्र
दो साल पहले अपने देश घाना से आया तो वह लेडीज फुटवेयर एक्सपोर्ट करने के लिए पर कारोबार की सुस्त रफ्तार से बन गया नशा का सौदागर। मुंबई में रहने वाले उसके एक परिचित ने उसे जल्दी पैसा बनाने का फार्मूला समझाया और उसने नशीले पदार्थों का धंधा शुरू कर दिया। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया और उससे दो करोड़ रुपये की कोकीन बरामद हुई। घाना का यह निवासी पॉल 2010 में भारत आया था। मुंबई में रहने वाले उसके देश के क्रॉस नाम के एक शख्स ने इस कारोबार के फायदे गिनाकर इस धंधे में धकेल दिया। इसके बाद से पॉल दिल्ली में नशे की खेप सप्लाई करने लगा। पॉल अपने जूतों में कोकीन छिपाकर लाता था और फ्लाइट से दिल्ली पहुंचता था। शुक्रवार को नारकोटिक्स ब्रांच ने उसे मुंबई से आई एक डोमेस्टिक फ्लाइट से उतारा था। यहां आते ही उसे दबोच लिया गया। उसके पास से 200 ग्राम कोकीन बरामद हुई जिसकी कीमत अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में दो करोड़ बताई जा रही है। बताया जाता है कि इस कोकीन को पेज थ्री और वीक एण्ड पार्टियों में सप्लाई किया जाना था। इससे कुछ दिन पहले दक्षिण अफ्रीका के रहने वाले कैली विलियम्स मेबन (36) को अपराध शाखा ने गिरफ्तार किया था। यह भी दिल्ली के हाई प्रोफाइल लोगों को कोकीन सप्लाई करता था। इसके पास से 40 लाख रुपये की कोकीन बरामद हुई। पूछताछ में खुलासा हुआ कि कैली जुलाई 2011 में मुंबई आया था। उसके पास मल्टीपल वीजा था। सितम्बर 2011 में कैली दिल्ली आया और उसने अपने दोस्त जेम्स जिसके साथ वह रहता था कोकीन का धंधा शुरू किया। वह दिल्ली के साथ-साथ एनसीआर में भी रेव पार्टियों में कोकीन की सप्लाई करता था। इसी सप्ताह में पुलिस ने दो नाइजीरियन को भी दो करोड़ से अधिक की कोकीन के साथ पकड़ा। हाई डोज कोकीन का नशा दिल्ली में हाई प्रोफाइल लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। दिल्ली पुलिस भले ही आज तक किसी रेव पार्टी को न पकड़ पाई हो, लेकिन उसका खुद का दावा है कि कोकीन इन रेव पार्टियों में सप्लाई हो रही है। दिल्ली के फार्म हाउसों की पार्टियों में कोकीन की डिमांड ज्यादा है। कोकीन की बढ़ती पकड़ का इस बात से लग जाता है कि पिछले साल 16 विदेशी कोकीन के धंधे में धरे गए। यह अत्यंत चिन्ता का विषय है कि राजधानी में ड्रग्स का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। वर्ष 2010 की तुलना में 2011 में अधिक मात्रा में पकड़े गए मादक पदार्थों से इस बात की पुष्टि होती है। साथ ही इससे यह भी जाहिर होता है कि दिल्ली के लोग दिनोंदिन नशे के जाल में फंसते जा रहे हैं। इसके चलते ड्रग्स दिल्ली के अन्य हिस्सों के अलावा देश की अति सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल तक भी पहुंच जाती हैं। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने वर्ष 2011 में मादक पदार्थ की तस्करी में 98 लोगों को पकड़ा, जिनमें से 16 विदेशी थे। हाल यह है कि दिल्ली, एनसीआर की इन रेव पार्टियों में शराब के साथ कोकीन मिलाकर पीने से लोग रात-रातभर नाचते हैं। यहां तक कि सेक्स करने के लिए भी कोकीन का जमकर इस्तेमाल होता है। उन्हें लगता है कि इससे अच्छी सेक्स पॉवर बढ़ जाती है। यह कोकीन लैटिन अमेरिका खासकर कोलम्बिया से आती है। इसलिए इसकी कीमत भी अन्य नशों से ज्यादा होती है। दिल्ली में कोकीन के नशे के लिए कई बार बड़े-बड़े हाई प्रोफाइल लोग पकड़े गए हैं। क्रिकेट खिलाड़ी मनिन्दर सिंह, राहुल महाजन व एक विदेशी दूतावास के अधिकारी के बेटे की गिरफ्तारी ने दिल्ली को हिलाकर रख दिया था। राहुल महाजन केस के बाद तो दिल्ली में कोकीन का धंधा करने वाले विदेशी लोगों पर खासी सख्ती बढ़ गई थी। लेकिन अब धीरे-धीरे यह धंधा फिर से सिर उठाने लगा है। अपनी सालाना प्रेस कांफ्रेंस में दिल्ली के पुलिस कमिशनर बीके गुप्ता ने बताया कि ड्रग्स पर 2012 में मुख्य फोकस रहेगा। पहले कुछ विशेष दस्ते ही ड्रग्स तस्करों को पकड़ने का काम करते थे लेकिन पिछले साल थाना स्तर पर भी कार्रवाई के निर्देश दिए गए। इसी के चलते बीते वर्ष में 2010 की अपेक्षा में भारी मात्रा में मादक पदार्थ जब्त किए गए। नशे की चपेट में आए ज्यादातर लोग मध्यमवर्गीय परिवार के हैं। गौरतलब है कि इन दिनों राजधानी में ड्रग्स की खेप कई देशों से आ रही है। इसमें नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान प्रमुख हैं। हैरत की बात है कि इस तस्करी में पूर्वोत्तर के कई उग्रवादी संगठन भी शामिल हैं, जो यूरोप, एशिया में ड्रग्स तस्करी से अपने संगठनों को मजबूत कर रहे हैं। ज्यादातर तस्कर कैरियर के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं कई तस्कर सरकारी एजेंसियों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं जिसमें रेलवे, पार्सल, भारतीय डाक सेवा आदि शामिल हैं। पुलिस आयुक्त गुप्ता का कहना है कि यदि किसी भी थाना क्षेत्र में ड्रग्स तस्करी का मामला सामने आया तो इसकी जिम्मेदारी बीट कांस्टेबल की होगी, साथ ही थाना प्रभारी भी जिम्मेदार होगा।
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यूपी में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कुछ लोगों के लिए मिशन खाओ-कमाओ बन गया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25th January  2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) में कथित तौर पर हुए हजारों करोड़ रुपये के घोटाले के मामले में सोमवार को अभियुक्त परियोजना अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने अपने घर में गोली मारकर खुदकुशी कर ली। हाल ही में सीबीआई ने उनके घर पर छापा मारा था। वर्मा का नाम इस घोटाले की प्राथमिकी में भी दर्ज था। इस घोटाले में यह चौथी मौत थी। दरअसल उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का प्रोग्राम क्या शुरू हुआ, राज्य के सरकारी तंत्र के लिए `मिशन खाओ-कमाओ' जैसा तोहफा मिल गया। कम से कम सीएजी की रिपोर्ट को देखने से तो ऐसा ही लगता है। घोटालेबाज मां की कोख और जिन्दगी व मौत के बीच जूझने वाले मरीजों की दवाइयां तक में गड़बड़ी करने से नहीं चूके यानि जनता के स्वास्थ्य मिशन को शुरू करने में इंसानियत और हैवानियत का तांडव करने से भी सरकारी तंत्र बाज नहीं आया। केंद्र सरकार द्वारा जनता को स्वस्थ रखने के लिए चलाया गया एनआरएचएम बेशक परवान नहीं चढ़ पाया, लेकिन सरकारी तंत्र का `मिशन कमाओ' जरूर परवान चढ़ गया। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक दिसम्बर 2010 में राष्ट्रीय कार्यक्रमों के निगरानी और मूल्यांकन महानिदेशक (डीजीएन पीएमई) ने स्वास्थ्य स्कूल योजना के तहत 10 करोड़ रुपये सीएमओ को दिया। जांच में पाया गया कि 16 जिलों में इस योजना के तहत दवाई आपूर्ति का काम अधिकारियों ने कागजों में कोलकाता की सीआई लैब्रोरेटरी और करिश्मा हेल्थ केयर लखनऊ को दिया दिखाया। इससे जिस दवा की कीमत बाजार में मात्र एक रुपये 40 पैसे थी उसकी कीमत स्कूल पहुंचते-पहुंचते 18 रुपये तक पहुंच गई। मजे की बात यह है कि जब सीएजी को शक हुआ तो मामले की तह तक जाया गया तो जांच में पता चला कि कोलकाता स्थित सीआई लैब्रोरेटरी के नाम पर 10 लाख रुपये के 13 बिल दिए गए। जब आयकर विभाग ने इसकी छानबीन की तो सीआई लैब ने साफ मना कर दिया कि उसका बिल है ही नहीं। इतना ही नहीं, सरकार बेशक जनसंख्या दर कम करने की कोशिश कर रही हो और इस मिशन के तहत हजारों करोड़ रुपये दे रही है, मगर उत्तर प्रदेश का सरकारी तंत्र इसमें भी सेंध लगाने से बाज नहीं आया। सीएजी के अनुसार जननी सुरक्षा योजना के तहत स्वास्थ्य केंद्र में बच्चा पैदा करने वाली महिलाओं को 1400 रुपये देना था जबकि बीपीएल परिवार की महिलाओं को घर पर भी प्रसव की स्थिति में 500 रुपये की नकद सहायता देनी थी। इन महिलाओं को समझा-बुझाकर स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल जाने के एवज में आशा कार्यकर्ताओं को 600 रुपये तक मानदेय मिलता है। यूपी में 2005-11 के बीच इस योजना के तहत 69 लाख महिलाओं के लिए 1219 करोड़ रुपये खर्च किए गए। राज्य सरकार की कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना के तहत इस योजना के 10 फीसदी मामलों की पुष्टि करनी थी कि सच में प्रसव हुआ है या नहीं। अगर हुआ है तो पैसा दिया गया या नहीं। लेकिन 2008 से 2011 के बीच इस योजना पर खर्च हुए 1085 करोड़ की पुष्टि ही सरकारी तंत्र नहीं कर पाया। इसी तरह नसबंदी पर खर्च किए गए 181 करोड़ रुपये में बड़े भारी पैमाने में घपला किया गया। टीकाकरण अभियान की जांच पर पाया गया कि किराये पर ली गई गाड़ियां नकली स्कूटर, मोपैड, मोटर साइकिल, डिलीवरी वैन और ट्रैक्टर वास्तव में ली ही नहीं गई थी, बस खर्चा दिखाया गया। शाहजहानपुर के जलालाबाद स्वास्थ्य केंद्र ने जिस नम्बर की गाड़ी को किराये पर दिखाया वह गाड़ी डीएम की सरकारी कार थी।
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Tuesday, 24 January 2012

पाकिस्तानी आवाम ने राहत की सांस जरूर ली होगी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th January  2012
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान की आवाम ने थोड़ी राहत की सांस जरूर ली होगी। तेजी से चलता घटनाकम थोड़ा थमा है। जरदारी सरकार का जिस तरह से पाक सेना व पाकिस्तान सुपीम कोर्ट से टकराव हो रहा था उससे तो लग रहा था कि किसी समय भी कुछ हो सकता है। पर सभी पक्षों ने थोड़ा संयम बरता और एक खतरनाक स्थिति फिलहाल टल गई। कितने दिन टली है यह कुछ नहीं कहा जा सकता। पर हां सुपीम कोर्ट की अगली तारीख 24 जनवरी तक तो मामला जरूर टला है। 24 तारीख को मेमोगेट पकरण पर सुनवाई होगी। इस मामले में सरकार और सेना एक बार फिर आमने-सामने होंगी। फिलहाल हम यह कह सकते हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जीत हुई, आवाम की जीत हुई। हमें पाक पधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने पाक जनरलों और सुपीम कोर्ट दोनों पे सामने बहादुरी से अपना स्टैंड रखा और अपने पत्ते अच्छे से खेले। इतना तय है कि पाक आवाम सेना का शासन किसी भी कीमत पर बर्दाश्त करने को अब तैयार नहीं। जहां तक पाक में स्थायित्व का सवाल है शायद सिर्प अल्लाह ही इसका जवाब दे सकता है। 2012 और 2013 कई मायनों में पाकिस्तान के लिए दो बहुत महत्वपूर्ण साल साबित हो सकते हैं। इसी दौरान अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज का हटना है। इसके बाद अफगानिस्तान में क्या होगा इसका सीधा असर पाकिस्तान और हिन्दुस्तान पर पड़ेगा। 2013 में ही मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद इफ्तिखार चौधरी की रिटायरमेंट होगी। मार्च 2013 में संसद के 5 साल पूरे होंगे। फिर सितम्बर 2012 में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का पांच साल का कार्यकाल पूरा होगा। नवंबर 2013 में सेना पमुख जनरल अशफाक कयानी की नौकरी की अवधि में 3 साल की एक्सटेंशन पूरी हो जाएगी। 2012की शुरुआत भी हंगामी अंदाज में हुई है। आईएसआई चीफ अहमद सुजा पाशा का कार्यकाल इसी मार्च को पूरा हो रहा है और खबर आ चुकी है कि उन्हें कोई एक्सटेंशन नहीं दिया जाएगा। फिर पाकिस्तान में 3 साल बाद मार्च का महीना इसलिए अहमियत रखता है कि इसमें सीनेट (राज्य सभा का समकक्ष) की आधी सीटें खाली हो जाएंगी। सीनेट में राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का पाकिस्तान लौटना अधर में पड़ गया है। कभी खबर आती है कि वह लौट रहे हैं और कभी खबर आती है कि फिलहाल वे नहीं आ रहे हैं। हालांकि पाक संसद के चुनाव अगले साल मार्च में होने हैं पर इमरान खान और नवाज शरीफ को चुनाव कराने की जल्दी लगी हुई है। उन्हें लगता है कि निकट भविष्य में अगर चुनाव हो जाते हैं तो उन्हें सत्ता के करीब आने में मदद मिलेगी। पाकिस्तान के पधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी गत गुरुवार को जब सुपीम कोर्ट पहुंचे तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि मैं जुडशियरी का पूरा सम्मान करता हूं। लेकिन आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे फिर खोलने से हाथ खड़े करता हूं क्योंकि संविधान के तहत राष्ट्रपति को पूरी छूट मिली हुई है। यह जवाब उन्होंने सात जजों की बैंच द्वारा पूछे गए इस सवाल में कि राष्ट्रपति जरदारी पर स्विट्जरलैंड में मनी लांड्रिंग का मामला फिर से खोलने के लिए पत्र लिखने के अदालती आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ? गिलानी के वकील एतजाज एहसान ने कहा कि स्विस गवर्नमेंट को लेटर लिखने के लिए कोर्ट को पाकिस्तान सरकार पर दबाव नहीं डालना चाहिए क्योंकि इसका मजाक बनता है। स्विस पशासन का कहना है कि विएना संधि के मुताबिक राष्ट्रपति को इससे छूट मिली हुई है। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने कभी स्विस पशासन से संपर्प साधा है? जवाब दाखिल करने के लिए गिलानी को कोर्ट ने एक महीने का वक्त दिया है। उल्लेखनीय है कि पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और उनकी दिवंगत पत्नी व पूर्व पधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को साल 2003 में स्विट्जरलैंड की एक अदालत ने करोड़ों डॉलर की हेराफेरी का दोषी पाया था। यह मामला तब का है जब बेनजीर भुट्टो पधानमंत्री थीं। बाद में इन दोनों ने स्विट्जरलैंड में इस निर्णय के विरुद्ध अपील की थी। उसके बाद 2008 में पाकिस्तानी सरकार के निवेदन पर स्विट्जरलैंड ने ये जांच बंद कर दी थी। साल 2008 में बेनजीर भुट्टो के खिलाफ हजारों ऐसे मामले बंद कर दिए गए थे, जिसकी वजह से वे चुनाव में भाग लेने के लिए पाकिस्तान आ पाई थी। इसके कुछ दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई। 2009 में पाकिस्तान के सुपीम कोर्ट ने इन मामलों को बंद करने के आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और तब से दोनों सरकार और सुपीम कोर्ट में तनाव चल रहा है। भ्रष्टाचार और पशासन के आरोपों के बीच पिछले तीन सालों से राष्ट्रपति जरदारी की कुर्सी डगमगा रही है। यह कहना बहुत मुश्किल है कि उनकी यह कुर्सी कितने और समय के लिए सुरक्षित है। पर फिलहाल कुछ समय की मोहलत जरूर मिल गई है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Pakistan, Vir Arjun

उत्तर पदेश चुनाव में बाहुबलियों के मामले में सबका दामन दागदार

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th January  2012
अनिल नरेन्द्र
निर्वाचन आयोग चाहे जितने भी कानून बनाए, उत्तर पदेश विधानसभा चुनावों में इन बाहुबलियों को नहीं रोक सकता। यह कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। इन बाहुबलियों का अंतिम उद्देश्य शायद एक विधायक बनना होता है और ऐसा करने के लिए पहले तो वह बड़ी सियासी दलों को टटोलते हैं। जब उसे वहां जगह नहीं मिलती तो वह कोई छोटा दल ढूंढता है क्योंकि उसे उस दल के बूते पर तो चुनाव जीतना नहीं उसे तो वह उस पार्टी का चुनाव चिह्न चाहिए। ऐसा ही एक दल है अपना दल। इस दल से ही इलाहाबाद के अतीक अहमद की माननीय बनने का सपना पूरा हुआ था। यह बात दीगर है कि इसके बाद समाजवादी पार्टी ने भी उन्हें अपने यहां जगह देकर लोकसभा तक पहुंचाया और वह भी पंडित जवाहर लाल नेहरू के संसदीय क्षेत्र से। 2004 में अपना दल के संस्थापक सोने लाल पटेल ने बबलू श्रीवास्तव को सीतापुर से अपना दल का उम्मीदवार बनाया था। यही नहीं, उनकी किताब `अधूरा ख्वाब' का लोकार्पण भी पटेल ने किया था। अब जब दूसरे माफिया मुन्ना बजरंगी को माननीय बनने की ख्वाहिश हुई है तब उनके ख्वाब को भी अपना दल ही पंख लगा रहा है। मुन्ना बजरंगी जौनपुर से अपना दल के उम्मीदवार हैं। अतीक अहमद फिर एक बार इलाहाबाद से अपना दल के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। कुछ यही स्थिति पीस पार्टी की भी है। कांग्रेस पदेश अध्यक्ष डॉ. रीता जोशी का घर जलाने के आरोपी जितेन्द्र सिंह बबलू को पीस पार्टी के अपने यहां जगह दी थी। मायावती बाद में उन्हें निकाल पाईं। अब वह बीकापुर से मैदान में है। यही नहीं, अपने बूते पर सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतते आ रहे अखिलेश सिंह को भी पीस पार्टी में न केवल राजनीतिक शरण मिली बल्कि उन्हें राष्ट्रीय महासचिव का ओहदा भी दे दिया गया। दागियों को चुनाव से दूर रखने की बात सभी दल करते हैं पर इस पर अमल धेले का नहीं होता है। वाराणसी के अजय राम पख्यात बाहुबली हैं। यह पहले भाजपा में थे। लोकसभा में चुनाव का टिकट नहीं मिला तो समाजवादी पार्टी में चले गए। इस बार वह वाराणसी की पिडरा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। निर्दलीय उम्मीदवार रघुराज पताप सिंह उर्प राजा भैया समाजवादी पार्टी के करीब है। इस बार टुंडला सीट से फिर चुनाव लड़ रहे हैं। रायबरेली जिले से उम्मीदवार मोहम्मद मुस्लिम के खिलाफ मारपीट, बलवा जैसे मामले दर्ज हैं। सपा में भी दागियों की कमी नहीं। मित्रसेन यादव को हाल ही में अदालत से एक मामले में सजा हुई है। यादव के बेटे आनंद सेन यादव एक दलित छात्रा के दुष्कर्म और हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। सपा ने मित्रसेन को फैजाबाद जिले की बीकापुर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। बाहुबली अभय सिंह भी फैजाबाद की गोसाईगंज सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। गुड्डू पंडित और विनोद सिंह उर्प पंडित सिंह भी सपा के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं। लिस्ट बहुत लंबी है, किस-किस की कहानी बताएं। चुनाव हर हाल में जीतने की चाह में सभी दल यह नहीं देखते कि वह किस व्यक्ति को टिकट दे रहे हैं , उसका चरित्र क्या है और रिकार्ड क्या है? यही वजह है कि राजनीति में अपराधिकरण बढ़ता जा रहा है। चुनाव आयोग क्या करे जब यह सियासी दल खुद ही इससे परहेज नहीं करते हैं?
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Sunday, 22 January 2012

क्या उमा भारती की एंट्री हिंदुत्व के धुवीकरण का प्रयास है?

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Published on 22th January  2012
अनिल नरेन्द्र
न न करते हुए भी आखिरकार भारतीय जनता पार्टी की फायर ब्रैंड नेता सुश्री उमा भारती उत्तर पदेश विधानसभा चुनावों में पूंद ही गईं। इससे भाजपा में उनके पुनर्वास की पकिया भी पूरी हो गई। यूं तो पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उमा को 6 साल के बनवास के बाद पिछले जून में पार्टी में शामिल किया था पर सही मायने में उमा की राजनीति में री एंट्री बुंदेलखंड में महोबा जिले की चरखारी विधानसभा सीट पर अपना नामांकन करने से हुई है। उमा भारती मूल रूप से बुंदेलखंड की ही रहने वाली हैं। लेकिन उनका क्षेत्र मध्य पदेश रहा है। चरखारी क्षेत्र लोध बाहुल्य है, सुश्री उमा भारती भी लोध जाती की हैं। उमा भारती को भाजपा में शामिल करने के पीछे नितिन गडकरी की यह उम्मीद थी कि वह कल्याण सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद पार्टी का पुनर्गठन कर जिताएंगी। उमा भारती हमेशा विवाद का केन्द्र रही हैं। उमा पार्टी में लौर्टी, तो चर्चाएं शुरू हो गईं कि क्या पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाएंगी? नब्बे के दशक जैसा सियासी जलवा पाने की जुगत में जुटी भाजपा पिछड़ों कार्ड के बहाने फिर हिंदुत्व का डंका बजाने की तैयारी में है। मुस्लिम आरक्षण का विरोध और उमा भारती को आगे कर पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने अपने चुनावी एक्शन प्लान का काम शुरू कर दिया है। चुनावी मुद्दे की तलाश में भटक रही भाजपा का काम कांग्रेस ने कुछ हद तक आसान कर दिया है। केन्द्र सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे से 4.5 फीसदी कोटा धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों को देने के फैसले में भाजपा को चुनावी फायदा नजर आया। सो पार्टी ने लाइन ऑफ एक्शन ही बदल डाला। भ्रष्टाचार, कुशासन और महंगाई, ब्लैक मनी जैसे मसले को पीछे कर मुस्लिम आरक्षण के विरोध को ही मुख्य मुद्दा बना लिया। इतना ही नहीं पिछड़ों की हमदर्दी लेने की जल्दबाजी में एनआरएचएम घोटाले में आरोपी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को गले लगा लिया। कुशवाहा पकरण गले की फांस बनता दिखा तो मध्य पदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को चुनाव मैदान में उतारा। पिछड़ों के हित बचाने के लिए मुस्लिम विरोध के ट्रैक पर लौटती भाजपा ने शुकवार से पूरे पदेश में विधानसभा क्षेत्र स्तर पर सत्ता परिवर्तन पदयात्राएं निकालनी शुरू कर दी हैं। पिछड़ों को लुभाने के लिए वर्ष 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू कर अति पिछड़ों को ओबीसी कोटा में कोटा देने का दाव भी नहीं चल पाया। 1996 में 174 सीटें जीतने वाली भाजपा 2002 में 88 सीटों पर ही सिमट गई थी। कल्याण सिंह की वजह से लोध वोट बैंक भाजपा के साथ लम्बे समय तक जुड़ा रहा है। पदेश में यह वोट बैंक चार से छह फीसदी माना जाता है। बुंदेलखंड में तो इस वोट बैंक की हिस्सेदारी 9 फीसदी तक मानी जा रही है। 2007 में तो भाजपा बुंदेलखंड से अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। मंदिर आंदोलन के दौरान उमा ने बुंदेलखंड की धरती पर कमल को खिलाने के लिए जमकर मेहनत की थी। सो गांव-गांव में उनका नेटवर्प कायम है। लंबे समय तक गंगा अभियान जैसे गैर राजनीतिक आंदोलनों में अपनी ऊर्जा लगाती आईं उमा एक बार फिर आकामक चुनावी मुद्रा में नजर आने लगी हैं। दो दिन पहले तो उनके निशाने पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आ गए। दरअसल बुंदेलखंड के चुनाव मैदान में उमा जोर-शोर से उतरीं, तो राहुल ने उनको निशाना बनाया था। एक सभा में उन्होंने उमा पर कटाक्ष करते हुए कह दिया कि मध्य पदेश से भागकर आईं एक नेता अचानक आपके बीच मसीहा बनने की कोशिश कर रहीं हैं। जब आप तकलीफ में थे तब साथ देने के लिए अपेले कांग्रेस ही आई थी। राहुल के इस कटाक्ष का जोरदार जवाब अपने चिर-परिचित स्टाइल में उमा ने यूं दिया ः उनकी मां तो इटली से आई हैं फिर भी यहां के लोगों ने उन्हें स्वीकार कर लिया। जबकि वे तो पड़ोसी पदेश से ही आई हैं। ऐसे में राहुल कुछ बोलने से पहले कुछ सोच-समझ लिया करें तो अच्छा है। इसमें कोई शक नहीं कि उमा भारती के मैदान में कूदने से कांग्रेस में हलचल है। कांग्रेस ने अकेले बुंदेलखंड में ही 19 में से 10 सीटें जीतने पर उम्मीद लगाई हुई है। उमा भारती के आने से जहां कांग्रेस का समीकरण बदल सकता है वहीं धीरे-धीरे पार्टी फिर हिंदुत्व पर आ सकती है। उमा भारती का पयास होगा कि एक बार फिर उत्तर पदेश में वोटों का धार्मिक लाइन पर धुवीकरण हो जाए।
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भारतीय परिवारों में सोने-चांदी का मोह

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22th January  2012
अनिल नरेन्द्र
अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी बाजार में हाल की तेजी के बाद अब देशवासियों को घरेलू बाजार में सोने-चांदी की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है। सरकार ने कीमती धातुओं के शुल्क ढांचे में बदलाव करते हुए उसे मात्रात्मक के बजाय मूल्यानुसार करने का फैसला किया है। कीमती धातुओं पर आयात और उत्पाद दोनों तरह के मुल्क की दरों में बदलाव किया है। इसमें चालू वित्त वर्ष में बची हुई अवधि में करीब 600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। अभी तक सोने के पति 10 ग्राम पर 34 रुपए का शुल्क लगता था। अब सोने पर मूल्यानुसार 1.5 पतिशत उत्पाद शुल्क लगाने का फैसला किया गया है। अभी तक सोने पर 200 रुपए पति 10 ग्राम उत्पाद शुल्क लगता था। इसी पकार चांदी पर चार पतिशत उत्पाद शुल्क लगेगा। जबकि पहले पति किलो चांदी पर 1000 रुपए उत्पाद शुल्क लगता था। भारतीयों को सोने से कितना लगाव है, यह किसी से छिपा नहीं। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय परिवारों के पास 950 अरब डॉलर (49,400 अरब रुपए) मूल्य का सोना है। वैश्विक अनुसंधान फर्म मैक्सवैरी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सोना रखना हमारे देश की संस्कृति और परम्परा का हिस्सा है। भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। चीन का भी नंबर भारत के बाद ही आता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय परिवारों के पास 18,000 टन सोना है जो सोने के वैश्विक भंडार का 11 पतिशत है और मौजूदा मूल्य के हिसाब से यह 950 अरब डॉलर का बैठता है। यह सोना डॉलर मूल्य में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 50 फीसदी है। आम भारतीय परिवार संकट के समय भी सोने के आभूषण या सोना नहीं बेचते क्योंकि ऐसा करना वह सही नहीं मानते। दिलचस्प बात यह है कि जनवरी 2010 से सितम्बर 2011 के बीच देश में सोने की कीमतों में 64 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके बावजूद भारत में सोने की मांग मजबूत बनी हुई है। रिपोर्ट में कहा गया कि 2011 की पहली तीन तिमाहियों में सालाना आधार पर सोने की खपत में पांच फीसद का इजाफा हुआ है। 2010 में सालाना आधार पर सोने की मांग 72 पतिशत बढ़ी है। हालांकि सितम्बर 2011 को समाप्त तिमाही में मात्रा के हिसाब से सोने की मांग पिछले साल की तुलना में 23 फीसद कम रही है। इसकी मुख्य वजह रुपए में गिरावट है। दिवालिया होने की कगार पर खड़ी यह यूपीए सरकार पर राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में वह हर संभव स्रोत से राजस्व जुटाने की कोशिश कर रही है। आम भारतीयों में यह पवृत्ति है कि वह सोना-चांदी जरूर रखना चाहता है। उसे करेंसी पर इतना विश्वास नहीं जितना सोने-चांदी पर है। पहले जमाने में सम्पन्न परिवार सोना खरीदकर अपने आंगन में गड्ढा खोदकर दबा देते थे और विभिन्न पीढ़ियों में यह सोना ट्रांसफर होता था। शायद ही कोई मुश्किल से मुश्किल आर्थिक स्थिति में भी सोना-चांदी बेचने को तैयार होता हो। सम्पन्न परिवारों में तो चांदी के भगवान की मूर्तियां, डिनर सेट, चाय सेट भी बनते हैं। भारतीयों का सोने-चांदी का मोह अद्वितीय है।
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Saturday, 21 January 2012

सोनिया, राहुल के बाद अब पियंका भी उतरीं मैदान में

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21th January  2012
अनिल नरेन्द्र
कांग्रेस के युवा महासचिव और युवा सम्राट राहुल गांधी ने उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव में दिन-रात एक कर दी है। अपने मिशन 2012 को पूरा करने के लिए क्या कुछ नहीं कर रहे राहुल। आजकल वह बुंदेलखंड के दौरे पर हैं। दुख यह है कि उनकी मीटिंगों में भीड़ कम आ रही है। पूर्वांचल के मुकाबले बुंदेलखंड में भीड़ का आमाद कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है। भारी संख्या में पड़ी खाली कुर्सियों को देख कांग्रेस आलाकमान इसलिए भी चिंतित है क्योंकि न केवल भीड़ कम आ रही है बल्कि राहुल को कई जगह विरोध भी झेलना पड़ा। पिछले दिनों राहुल पूर्वी उत्तर पदेश के दौरे पर थे। गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ और बलिया में उतनी भीड़ नहीं जुटी जितनी की उम्मीद की जा रही थी। यूपी में कांग्रेस का सारा दारोमदार सोनिया गांधी परिवार पर टिका हुआ है। इसीलिए तमाम कांग्रेसी दिग्गज अपने परिवार की साख बचाने के लिए गांधी परिवार की पतिष्ठा को आगे करने की कोशिश में हैं। जमीनी सच्चाई का हवाला देकर राहुल गांधी से जातिवादी और धार्मिक आधार पर बयानबाजी करवा चुके ये नेता अब इसी उत्तर पदेश के चुनाव में अपना हुकुम का इक्का चलाने के लिए मैदान बनाने में जुट गए हैं। यह हुकुम का इक्का है पियंका गांधी वाढरा। पियंका पर अमेठी व रायबरेली के बाहर भी हर हाल में रैली कराने के लिए सभी दिग्गज नेता और केन्द्राrय मंत्रियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। दरअसल उत्तर पदेश के सभी कांग्रेसी नेता यह मान रहे हैं कि एक-दो फीसदी मत भी अगर कांग्रेस के पक्ष में पलट जाए तो नतीजे पूरी तरह बदले हुए होंगे। उनका यह भी मानना है कि वोटों का इतना पतिशत पलटने में पियंका पूरी तरह सक्षम हैं। पियंका गांधी वाढरा का सबसे बड़ा आकर्षण उनका व्यक्तित्व स्वर्गीय इंदिरा गांधी जैसा होना है। चुनाव पचार के दौरान जब वह बात करते हुए मुस्कुराती हैं तो पास खड़ी औरतें कहती हैं, बिटिया ऐसे ही मुस्कुराती रहना, मुस्कान तुम पर अच्छी लगती है। यह मुस्कुराहट ही पियंका को अपनी दादी इंदिरा की सबसे करीबी झलक देती है। लोग उनमें बहुत कुछ इंदिरा गांधी जैसा पाते हैं। चेहरे की बनावट, वैसे ही नाक और पावर ड्रेसिंग का स्टाइल। इंदिरा जी की पुरानी तस्वीरें पियंका के आज के दिनों की याद कराती नजर आती हैं। अगर कुछ अलग है तो वह इस मुस्कुराहट में गाल पर पड़ने वाला डिम्पल। बॉलीवुड के बड़े सितारे जॉन इब्राहिम पियंका को देश की सबसे खूबसूरत महिला बताते हैं। पार्टी पचार में जब पियंका उतरती हैं तो सबसे पहले अपनी दादी की याद कराती हैं। इंदिरा की तरह ही वह लोगों के साथ घुलमिल जाती हैं। जब वह किसी सभा में आ रही होती हैं तो वहां बैठी जनता कहती है देखो इंदिरा जी आ रही हैं। पियंका ने पता नहीं अनजाने में या सोची समझी रणनीति के तहत अपने बालों का स्टाइल भी दादी इंदिरा गांधी की तरह रखा हुआ है। राहुल और पियंका दोनों को देखने भीड़ आती है पर सवाल यह है कि क्या जो लोग सभा में आते हैं वह कांग्रेस के वोटर हैं? राहुल की कोशिशों से यूपी में कांग्रेस की स्थिति पहले से अच्छी हुई है। अब पियंका के आने से यह और अच्छी होने की कई कांग्रेसी उम्मीद लगाए बैठे हैं। कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत चुनाव में झोंक दी है। सोनिया गांधी, राहुल और अब पियंका। देखें इनका मतदाताओं पर क्या असर पड़ता है?
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Friday, 20 January 2012

गुजरात हाई कोर्ट ने लोकायुक्त मामले में दिया मोदी को झटका

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21th January  2012
अनिल नरेन्द्र
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोकायुक्त मामले में निश्चित रूप से गुजरात हाई कोर्ट के ताजा फैसले से झटका लगा है। गुजरात हाई कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त के पद पर की गई नियुक्ति को पूरी तरह संवैधानिक और कानूनी तौर पर जायज ठहराया है। लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर मोदी सरकार के टालमटोल के बाद राज्यपाल कमला बेनीवाल ने पिछले साल 25 अगस्त को सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरए मेहता को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया था। गुजरात में नवम्बर 2003 से लोकायुक्त पद खाली पड़ा था। राज्यपाल ने जस्टिस मेहता को लोकायुक्त कानून-1986 की उपधारा-3 के विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया। 26 अगस्त को गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की। तीन महीने पहले हाई कोर्ट ने विभाजित निर्णय दिया था। बुधवार को तीसरे न्यायाधीश वीएम सहाय की अदालत ने मतभेद के बिंदुओं पर सुनवाई के बाद राज्यपाल के फैसले को सही ठहराया। दोनों पक्षों के वकीलों की राय अपने-अपने हिसाब से थी। अकील कुरैशी का कहना था कि लोकायुक्त की नियुक्ति सही और संविधान सम्मत है। जबकि सोनिया बेन गोकार्णा का कहना था कि मेहता को लोकायुक्त नियुक्त करने का फैसला असंवैधानिक है। अब मामला सुपीम कोर्ट में पहुंच गया है। गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दे दी है। यह अच्छा हुआ कि यह मामला सुपीम कोर्ट पहुंच गया। पिछले साल पूरे समय देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए लोकपाल कानून की मांग गूंजती रही। इस शोरगुल के बीच लोगों को याद नहीं रहा कि कई राज्यों में भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए लोकायुक्त नामक एक संस्था पहले से ही वजूद में है। हमने गत दिनों यह भी देखा कि लोकायुक्त क्या-क्या कर सकते हैं। उत्तर पदेश में लोकायुक्त ने मायावती सरकार के नाक में दम कर रखा है और परिणामस्वरूप कई मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने पर मायावती मजबूर हुईं। यह बात दीगर है कि राज्यों में लोकायुक्तों का वजूद और उनके अधिकार वहां की सरकारों के रहमोकरम पर हैं। कई राज्यों ने तो इतने हंगामे के बावजूद लोकायुक्तों को अब तक जरूरी नहीं समझा और कुछ राज्यों ने समय की नजाकत देखते हुए इस पद को बनाया तो लेकिन अपने हिसाब से कारगर करते हुए। उम्मीद की जा सकती है कि सुपीम कोर्ट के फैसले से लोकायुक्तों के मामले में पूरे देश में एकरूपता आएगी और पार्टियों को केंद्र बनाम राज्य की आड़ में राजनीति करने का भी मौका नहीं मिलेगा। गुजरात का नमूना आखें खोलने के लिए काफी है। गुजरात बेशक अपने उद्योग-धंधों के लिए सबसे माकूल राज्य के लिए पचार करता रहे पर कटु सत्य तो यह भी है कि राज्य पिछले आठ वर्षों से लोकायुक्त के बिना ही चल रहा था। वहां के राज्यपाल और मुख्यमंत्री की खुन्नस के बारे में सभी जानते हैं। वैसे भी पिछले कुछ समय से लगता है कि नरेन्द्र मोदी में थोड़ा अहंकार आ गया है। यह झटका उनके लिए भी अच्छा है। अब वह थोड़ा जमीन पर उतरेंगे। मोदी सरकार कह रही है कि राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल के अनुमोदन के बिना लोकायुक्त बना कर राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है जबकि 2-1 से आए गुजरात हाई कोर्ट के फैसले में मुख्यमंत्री की कार्यशैली की बखियां उधेड़ी गई हैं। फैसले में मोदी की आलोचना में यह भी कहा गया है कि वह राज्य में लोकायुक्त कानून में बदलाव लाकर चीफ जस्टिस को ही नियुक्ति पकिया से हटाना चाहते थे। सच्चाई क्या है यह तो सुपीम कोर्ट के फैसले के बाद ही पता चलेगी लेकिन आंशिक रूप से अभी दोनों पक्ष सही लग रहे हैं। बेशक राज्यपाल केन्द्र के पतिनिधी हैं इसलिए अपनी मनमर्जी राज्य की निर्वाचित सरकार पर नहीं थोप सकते। मोदी को उन राज्यों से समर्थन मिल सकता है जहां गैर कांग्रेसी सरकारें हैं पर आज की तारीख में भ्रष्टाचार रोकने की किसी भी पकिया को रोकने का पयास जनता को नहीं भाएगा। मोदी की लड़ाई राजनीतिक है, अधिकार क्षेत्र के अतिकमण का है, वह भ्रष्टाचार रोकने के खिलाफ नहीं दिखना चाहिए। विचित्र यह भी है कि जो भाजपा सशक्त लोकपाल की वकालत करती नजर आती है और जिसने संबंधित विधेयक में एक संशोधन यह भी सुझाया था कि लोकपाल के चयन में केन्द्र सरकार की भूमिका कम की जाए, वह इस बात को लेकर नाराज रहीं कि गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार की मर्जी से क्यों नहीं की गई। क्या पार्टी यह चाहती है कि लोकायुक्त कौन हो और उसके अधिकार क्या हों इसका निर्णय राज्य सरकारों की इच्छा पर छोड़ दिया जाए? फिर क्या ऐसी व्यवस्था भ्रष्टाचार को रोकने में पभावी साबित हो सकती है?
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36 सालों की नौकरी, 22 लाख वेतन और 29 करोड़ की सम्पत्ति?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th January  2012
अनिल नरेन्द्र
कुछ लोगों का कहना है कि हमारे देश में राजनीतिज्ञ तो ब्लैकमनी के लिए जरूरत से ज्यादा बदनाम हैं, असल तो अवैध कमाई नौकरशाहों के पास है। मध्य पदेश में पिछले कुछ समय से नौकरशाह बिरादरी पर छापे पड़ रहे हैं। इन छापों के परिणामों से तो यही लगता है कि लोग जो सोचते हैं सही ही लगता है। लोअर ब्यूरोकेसी ने इतनी लूट-खसोट मचा रखी है जिनका अनुमान लगाना मुश्किल है। मंगलवार को उज्जैन में लोकायुक्त टीम ने पीएचआई (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) के एक सहायक इंजीनियर के घर छापा मारा। तलाशी में सहायक इंजीनियर रमेश कुमार पिता पुंदन लाल द्विवेदी के घर से तलाशी में कृषि, भूमि, मकान, सोने-चांदी के जेवरात व लग्जरी वाहन सहित करीब 20 करोड़ की सम्पत्ति के पमाण मिले। लोकायुक्त एसपी अरुण मिश्रा ने बताया कि द्विवेदी की 1976 में उपयंत्री पद पर नौकरी लगी थी। उसे 2010 तक कुल 22 लाख रुपए वेतन मिला है। कोर्ट के एक फैसले के कारण उसने डेढ़ वर्ष से वेतन नहीं लिया है। द्विवेदी के घर तलाशी लेने गई टीम को जब तबेले में से घर में जाना पड़ा तो वह चौंक गए। लगा कि वह गलत घर में तो नहीं आ गए हैं। बाद में 20 करोड़ की सम्पत्ति का जब ब्यौरा मिला और तबेले की छानबीन हुई तब जाकर उन्हें लगा कि वह सही जगह आए हैं। लोकायुक्त की तलाशी में द्विवेदी के घर पर एक कार चालक व दो नौकर रखे होने का भी रिकार्ड मिला है। इन तीन कर्मचारियों को द्विवेदी करीब 15 हजार रुपए माह वेतन देता था जबकि उसे स्वयं को 24 हजार रुपए वेतन पतिमाह मिलता है। छापे में क्या-क्या मिला इस पर गौर फरमाएं ः 86 बीघा जमीन कीमत 17 करोड़ रुपए, 9 मकान (इंदौर-उज्जैन) 1.50 करोड़ रुपए, 3 लग्जरी कार (21 लाख रुपए), 2 डम्पर, टैक्ट्रर-25 लाख रुपए, 2 बाइक-1लाख रुपए, 13 तोला सोना -3.64 लाख, और 2.5 किलो चांदी कीमत 85 हजार रुपए। पत्नी साधना, पुत्र पियंक, पीयूष व बहू मेधा के नाम से बैंकों में 16 खातों में 4 लाख रुपए। द्विवेदी के 9 लाख की बीमा पॉलिसी भी मिली।
अभी कुछ समय पहले ही इंदौर में मध्य पदेश की अपराध जांच ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने परिवहन विभाग के क्लर्प की 40 करोड़ रुपए से ज्यादा की बेहिसाब सम्पत्ति का खुलासा किया था। क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) में क्लर्प के रूप में पदस्थ रमेश उर्फ रमण के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार से बेहिसाब दौलत बनाने की शिकायत मिली थी। इस शिकायत पर उसके तीन स्थानीय ठिकानों पर एक साथ छापे मारे गए। सूत्रों ने बताया कि क्लर्प की बेहिसाब सम्पत्ति में अलग-अलग जगहों पर कुछ 49 बीघा जमीन, चार भूखण्ड, आलीशान बंगला, एक होटल और एक मकान शामिल है। छापों के दौरान उसके ठिकाने पर जेवरात की शक्ल में लगभग एक किलो सोना और तकरीबन साढ़े चार किलो चांदी मिली। इसके अलावा पांच बैंक खातों और बीमा योजनाओं में निवेश के दस्तावेज भी बरामद किए गए। चार महंगे वाहन और दो दुपहिए भी क्लर्प की बेहिसाब मिल्कीयत की सूची में है। रमेश वर्ष 1996 में सरकारी सेवा में आया था और फिलहाल उसका वेतन करीब 16 हजार रुपए पतिमाह है। 16 हजार रुपए वेतन पाने वाले ने 40 करोड़ की सम्पत्ति कैसे बना ली? इसी के साथ सवाल यह भी उठता है कि पकड़ी गई ऐसी संपत्ति का क्या किया जाए? एक हल तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिखाया है। एक भ्रष्ट कर्मचारी गिरीश कुमार के पटना के आलीशान बंगले में अब नीतीश सरकार ने किशोरियों का आवासीय स्कूल खोल दिया है। पिछले कई दिनों से यह बंगला बंद था। पार्प रोड स्थित इस 28 कमरों वाले बंगले को पिछड़ी जाति की छात्राओं के प्लस-टू के आवासीय स्कूल को हस्तांतरित किया गया है। यहां वर्ग 6 से 10 तक की 140 छात्राएं रहेंगी और सभी कक्षाएं इसी भवन में होंगी। गिरीश का मकान आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सरकार ने जब्त किया था। गिरीश कुमार ने वर्ष 1992 से 2004 के बीच आय से 96 लाख रुपए की अधिक सम्पत्ति अर्जित की थी। कोर्ट ने 15 नवंबर को जिलाधिकारी को गिरीश की संपत्ति जब्त करने का आदेश लिया था। डेढ़ कट्टा जमीन जो उसकी पत्नी के नाम थी, को जब्त कर लिया गया और इस स्कूल की पहली घंटी नए साल (2012) में 2 जनवरी को बजी। पिछड़े तबके की छात्राएं जब नए स्कूल के कमरों में पहुंची तो चौंक गई। 10वीं की छात्रा सोनी ने कहा, `कितनी बड़ी आलमारी है?' शिक्षिका नीरा आर्य ने टोका ः यह आलमारी नहीं वार्डरोब है। पहली बार यह शब्द सुन रही सोनी ने उलट सवाल दागा ये वार्डरोब क्या होता है?
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पंजाब में कांटे की टक्कर में तीसरे मोर्चे की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th January  2012
अनिल नरेन्द्र
पंजाब के उप मुख्यमंत्री व शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने फजिल्का मे एक मीटिंग को संबोधित करते हुए वर्परों व नेताओं को हिदायत दी कि वे अकाली-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों का पूरा समर्थन करें। गठबंधन के उम्मीदवारों का समर्थन न करने वालों को पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा। वे रविवार को फजिल्का में भाजपा उम्मीदवार व परिवहन मंत्री सुरजीत के समर्थन में रैली को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने साथ ही आजाद पत्याशियों को भी चेतावनी दी और कहा कि जो आजाद पत्याशी वर्परों को धमकाएंगे उनसे पंजाब पुलिस व मैं खुद निपटना जानता हूं। बादल ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह डे ड्रीम सिड्रोंम (दिन में सपने देखना) से पीड़ित हैं। इसलिए वह शिअद-भाजपा को 33 सीटें तक सीमित करने और कांग्रेस के खाते में 75 सीटें आने का दावा कर रहे हैं। लगता है कि कैप्टन को दिन में सपने देखने की बीमारी है। उन्होंने कहा कि 2002 में पंजाब में जब कांग्रेस की लहर थी तब भी अकाली-भाजपा गठबंधन को 48 सीटें मिली थी, अब तो हालात बिल्कुल उल्टे हैं।
पंजाब के मतदाता 30 जनवरी को 117 विधानसभा सीटों के लिए मतदान करेंगे लेकिन कौन सी पार्टी या गठबंधन सरकार बनाएगी, इस बाबत न तो सत्तारूढ़ शिरोमणी अकाली दल-भाजपा गठबंधन आश्वस्त है और न ही कांग्रेस। पचास साल पहले 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद से पंजाब सूबे की आवाम ने किसी भी राजनीतिक दल को लगातार दूसरी बार जिताकर पंजाब में शासन की कमान नहीं सौंपी है। पंजाब का राजनीतिक माहौल उसके पड़ोसी हरियाणा से मेल नहीं खाता क्योंकि हरियाणा आया राम-गया राम के कारण पूरे मुल्क में बदनाम हो चुका है। वहां सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त का माहौल नहीं है। चाहे कांग्रेस हो या अकाली गठबंधन हो। कुछ लोगों का कहना है कि इस बार पंजाब में अकालियों की चुनावी नैया भाजपा के भरोसे है। राज्य में भाजपा की हालत काफी पतली है। अगर पार्टी पिछली बार की तुलना में आधी सीटें भी जीत पाने में कामयाब रहती है तो अकाली गठबंधन की सरकार बन सकती है। वैसे राज्य में भ्रष्टाचार, कालाधन या लोकपाल चुनावी मुद्दा नहीं बन पाए हैं। नवीनतम आकलन के मुताबिक कांग्रेस के साथ अकाली-भाजपा गठबंधन की कांटे की टक्कर है। अगर भाजपा को 10 सीटें भी हासिल हो गई तो गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में जा सकता है। पिछली बार भाजपा को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार एक अन्य फैक्टर तीसरा मोर्चा भी होगा जिसे साझा मोर्चा का नाम दिया गया है। अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए पंजाब के पूर्व वित्तमंत्री मनपीत बादल एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत बन गए हैं, जिन्हें वे अनचाहे अपने कंधों पर लादे अपना-अपना राजनीतिक समीकरण बना रहे हैं। मनपीत बादल पकाश सिंह बादल के भतीजे हैं और सुखबीर के चचेरे भाई, उन्हें अक्टूबर 2010 में वित्तमंत्री व शिरोमणी अकाली दल से बर्खास्त कर दिया गया तो उन्होंने अपनी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब का गठन किया और तब से वह चुनावी रणनीति में लगे हुए हैं। इस साझा मोर्चे मे पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब, वामपंथी दल व कुछ छोटे दल शामिल हैं। साझा मोर्चे ने सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है और कई सीटों पर मजबूत उम्मीदवार भी उतारे हैं। गौरतलब है कि पंजाब में अभी तक न तो बहुजन समाज पार्टी व न ही वामपंथी मुख्य राजनीतिक दलों का खेल बिगाड़ सके। बसपा के जनक कांशीराम पंजाब के ही थे और यहां दलितों की आबादी करीब 30 पतिशत है। बहरहाल, माकपा और भाकपा भी साझा मोर्चे में हैं। साझा मोर्चा आगामी चुनाव में क्या भूमिका निभाता है इसका पता तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन कांग्रेस, अकाली-भाजपा गठबंधन की कांटे की टक्कर में कुछ भी हो सकता है, हो सकता है कि तीसरा मोर्चा किंगमेकर की भूमिका में आ जाए?
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Thursday, 19 January 2012

यूपी में होगी सोशल इंजीनियरिंग की असली परीक्षा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th January  2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश चुनाव में हर सियासी पार्टी का तथाकथित सोशल इंजीनियरिंग की परीक्षा होगी। बसपा प्रमुख मायावती ने विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के 403 प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए गिनाना शुरू कियाöअनुसूचित जाति 88, ओबीसी 113, ब्राह्मण 74 तथा 33 ठाकुर आदि-आदि। बसपा की ओर से अपनी सूची में जाति का ब्यौरा देना कोई नई बात नहीं है। नई बात यह रही कि बहन जी की प्रेस कांफ्रेंस के कुछ घंटों बाद ही भाजपा की प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने भी ब्यौरा पेश किया कि अब तक जारी भाजपा की सूची में कितने अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) व अनुसूचित जातियों के हिस्से गई हैं। यह बानगी इसलिए कि उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव हर दल की अपनी-अपनी सोशल इंजीनियरिंग और काफी हद तक मंडलवाद के विस्तारित अध्याय को आजमाने की परीक्षा का मैदान ही साबित होने जा रहा है। कांग्रेस पर गौर फरमाएं। राहुल गांधी की कमान वाले युग में पार्टी ने अब तक घोषित 325 प्रत्याशियों में 87 ओबीसी के खाते में दिए हैं। समाजवादी पार्टी की बैल्ट मानी जाने वाली मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद में पार्टी ने सपा से खफा होकर निकले यादवों को टिकट से नवाजा है। यह मंडलवाद का ही असर माना जाएगा कि अब तक घोषित 325 प्रत्याशियों में अगड़ों (खासकर ब्राह्मणों) की पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस ने अभी तक सिर्प 39 ब्राह्मणों को ही टिकट दिया है। ठाकुरों के खाते में 51, अनुसूचित जाति के खाते में 82 और मुस्लिमों को अब तक 52 टिकट दिए गए हैं। संकेत साफ है कि पिछड़ी जातियों के वोटों के लिए घमासान चरम पर है। तभी तो भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने अपनी पार्टी के आंकड़े देते हुए गर्व बोध के साथ बताया कि अब तक घोषित 381 प्रत्याशियों में पिछड़ों को 123 और अनुसूचित जाति के 83 प्रत्याशी शामिल हैं। समाजवादी पार्टी ने भी टिकट बंटवारे में अपनी सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ध्यान रखा है। पार्टी लगभग 400 सीटों के प्रत्याशी घोषित कर चुकी है और इसमें अपने वोट बैंक मुस्लिम-पिछड़ों का भरपूर ध्यान रखा गया है। पार्टी ने 80 मुसलमानों को मैदान में उतारा है।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता पर अकसर नुक्ताचीनी होती है पर एक ताजा सर्वेक्षण हुआ है। अमर उजाला, सी वोटर, इंडिया टीवी के दूसरे दौर के ओपिनियन पोल के मुताबिक यूपी में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में कांटे की टक्कर नजर आ रही है। पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला है जबकि उत्तराखंड में बसपा किंग मेकर बनने की राह पर है। सर्वे नतीजों के मुताबिक यूपी में बसपा अब तक अनुमानित 145 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। सपा 138 सीटों और कांग्रेस 48 सीटों के साथ तीसरा स्थान पक्का कर रही है। भाजपा को अब तक 41 सीटें मिलने का अनुमान है। भाजपा को चौथे स्थान पर धकेलकर कांग्रेस किंग मेकर होने की ताकत जरूर हासिल करती दिख रही है। प्रदेश का सवर्ण कांग्रेस और भाजपा के साथ दिख रहा है। कुशवाहा प्रकरण से भाजपा को हुए नुकसान का फायदा उठाने में कांग्रेस कामयाब हो रही है। मुस्लिम या तो सपा के साथ हैं और जहां सपा कमजोर है वहां कांग्रेस के साथ हैं। मूर्ति प्रकरण से बसपा के दलित वोटर एकजुट हुए हैं। उत्तराखंड में पार्टी की कलह चलते कांग्रेस ने अपनी शुरुआती बढ़त खो दी है। यूपी के उलट यहां कांग्रेस का खेल खराब कर बसपा किंग मेकर बनती दिख रही है। मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की अच्छी छवि का फायदा भाजपा को होता दिख रहा है लेकिन वह पार्टी को बहुमत के आंकड़े तक शायद ही ले जाए। कुल मिलाकर दिलचस्प स्थिति बनी हुई है। देखें यूपी में सोशल इंजीनियरिंग कितना कारगर सिद्ध होता है। अर्थात् किस पार्टी का जातीय समीकरण फिट बैठता है।
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जनरल वीके सिंह ने रचा एक नया इतिहास

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th January  2012
अनिल नरेन्द्र
विडम्बना देखिए कि दोनों पड़ोसी देशों में थलसेनाध्यक्ष सुर्खियों में हैं। अगर भारत में सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह बनाम भारत सरकार लड़ाई खुलकर सामने आ गई है तो पड़ोसी पाकिस्तान में थलसेनाध्यक्ष जनरल अशफाक कयानी की प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की सरकार के बीच सत्ता संघर्ष सुर्खियों में है। फर्प सिर्फ इतना है कि जनरल सिंह एक व्यक्तिगत मुद्दे पर सरकार से लड़ रहे हैं और जनरल कयानी सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं। खैर! हम बात करते हैं अपने जनरल वीके सिंह की। जनरल सिंह ने अन्तत वह काम कर दिया है जो भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। वह भारत सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चले गए हैं। अपनी जन्मतिथि के दावे को खारिज किए जाने के रक्षा मंत्रालय के फैसले को चुनौती देते हुए उन्होंने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी सेना प्रमुख ने सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती दी है। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में सेना प्रमुख की इस दलील को खारिज कर दिया था कि वे 1951 में पैदा हुए थे, 1950 में नहीं। समझा जाता है कि अपनी याचिका में जनरल सिंह ने कहा है कि उम्र विवाद उनके लिए कार्यकाल का नहीं बल्कि सम्मान और ईमानदारी का मामला है क्योंकि वे 13 लाख सैनिकों वाले बल का नेतृत्व करते हैं। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है इसलिए केस के तर्कों, तथ्यों पर विचार नहीं हो सकता पर मोटे तौर पर उलझन यह है कि सेना की फाइलों में जनरल सिंह की दो अलग-अलग जन्मतिथि दर्ज हैं। जहां उनके मैट्रिक के सर्टिफिकेट और अन्य दस्तावेजों में यह तारीख 10 मई 1951 है। रक्षा मंत्रालय ने उनकी सेवाओं के ज्यादातर मौकों पर इसे स्वीकार भी किया है। दूसरी ओर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के प्रवेश फार्म में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 दर्शाई गई है। सेना की एक्यूटेंट ब्रांच के अनुसार सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह की जन्मतिथि 10 मई 1951 है जबकि सैन्य सचिव शाखा के अनुसार यह 10 मई 1950 है। इससे न केवल जनरल सिंह के कार्यकाल में एक साल का फर्प पड़ता है बल्कि उनके उत्तराधिकारी की लाइन में भी बड़ा परिवर्तन हो सकता है। यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि एक थलसेनाध्यक्ष को अपनी बात मनवाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने पड़े। यह इस यूपीए सरकार की मिसहैंडलिंग का एक और ज्वलंत उदाहरण हैं। सरकार को मामला यहां तक पहुंचने ही नहीं देना चाहिए था। जनरल सिंह के सुप्रीम कोर्ट जाने से न केवल यह स्पष्ट हो गया कि सरकार सहज समाधान खोजने में नाकाम रही बल्कि यह भी साफ हो गया कि अपने स्वाभाव के अनुरूप उसने एक और विवादास्पद मामले को लटकाए रखा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस विवाद का निपटारा चाहे जैसा हो, हर कोई यह महसूस करेगा कि शीर्ष स्तर के सैन्य अधिकारी की उम्र को लेकर एक तो कोई विवाद उपजना नहीं चाहिए था और यदि वह उपजा तो उसका समाधान सद्भावनापूर्ण तरीके से होना चाहिए था। वहीं जनरल वीके सिंह के सुप्रीम कोर्ट जाने पर इस तर्प को महत्ता देना कठिन है कि आम भारतीय नागरिक की तरह वह भी अदालत जा सकते हैं, क्योंकि यह मामला थलसेनाध्यक्ष द्वारा सरकार को सुप्रीम कोर्ट में खींचने का बन गया है। यह शोभनीय प्रसंग नहीं कि जन्मतिथि को लेकर ही सही, थलसेनाध्यक्ष और सरकार सुप्रीम कोर्ट मेंआमने-सामने होंगे। भले ही यह रेखांकित करने की कोशिश की जाए कि जनरल सिंह आम नागरिक की हैसियत से अदालत गए हैं, लेकिन इस तथ्य की अनदेखी नहीं हो सकती कि वह 13 लाख सैन्यकर्मियों का नेतृत्व कर रहे भारतीय थलसेना के सर्वोच्च अधिकारी हैं। जहां इस प्रकरण से सेना, सरकार दोनों की छवि और मनोबल पर असर पड़ेगा वहीं राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस को इसके दुप्रभाव से बचने का प्रयास अब करना होगा। सरकार की गलती का कहीं कांग्रेस पार्टी को सियासी नुकसान न हो जाए। पांच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं और पंजाब, उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां से बहुत सैनिक आते हैं और जहां बहुत रिटायर्ड सैनिक हैं पर इसका क्या असर पड़ता है यह कांग्रेस रणनीतिकारों के लिए चिन्ता का सबब बन सकता है। इस घटना से चुनाव के जातीय समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं।
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Wednesday, 18 January 2012

एक और निहायत शर्मनाक हरकत में दिखे अमेरिकी सैनिक

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 18th January  2012
अनिल नरेन्द्र
कहने को तो अमेरिका अपने आपको एक सभ्य देश कहता है और सारी दुनिया को सभ्य व्यवहार सिखाता फिरता है पर इनके सैनिकों की करतूतों से तो ऐसा नहीं लगता कि घिनौनेपन में इससे और घटिया कोई देश हो सकता है। अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिकों का एक और घिनौना कारनामा सामने आया है। इंटरनेट पर हाल ही में जारी एक वीडियो में अमेरिकी सैनिकों को तालिबान सैनिकों के शव पर मूत्र त्याग करते हुए दिखाया गया है। वीडियो में नौसेना की वर्दी पहने चार जवानों को तीन तालिबानी लड़ाकों के शव पर मूत्र करते हुए दिखाया गया है। इनमें से एक जवान ने मजाक उड़ाते हुए कहा कि लो दोस्त आज का दिन तुम्हारे लिए शुभ हो। एक दूसरे जवान ने भी काफी भद्दा मजाक उड़ाया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई की सर्वोच्च शांति परिषद के मुख्य वार्ताकार अरसला रहमानी ने कहा कि इस तरह के कृत्यों से हालांकि शांति प्रक्रिया प्रभावित तो नहीं होगी पर इतना जरूर है कि इस तरह के घिनौने कारनामों को दिखाकर तालिबान आसानी से और नए आतंकियों की भर्ती कर सकता है। संगठन यह कहकर बरगला सकता है कि उनके देश पर ईसाइयों और यहूदियों ने कब्जा कर लिया है तथा उन्हें किसी भी कीमत पर देश की रक्षा करनी चाहिए। अफगानिस्तान में तैनात नाटो नीत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (आईएसएएफ) ने घटना को निन्दनीय और घृणित करार दिया है। प्रवक्ता ने कहा कि वीडियो में दिखाया गया कृत्य अमेरिकी सशस्त्र बलों के मूल्यों के मुताबिक नहीं है। इराक युद्ध के दौरान भी अमेरिकी सैनिकों द्वारा इराकी बंधकों से अमानवीय व्यवहार का पर्दाफाश हुआ था। अबू गरीब जेल में अमेरिकी सैनिक तरह-तरह से अमानवीय ढंग से हिरासत में लिए इराकियों को अमानवीय दंड देते थे और ऐसा करने में उन्हें मजा आता था। इस पर भी सारी दुनिया और खासकर अरब देशों में प्रतिक्रिया हुई थी। बाद में सारी दुनिया में बेइज्जती होने के कारण अमेरिकी सेना ने यह जेल बन्द कर दी थी और कुछ कसूरवारों को दंडित भी किया था। खबर है कि अफगानिस्तान की इस अमानवीय घटना की जांच हो रही है। अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार तालिबान आतंकियों के शवों पर पेशाब करते हुए दिख रहे अमेरिकी मरीन के दो सैनिकों की पहचान कर ली गई है। सीएनएन ने पेंटागन के प्रवक्ता के हवाले से बताया, `इस शर्मनाक हरकत में शामिल दो दोषी लोगों और उनकी सैन्य टुकड़ी की पहचान कर ली गई है।' हम सैन्य टुकड़ी और दोषियों का नाम नहीं ले सकते क्योंकि मामले की जांच चल रही है। टीवी चैनल के मुताबिक यह टुकड़ी अफगानिस्तान और मुख्य तौर पर हेलमंद प्रांत में 2011 के शुरू से तैनात थी और सितम्बर-अक्तूबर में वापस लौट आई थी। व्हाइट हाउस ने भी इंटरनेट पर उजागर हुई इस घटना पर खेद जताया है। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जे. कार्नी ने संवाददाताओं से कहा कि हमने वीडियो देखा है। इसमें जो कुछ भी दिखाई देता है वह खेदजनक, निन्दनीय और अस्वीकार्य है। यह यू-ट्यूब और अन्य वेबसाइटों पर प्रसारित वीडियो ओबामा प्रशासन के लिए शर्मिंदगी वाली एक बड़ी घटना है। खासतौर पर ऐसे समय जब तालिबान से शांति वार्ता चल रही है, रक्षा विभाग ने वीडियो की प्रमाणिकता की जांच के आदेश दे दिए हैं और उन लोगों के खिलाफ भी जांच हो रही है जो इसमें शामिल थे।
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आईएसआई भी चला रही है एक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 18th January  2012
अनिल नरेन्द्र
एक रिजर्व बैंक भारत में है और लगता है कि एक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने एजेंटों के माध्यम से चला रही है। रिजर्व बैंक से मेरी मुराद है जाली नोटों का गोरखधंधा। असल नोट भारतीय रिजर्व बैंक छापता है तो नकली नोट आईएसआई छपवाकर भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए भिजवाती है। गत शुक्रवार को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने नकली नोटों की एक खेप सीतापुर से पकड़ी। पुलिस ने नकली नोटों की इस खेप के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया, जीशान खान व ऐश मोहम्मद। पुलिस का कहना है कि इन दोनों से करीब दो करोड़, चौबीस लाख पचास हजार के नकली नोट बरामद हुए। पुलिस को पिछले दो महीने से खुफिया एजेंसियों से यह खबर मिल रही थी कि उत्तर प्रदेश के जिला प्रबुद्ध नगर का रहने वाला इकबाल उर्प काना नकली नोटों का नेटवर्प चला रहा है। वह पाकिस्तान में कहीं इस समय छिपा हुआ है। पुलिस का कहना है कि यह नकली नोट बहुत अच्छी क्वालिटी के छपे हैं और आसान नहीं बताना कि कौन-से असली हैं, कौन-से नकली। यह पहली बार नहीं जब मोस्ट वांटेड इकबाल काना ने भारत में नकली नोटों का जखीरा भेजा हो। इससे पहले भी वह वर्ष 2010 में एक तुर्की नागरिक को करीब डेढ़ करोड़ के नकली नोटों के साथ दिल्ली भेज चुका है। पुलिस का दावा है कि यूपी के प्रबुद्ध नगर स्थित कैराना गांव का रहने वाला इकबाल काना इस समय पाकिस्तान के कराची शहर में मौजूद है और पाक की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के इशारे पर डी कम्पनी व लश्कर-ए-तोयबा के साथ मिलकर भारत के विभिन्न हिस्सों में नकली नोटों को भेजने में जुटा हुआ है। पुलिस ने पाया कि इन नकली नोटों में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सभी छह आवश्यक मानकों जैसे माइक्रोप्रिंटिंग, वॉटर मार्प ऑफ गांधी जी, 100 प्रतिशत कॉटन पेपर, एम्बोसिस टैक्नोलॉजी, इलेक्टो एड वॉटर मार्किंग व धागे का इस्तेमाल किया गया है। नोटों को देखकर यह पता चलता है कि इन्हें कराची की सरकारी प्रेस में छापा गया होगा। पुलिस ने बताया कि जिन कपड़ों के थान में छिपाकर जाली नोटों की खेप दिल्ली पहुंचाई गई है, उन पर सभी थानों पर छपी मोहर पाकिस्तान के फैसलाबाद की मिली हैं। इनमें सफारी टेक्सटाइल मिल फॉर स्टार सिद्दीकी प्रोसेसिंग मिल, महरानी कलैक्शन, कोहिनूर सूटिंग व उस्मान नईम फैब्रिक मिल शामिल हैं। इन नकली नोटों को भारत में बेचने की कमीशन कुछ इस प्रकार हैöदस लाख रुपये के फर्जी नोट पर चालीस हजार और पचास लाख पर एक लाख रुपये कमीशन देने का वायदा है। आईएसआई ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में यह चाल चली है। खुफिया सूत्रों के अनुसार आईएसआई का टारगेट करीब तीन से चार करोड़ रुपये के फर्जी नोटों को भारत के बाजार में खपाने की नीयत व इरादा है। यह नोट नेपाल और बंगलादेश सीमा के अलावा पंजाब और कश्मीर के रास्ते से भारत आते हैं। सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान के कराची, क्वेटा, पेशावर और लाहौर के अलावा नेपाल की तराई से जाली नोटों की छपाई दिन-रात चल रही है। आईएसआई को भारतीय नोटों में प्रयोग होने वाली स्याही भी हाथ लग गई है जिससे जाली नोटों को पहचानना बहुत मुश्किल हो गया है। आईएसआई को इस काम को अंजाम देने में दाऊद इब्राहिम भी पूरी मदद कर रहा है। इस काम का भार आईएसआई के मेजर सादिक हुसैन, मेजर ए. असगर, इकबाल राणा और मेहरुन्निसा को दिया गया है। मेजर असगर के रिश्तेदार जहां उत्तर प्रदेश में रहते हैं, वहीं मेहरुन्निसा के रिश्तेदार बिहार में रहते हैं। इनका प्लान नकली नोटों को नेपाल से बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगलादेश के रास्ते बिहार भेजने का है। इसके अलावा पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब और कश्मीर के रास्ते से भी फर्जी नोटों की खेप पहुंचाई जाएगी। इस खेल में आईएसआई ने काफी सावधानी बरती है। इन चार रास्तों से भारत में नोटों की जो खेप आएगी उसके लिए हर रास्ते के लिए चार टोली बनाई गई हैं। हर टोली में नौ लोग होंगे जिनमें चार महिलाएं हैं। प्रत्येक टोली को कवर करने के लिए एक टोली होगी। दाऊद इब्राहिम का नेटवर्प भी इस काम में मदद कर रहा है। भारत के वित्त मंत्रालय की फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक 500 रुपये के नकली नोटर तैयार किए जाते हैं। नकली नोट लेन-देन के कुल मूल्य का 60-74 फीसदी 500 रुपये के नोट की शक्ल में होते हैं। वैसे बाजार में 1000 के नोट का चलन बढ़ने के साथ ही इनके नकली नोटों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। जाली नोटों की बरामदगी निश्चित ही चिन्ताजनक है। मामला तब और भी गम्भीर हो जाता है जब यह सामने आता है कि बरामद किए गए ये नकली नोट देखने में असली नोटों के बेहद करीब थे और इन्हें भेजने वाला पाकिस्तान है। आईएसआई अपनी हरकतों से बाज आने वाली नहीं, हमें ही और चौकस रहना पड़ेगा।
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