Saturday, 31 March 2012

जनरल वीके सिंह के पत्र ने खड़े किए सवाल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31 March 2012
अनिल नरेन्द्र
थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी जिसमें बताया गया है कि हमारे सुरक्षा बलों के पास हथियारों की कमी है, गोला-बारुद इत्यादि की कमी है, ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं। क्या जनरल को ऐसा पत्र लिखना चाहिए था? क्या रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले इसको लिखने का सही समय था? यह पत्र किसने और क्यों लीक किया? इसका फालआउट क्या होगा? यह हैं जो प्रश्न आज चर्चा में हैं। जहां तक जनरल का पत्र है तो मैं समझता हूं कि अगर थल सेनाध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री को यह चौकस करना चाहता है कि उनकी लचर नीतियों, अनिर्णयता के कारण हमारी सेनाओं में जरूरी सामान की आपूर्ति नहीं हो रही और अगर जंग होती है तो हम उसे जीत नहीं सकते, तो इसमें गलत क्या है? क्या सेनाध्यक्ष को यह राजनेताओं को बताना नहीं चाहिए कि भारतीय सेनाओं की क्षमता से समझौता किया जा रहा है और अगर इस कमी को अविलम्ब पूरा नहीं किया गया तो यह सेना के लिए घातक होगा। जहां तक इस पत्र के समय की बात है तो जनरल की आयु विवाद के बाद लिखने से थोड़ी-सी बदनीयती की बू जरूर आती है। कुछ लोग कह सकते हैं कि चूंकि सरकार ने जनरल की आयु विवाद में उनका विरोध किया था इसलिए जनरल ने बदले की भावना से यह पत्र लिखा। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि यह पत्र किसने लीक किया? यह पत्र या तो आर्मी से हो सकता है या फिर प्रधानमंत्री कार्यालय से। मुझे नहीं लगता कि जनरल ने खुद इसे लीक किया होगा। मुझे शक पीएमओ पर है। अकसर पीएमओ से गोपनीय दस्तावेज लीक होते ही रहते हैं। 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में भी कई दस्तावेज प्रधानमंत्री कार्यालय से लीक हुए। रिपोर्ट है कि जनरल ने यह पत्र चीन की बढ़ती सैन्य क्षमता को लेकर लिखा था। पत्र में सीधे तौर पर चीन की तैयारियों के मुकाबले भारत की तैयारियों को रखा गया है। यह भी कहा गया है कि भारत के रक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण पर नौकरशाही अड़ंगे डाल रही है। जनरल सिंह ने लिखा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में चीन खुलेआम निर्माण कार्य कर रहा है। वहीं भारतीय सेना की मौजूदगी संतोषजनक नहीं है। भारत की सैन्य तैयारियां खोखली हैं। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि हम चीन के सामने कहीं नहीं ठहरते और पाकिस्तान को हम आज भी हराने की स्थिति में हैं। वैसे सैन्य सामग्री की आपूर्ति में सैनिक अधिकारियों का भी कसूर कम नहीं। जनरल के पत्र से यह तो साफ हो ही गया है कि कई सेनाओं के अफसर बतौर कमीशन एजेंट काम कर रहे हैं। जब एमूनेशन की कमी है तो प्रैक्टिस में इतना गोला-बारुद क्यों वेस्ट किया गया? 1971 के बाद से हमारी सेना ने कोई बड़ी जंग नहीं लड़ी। इसलिए सही मायनों में हमें अपनी सेनाओं की ताजा स्थिति की सही जानकारी नहीं है। जनरल सिंह पिछले कई महीनों से अपनी आयु के विवाद में तो लगे रहे पर उन्हें सेना की तैयारी की चिन्ता नहीं हुई। क्या जनरल सिंह ने यह मिसाइल इसलिए तो नहीं दागी  कि यूपीए सरकार रक्षा बजट पर पूरा ध्यान दे और सैन्य सामग्री की आपूर्ति को प्राथमिकता दे। जो कुछ भी हो पर यह न तो देश के लिए अच्छा है और न ही हमारी सेनाओं के लिए शुभ संकेत है कि हमारी तैयारी पिछड़ चुकी है। ताजा जानकारी का देश के दुश्मन फायदा उठा सकते हैं। सरकार और सेना प्रमुख में इतनी भारी खाई भी देशहित में नहीं। अन्त में प्रश्न यह उठता है कि क्या जनरल सिंह झूठ बोल रहे हैं? क्या सैन्य सामग्री की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है? क्या पीएमओ से यह पत्र लीक हुआ? उत्तर है आंशिक रूप से यह सभी सही हैं।

पाकिस्तान में हिन्दू, शिया और ईसाई समेत अल्पसंख्यक निशाने पर

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31 March 2012
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान में कानून व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है। अराजकता का यह आलम है कि आदमी सुबह घर से निकले तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि रात वापस घर सही सलामत लौटे। अज्ञात बंदूकधारियों ने मंगलवार को कराची शहर में मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के नेता और उनके भाई को गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद शहर में हिंसा भड़क उठी, दंगाइयों ने दर्जनों वाहनों को आग के हवाले कर दिया है और तीन लोग मारे गए। एमक्यूएम नेता मंसूर मुख्तार के घर में घुसकर उनको गोलियों से भूना गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता सगीर अहमद ने हत्या के लिए अमन समिति को जिम्मेदार ठहराया है जो कथित तौर पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं से जुड़ी है। मुहाजिरों और अन्य अल्पसंख्यक जिनमें भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं, अकसर टारगेट बनते हैं। रविवार रात को कराची के क्लिफटन इलाके में एक मुशायरा हो रहा था। इसमें भारत के जाने-माने शायर मंजर भोपाली और इकबाल असद भी भाग ले रहे थे। मुशायरे स्थल पर अज्ञात बंदूकधारियों ने हमला कर दिया और हमले में भारत के दोनों शायर बाल-बाल बचे। मंजर भोपाली ने बताया कि जब रविवार रात को मुशायरा स्थल के बाहर वह मौजूद थे तभी अन्दर से गोलीबारी की आवाज आने लगी और देखते ही देखते वहां दहशत का माहौल बन गया, लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। उन्हें पुलिस ने घटनास्थल से सुरक्षित बाहर निकाला। कराची के इस मुशायरे को एमक्यूएम की ओर से आयोजित किया गया था। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग का भी कहना है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातर खराब हो रही है और वह अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं। अपनी 2011 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल 389 अल्पसंख्यक मुसलमानों की हत्या की गई और उसमें 100 के करीब शिया भी शामिल थे। रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों की हत्या की गई उनमें सबसे अधिक शिया समुदाय के थे। अहमदी समुदाय भी हिंसा के शिकार हो रहे हैं। आयोग का कहना है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर हिन्दू अपने आपको बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें हिन्दू समुदाय पर हिंसा की गई और उन्हें धमकियां दी गईं जबकि हिन्दू लड़कियों के अपहरण और जबरन शादी की घटनाएं सामने आई हैं। हिन्दू समुदाय के 150 से अधिक लोगों को भारत में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा। इन हिन्दुओं ने भारत के अधिकारियों से कहा है कि अगर उन्हें पाकिस्तान वापस भेजा गया तो उनका जीवन खतरे में होगा। लगता है कि पाकिस्तानी समाज में सहनशक्ति खत्म हो रही है। रिपोर्ट में एक उदाहरण भी दिया गया है कि एक मामले में आठवीं कक्षा के एक छात्र पर ईश निन्दा का आरोप लगाया गया वो भी महज इसलिए क्योंकि वो एक शब्द का उच्चारण सही नहीं कर पाया। रिपोर्ट में इज्जत के नाम पर महिलाओं की हत्या को भी विस्तार से बताया गया है। यह जानकारी भी दी गई कि पिछले साल करीब 943 महिलाओं और लड़कियों का इज्जत के नाम पर कत्ल किया गया। मरने वाली महिलाओं में सात ईसाई और दो हिन्दू भी शामिल थीं।
पाकिस्तान में ईश निन्दा कानून की वजह से कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों में देश छोड़कर विदेशों में पनाह ली है। इन्हीं लोगों में एक शख्स जेजे जार्ज हैं जिन्हें ईश निन्दा कानून की वजह से 2007 में पाकिस्तान छोड़कर फ्रांस जाना पड़ा। वह एक कामयाब वकील थे और पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के विभिन्न मामलों पर कानूनी सलाह देने का काम करते थे। 2002 में जब उन्होंने महमूद अख्तर नाम के एक कादियानी युवक का केस लड़ा तो उन्हें तरह-तरह की धमकियां दी गईं। उनसे कहा गया कि वे या तो वकालत छोड़ दें या महमूद अख्तर का केस छोड़ दें। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के हालात शुरू से ऐसे नहीं थे। 1986 में ईश निन्दा कानून के आने के बाद से हालात तेजी से बदले हैं। जेजे जार्ज ने बताया कि ईश निन्दा कानून की वजह से ईसाई समुदाय के लोगों को सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि किसी भी शिकायत पर बिना सुबूतों पर विचार किए, दो लोगों की गवाही के आधार पर दोषी ठहरा दिया जाता है। आज पाकिस्तान में हिन्दू, शिया और ईसाई समेत अन्य अल्पसंख्यक जितने असुरक्षित हैं, वह पहले नहीं थे।

Friday, 30 March 2012

...और अब तलाक भी तत्काल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30 March 2012
अनिल नरेन्द्र
मनमोहन सिंह सरकार की कैबिनेट ने हिन्दू विवाह कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी है। हिन्दुओं ने तलाक लेने की कानूनी प्रक्रिया अब आसान हो जाएगी। इसके तहत अब जजों के लिए तलाक का फैसला देने से पहले 18 माह की पुनर्विचार अवधि की बाध्यता खत्म हो जाएगी। फैसले के मुताबिक सुनवाई के दौरान जज को यदि लगता है कि शादी बचाना मुश्किल है तो वह तलाक का फैसला तुरन्त सुना सकता है। अभी मौजूदा व्यवस्था में आपसी सहमति के तलाक मामले में कोर्ट छह से 18 महीने का समय फिर से सोचने के लिए पति-पत्नी को देता है। अब यह समय देना जज के लिए जरूरी नहीं होगा और अगर उन्हें लगे कि शादी को नहीं बचाया जा सकता और पति-पत्नी में इतनी गहरी दरार आ चुकी है जो भरी नहीं जा सकती तो वह पुनर्विचार अवधि को समाप्त कर सकता है। इसी के साथ एक और दूरगामी फैसला किया गया। यह है कि शादी के बाद खरीदी गई पति की सम्पत्ति में महिला का हिस्सा तय होगा। पति की सम्पत्ति में अधिकार देने के अलावा विवाह कानून (संशोधन) विधेयक 2010 का उद्देश्य गोद लिए बच्चों को भी मां-बाप से जन्मे बच्चों के बराबर अधिकार दिलाना भी है। दरअसल दो साल पहले राज्यसभा में यह विधेयक पेश हुआ था। फिर इसे कानून एवं कार्मिक मामलों की संसदीय सथायी समिति के पास भेजा गया। जयंती नटराजन की अध्यक्षता वाली इस समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक का मसौदा फिर से तैयार किया गया। इसके मुताबिक तलाक की स्थिति में पत्नी को पति की सम्पत्ति में अधिकार होगा। लेकिन हिस्सेदारी मामले दर मामले के आधार पर अदालतें तय करेंगी। हालांकि कैबिनेट का फैसला तभी लागू होगा जब बिल संसद में पारित होगा। मौजूदा व्यवस्था में शादी के बाद खरीदी गई सम्पत्ति में तलाक के बाद महिला का कोई हक नहीं। गोद लिए बच्चों के बारे में मौजूदा व्यवस्था में गोद लिए गए बच्चों की कस्टडी पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
हिन्दू विवाह अधिनियम में नए आधार को शामिल करने के मुद्दे पर कानूनविदों की राय मिलीजुली है। विशेषज्ञों की मानें तो इस संशोधन से देश में तलाक के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी होगी। वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी के अनुसार समय के साथ कानून में बदलाव जरूरी हो जाते हैं। स्वतंत्र समाज में जो रिश्ता सुधर नहीं सकता, उसे सिर्प महज कानून की बंदिश की वजह से ढोया जाना बिल्कुल अनुचित नहीं है। इसलिए नहीं सुधार सकने वाले रिश्तों को तलाक का आधार बनाया जाना ही सही निर्णय है। वहीं अधिवक्ता रचना श्रीवास्तव ने कहा कि इस आधार का दुरुपयोग महिलाओं के खिलाफ हो सकता है। अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने वाले पुरुष इस आधार का सहारा ले सकते हैं। इसलिए यह जरूरी होगा कि संशोधन में महिलाओं के हित का ख्याल रखा जाए। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हमें विवाद बचाने के प्रयास करने चाहिए नाकि परिवार तोड़ने के। इससे समाज में बिखराव ही बढ़ेगा और शादी के पवित्र बंधन को नुकसान पहुंचेगा। धीरे-धीरे पश्चिमी देशों की संस्कृति भारत में भी आ रही है।
हिन्दू विवाह अधिनियम में नए आधार को शामिल करने के मुद्दे पर कानूनविदों की राय मिलीजुली है। विशेषज्ञों की मानें तो इस संशोधन से देश में तलाक के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी होगी। वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी के अनुसार समय के साथ कानून में बदलाव जरूरी हो जाते हैं। स्वतंत्र समाज में जो रिश्ता सुधर नहीं सकता, उसे सिर्प महज कानून की बंदिश की वजह से ढोया जाना बिल्कुल अनुचित नहीं है। इसलिए नहीं सुधार सकने वाले रिश्तों को तलाक का आधार बनाया जाना ही सही निर्णय है। वहीं अधिवक्ता रचना श्रीवास्तव ने कहा कि इस आधार का दुरुपयोग महिलाओं के खिलाफ हो सकता है। अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने वाले पुरुष इस आधार का सहारा ले सकते हैं। इसलिए यह जरूरी होगा कि संशोधन में महिलाओं के हित का ख्याल रखा जाए। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हमें विवाद बचाने के प्रयास करने चाहिए नाकि परिवार तोड़ने के। इससे समाज में बिखराव ही बढ़ेगा और शादी के पवित्र बंधन को नुकसान पहुंचेगा। धीरे-धीरे पश्चिमी देशों की संस्कृति भारत में भी आ रही है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Hindu Law, Hindu Marriage Act. Hindu Succession Act, Vir Arjun

मनोहर पार्रिकर ने सभी राज्यों को रास्ता दिखा दिया है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30 March 2012
अनिल नरेन्द्र
वित्त मंत्री ने साफ कह दिया है कि विश्व में हो रहे बदलावों और आर्थिक मंदी के दुप्रभाव से देश बच नहीं सकता है। उन्होंने भविष्य में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की ओर इशारा भी कर दिया है। बजट भाषण पर चर्चा के दौरान विपक्षी आलोचनाओं का सामना करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। उन्होंने तेल के दामों में बढ़ोतरी की आशंकाओं पर कहा कि हमने जून 2011 के बाद से तेल के दाम नहीं बढ़ाए हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि मुझमें यह क्षमता नहीं थी कि मैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों को नियंत्रित कर पाऊं। उधर तेल कम्पनियों ने संकेत दे दिए हैं कि पेट्रोल की कीमतों में 3 से लेकर 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है। इससे तो इंकार नहीं किया जा सकता कि अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमत में पिछले दिनों बढ़ोतरी हुई है और हमारी आयात का बिल बढ़ गया है पर इसका यह मतलब भी नहीं कि सारा बोझ आप जनता पर डाल दें। हमारे सामने गोवा के मुख्यमंत्री (भाजपा) मनोहर पार्रिकर का उदाहरण है। सोमवार को पार्रिकर ने अपने चुनावी वादे के अनुसार गोवा के वार्षिक बजट में 11 प्रतिशत वैट घटा दिया है। इस समय पणजी में 65.61 पैसे प्रति लीटर भाव से पेट्रोल मिल रहा है। 2 अप्रैल से जब से नए प्रावधान लागू हो जाएंगे यही पेट्रोल पणजी में लगभग 55 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा। गोवा मुख्यमंत्री द्वारा इस घोषणा के 24 घंटे के अन्दर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में पेट्रोल पर वैट 28 प्रतिशत से 26 प्रतिशत कर दिया है। इससे राजस्थान में पेट्रोल की कीमत 69.83 रुपये से 68.77 रुपये हो जाएगी। राज्य सरकारों को पेट्रोल पदार्थों से बहुत पैसा मिलता है। एक अनुमान है कि लगभग एक लाख 60 हजार करोड़ की आमदनी सारी राज्य सरकारों को पेट्रोल पदार्थों पर टैक्सों से होती है। आप दिल्ली को देखिए। केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी व एजुकेशन सेस से लगभग 14.78 रुपये प्रति लीटर तो लेती है यानि दिल्ली में पेट्रोल अगर 65.64 पैसे प्रति लीटर बिक रहा है तो इसमें 14.78 रुपये प्रति लीटर केंद्र सरकार एक्साइज में ले रहा है। अगर केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न टैक्सों का हिसाब लिया जाए तो 50 प्रतिशत कीमत का तो टैक्सों में जा रहा है। दूसरे शब्दों में अगर सारे टैक्सों को जोड़ा जाए तो आधे से ज्यादा लागत तो इसकी है। अगर इन्हें एक मिनट के लिए हटा दिया जाए तो दिल्ली में पेट्रोल 30 रुपये प्रति लीटर बिके। केंद्र और दिल्ली सरकार की जेब में हर लीटर पेट्रोल की दिल्ली में हो रही सेल में 25.72 रुपये प्रति लीटर जा रहा है। मनोहर पार्रिकर ने रास्ता दिखा दिया है। अगर केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो यह एक्साइज और वैट इत्यादि घटाकर कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी को एडजस्ट कर सकती है। वैसे भी इन तेल कम्पनियों की लापरवाही और फिजूलखर्ची ने आम जनता की कमर तोड़ दी है। पहले से पिस रही जनता पर अब पेट्रोल की कीमतों को बढ़ाकर नया भार डालने पर तुली हुई हैं केंद्र और राज्य सरकारें।
Anil Narendra, BJP, Daily Pratap, Goa, Vir Arjun

General Singh's allegations are not new, all are aware about bribes in defence deals

- Anil Narendra

Chief of the Army Staff General VK Singh has created another controversy at the fag end of his career. He has alleged that a retired Army Officer has offered him a bribe of 14 crore rupees for the supply of inferior vehicles. General Singh also said that the controversy about his date of birth was due to the fact that he was opposed to the corrupt elements in the Army. He said that the cancer of corruption has spread to such an extent that minor operations will not do, but it will need a major surgery. This statement of General Singh is no doubt quite sensational, but not unbelievable, but the question is why the General did not bring this matter to light immediately? But this is also true that talks about bribery in defence deals are nothing new. If one goes through the allegations made by General Singh, it would be evident that his target is the government and Defence Minister AK Antony. The Defence Minister did not support General Singh in the date of birth controversy. General Singh has also said that he had informed the Defence Minister about the offer of bribe. It is right that Antony has referred this matter to the CBI for investigation, as this question is still unanswered that when the General had immediately informed the Defence Minister, then why decision about handing over the case to CBI is being taken now? Was the Defence Minister waiting for General Singh to make public this matter? There is one more question that needs to be answered, why did General Singh leave this matter so casually? Whatever may be the answers for these questions, but one thing is clear that our government machinery does not have will to deal with corruption. Should we accept that the  role of middlemen is limited to the defence deals with other countries? This is very shameful for the country, which had to face immediately after independence, the jeep scam in 1948 that noow it has to face efforts made to initiate truck scam. It is clear that no effort has been made to stop those practices that are instrumental in stopping such scams. The most important question that may cause serious concern is that how an offer of bribe can be made to the Chief of Army Staff?  This indicates the extent of resolve and courage of middlemen to bribe the government machinery. It appears that no defence deal can be consummated without bribe. Iss the Parliament unaware of the bribery in defence deals? Then why this drama? Will this commission business come to stop by trading allegations? The real reason is that the Parliament has not taken any effective step to stem this evil. There is a dearth of adequate laws to effectively deal with corruption cases and to punish the middlemen engaged in corrupt practices and these middlemen exploit this situation. It would be better if we legally decide about a certain percentage as commission. We, too, in newspaper business pay commission to the hawkers to sell the newspapers. But, it must be ensured that inferior defence equipment would not be accepted in lieu of commission. This amounts to treason to the country, for which strict punishment should be meted out.

Thursday, 29 March 2012

नगर निगम चुनाव ः कहीं यह विभीषण न डुबा दे कांग्रेस-भाजपा को

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29 March 2012
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली में नगर निगम के चुनाव को लेकर एक बार फिर राजनीति में गर्मी आ गई है। टिकटों की मारामारी से जहां कांग्रेस बुरी तरह उलझी रही वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इतनी मारामारी शायद पहले कभी नहीं देखी होगी। आशा के अनुरूप दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए नामांकन के अंतिम दिन विभिन्न दलों और निर्दलीय मिलाकर रिकॉर्ड 1785 पत्याशियों ने दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में बनाए गए 68 केंद्रों पर नामांकन किया। एक दिन में इतने अधिक पत्याशियों द्वारा नामांकन का यह रिकॉर्ड है। नगर निगम के उम्मीदवारों के चयन में भाजपा के सभी नियम-कानून तार-तार हो गए। पार्टी ने जहां कई दिग्गजों को बाहर कर दिया ठीक वहीं पदेश अध्यक्ष ने विरोधियों को निपटाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। खास बात यह रही कि करीब 55 पार्षदों को पार्टी ने दोबारा मैदान पर नहीं उतारा है। पार्टी ने इस बार 17 पार्षदों को दूसरे वार्डों से चुनाव मैदान में उतारा है। पार्टी की ओर से जारी उम्मीदवारों की सूची में करीब आधा दर्जन महत्वपूर्ण कमेटियों के अध्यक्षों के नाम गायब हैं। नगर निगम चुनाव में पत्याशियों के चयन में कांग्रेस की एक्सपर्ट कमेटी ने केवल 24 पार्षदों को जीतने योग्य माना और उन पर विश्वास कर उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। 2007 निगम चुनाव में कांग्रेस के 67 पार्षद जीतने में सफल रहे थे, कांग्रेस चयन समिति ने उन 67 में से 43 पार्षदों को टिकट नहीं दिया है। इनमें कई ऐसे वार्ड हैं जहां वार्डों में बदलाव हुआ है और वह आरक्षित हो गया है। 248 नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। हालांकि कांग्रेस पदेशाध्यक्ष का दावा था कि किसी ऐसे व्यक्ति के परिजन को टिकट नहीं दिया जाएगा जिसका वार्ड आरक्षित हो। वहीं ऐसा भी व्यक्ति टिकट पाने का हकदार नहीं होगा जो वर्ष 2007 के निगम चुनाव में 1000 से अधिक मतों से पराजित हुआ हो। पत्याशी चयन में जो पैमाने पदेश कांग्रेस कमेटी ने बनाए थे, वह सभी ध्वस्त हुए हैं। कांग्रेस की इसी नीति के चलते बड़े पैमाने पर कांग्रेस से बगावत कर लोगों ने दलबल सहित नामांकन पत्र दाखिल किए हैं। दोनों, भाजपा और कांग्रेस में पुराने नेता और कार्यकर्ताओं की वफादारी पर बड़े नेताओं के चहेतों के साथ रिश्तेदार भारी पड़े। बड़े-बड़े नेताओं ने जमीन के धंधे से जुड़े लोगों के साथ ही अपने रिश्तेदारों में टिकट बांट दी। भाजपा में टिकट बांटने वालों ने अपनी चलाने के लिए मौजूदा 117 पार्षदों के टिकट काट दिए। इनमें से 22 पार्षद अपनी पत्नी या बहू को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। भाजपा के कुल मिलाकर पदों पर जमे 62 नेता अपनी-अपनी पत्नी और बहू को टिकट दिलाने में सफल रहे। ये सब उन महिला कार्यकर्ताओंs पर भारी पड़ी हैं जो लंबे अरसे से पार्टी का झंडा उठा रही थीं। दिल्ली की दोनों पतिद्वंद्वी पार्टियों कांग्रेस-भाजपा ने इतनी बड़ी संख्या में राजनीतिक विभीषण तैयार कर दिए हैं, जो उम्मीदवारों की लंका उजाड़ने का काम करेंगे। कांग्रेस में उम्मीदवारों की सूची हमेशा अंतिम समय पर ही जारी होती थी, लेकिन बगावत के चलते एक उम्मीदवार को टिकट देकर फिर दूसरा उम्मीदवार बदलना पार्टी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर रहा है। उधर भाजपा पार्टी विद फैमिली दिखाई दे रही है। यहां पार्टी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर अपने परिवार को महत्व दिया गया है। बगावत दोनों ही पार्टियों के लिए एक नई सिरदर्द बनकर आई है। कहीं यह विभीषण दोनों पार्टियों की लंका को न जला दे।
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जनरल सिंह का आरोप नया नहीं, सभी जानते हैं रक्षा सौदों में दलाली है

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Published on 29 March 2012
अनिल नरेन्द्र
अपने सेवाकाल के अंतिम दौर में थल सेना पमुख जनरल वीके सिंह ने जाते-जाते एक और विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि एक रिटायर्ड फौजी अफसर ने घटिया वाहनों की सप्लाई के बदले उन्हें 14 करोड़ रुपए की रिश्वत का पस्ताव रखा था। जनरल सिंह का यह भी कहना है कि उनकी जन्मतिथि का विवाद भी इसलिए खड़ा किया गया, क्योंकि वे सेना के भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि सेना में भ्रष्टाचार का कैंसर इतना फैल चुका है कि अब छोटे-मोटे ऑपरेशन से काम नहीं चलेगा, बड़ी सर्जरी ही करनी होगी। जनरल सिंह का यह कथन सनसनीखेज अवश्य है पर अविश्वसनीय नहीं पर सीधा सवाल यह उठता है कि जनरल साहब इसे तत्काल ही मामले को सामने क्यों नहीं लाए? पर यह भी सच है कि रक्षा सौदों में दलाली के लेन-देन की सुगबुगाहट जारी ही रहती है। यह हथियारों, उपकरणों से लेकर अन्य सामग्रियों की खरीद को लेकर भी सुनाई देती रहती है। अगर जनरल सिंह के नए आरोपों को ध्यान से देखा जाए तो उनका निशाना सरकार और रक्षामंत्री एके एंटनी हैं। रक्षामंत्री ने जनरल सिंह की जन्मतिथि वाले विवाद में उनका पक्ष नहीं लिया था। जनरल सिंह का यह भी कहना है कि रिश्वत की पेशकश के बारे में उन्होंने रक्षामंत्री को अवगत कराया था। यह अच्छा है कि एंटनी ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दे दिया है, क्योंकि यह पश्न अनुत्तरित है कि जब सेनाध्यक्ष ने उसी समय रक्षामंत्री को इस पकरण से अवगत करा दिया था तो फिर जांच कराने का निर्णय अब क्यों लिया जा रहा है? क्या रक्षामंत्री इसका इंतजार कर रहे थे कि सेना पमुख मामले को सार्वजनिक करें? सवाल यह भी है कि सेना पमुख ने रिश्वत की पेशकश के इस मामले को यूं ही क्यों छोड़ दिया था? इन सवालों का जवाब चाहे जो हो, यह स्पष्ट है कि हमारी सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार से निपटने की कोई इच्छाशक्ति नहीं रखता। क्या यह माना जाए कि बिचौलियों की भूमिका केवल दूसरे देशों से किए जाने वाले रक्षा सौदों में ही खत्म हो गई है? यह घोर लज्जाजनक है कि स्वतंत्रता के तुरंत बाद यानी 1948 में जीप घोटाले से दो-चार होने वाले देश को अब यह सुनने को मिल रहा है कि किसी की ओर से ट्रक घोटाले को अंजाम देने की कोशिश की गई। इससे साफ पता चलता है कि उन तौर-तरीकों को दूर करने के लिए कहीं कोई कोशिश नहीं की गई जिससे घपलों-घोटालों को रोका जा सके। सबसे चिंताजनक सवाल तो यह होना चाहिए कि कैसे सेनाध्यक्ष को रिश्वत की पेशकश हो सकती है? इससे रिश्वत देने वाले दलालों की हिम्मत और दुस्साहस का पता चलता है। क्या कोई रक्षा सौदा बिना दलाली दिए सम्पन्न हो भी सकता है या नहीं? क्या संसद सदस्य इससे परिचित नहीं कि रक्षा सौदों में दलाली होती है? फिर यह सब ड्रामा क्यों? क्या राजनीतिक आरोप-पतिआरोप से दलाली रुक जाएगी? असल वजह यह है कि संसद ने आज तक इसे रोकने का कोई पभावी कदम उठाया ही नहीं। दलालों को हतोत्साहित करने के साथ-साथ दंडित करने के उपयुक्त नियम कानूनों का अभाव है और उसी का दलाल तत्व फायदा उठाते हैं। या तो यह करें कि एक निश्चित पतिशत कमीशन कानूनी तौर से तय कर लें आखिर अखबार बेचने के लिए भी तो हम हॉकर को कमीशन देते हैं। हां कमीशन की एवज में घटिया सौदा कम से कम सुरक्षा उपकरणों में मंजूर नहीं। यह तो देश से गद्दारी है जिसकी कड़ी सजा होनी चाहिए।
Anil Narendra, Daily Pratap, General V.k. Singh, Manmohan Singh, Vir Arjun

Wednesday, 28 March 2012

65 फीसदी किसान आज रोजाना के 20 रुपये भी नहीं कमा रहे हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28 March 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और उससे संबंधित योगदान 2007-08 और 2008-09 के दौरान क्रमश 17.8 और 17.1 प्रतिशत रहा। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत का किसान ही उसकी धड़कन है और रीढ़ की हड्डी। अगर किसान खुशहाल नहीं होगा तो देश कभी भी खुशहाल नहीं हो सकता। आज किसान की आर्थिक स्थिति दयनीय है। शहरों में 28 रुपये और गांव में 22.50 रुपये गरीबी रेखा तय कर भले ही सरकार गरीबी हटाने का दावा करे मगर हकीकत तो यह है कि 65 प्रतिशत से अधिक किसान परिवार रोजाना 20 रुपये भी नहीं कमा पा रहे और यह खुलासा खुद भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों से हुआ है। इस देखने से पता चलता है कि गेहूं और चावल से लेकर अरहर, उड़द, मूंग व गन्ने सहित लगभग हर फसल की लागत किसानों को मिल रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी अधिक है। यह हाल सिर्प एक राज्य का नहीं बल्कि दर्जनभर से अधिक राज्यों का है। दूसरी ओर खेती के लिए जरूरी खाद, बीज व डीजल जैसी चीजों के दाम पिछले दशक में कई गुना बढ़े हैं। सरकार ने पहली बार आधिकारिक तौर पर यह आंकड़े जारी किए हैं कि किसी फसल के प्रति क्विंटल उत्पादन की लागत कितनी आती है। आंकडों के मुताबिक 2008-09 में किसानों को एक हैक्टेयर अरहर की खेती पर औसतन 3349 रुपये, मूंग पर 1806 रुपये और उड़द पर 6136 रुपये का घाटा हुआ। इसी तरह एक हैक्टेयर में गन्ना बोने पर औसतन 4704 रुपये का नुकसान हुआ। ऐसे ही एक हैक्टेयर ज्वार की खेती पर करीब हजार रुपये का घाटा हो रहा है। जहां तक गेहूं और धान की बात है तो इनकी एक हैक्टेयर खेती पर किसानों को एक साल में क्रमश 2200 रुपये और 4000 रुपये का औसतन मुनाफा होने की बात सरकारी आंकड़ों में दिखती है। गेहूं की फसल तैयार होने में पांच महीने से अधिक समय लगता है। इस तरह किसान परिवार की मासिक आमदनी 500 रुपये से भी कम पड़ेगी। इसी तरह धान की खेती पर भी 4 महीने से अधिक वक्त लगता है। इसके अलावा झारखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां 2008-09 में गेहूं के समर्थन मूल्य 1080 की तुलना में लागत काफी अधिक है। इसी तरह धान के मामले में ही महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु में लागत एमएसपी से ज्यादा है। मंत्रालय के अनुसार देश में 65 प्रतिशत किसानों के पास एक हैक्टेयर से कम जमीन है और इनकी तादाद सवा आठ करोड़ से अधिक है। दुर्भाग्य से इस यूपीए सरकार की प्राथमिकताएं हमारी समझ से तो बाहर हैं। आम बजट के बाद शायद पहली बार होगा जब खाद इतनी महंगी हो जाएगी कि वह खेती को ही खाने लगेगी। सरकार ने उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी में भारी कटौती कर ली है। इससे लगभग सभी तरह की खादों के दाम और बढ़ने तय हैं। उर्वरकों की बढ़ी माग को पूरा करने के लिए आयात ही एकमात्र सहारा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों के बढ़ने से घरेलू बाजार में खाद किसानों की पहुंच से बाहर होने लगी है। पिछले एक दशक में देश में खाद का कोई कारखाना स्थापित नहीं किया जा सका। इन परिस्थितियों में हमारे किसान भाइयों की दशा और खराब ही होनी है।
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टीम अन्ना ने एक बार फिर जोरदार अंगड़ाई दिखाई

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28 March 2012
अनिल नरेन्द्र
अन्ना हजारे ने रविवार को नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर एक दिन का उपवास रखकर जन लोकपाल आंदोलन को फिर जिन्दा करने का प्रयास किया। भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों का सामना कर रहे राजनेताओं के खिलाफ अगस्त तक एफआईआर दर्ज नहीं होने पर जेल भरो आंदोलन शुरू करने की धमकी दी। साथ ही केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि 2014 तक लोकपाल बिल लाओ या कुर्सी छोड़ने को तैयार रहो। रविवार को जन्तर-मन्तर पर वही पुराना माहौल नजर आया जो पिछले साल अप्रैल और अगस्त में रामलीला मैदान पर देखने को मिला था। टीम अन्ना दिल्ली में फिर भारी जन समर्थन पाने में सफल रही। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले लोगों की सुरक्षा को लेकर एक दिवसीय धरने के दौरान टीम अन्ना ने मजबूत जन लोकपाल की मांग दोहराई। इस दौरान टीम अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे लोगों की सुरक्षा को लेकर राजनेताओं पर तल्ख टिप्पणियां कीं। संसद की अवमानना का आरोप झेल रहे अरविन्द केजरीवाल पर लगता है कि सांसदों का कानूनी नोटिस का कोई खास असर नहीं हुआ है। `बीहड़ों में तो बागी पाए जाते हैं, डकैत तो पार्लियामेंट में बनते हैं।' हाल ही में आई अभिनेता इरफान खान और निर्देशक हिमांशु धूलिया की फिल्म पान सिंह तोमर का यह डायलाग अरविन्द केजरीवाल को इतना पसंद आया कि उन्होंने फिल्म को तीन बार देखा। लेकिन जब उन्होंने इस बात को सच्चाई के साथ कहा तो नेताओं को बुरा लग गया और सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर उन्हें विशेषाधिकार के हनन का नोटिस थमा दिया गया। जब चोर हैं तो चोर कहने से क्यों डरते हैं जबकि सत्य तो यह है कि जनता द्वारा चुनकर संसद भवन के अन्दर पहुंचने वाले करीब 50 फीसदी सांसद ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, यह कहना था केजरीवाल का। विधानसभा में ताल ठोंकने वाले हजारों विधायक अपराध की सीढ़ी चढ़कर नेतागिरी का चोला ओढ़ने में कामयाब हैं। अरविन्द केजरीवाल के अनुसार मीडिया साइट्स और अखबारों के माध्यम से इस बात का स्पष्टीकरण हो चुका है कि संसद भवन में गरिमा और नैतिकता की बात करने वाले करीब 162 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 34 कैबिनेट मंत्रियों में से 14 के ऊपर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप हैं। केजरीवाल के अनुसार जिन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप हैं वह हैंöपी. चिदम्बरम (2जी स्पैक्ट्रम घोटाला), अजीत सिंह (विकीलीक्स के अनुसार इन्होंने 10 करोड़ रुपये प्रति सांसद बांटे), फारुख अब्दुल्ला पर जेके क्रिकेट एसोसिएशन घपले का आरोप है, जीके वासन ने 2 लाख एकड़ जमीन तमिलनाडु में महज 44 करोड़ रुपये में कुछ चहेती कम्पनियों को बेच दी। कमलनाथ ने सांसदो के वोट खरीदने के लिए पैसा बांटा। कपिल सिब्बल पर 2जी घोटाले में शामिल होने का आरोप है। शरद पवार का नाम तेलगी स्कैम में उछला। श्रीप्रकाश जायसवाल पर 10 लाख करोड़ कोला स्कैंडल में शामिल होने का शक है। आदर्श हाउसिंग सोसाइटी स्कैम में सुशील कुमार शिंदे का नाम भी आया है। विलासराव देशमुख का भी इसी स्कैम में नाम उछला है। एमके अलागिरी ने 20 करोड़ रुपये की भूमि महज 85 लाख रुपये में खरीदी। वीरभद्र सिंह पर एफआईएएस अफसर को घूस देने का मामला चल रहा है। एसएम कृष्णा का नाम माइनिंग स्कैम में आ चुका है और प्रफुल्ल पटेल पर एयर इंडिया को डुबाने का आरोप है। केजरीवाल ने आगे कहा कि 14 सांसद ऐसे हैं जिन पर हत्या का केस चल रहा है। वहीं 20 सांसदों पर हत्या के प्रयास का मामला कोर्ट में विचाराधीन है। 11 सांसदों पर ठगी और जमीन हड़पने आदि में शामिल कोर्ट में अभी भी मामले चल रहे हैं। 13 सांसद ऐसे हैं जो अपहरण कर फिरौती मांगने के मामले में वांछित चल रहे हैं। देश के सभी राज्यों में कुल मिलाकर 4120 विधायक चुने जाते हैं। इनमें करीब 1176 विधायक ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मामले थानों में दर्ज हैं। 513 विधायकों पर अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी मांगने का केस फाइलों में धूल चाट रहा है। केजरीवाल ने कहा कि एक चपरासी की नौकरी पाने के लिए लोगों को चरित्र प्रमाण पत्र देना पड़ता है। उसके खिलाफ एक भी केस दर्ज होता है तो उसे नौकरी नहीं दी जा सकती। मुंबई में अन्ना का आंदोलन थोड़ा कमजोर दिखाई पड़ा तो सरकार ने यह मान लिया कि टीम अन्ना अब सरकार के लिए ज्यादा खतरा नहीं होगी पर जिस तरीके से जन्तर-मन्तर पर जनता आई लगता है कि उससे एक बार फिर सरकार में बेचैनी दिखेगी और केजरीवाल के अत्यंत गम्भीर बयान की प्रतिक्रिया अवश्य होगी।
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Tuesday, 27 March 2012

अलकायदा के जेहादी ने यहूदी बच्चों को भून डाला

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27 March 2012
अनिल नरेन्द्र
बृहस्पतिवार को फ्रांस के तुलूज शहर में एक नाटकीय कार्यक्रम में स्थानीय पुलिस ने अलकायदा के एक संदिग्ध आतंकवादी को जिस इमारत में वह छिपा हुआ था उसे चारों ओर से घेर लिया। इस तथाकथित अलकायदा के जेहादी ने जब अपने आपको चारों तरफ से घिरा पाया तो उसने बालकॉनी से ताबड़तोड़ गोलियां चलानी आरम्भ कर दीं। उसने 30 से ज्यादा फायर किए। अन्त में वह पुलिस की गोलियों से मारा गया और इस तरह पिछले चार दिनों से चल रहा यह घटनाक्रम समाप्त हो गया। मारा गया जेहादी मोहम्मद मेराह 23 वर्ष पर आरोप था कि उसने तुलूज के एक यहूदी बच्चों के स्कूल के बाहर अंधाधुंध गोलाबारी की और तीन यहूदी बच्चों सहित चार लोगों की हत्या कर दी। मोहम्मद गोलाबारी की और तीन यहूदी बच्चों सहित चार लोगों की हत्या कर दी। मोहम्मद मेराह मूल रूप से अल्जीरिया का था। इन यहूदी बच्चों की उम्र 4, 5 और 7 वर्ष थी। मेराह ने एक फ्रांस के 3 सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया था। पुलिस ने कहा कि मेराह के इस हत्या करने के पीछे कई कारण थे। मेराह ने मरने से पहले कहा था कि फ्रांस में औरतों को परदा न करने का सरकारी फैसला उसे बिल्कुल स्वीकार्य नहीं था। पुलिस को मेराह के घर से कई वीडियो रिकॉर्डिंग मिलीं। इनमें से एक में उसने फ्रांस के एक सैनिक पैराट्रूपर (सैनिक) को मारने से पहले कहा `तुम मेरे भाई को मारो, मैं तुम्हें मार डालूंगा।' एक और वीडियो में वह दो फ्रांसीसी सैनिकों को मारने के वक्त `अल्लाह हो अकबर' का नारा बोलता रहा। मेराह ने पुलिस को मरने से पहले बताया कि उसने वजीरिस्तान के क्वेटा शहर में अलकायदा ट्रेनिंग कैम्प में ट्रेनिंग ली थी और उसने कई और हमलों की योजना बना रखी थी पर बुधवार मार्च 21 को तुलूज पुलिस के 300 जवानों ने उस इमारत को घेर लिया जिसमें मेराह यहूदी स्कूल में फायरिंग करने के बाद छिप गया था। ओजर हेतोराह यहूदी स्कूल के मारे गए तीन बच्चों के शवों को बुधवार को यरुशलम में दफनाया गया। यद्यपि तुलूज का यह हमला एक भारी त्रासदी थी पर यह पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं थी। फ्रांस में यहूदी लम्बे समय से उस देश में अरब आप्रवासियों से शत्रुता का सामना कर रहे हैं और अब तो नौबत यह आ गई है कि फ्रांस में रह रहे यहूदी फ्रांस से इजरायल पलायन करने की सोचने पर मजबूर हो रहे हैं। यहूदी बच्चों को स्कूल जाते वक्त सताया जाता है, उन पर ताने कसे जाते हैं। तुलूज और आसपास के इलाकों में बीते दिनों के भीतर गोलीबारी की तीन घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें सात लोग मारे जा चुके हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी ने कहाöराष्ट्रीय अखंडता को भंग करने में आतंकवाद को कभी कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। यह वक्त है जब पूरा देश एकजुट रहे। इससे पहले फ्रांस के गृहमंत्री ने इस बात की पुष्टि की थी कि संदिग्ध के बारे में फ्रांसीसी डीसीआरआई घरेलू खुफिया एजेंसी को जानकारी थी और उसे पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर कानूनविहीन क्षेत्र में घूमते देखा गया। इस घटना से एक बात और साबित होती है कि नई दिल्ली, बैंकाक और जॉर्जिया में यहूदियों पर हमले या हमलों का प्रयास एक तयशुदा रणनीति के तहत ही किया गया था जिसमें फ्रांस का तुलूज शहर भी शामिल है। वैसे कोई भी धर्म नन्हें, निर्दोष बच्चों को मारने की इजाजत नहीं देता।
बृहस्पतिवार को फ्रांस के तुलूज शहर में एक नाटकीय कार्यक्रम में स्थानीय पुलिस ने अलकायदा के एक संदिग्ध आतंकवादी को जिस इमारत में वह छिपा हुआ था उसे चारों ओर से घेर लिया। इस तथाकथित अलकायदा के जेहादी ने जब अपने आपको चारों तरफ से घिरा पाया तो उसने बालकॉनी से ताबड़तोड़ गोलियां चलानी आरम्भ कर दीं। उसने 30 से ज्यादा फायर किए। अन्त में वह पुलिस की गोलियों से मारा गया और इस तरह पिछले चार दिनों से चल रहा यह घटनाक्रम समाप्त हो गया। मारा गया जेहादी मोहम्मद मेराह 23 वर्ष पर आरोप था कि उसने तुलूज के एक यहूदी बच्चों के स्कूल के बाहर अंधाधुंध गोलाबारी की और तीन यहूदी बच्चों सहित चार लोगों की हत्या कर दी। मोहम्मद गोलाबारी की और तीन यहूदी बच्चों सहित चार लोगों की हत्या कर दी। मोहम्मद मेराह मूल रूप से अल्जीरिया का था। इन यहूदी बच्चों की उम्र 4, 5 और 7 वर्ष थी। मेराह ने एक फ्रांस के 3 सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया था। पुलिस ने कहा कि मेराह के इस हत्या करने के पीछे कई कारण थे। मेराह ने मरने से पहले कहा था कि फ्रांस में औरतों को परदा न करने का सरकारी फैसला उसे बिल्कुल स्वीकार्य नहीं था। पुलिस को मेराह के घर से कई वीडियो रिकॉर्डिंग मिलीं। इनमें से एक में उसने फ्रांस के एक सैनिक पैराट्रूपर (सैनिक) को मारने से पहले कहा `तुम मेरे भाई को मारो, मैं तुम्हें मार डालूंगा।' एक और वीडियो में वह दो फ्रांसीसी सैनिकों को मारने के वक्त `अल्लाह हो अकबर' का नारा बोलता रहा। मेराह ने पुलिस को मरने से पहले बताया कि उसने वजीरिस्तान के क्वेटा शहर में अलकायदा ट्रेनिंग कैम्प में ट्रेनिंग ली थी और उसने कई और हमलों की योजना बना रखी थी पर बुधवार मार्च 21 को तुलूज पुलिस के 300 जवानों ने उस इमारत को घेर लिया जिसमें मेराह यहूदी स्कूल में फायरिंग करने के बाद छिप गया था। ओजर हेतोराह यहूदी स्कूल के मारे गए तीन बच्चों के शवों को बुधवार को यरुशलम में दफनाया गया। यद्यपि तुलूज का यह हमला एक भारी त्रासदी थी पर यह पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं थी। फ्रांस में यहूदी लम्बे समय से उस देश में अरब आप्रवासियों से शत्रुता का सामना कर रहे हैं और अब तो नौबत यह आ गई है कि फ्रांस में रह रहे यहूदी फ्रांस से इजरायल पलायन करने की सोचने पर मजबूर हो रहे हैं। यहूदी बच्चों को स्कूल जाते वक्त सताया जाता है, उन पर ताने कसे जाते हैं। तुलूज और आसपास के इलाकों में बीते दिनों के भीतर गोलीबारी की तीन घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें सात लोग मारे जा चुके हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी ने कहाöराष्ट्रीय अखंडता को भंग करने में आतंकवाद को कभी कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। यह वक्त है जब पूरा देश एकजुट रहे। इससे पहले फ्रांस के गृहमंत्री ने इस बात की पुष्टि की थी कि संदिग्ध के बारे में फ्रांसीसी डीसीआरआई घरेलू खुफिया एजेंसी को जानकारी थी और उसे पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर कानूनविहीन क्षेत्र में घूमते देखा गया। इस घटना से एक बात और साबित होती है कि नई दिल्ली, बैंकाक और जॉर्जिया में यहूदियों पर हमले या हमलों का प्रयास एक तयशुदा रणनीति के तहत ही किया गया था जिसमें फ्रांस का तुलूज शहर भी शामिल है। वैसे कोई भी धर्म नन्हें, निर्दोष बच्चों को मारने की इजाजत नहीं देता।
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यूपी की फतह के बाद अब मुलायम की नजरें दिल्ली तख्त पर

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27 March 2012
अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने के बाद समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की नजर अब दिल्ली के तख्त पर लग गई है। अब मुलायम ने मध्यावधि चुनाव कभी भी सम्भव की बात कही है। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने भी मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार रहने की बात कही थी। ममता, मुलायम के सुर में सुर मिलाते हुए भाजपा की सुषमा स्वराज ने भी देश में मध्यावधि चुनाव की सम्भावना जताई है। देवास (मध्य प्रदेश) में जिला निगरानी एवं सतर्पता समिति की बैठक में भाग लेने आई सुषमा ने मीडिया कर्मियों से कहा कि देश की राजनीति हर दिन बदल रही है और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए मध्यावधि चुनाव की सम्भावना है। सुषमा ने कहा कि केंद्र के लिए 272 का जादुई आंकड़ा नहीं रह गया है तथा वह मात्र 227 सांसदों पर टिकी हुई है। उन्होंने कहा कि केंद्र में सरकार की अल्पमत की स्थिति को देखते हुए भाजपा मध्यावधि चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। मुलायम का निशाना प्रधानमंत्री बनने का है। उन्होंने शुक्रवार को समाजवादी चिन्तक डॉ. राम मनोहर लोहिया की 102वीं जयंती पर लखनऊ में अपने कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि अब लोकसभा के मध्यावधि चुनाव के लिए कमर कस लें क्योंकि लोकसभा चुनाव कभी भी हो सकते हैं। इस साल या फिर अगले साल, इसलिए सारे कार्यकता पूरी ताकत अभी से लगा दें। उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने यूपी की विराट विजय के बाद प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने का भी लक्ष्य दिया है। दरअसल श्री मुलायम सिंह यादव ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। ऐसे समय जब समाजवादी पार्टी का रुख कांग्रेस के प्रति मुलायम होता दिख रहा था और ममता बनर्जी की भरपायी के लिए सपा को केंद्र में जगह मिलने की अटकलें तेज हो रही थीं तभी मुलायम ने मध्यावधि चुनाव की बात कहकर कांग्रेस की हवा निकाल दी। एक ओर उन्होंने कांग्रेस के प्रति मुलायम होने का अपने रुख का अप्रत्यक्ष रूप से खंडन कर दिया वहीं दूसरी ओर अपने कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के खिलाफ धार तेज करने का सन्देश दे दिया। यही नहीं, उन्होंने अपने बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह को यह बता दिया कि उनकी सरकार के कामकाज पर ही लोकसभा चुनाव लड़े जाएंगे। भले ही मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल का हो पर उनके कसौटी पर होने वाले कामकाज की अग्निपरीक्षा एक साल के भीतर ही हो जाएगी। मुलायम को मध्यावधि चुनाव इसलिए भी सूट करता है क्योंकि अभी उन्होंने न केवल अपने `भाई' (मुस्लिम-यादव) समीकरण को ठीक से बांध रखा है बल्कि समावेशी राजनीति की ओर कदम बढ़ाते हुए सभी जातियों के वोट बैंक हथियाने का करिश्मा दिखाया है। जिस तरह अखिलेश ने अपनी पहली ही बैठक में लैपटॉप, टैबलेट और बेरोजगारी भत्ता सरीखे की घोषणा पत्र की प्रमुख मांगों को हरी झंडी दिखा दी, उससे यह अटकलें भी खारिज हो गईं कि आखिर सपा की इन महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए धनराशि कहां से आएगी। मध्यावधि चुनाव की स्थिति में मुलायम सिंह को यह फायदा होने की उम्मीद होनी चाहिए कि सालभर तक लोग कम से कम मायावती राज की यादें ताजा ही रखेंगे। मायावती के प्रति नाराजगी का फायदा भी सपा को लोकसभा में जरूर मिलेगा। उत्तर प्रदेश के नजरिये से देखा जाए तो मध्यावधि चुनाव बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए भी कम मुफीद नहीं कहा जा सकता। चुनाव में पराजय के बाद अपनी पहली प्रेसवार्ता में बहन जी ने उम्मीद जताई थी कि सपा के लोगों की अराजकता उन्हें फिर अगले चुनाव में जीतने का मौका देगी। हालांकि मायावती के लिए सपा कार्यकाल में जितने दिनों बाद चुनाव हो, वह मुफीद रहेगा क्योंकि उन्होंने उम्मीद पाल रखी है कि सपा की गलतियों से उनकी पार्टी को फायदा होगा। वैसे उनकी यह उम्मीद बेमानी नहीं है क्योंकि पहली बार अगर मुलायम सिंह यादव बसपा के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ते तो उत्तर प्रदेश में पांव पसारने का मौका बसपा को इतनी जल्दी नहीं मिलता। यही नहीं, गेस्ट हाउस कांड नहीं हुआ होता तो भी भाजपा मायावती को मुख्यमंत्री बनाने की गलती नहीं करती। मुलायम सरकार के तीसरे कार्यकाल में सपा कार्यकर्ताओं के उत्पात ने ही मायावती को 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर दिया। ऐसे में मायावती की खुशफहमी वाजिब है लेकिन जिस तरह सपा सरकार चल रही है उसके मद्देनजर जरूर इसे बेमानी कहा जाएगा। बसपा के संस्थापक कांशीराम अपने भाषणों में साफ तौर पर कहा करते थे कि कमजोर सरकार और बार-बार चुनाव उनकी पार्टी के लिए फायदेमंद हैं।
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Sunday, 25 March 2012

क्या कहती है यूपी की हार पर कांग्रेस की गोपनीय रिपोर्ट?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 March 2012
अनिल नरेन्द्र
हाल ही में खत्म हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार पार्टी नेतृत्व पचा नहीं पा रहा है। बावजूद कड़ी मशक्कत के पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी को सबसे ज्यादा चिन्ता सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र और युवराज राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में हार की है। इस हार के कारणों को जानने के लिए पार्टी ने कई रिपोर्टें तैयार कराई हैं। राहुल गांधी के करिश्मे का फायदा न मिल पाने के लिए जहां कांग्रेस नेतृत्व कमजोर संगठन, गलत टिकटों का बंटवारा बता रहा है वहीं हकीकत कुछ और ही उभरकर आ रही है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में सेंट्रल इलेक्शन कमेटी के लिए बनी एक विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टी के युवराज राहुल गांधी की मंडली भी हार के लिए जिम्मेदार है। इसमें कहा गया है कि एक-दूसरे से बेहद ईर्ष्या करने वाले लोगों के छोटे लेकिन प्रभावशाली गुट और राजनीतिक दमखम की कमी वाले उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने से चुनाव के नतीजे पार्टी के लिए निराश करने वाले रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जातिवाद और वरिष्ठ नेताओं के अहंकार को भी हार का कारण माना गया है जिसकी वजह से जमीनी कार्यकर्ता चुनाव में पूरी ताकत लगाने के बजाय तटस्थ रहा। कांग्रेस की इस हार की `पोस्टमार्ट्म' की इस पहली रिपोर्ट में सूबे के 33 सीटों पर फोकस किया गया है। इन सभी सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है, जहां राहुल के करीबियों ने दखल देकर अपनी मर्जी के उम्मीदवारों को टिकट दिलाए थे। इन सभी सीटों पर कांग्रेस के पर्यवेक्षकों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों और स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई। फिरोजाबाद में सिरसागंज सीट का उदाहरण सामने है जहां कांग्रेस उम्मीदवार हरिशंकर यादव महज 4224 वोट लेकर पांचवें स्थान पर रहे। पर्यवेक्षकों और स्थानीय कार्यकर्ताओं की पहली पसंद ठाकुर दलबीर सिंह तोमर थीं। राहुल ने विशेष जोर देकर यादव को टिकट दिलवाया। इसी तरह एटा जिले में अलीगंज सीट पर पार्टी के उम्मीदवार रज्जन पाल सिंह 8160 मतों के साथ पांचवें स्थान पर रहे। इस सीट पर पार्टी के आब्जर्वर ने बिजनेसमैन सुभाष वर्मा को टिकट की वकालत की थी। लोध राजपूत से ताल्लुक रखने वाले वर्मा जिला पंचायत के सदस्य भी हैं। वे इस विधानसभा क्षेत्र में लोध समुदाय के एकमात्र उम्मीदवार थे, जो 27,000 लोध वोटरों के अधिकतर वोट हासिल कर सकते थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से उन्होंने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ ही काम किया और उसे हरवाने में जुट गए। प्रदेश के एक मुस्लिम सांसद ने कहा कि जो रिपोर्टें अब मिल रही हैं हम लोगों को तो पहले से ही पता था। इस बारे में राहुल गांधी को भी सचेत किया गया था लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मुस्लिम नेता के रूप में केवल सलमान खुर्शीद को आगे बढ़ाया गया जबकि मुस्लिम उन्हें अपना नेता मानते ही नहीं हैं। इसी तरह राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी से आए रशीद मसूद और बेनी प्रसाद वर्मा को अहमियत दी जबकि यह लोग दूसरे दलों से आए थे और इसी वजह से कांग्रेस कार्यकर्ता इस चुनाव में दूर रहा। प्रदेश के कई सांसद और नेता यह चाहते हैं कि हार के जिम्मेदार लोगों को सजा दी जाए जिन लोगों को इस चुनाव में अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यकों वाली सीटों को जीतने के लिए लगाया गया था, उन पर गाज गिरनी चाहिए।
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उपचुनावों के परिणाम कांग्रेस और भाजपा के लिए चिन्ता पैदा करते हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 25 March 2012
अनिल नरेन्द्र
ताजा उपचुनावों के नतीजे अगर कांग्रेस के लिए चिन्ता का विषय थे तो आंध्र प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में उसके सूपड़ा साफ होने की खबर तो पार्टी के लिए अशुभ संकेत है। यह उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए भी अच्छे संकेत नहीं दे रहे। गुजरात को भाजपा अपना गढ़ मानती है और कर्नाटक में भी वह करीब चार साल से सत्ता में है। लेकिन इन राज्यों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा ही प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं, इसलिए भी यह पराजय भाजपा के लिए अधिक तकलीफदेह साबित हो सकती है। कर्नाटक की उडुपी-चिकमंगलूर लोकसभा सीट मुख्यमंत्री सदानन्द गौड़ा की थी। मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। जाहिर है इस सीट को बरकरार रखना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था। मगर यहां उसे कांग्रेस के हाथों 45,000 से ज्यादा वोटों से मात खानी पड़ी। साफ है कि सत्ता की खातिर पार्टी के भीतर चल रही जोड़-तोड़, कलह, भ्रष्टाचार के आरोपों और विधानसभा में अश्लील वीडियो देखे जाने की घटना से खराब हुई छवि का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है। अनुशासन का दम भरने वाली पार्टी के लिए आज अनुशासनहीनता ही सबसे बड़ी समस्या बन गई है। गुजरात में मानसा विधानसभा सीट भाजपा के हाथ से निकलकर कांग्रेस की झोली में आना मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी झटका है। गौरतलब यह भी है कि मानसा विधानसभा सीट गांधी नगर लोकसभा क्षेत्र में आती है जिसका प्रतिनिधित्व लाल कृष्ण आडवाणी करते हैं। लेकिन यह पहला मौका नहीं जब भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने में कांग्रेस को कामयाबी मिली है। पिछले साल नवम्बर में नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा की दुर्गति हुई थी। इस साल के अन्त में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए मानसा की हार जहां नरेन्द्र मोदी के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए वहीं कांग्रेस जरूर इससे उत्साहित होगी। आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा गढ़ रहा है। 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने यहां 95 फीसदी सीटें जीतकर राजनीति के पंडितों को चकरा दिया था। लेकिन इसके करिश्माई नेता स्वर्गीय राजशेखर रेड्डी की अकस्मात मृत्यु और उनके पुत्र जगन मोहन रेड्डी के कांग्रेस से अलग होने के बाद उसका पराभाव शुरू हो गया। इसके बाद राज्य में 17 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं जिसमें सत्ताधारी कांग्रेस का पूरी तरह सूपड़ा साफ हुआ है। जहां कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई वहीं भाजपा जैसी पार्टी जिसका सूबे में ज्यादा असर नहीं है वह भी तीन सीटें जीत चुकी है। केंद्र सरकार में बड़े घोटालों के खुलासे के बाद कांग्रेस को महाराष्ट्र, राजस्थान और दिल्ली में हुए उपचुनावों में भी जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा है जहां उसकी सरकारें हैं। चन्द रोज पहले ही मुंबई नगर निगम के चुनावों में भी उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा था यानि हर उस जगह से कांग्रेस को बुरी खबर मिल रही है जहां उसके पास अच्छी ताकत है। केरल में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सहयोगी दल कांग्रेस (जेकब) ने अपनी सीट बरकरार रखी। यह परिणाम कांग्रेस के लिए खास महत्व रखता है क्योंकि राज्य में उसके नेतृत्व वाली संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार मामूली बहुमत पर टिकी है। तमिलनाडु और उड़ीसा में भी एक-एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में गए हैं। वैसे उपचुनाव परिणाम को हर हाल में आम रुझान का संकेत तो नहीं माना जा सकता पर कई राज्यों से वहां के मतदाताओं के मिजाज का जरूर कुछ संकेत मिलता ही है और यह संकेत न तो कांग्रेस के लिए अच्छे हैं और न ही भारतीय जनता पार्टी के लिए।
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Party may go to hell, Gadkari’s business is on the rise.

 Anil Narendra
Most of the leaders of Bhhartiya Janata Party do not agree with the style of functioning of BJP President Nitin Gadkari. Gadkari is considered to be a representative of the Rashtriya Swayamsewak Sangh, and he became BJP President with the support of the RSS. Gadkari is a businessman and he is running BJP like his own shop. The recent controversy is related to the distribution of Rajya Sabha tickets. There sharp arguments at the BJP Parliamentary Party meeting on Tuesday over the issue of setting aside the deserving Party candidate and giving ticket to a person  allegedly on the basis of money power. A number of MPs under the leadership of Yashwant Sinha criticized the Party leadership for not fielding an official candidate, but supporting a businessman, Anshuman Mishra. Sinha said that the Party MLAs should not be left at the mercy of 'the horse trading bazaar'. It causes the Party's discipline to break and blemishes its image. He said that in case the strategy was not changed in the present Rajya Sabha elections in Jharkhand, he would resign. Most of the MPs were displeased with SS Ahluwalia being denied Party ticket from Jharkhand. It is reported that the Sangh had vetoed on the name of Ahluwalia. MP from Himachal Pradesh, Shanta Kumar said that Ahluwalia is an influential leader of the Upper House and he must have been allowed one more term. Nawada MP Bhola Singh said that Party's self-consciousness had been shattered and it had prostrated before the money power. Maneka Ghandhi, an MP from Anwala appealed to the central leadership to end the Karnataka crisis and consider the demands made by Yediyurappa. Denial of Rajya Sabha ticket to Ahluwalia has fulfilled the wishes of the Congress and Mayawati. Ahluwalia have been cornering the government on all the issues, which had added to the problems of the government. Mayawati also wanted that Ahluwalia should not be allowed second term as an MP, as he would have to surrender his government house at 10 Gurudwara Rakab Ganj. Had Gadkari wanted, he would have sent Ahluwalia to the Rajya Sabha. He was short of his victory by just 11 votes. Under the circumstances, he could have made up this shortage with the help of JD(U), but in spite of his talking to Gadkari for this seat earlier, Gadkari with Sushil Modi left this seat for JD(U) and the Bihar JD(U) chairman, and Vashishtha Singh was fielded from this seat. The most delicate situation in the Party's Parliamentary Committee meeting was that of LK Advani, who sat as a silent spectator throughout the meeting. The impact of the rebellious mood of MPs was evident immediately after. It is being said that now the Party would not press its MLAs to vote for any independent candidate, but efforts are being made that the BJP MLAs boycott the election. As a Party President, Gadkari led the election campaign in a dictatorial manner. First, with the support oj RSS, Gadkari appointed a Pracharak and former Organisation Secretary of RSS, Sanjay Joshi, the in charge of UP electioneering campaign, despite strong opposition from the high statured leader and the Chief Minister of Gujarat, Narendra Modi. Secondly, despite opposition from all Party leaders, Gadkari enrolled ousted BSP leaders Babu Singh Kushwaha and Badshah Singh as members of the Party. All the experiments, excepting that of Uma Bharati in Bundelkhand failed miserably. In order to stop the polarization of votes, fire-brand leaders, Varun Gandhi and Aaditya Nath were confined to their constituencies, while on the other hand, the leader with recognized Hinduism face, Narendra Modi was invited for electioneering, but when he expressed his displeasure, no effort to placate him was made.
Despite all its efforts, the Party not only failed to stop polarization of Muslim votes, but it also lost its traditional votes in this effort, which resulted in Party's failure even to revisit its performance of 2007.
Whether it is Uttarakhand or Punjab, the BJP has been down-graded in both the States. The popularity graph of BJP has been sliding downward, from the day, Gadkari has taken over as the President of the Party, but Nitin Gadkari is least bothered about this. In fact, he has been running the Party like a shop, with the sole aim of minting money and he is doing this job efficiently. Gadkari's shop is running will, Party may go to dogs.

Saturday, 24 March 2012

मुस्लिम औरतों की बदहाली पर कोई सियासी पार्टी बोलने को तैयार नहीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24 March 2012
अनिल नरेन्द्र
देश में मुस्लिमों के पारिवारिक कानून में सुधार व मुस्लिम निजी कानून संहिताबद्ध किए जाने की मांग अब जोर पकड़ रही है। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन से जुड़ी मुस्लिम महिला शिक्षा, सुरक्षा, रोजगार, कानून एवं सेहत के मुद्दों पर जागरुकता लाने का काम कर रही है। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन व परचम संस्था संयुक्त रूप से मुस्लिम महिलाओं के बीच जाकर उन्हें सशक्त करने की नई राह दिखा रही हैं। देश में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति हमेशा से बहस में रही है। मुस्लिम पारिवारिक कानून में सुधार करने का समय आ गया है। दिल के अरमां आंसुओं में बह गए...। हिन्दी फिल्म का यह गीत मुस्लिम बिरादरी की महिलाओं का दर्द बयां करता है। एक पति के भरोसे ही लड़कियां अपना मायका छोड़कर ससुराल आती हैं। लेकिन पति जब एक के अलावा तीन और बीवी रखने का हक शरीयत के जरिये यानि कानून न मिला हो तो हालात बदतर हो जाते हैं। इस्लाम धर्म में मुसलमानों को हालात के आधार पर चार बीवी रखने की छूट है। धर्म की आड़ में हालात कुछ लोग खुद ही गढ़ लेते हैं और इस्लाम में बताई गई परिस्थितियों को नजरअंदाज कर देते हैं। मन मुताबिक उसकी व्याख्या करते हैं। सूबे या मुल्क के सियासी दल भले ही वोटों की सियासत में चुप्पी साधे हैं। लेकिन हालात ज्यादा बिगड़ते नजर आ रहे हैं। सियासी दल अल्पसंख्यक के रूप में मुस्लिमों को आरक्षण देने की वकालत तो करते हैं लेकिन महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर चुप्पी साध लेते हैं। गम्भीर मुद्दों पर बोल देने के बाद वोट खिसकने के डर से दल इससे कन्नी काटना ही मुनासिब समझते हैं। ऐसा नहीं कि सभी मुस्लिम घरों में हालात बदतर हैं। लेकिन जितने भी मामले परिवार परामर्श केंद्र में पारिवारिक बिखराव के आते हैं वे ज्यादातर मुस्लिम परिवारों के ही होते हैं। 21वीं सदी में बिना किसी सुधार के डेढ़ हजार साल पहले के कानून में सुधार होना जरूरी है। शरीयत के आगे पुलिस, वर्तमान कानून और काउंसलर सभी लाचार नजर आते हैं। अली बुन्निशा की हालत कुछ ऐसी ही है। वह ग्राम सलेमपुर, थाना सादुल्लाह जनपद बलरामपुर की रहने वाली है। वह बेजुबान है। उसकी शादी फिरोज पुत्र किताबुल्लाह, ग्राम बरधार, थाना भवानीगंज जनपद सिद्धार्थ नगर में हुई थी। फिरोज कमाने के लिए सऊदी अरब चला गया। वहां उसने दूसरी शादी कर ली। अब अलीबुखशा अपने पांच साल के बेटे के साथ इंसाफ की भीख मांग रही है। बेजुबान होने की वजह से आंखों से अपना दर्द निकालती है। अब महिला थाने में चलने वाले परिवार परामर्श केंद्र के काउंसलरों नईम खान और सुनीता पांडे ने बीच का रास्ता निकालते हुए फैसला किया कि आगामी एक अप्रैल को महिला थाने से ही अली बुन्निशा की विदाई होगी। उसकी विदाई उसके जेठ से इस आशय का शपथ पत्र लेने के बाद होगी कि वह उसके पति के आने तक उसकी देखरेख और खाने-पीने का इंतजाम करेगा। दूसरा मामला हसीना खातून का है। हसीना छह बच्चों की मां हैं। शौहर आलम पर इश्क का भूत इस कदर सवार हुआ कि वह गांव की ही एक नाबालिग लड़की को भगा ले गया। बाद में 376 का आरोपी बनते हुए जेल की सजा काटकर वापस आने के बाद अपनी बीवी हसीना को छोड़ने के लिए प्रताड़ित करने लगा। इतना ही नहीं, उसने अदालत में बीवी हसीना पर विदाई का दावा भी ठोंक दिया। तीसरा मामला शबनम का है। ग्राम चंदापुर थाना शोहरतगढ़ की रहने वाली शबनम बानो के पिता मोहम्मद जकी के दरवाजे पर हाथी बांधे जाते थे। अब वे नहीं है। शबनम का निकाह मोहम्मद इस्तेकार पुत्र मोहम्मद कैशरनाथ ग्राम मैना, थाना इटावा जनपद सिद्धार्थ नगर के साथ हुआ। माता-पिता की इकलौती संतान शबनम की विदाई से पहले ही इस्तेकार अपनी पत्नी से कहने लगा कि पहले तीन लाख रुपये और पूरी जमीन मेरे नाम कर दो, तब हम तुम्हें विदा करेंगे। खास बात यह है कि 20 से 30 साल की महिलाओं का ही घर टूटता है। जनपद सहित सुबाई इलाके में दिन-प्रतिदिन महिलाओं के प्रताड़ना संबंधित घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है और किसी को इसकी चिन्ता नहीं।
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क्या मनमोहन, प्रणब और मोंटेक सिंह 28 रुपये में गुजारा कर सकते हैं?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24 March 2012
अनिल नरेन्द्र
योजना आयोग पता नहीं कौन-सी दुनिया में रहता है। आयोग की गरीबी की नई परिभाषा तो गरीबों का मजाक उड़ाने जैसा है। योजना आयोग के अनुसार गांव में 22.42 रुपये और शहरों में 28.65 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। अगर वह गरीब नहीं तो जाहिर-सी बात है कि वह अमीर है। पिछले साल सितम्बर में योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर गरीबी का जो मानक पेश किए थे उसको लेकर काफी होहल्ला मचा था। उस वक्त गरीब का जो पैमाना तैयार किया गया था उसके अनुसार शहरों में 32 रुपये और गांव में 28 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं माना गया था। आर्थिक विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों के हंगामे पर सरकार गरीबी के नए मानक तैयार करने को राजी हो गई थी। लेकिन सोमवार को गरीबी के जो नए मानक पेश किए वह तो पिछली बार से भी ज्यादा बेतुका और अविश्वसनीय है। सवाल है कि जो व्यक्ति गरीब है उसे मानने में सरकार क्यों हिचकिचा रही है? संसद से लेकर सड़क तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष और मनमोहन सिंह के चहेते मोंटेक सिंह आहलूवालिया (जिन्हें प्रधानमंत्री वित्त मंत्री बनाना चाहते थे) निशाने पर हैं। योजना आयोग के ताजे आंकड़े बता रहे हैं कि देश में गरीबों की संख्या घट गई है और शहरों में जिसकी जेब में 28 रुपये हैं तो वह गरीब नहीं है। इन अजीबोगरीब आंकड़ों पर संसद में भाजपा हो या वाम दल, सभी ने सरकार और मोंटेक सिंह को आड़े हाथों लिया। भाजपा के एसएस आहलूवालिया ने तो यहां तक कह दिया कि क्या प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री रोजना 28 रुपये में गुजारा कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता कौन-सी लाइन खींची जा रही है। 28 रुपये के रोजाना के खर्च को आधार मानकर गरीबी रेखा तय करना ठीक नहीं है। यह गरीबी रेखा नहीं, भुखमरी रेखा है। जद (यू) सांसद शिवानन्द तिवारी ने आरोप लगाया कि योजना आयोग, विश्व बैंक के इशारों पर काम कर रहा है। जद (यू) के शरद यादव ने बुधवार को उस विषय पर बोलते हुए कहा कि योजना आयोग के नए मानदंडों को देश के गरीबों का कूर मजाक है। आयोग के उपाध्यक्ष (मोंटेक सिंह आहलूवालिया) जब भी बोलते हैं तो देश में हाहाकार मच जाता है और महंगाई बढ़ जाती है। योजना आयोग में ऐसे व्यक्ति को बैठाया जाए जो वर्ल्ड बैंक का पूर्व कर्मचारी न होकर जमीनी हकीकत से वाकिफ हो। शरद यादव ने कहा कि मेरी सरकार से विनती है कि योजना आयोग को इस व्यक्ति (मोंटेक सिंह) से छुटकारा दिलाए या योजना आयोग को बन्द कर दें। सुषमा स्वराज ने कहा कि योजना आयोग को क्या दोष देना, दोष तो सरकार का है जो स्वीकार करती है रिपोर्ट। आयोग ने पहले भी उड़ाया था मजाक। रघुवंश प्रसाद सिंह की टिप्पणी भी इन्हीं लाइनों पर थी। गरीबों के साथ इस तरह का मजाक गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाओं पर खड़ा करता है सवाल। मुलायम सिंह यादव ने कहा, `लिखा-पढ़ा नहीं होगा वास्तविक आकलन, इसके लिए दूरदराज गांवों में जाकर देखनी होगी हकीकत।' अगर वास्तविकता तौर पर देखा जाए तो देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। सरकार ने जल्द ही नया खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की बात कही है। इस कानून के तहत देश के हर गरीब को दो रुपये प्रति किलो गेहूं और तीन रुपये प्रति किलो चावल दिया जाना है। ऐसे में देश की आधी से ज्यादा आबादी को रियायती दरों पर गेहूं-चावल मुहैया कराने से सरकार पर वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाएगा। इसीलिए सरकार गरीबों की संख्या कम करके दिखाना चाहती है। इसके अलावा एक वजह यह भी हो सकती है कि सरकार अपने आर्थिक सुधारों की नीति की सार्थकता सिद्ध करने के लिए भी गरीबों की संख्या कम करके दिखाने का प्रयास कर रही है। जिस हिसाब से इस सरकार की आर्थिक नीतियां चल रही हैं उससे तो अगर खाद्य वस्तुओं की कीमतें सिर्प 10 फीसद बढ़ती हैं तो मेरे भारत महान में तीन करोड़ नए लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे। हमारा सुझाव है कि हमारे तथाकथित अर्थशास्त्राr मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, मोंटेक सिंह और सी. रंगराजन जैसे दर्जनों इस सरकार के आर्थिक विशेषज्ञ देश के दूरदराज गांवों का दौरा करें और देखें कि आज गरीब आदमी किस परिस्थिति में जीने पर मजबूर है। ऐसा करने के बाद तय करें गरीबों की परिभाषा। ताजी परिभाषा बकवास है, गरीबी से जलों पर नमक छिड़कने समान है।
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Friday, 23 March 2012

सपा यूपीए सरकार में शामिल होगी?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23 March 2012
अनिल नरेन्द्र
रविवार को एक पत्रकार ने लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से प्रश्न किया कि क्या समाजवादी पार्टी यूपीए सरकार में शामिल होगी? जवाब में अखिलेश ने कहा कि हम यूपीए सरकार में शामिल होंगे या नहीं, इस पर अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव (नेता जी) ही करेंगे। सपा के केंद्र सरकार में सहयोगी बनने संबंधी दिग्विजय सिंह के बयान पर अखिलेश ने कहा कि नेता जी दिल्ली जा रहे हैं। केंद्र में सपा की भूमिका का फैसला वही करेंगे। मुलायम सिंह यादव (नेता जी) से जब दिल्ली में यही प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने कहा कि न तो हमसे किसी ने ऐसा करने का अनुरोध किया है और न ही हमने किसी से अनुरोध किया है। नेता जी की बातों से ऐसा लगा कि वह मनमोहन सिंह सरकार में शामिल होने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। केंद्र सरकार बेशक ममता से आजिज मुलायम सिंह की तरफ भले ही बड़ी हसरत से देख रही हो, लेकिन सपा की इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं लगती। यहां तक कि सपा न तो केंद्र सरकार में शामिल होगी और न ही उसे उपसभापति के पद की दरकार है। हालांकि यह भी साफ है कि सपा मनमोहन सिंह सरकार को गिराने का कोई प्रयास नहीं करेगी और समर्थन जारी रखेगी। संप्रग सरकार को लेकर सपा का नजरिया बिल्कुल साफ है। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारी-भरकम जीत के बाद सपा अब आगामी लोकसभा चुनाव तक उस पर कोई आंच नहीं आने देना चाहती। खासतौर से उस स्थिति के मद्देनजर जब बीते वर्षों में भ्रष्टाचार एवं घोटालों जैसे कई मोर्चों पर केंद्र सरकार का दामन दागदार रहा है। इतना ही नहीं, पार्टी उत्तर प्रदेश में किसानों की बेहतरी के कई वादों पर भी जीती है जबकि केंद्रीय बजट में आने वाले समय में डीजल के मूल्य वृद्धि के संकेत हैं। पार्टी का मानना है कि ऐसे में केंद्र सरकार में शामिल होकर उन्हें गुनाहों का भागीदार बनना इसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। लिहाजा उसे दूर रहने में ही भलाई है। सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने तो दावा किया कि कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में शामिल होने का सवाल ही नहीं। इसके पीछे एक तर्प यह भी है कि बीते वर्षों में सपा ने भले ही कई मोर्चों पर आगे बढ़कर केंद्र सरकार का साथ दिया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के बीते विधानसभा के चुनाव तक कांग्रेस ने भी कभी उसके साथ दोस्ताना रिश्ते का परिचय नहीं दिया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बसपा एवं मायावती को छोड़कर सपा पर ही सबसे ज्यादा हमलावर रही थी। एक अन्य सपा नेता ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार में शामिल होने के लिए कांग्रेस की तरफ से कोई ठोस प्रस्ताव वैसे भी अभी तक नहीं आया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सोमवार को मुलायम सिंह की जमकर तारीफ की थी। सपा की प्राथमिकता हमें तो साफ लगती है। सपा की प्राथमिकता उत्तर प्रदेश में एक अच्छी सरकार चलाना और उत्तर प्रदेश में पार्टी को और मजबूत करना है, न कि किसी दूसरी पार्टी की गलतियों में शरीक होना।
रविवार को एक पत्रकार ने लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से प्रश्न किया कि क्या समाजवादी पार्टी यूपीए सरकार में शामिल होगी? जवाब में अखिलेश ने कहा कि हम यूपीए सरकार में शामिल होंगे या नहीं, इस पर अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव (नेता जी) ही करेंगे। सपा के केंद्र सरकार में सहयोगी बनने संबंधी दिग्विजय सिंह के बयान पर अखिलेश ने कहा कि नेता जी दिल्ली जा रहे हैं। केंद्र में सपा की भूमिका का फैसला वही करेंगे। मुलायम सिंह यादव (नेता जी) से जब दिल्ली में यही प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने कहा कि न तो हमसे किसी ने ऐसा करने का अनुरोध किया है और न ही हमने किसी से अनुरोध किया है। नेता जी की बातों से ऐसा लगा कि वह मनमोहन सिंह सरकार में शामिल होने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। केंद्र सरकार बेशक ममता से आजिज मुलायम सिंह की तरफ भले ही बड़ी हसरत से देख रही हो, लेकिन सपा की इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं लगती। यहां तक कि सपा न तो केंद्र सरकार में शामिल होगी और न ही उसे उपसभापति के पद की दरकार है। हालांकि यह भी साफ है कि सपा मनमोहन सिंह सरकार को गिराने का कोई प्रयास नहीं करेगी और समर्थन जारी रखेगी। संप्रग सरकार को लेकर सपा का नजरिया बिल्कुल साफ है। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारी-भरकम जीत के बाद सपा अब आगामी लोकसभा चुनाव तक उस पर कोई आंच नहीं आने देना चाहती। खासतौर से उस स्थिति के मद्देनजर जब बीते वर्षों में भ्रष्टाचार एवं घोटालों जैसे कई मोर्चों पर केंद्र सरकार का दामन दागदार रहा है। इतना ही नहीं, पार्टी उत्तर प्रदेश में किसानों की बेहतरी के कई वादों पर भी जीती है जबकि केंद्रीय बजट में आने वाले समय में डीजल के मूल्य वृद्धि के संकेत हैं। पार्टी का मानना है कि ऐसे में केंद्र सरकार में शामिल होकर उन्हें गुनाहों का भागीदार बनना इसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। लिहाजा उसे दूर रहने में ही भलाई है। सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने तो दावा किया कि कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में शामिल होने का सवाल ही नहीं। इसके पीछे एक तर्प यह भी है कि बीते वर्षों में सपा ने भले ही कई मोर्चों पर आगे बढ़कर केंद्र सरकार का साथ दिया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के बीते विधानसभा के चुनाव तक कांग्रेस ने भी कभी उसके साथ दोस्ताना रिश्ते का परिचय नहीं दिया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बसपा एवं मायावती को छोड़कर सपा पर ही सबसे ज्यादा हमलावर रही थी। एक अन्य सपा नेता ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार में शामिल होने के लिए कांग्रेस की तरफ से कोई ठोस प्रस्ताव वैसे भी अभी तक नहीं आया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सोमवार को मुलायम सिंह की जमकर तारीफ की थी। सपा की प्राथमिकता हमें तो साफ लगती है। सपा की प्राथमिकता उत्तर प्रदेश में एक अच्छी सरकार चलाना और उत्तर प्रदेश में पार्टी को और मजबूत करना है, न कि किसी दूसरी पार्टी की गलतियों में शरीक होना।
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गडकरी की हट्टी फल-फूल रही है, पार्टी जाए भाड़ में

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23 March 2012
अनिल नरेन्द्र
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी के काम करने के तौर-तरीकों से अधिकतर भाजपा नेता सहमत नहीं हैं। गडकरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिनिधि माना जाता है, वह संघ के समर्थन से ही भाजपा अध्यक्ष बने। गडकरी एक बिजनेसमैन हैं जो भाजपा को अपनी निजी दुकान की तरह चला रहे हैं। ताजा बवाल राज्यसभा की टिकटों के बंटवारे को लेकर है। राज्यसभा चुनाव में पार्टी के सही उम्मीदवारों को दरकिनार करने और कथित रूप से पैसे के बल पर टिकट देने के मुद्दे पर मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक में जमकर बवाल हुआ। यशवंत सिन्हा की अगुवाई में सांसदों ने झारखंड में पार्टी का आधिकारिक उम्मीदवार खड़ा न करके एक व्यवसायी अंशुमान मिश्रा को समर्थन देने को लेकर सीधे पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठा दिया। सिन्हा ने कहा कि पार्टी विधायकों को `हार्स ट्रेडिंग की मंडी' में नहीं छोड़ना चाहिए। इससे पार्टी का अनुशासन भंग होता है और इमेज खराब होती है। उन्होंने कहा कि यदि झारखंड में मौजूदा राज्यसभा चुनाव में रणनीति को नहीं बदला गया तो वह इस्तीफा दे देंगे। अधिकतर सांसद एसएस आहलूवालिया को दोबारा झारखंड से टिकट नहीं देने पर नाराज थे। बताते हैं कि आहलूवालिया पर संघ ने वीटो लगा दिया था। बैठक में हिमाचल से सांसद शांता कुमार ने कहा कि आहलूवालिया उच्च सदन में एक प्रभावी नेता हैं और उन्हें एक और कार्यकाल तो मिलना ही चाहिए था। नवादा के सांसद भोला सिंह ने कहा कि पार्टी की आत्म चेतना मर चुकी है और वह धन-बल के सामने नतमस्तक हो रही है। आंवला से सांसद मेनका गांधी ने केंद्रीय नेतृत्व से कर्नाटक के संकट को समाप्त करने और येदियुरप्पा की मांगों पर ध्यान देने की अपील की। आहलूवालिया को राज्यसभा का टिकट न मिलने से कांग्रेस और मायावती की मुराद पूरी हो गई है। आहलूवालिया यूपीए सरकार को तमाम मुद्दों पर सबसे ज्यादा घेरते रहे हैं, जिनके कारण सरकार कई बार परेशानी में पड़ी है। मायावती भी चाहती थीं कि आहलूवालिया का राज्यसभा से पत्ता साफ हो जाए ताकि सांसद न रहने पर उनको (आहलूवालिया) अपना सरकारी बंगला 10 गुरुद्वारा रकाबगंज खाली करना पड़े। गडकरी चाहते तो आहलूवालिया को भेज सकते थे। उन्हें जीतने के लिए बस 11 वोट की कमी पड़ रही थी। ऐसे वह जद (यू) से पूरा कर सकते थे लेकिन गडकरी और सुशील मोदी ने मिलकर वह सीट ही जद (यू) के लिए छोड़ दी जिस पर बिहार जद (यू) अध्यक्ष वशिष्ठ सिंह ने नामांकन कर दिया जबकि आहलूवालिया ने इस सीट पर गडकरी से पहले से ही बात कर रखी थी। संसदीय दल की बैठक में सबसे नाजुक स्थिति आडवाणी जी की थी। पूरी बैठक में वह एक मूकदर्शक बने रहे। सांसदों के बगावती तेवर का असर तुरन्त देखने को मिला। कहा जा रहा है कि झारखंड में अब पार्टी राज्यसभा चुनाव में अपने विधायकों को किसी निर्दलीय उम्मीदवार के वोट देने के लिए दबाव नहीं देगी बल्कि कोशिश हो रही है कि भाजपा विधायक चुनाव का ही बायकॉट करें। बतौर अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हिटलरी स्टाइल से चुनाव अभियान चलाया। सबसे पहले गडकरी ने संघ के समर्थन के बल पर पार्टी के कद्दावर नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध के बावजूद संघ के प्रचारक रहे पूर्व संगठन मंत्री संजय जोशी को यूपी चुनाव प्रचार का इंचार्ज बना दिया। दूसरा गडकरी ने सभी पार्टी नेताओं के विरोध के बावजूद बसपा से निष्कासित बाबू सिंह कुशवाहा और बादशाह सिंह को पार्टी में शामिल किया। पार्टी ने बुंदेलखंड में जितने भी प्रयोग किए सिवाय उमा भारती के बाकी सब फेल हुए। मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए अपने सभी फायर ब्रांड नेताओं वरुण गांधी, योगी आदित्यनाथ को जहां अपने क्षेत्र तक सीमित कर दिया वहीं दूसरी तरफ हिन्दुवादी चेहरा माने जाने वाले नरेन्द्र मोदी को न्यौता भेजा लेकिन जब उनकी नाराजगी जाहिर हुई तो उन्हें मनाने का कोई प्रयास नहीं किया। पार्टी के सभी प्रयासों के बाद भी पार्टी मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण तो न रोक सकी बल्कि अपने इस प्रयास में उसने अपने परम्परागत वोट भी गंवा दिए और इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी 2007 का भी प्रदर्शन न दोहरा सकी। चाहे मामला उत्तराखंड का रहा हो या पंजाब का, दोनों ही राज्यों में भाजपा की स्थिति गिरी है। गडकरी जबसे अध्यक्ष बने हैं भाजपा का ग्रॉफ गिरता ही जा रहा है पर इससे नितिन गडकरी को कोई फर्प नहीं पड़ता। वह तो पार्टी को बतौर हट्टी (दुकान) चला रहे हैं जिसका एकमात्र मकसद है पैसा बनाना और यह काम वह बाखूबी कर रहे हैं। गडकरी की हट्टी तो फल-फूल रही है, पार्टी जाए भाड़ में।
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Thursday, 22 March 2012

विराट कोहली इस समय दुनिया के अव्वल वनडे बल्लेबाज हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22 March 2012
अनिल नरेन्द्र
एशिया कप क्रिकेट के महत्वपूर्ण मैच में बंगलादेश ने श्रीलंका को हराकर पहली बार फाइनल में प्रवेश कर लिया। अब बंगलादेश और पाकिस्तान के बीच फाइनल होगा। भारत बाहर हो गया। पाकिस्तान के खिलाफ इतना अच्छा खेलने के बाद भी टीम इंडिया के बाहर होने का सभी को दुःख है। एक सवाल जो किया जा रहा है कि क्या श्रीलंका जानबूझ कर बंगलादेश से हारा ताकि फाइनल में भारत प्रवेश न कर सके? जिस श्रीलंका के एक गेंदबाज ने भारत के साथ एक वर्ष पहले हुए मुकाबले में अंतिम गेंद पर जब भारत को जीत के लिए एक रन चाहिए था और वीरेन्द्र सहवाग 99 पर नाबाद थे, की सेंचुरी रोकने के लिए जानबूझ कर नो बॉल डाल दी हो तो उस श्रीलंका से सच्ची खेल भावना की उम्मीद नहीं की जा सकती। पूरे देश में यही चर्चा थी कि इस नूराकुश्ती की मार भारत पर ही पड़ेगी। श्रीलंका ने बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग में महज खानापूर्ति करते हुए जीत बंगलादेश को परोस दी। वजह एक थी कि जिस भारत ने श्रीलंका को धूल चटा रखी है, वह फाइनल में न पहुंच सके। बंगलादेश की जीत के साथ ही पांच बार का चैंपियन भारत फाइनल की होड़ से बाहर हो गया। हालांकि भारत और बंगलादेश के एक बराबर आठ अंक रहे लेकिन मेजबान टीम ने चूंकि भारत को हराया था इसलिए उसे फाइनल का टिकट मिल गया। बेशक टीम इंडिया फाइनल में नहीं आ सकी पर इस सीरीज में भारत की कम से कम दो बहुत बड़ी उपलब्धियां रहीं। पहली सचिन का सौवां सैकड़ा और दूसरा विराट कोहली जो एक अत्यंत महत्वपूर्ण बैट्समैन के रूप में उभरे। इस 23 वर्षीय पश्चिमी दिल्ली के युवा खिलाड़ी ने अब दुनिया के महान बल्लेबाजों की सूची में प्रवेश कर लिया है। जब वह बल्लेबाजी करता है तो विपक्ष के बड़े से बड़ा स्कोर बौना बन जाता है। तीन हफ्ते में दो बार अकेले अपने दमखम से विराट ने टीम इंडिया को जीत का सेहरा पहनाया है। रविवार को कोहली का 148 गेंदों में 183 व इनकी वजह से टीम इंडिया ने एक रिकॉर्ड कायम कर दिया रन चेस में। बुरा न मानो कोहली है यह एमएमएस पूरे मीरपुर में गूंजता रहा। पिछले साल विराट कोहली ने वनडे का सबसे ज्यादा स्कोर बनाया था। उससे पहले सात वह दूसरे नम्बर के हाइस्ट स्कोरर रहे। इसलिए यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि इस समय विराट कोहली दुनिया के सबसे अव्वल वनडे बल्लेबाज बन गए हैं। हालांकि विराट कोहली की इस शानदार फार्म पर सबको नाज है पर उन्हें अपने व्यवहार में सुधार लाना चाहिए। गुस्सा, अहंकार अच्छे-अच्छे को धूल चटा देता है। कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि उन्हें गुस्सा इसलिए आता है कि वह 18 नम्बर की जर्सी पहनते हैं। इसका योग होता है 9। यह अच्छा योग नहीं है। इनके अनुसार विराट को ऐसी जर्सी पहननी चाहिए जिसका योग 5 होना चाहिए। जैसे 14, 32। विराट का जन्म का नम्बर 5 है। वह 23 वर्ष के हैं जिसका योग भी 5 है, यह साल 2012 है जिसका नम्बर भी 5 बनता है। इसी वजह से यह साल उनके लिए विशेष है। उनके गुस्से व अहंकार के कारण उन्हें टीम इंडिया का एंग्री यंगमैन भी कहा जा रहा है।
एशिया कप क्रिकेट के महत्वपूर्ण मैच में बंगलादेश ने श्रीलंका को हराकर पहली बार फाइनल में प्रवेश कर लिया। अब बंगलादेश और पाकिस्तान के बीच फाइनल होगा। भारत बाहर हो गया। पाकिस्तान के खिलाफ इतना अच्छा खेलने के बाद भी टीम इंडिया के बाहर होने का सभी को दुःख है। एक सवाल जो किया जा रहा है कि क्या श्रीलंका जानबूझ कर बंगलादेश से हारा ताकि फाइनल में भारत प्रवेश न कर सके? जिस श्रीलंका के एक गेंदबाज ने भारत के साथ एक वर्ष पहले हुए मुकाबले में अंतिम गेंद पर जब भारत को जीत के लिए एक रन चाहिए था और वीरेन्द्र सहवाग 99 पर नाबाद थे, की सेंचुरी रोकने के लिए जानबूझ कर नो बॉल डाल दी हो तो उस श्रीलंका से सच्ची खेल भावना की उम्मीद नहीं की जा सकती। पूरे देश में यही चर्चा थी कि इस नूराकुश्ती की मार भारत पर ही पड़ेगी। श्रीलंका ने बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग में महज खानापूर्ति करते हुए जीत बंगलादेश को परोस दी। वजह एक थी कि जिस भारत ने श्रीलंका को धूल चटा रखी है, वह फाइनल में न पहुंच सके। बंगलादेश की जीत के साथ ही पांच बार का चैंपियन भारत फाइनल की होड़ से बाहर हो गया। हालांकि भारत और बंगलादेश के एक बराबर आठ अंक रहे लेकिन मेजबान टीम ने चूंकि भारत को हराया था इसलिए उसे फाइनल का टिकट मिल गया। बेशक टीम इंडिया फाइनल में नहीं आ सकी पर इस सीरीज में भारत की कम से कम दो बहुत बड़ी उपलब्धियां रहीं। पहली सचिन का सौवां सैकड़ा और दूसरा विराट कोहली जो एक अत्यंत महत्वपूर्ण बैट्समैन के रूप में उभरे। इस 23 वर्षीय पश्चिमी दिल्ली के युवा खिलाड़ी ने अब दुनिया के महान बल्लेबाजों की सूची में प्रवेश कर लिया है। जब वह बल्लेबाजी करता है तो विपक्ष के बड़े से बड़ा स्कोर बौना बन जाता है। तीन हफ्ते में दो बार अकेले अपने दमखम से विराट ने टीम इंडिया को जीत का सेहरा पहनाया है। रविवार को कोहली का 148 गेंदों में 183 व इनकी वजह से टीम इंडिया ने एक रिकॉर्ड कायम कर दिया रन चेस में। बुरा न मानो कोहली है यह एमएमएस पूरे मीरपुर में गूंजता रहा। पिछले साल विराट कोहली ने वनडे का सबसे ज्यादा स्कोर बनाया था। उससे पहले सात वह दूसरे नम्बर के हाइस्ट स्कोरर रहे। इसलिए यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि इस समय विराट कोहली दुनिया के सबसे अव्वल वनडे बल्लेबाज बन गए हैं। हालांकि विराट कोहली की इस शानदार फार्म पर सबको नाज है पर उन्हें अपने व्यवहार में सुधार लाना चाहिए। गुस्सा, अहंकार अच्छे-अच्छे को धूल चटा देता है। कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि उन्हें गुस्सा इसलिए आता है कि वह 18 नम्बर की जर्सी पहनते हैं। इसका योग होता है 9। यह अच्छा योग नहीं है। इनके अनुसार विराट को ऐसी जर्सी पहननी चाहिए जिसका योग 5 होना चाहिए। जैसे 14, 32। विराट का जन्म का नम्बर 5 है। वह 23 वर्ष के हैं जिसका योग भी 5 है, यह साल 2012 है जिसका नम्बर भी 5 बनता है। इसी वजह से यह साल उनके लिए विशेष है। उनके गुस्से व अहंकार के कारण उन्हें टीम इंडिया का एंग्री यंगमैन भी कहा जा रहा है।
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क्या सैयद मोहम्मद काजमी पर दिल्ली पुलिस झूठा केस बना रही है?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22 March 2012
अनिल नरेन्द्र
इजरायली दूतावास की कार में विस्फोट के मामले में गिरफ्तार पत्रकार सैयद मोहम्मद काजमी क्या निर्दोष हैं जिन्हें जबरन दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है या यह हमले में शामिल एक महत्वपूर्ण कड़ी है? यह प्रश्न काजमी की गिरफ्तारी के बाद से ही अखबारों में बना हुआ है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने इजरायल और अमेरिका के कहने पर काजमी को गिरफ्तार किया और उसकी गिरफ्तारी की असल वजह थी कि वह अपनी टीवी रिपोर्टों में मध्य-पूर्व की सही स्थिति पेश करता था जिससे दोनों इजरायल और अमेरिका नाराज थे और उसे रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने यह ड्रॉमा रचा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्वे जव्वाद ने लखनऊ में कहा कि दिल्ली के पुलिस आयुक्त इजरायली एजेंट हैं और उनकी सम्पत्ति की जांच होनी चाहिए। मौलना जव्वाद ने मीडिया से कहा कि देश में पिछले करीब 20 वर्षों से बेकसूर मुसलमानों को आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार करने का सिलसिला जारी है। गत 13 फरवरी को दिल्ली में हुए विस्फोट में वरिष्ठ पत्रकार सैयद मोहम्मद काजमी की गिरफ्तारी इसकी नई कड़ी है। दूसरी ओर दिल्ली पुलिस नए-नए सुबूत पेश कर रही है। मामले की जांच में जुटे सूत्रों ने बताया कि काजमी के ईरान से गहरे रिश्ते होने के पक्के सुबूत मिले हैं। काजमी कई बार ईरान गया था। इस दौरान उसने ब्लास्ट से जुड़े दूसरे ईरानियों से मुलाकात की थी। काजमी ने पुलिस को बताया कि वह 7 जनवरी 2011 को ईरान गया था। इस बार उसकी मुलाकात सैयद अली और अली रजा से हुई थी। सैयद अली ने उसे ईरानी साइंटिस्ट की मौत का बदला लेने की बात कही थी। सैयद ने उसे तेहरान में 3000 डालर और एक मोबाइल फोन भी उपलब्ध कराया। वापस दिल्ली लौटने पर उसकी कई बार सैयद से फोन पर बात हुई। मई 2011 में ईरान से उसे सैयद ने फोन कर इजरायली डिप्लोमेट को निशाना बनाने की बात कही थी। उसे इस हमले के लिए ईरान से आने वाले लोगों के लिए दिल्ली में मदद करने के निर्देश मिले थे। पुलिस का दावा है कि योजना के मुताबिक ईरानी हमलावरों के दिल्ली आने पर काजमी ने उन्हें न सिर्प करोल बाग में फैज रोड स्थित होटल में ठहराया बल्कि इजरायली डिप्लोमेट के आने-जाने का रूट पता करने में भी उनकी मदद की। इसके लिए किराये पर ली गई मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल किया गया। ज्ञात रहे कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जोरबाग के कर्बला इलाके में रहने वाले फ्रीलांस पत्रकार मोहम्मद काजमी को 6 मार्च को गिरफ्तार किया था। पुलिस आयुक्त ने बताया कि सन् 2011 में जब काजमी ईरान गया था तो इसकी मुलाकात सैयद अली, मोहम्मद रजा और ईरानी अफसर से हुई। मलेशिया में बैठे गैंग के मास्टर माइंड मोहम्मद मसूद के दिशानिर्देश पर सैयद अली और मोहम्मद रजा ने दिल्ली में इजरायली डिप्लोमेट पर हमला करवाने में काजमी को पैसों का लालच दिया। इसके लिए 5500 डालर देने की बात कही गई। काजमी तैयार हो गया और फिर ईरानी अफसर के साथ दिल्ली चला गया। 10 फरवरी को सैयद अहमद, मोहम्मद रजा खान और अब्दुल फजी मेंहदियान भी दिल्ली आ गए। तीनों काजमी के यहां रुके हुए थे। अगले दिन काजमी की आल्टो में बैठकर तीनों ने इजरायल दूतावास के साथ-साथ नई दिल्ली रेंज इलाके का भ्रमण कर हमले की रूपरेखा तैयार की। उधर अफसर ईरानी ने करोल बाग के रहने वाले एक युवक के सहयोग से एक स्कूटी खरीदी। इसी स्कूटी का इस्तेमाल कार में स्टिकी बम लगाने के लिए प्रयोग में लाया गया था। अफसर से मलेशिया में बैठा उसका आका मसूद सम्पर्प में था। उधर मसूद की हां पर 14 फरवरी को बैंकाक और जॉर्जिया में हमला किया गया। इस हमले को मोरादी सईद और मोहम्मद काजी ने अंजाम दिया था। मोहम्मद काजी को बैंकाक पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वहीं मलेशिया पुलिस के हत्थे सभी धमाकों का मास्टर माइंड मसूद भी चढ़ गया। दिल्ली में हुए ब्लास्ट के 24 घंटे में इजरायल की जांच एजेंसी मोसाद की एक टीम दिल्ली पहुंच गई थी और लगातार जांच कर रही है। पुलिस सूत्रों के अनुसार मोसाद के एजेंट जल्द ही रिमांड पर चल रहे काजमी से पूछताछ कर सकते हैं। वहीं दिल्ली पुलिस पूरे मामले से परदा उठाने के लिए मलेशिया में गिरफ्तार मसूद से भी पूछताछ करने के लिए मलेशिया सरकार से सम्पर्प कर रही है। अब दिल्ली पुलिस सही कह रही है या यह सारी कहानी जबरन बनाई गई है, इसका फैसला तो अदालत में हो ही जाएगा। उम्मीद है कि सच्चाई की जीत होगी। वैसे दिल्ली पुलिस को यह केस अदालत में साबित करना होगा। इससे दिल्ली पुलिस की प्रतिष्ठा जुड़ चुकी है। यह मामला अब पूरी तरह इंटरनेशनल हो चुका है।
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Wednesday, 21 March 2012

पान सिंह तोमर ः एक यादगार फिल्म

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21 March 2012
अनिल नरेन्द्र
पिछले दिनों मैंने एक ऐसी फिल्म देखी जिसने मुझे भीतर तक हिला दिया और सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर पान सिंह तोमर जैसा व्यक्ति डाकू क्यों बना? मानना पड़ेगा कि फिल्मकार हिमांशु धूलिया एवं यूटीवी मोशन पिक्चर्स ने इरफान खान स्टाटर `पान सिंह तोमर' को एक महान फिल्म के रूप में रचा है। बड़ा लम्बा सफर तय किया है हिन्दी सिनेमा और बॉलीवुड ने, सिनेमाई बिरजूवाद से पान सिंह तोमर तक। बीच में अपने जीवनकाल में ही फूलन देवी सिनेमा में बैडिंट क्वीन भी हो गईं और लोकसभा की सदस्य भी। पता नहीं पान सिंह तोमर ने कहीं इसको ध्यान में रखते हुए ही फिल्म के आरम्भ में यह डायलाग कहा कि बीहड़ में तो बागी होते हैं और पार्लियामेंट में डकैत। आश्चर्य तो यह भी है कि सैंसर बोर्ड ने इस डायलाग को काटा नहीं। पान सिंह तोमर आमतौर पर कुख्यात डाकू मान सिंह, माधो सिंह की तरह चम्बल के डाकू नहीं थे। वह फौज में भर्ती एक सूबेदार थे। संयोग से 1981 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह हुआ करते थे। उनके कार्यकाल में ही डाकू मलखान सिंह और फूलन देवी ने आत्मसमर्पण किया था। इसी फूलन देवी ने आत्मसमर्पण किया था बाद में वह मारी गई। फूलन देवी को जब शेखर कपूर ने बैडिंट क्वीन बनाया तब हिमांशु धूलिया उनके सहायक हुआ करते थे। डाकुओं पर समय-समय पर फिल्में बनती रही हैं। ब्लैक एण्ड व्हाइट जमाने में जयराज डाकू बनते थे। राज कपूर की जिस देश में गंगा बहती है या सुनील दत्त की मुझे जीनो दो, गंगा-जमुना और यहां तक कि मदर इंडिया में भी सुनील दत्त ने एक बागी की भूमका निभाई। पान सिंह तोमर में फिल्म का नायक पान सिंह तोमर मुरैना के एक गरीब किसान परिवार का युवा है, जो भरपेट भोजन की खातिर फौज में भर्ती होता है। उसको खाने की इतनी आदत थी कि उसके साथियों ने कहा कि तुम सेना के खिलाड़ी विंग में ट्रांसफर करवा लो। उसके दौड़ने की प्रतिभा भी देखकर उसे एक धावक बनना होता है और घोड़ों की शक्ति आंकने वाली स्पर्धा के समान मनुष्य के लिए रची गई स्पर्धा को वह घोड़ों की गति और शक्ति के साथ निभाता है। उनके अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले पान सिंह के परिवार की जमीन दादागिरी करके छीन ली जाती है और जब पुलिस और प्रशासन से उसे कोई सहायता नहीं मिलती तो वह हथियार उठाने पर मजबूर हो जाता है। वह अन्याय का प्रतिकार करने पर विवश हो जाता है। पान सिंह के साथ आप हंसते हैं और आखिरकार आपको खेद होता है कि अन्याय के खिलाफ लड़ाई में उन्हें जान गंवानी पड़ी। आज के मस्ती मंत्र का जाप करने वाले युवा भी पान सिंह तोमर फिल्म को देखकर मुग्ध हो जाएंगे, क्योंकि फिल्मकार ने इतनी कमाल की रोचक फिल्म रची है कि आप एक क्षण के लिए भी पर्दे से अपनी निगाह नहीं हटा सकते। फिल्म के संवाद इतने हृदयस्पर्शी हैं कि आप पात्रों की भाषा बोलने लगते हैं। पान सिंह के पात्र में इरफान खान ने इतने जीवंत ढंग से प्रस्तुत किया है कि हर अभिनय सिखाने वाले संस्थान में इस पाठ्यक्रम की तरह पढ़ाया जाना चाहिए। इस फिल्म में इरफान खान का अभिनय उसी तरह यादगार रहेगा जिस तरह दिलीप कुमार का गंगा-जमुना में किया गया बेमिसाल अभिनय था। अभिनेत्री माही गिल को इस फिल्म में देखकर यह नहीं लगता कि वह पंजाब की कुड़ी है। वह चम्बल की बेटी ही लगती है। सभी को यह फिल्म देखनी चाहिए।
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ममता ने साबित कर दिया कि वह अपनी जिद की पक्की हैं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21 March 2012
अनिल नरेन्द्र
14 मार्च को दिनेश त्रिवेदी ने संसद में रेल बजट पेश किया था। इसमें उन्होंने यात्री किरायों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया था। इस प्रस्ताव को लेकर तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी इतनी खफा हुईं कि उन्होंने त्रिवेदी को तुरन्त पद से इस्तीफा देने को कह दिया। उन्होंने ऐलान किया कि त्रिवेदी ने कांग्रेस के कुछ नेताओं से साठगांठ करके यात्री किराया बढ़ाने का फैसला कर लिया है जबकि इस बारे में उन्होंने किसी भी स्तर पर पार्टी से मंत्रणा नहीं की। ऐसे में उन्होंने पार्टी का विश्वास खो दिया है। नाराज ममता ने उसी दिन प्रधानमंत्री को एक फैक्स भेज दिया था। इसमें कहा गया था कि दिनेश त्रिवेदी की जगह उनकी पार्टी से मुकुल रॉय को रेल मंत्री बना दिया जाए। चार दिन के हाई वोल्टेज ड्रॉमे के बाद दिनेश त्रिवेदी को अंतत इस्तीफा देना पड़ा जो स्वीकार भी हो गया है। दिनेश त्रिवेदी ने दरअसल वह काम किया जो पूर्ववर्ती रेल मंत्रियों, ममता बनर्जी खुद और लालू प्रसाद यादव के आठ साल से रेल यात्री किराया न बढ़ाने के फैसले की परम्परा तोड़कर किया। वैसे दिनेश त्रिवेदी एक अच्छे नेता हैं। 61 वर्षीय त्रिवेदी तृणमूल कांग्रेस के गठन से ही ममता के खास रहे हैं। उनकी वफादारी की वजह से ही उन्हें ममता ने अपनी जगह केंद्रीय कैबिनेट में दी। ममता ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री से पदोन्नत कर उन्हें अपनी जगह रेल मंत्री बनाया। त्रिवेदी राजनीति के आपराधिकरण के खिलाफ वर्षों से लड़ रहे हैं। उन्होंने कई जनहित याचिकाएं भी दायर कीं। वोहरा कमेटी की वजह से ही सूचना अधिकार कानून बन सका। यह समिति त्रिवेदी की कोर्ट में दायर याचिका की वजह से ही गठित की गई थी। अन्ना हजारे के पिछले पांच अप्रैल से जन्तर-मन्तर पर जब अनशन शुरू किया तो त्रिवेदी ने उन्हें पत्र भेजकर पद छोड़ने की इच्छा जताई थी। वह अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल से भी जुड़े रहे। इनसे दिनेश ने कहा कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मजबूती देने को तैयार हैं। राज्यसभा में दो बार चुने गए त्रिवेदी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में माकपा के हेवीवेट तारित टोपदार को बैरकपुर से हराया था। मूल रूप से कांग्रेसी त्रिवेदी वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल में भी शामिल हो गए थे। कोलकाता यूनिवर्सिटी से बी.कॉम, टैक्सास यूनिवर्सिटी से एमबीए किए दिनेश त्रिवेदी ने पायलट का लाइसेंस भी हासिल किया। दिनेश त्रिवेदी को रेलवे में यात्री किराये में बढ़ोतरी के अपने बहादुरी भरे फैसले के कारण अपना पद गंवाना पड़ा। त्रिवेदी के अपने रेल बजट में सभी श्रेणियों के रेल किराये में वृद्धि के प्रस्ताव का सबसे पहले विरोध उन्हीं के पार्टी के नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री सुदीप बंदोपाध्याय ने किया था। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री, दोनों ने ममता को बहुत समझाने की कोशिश की कि बजट खत्म होने दो फिर बदल देना पर ममता तैयार नहीं हुईं। चार दिनों तक सियासी ड्रॉमा होता रहा। विपक्ष को भी हथियार मिल गया सरकार को कठघरे में खड़ा करने का। दिनेश त्रिवेदी ने भी कह दिया कि मुझसे लिखकर इस्तीफा मांगा जाएगा तब दूंगा पर फिर जब ममता से उनकी फोन पर बात हुई तो वह इस्तीफा देने को तैयार हो गए। ममता ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह अपनी जिद की पक्की हैं और एक बार वह जो कुछ ठान लें, उसे पूरा करके ही मानती हैं। ऐसा करने की कीमत चाहे उन्हें कुछ भी चुकानी पड़े। अब मुकुल रॉय नए रेल मंत्री होंगे।
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