Thursday 10 July 2014

महत्वाकांक्षी बजट

नरेन्द्र मोदी सरकार के पहले रेल बजट में कल्पनाओं की उड़ान है तो पूर्व सरकारों की गलतियों से सबक लेने का लेखा-जोखा भी शामिल है। मोदी सरकार के बजट में जहां प्लेटफार्में को एयरपोर्ट की तरह अत्याधुनिक एवं यात्री सुविधाओं के लिए परिपूर्ण बनाने का संकल्प किया गया है वहीं यूपीए सरकार के दस वर्षें में रेलवे  की दुर्दशा की करुण कहानी भी सुनाई गई है। जहां वर्षें से बुलेट ट्रेन की कल्पना की जा रही थी  उसे मूर्त रूप देने के लिए मोदी सरकार ने शुरुआत कर दी है।
रेलवे की खस्ता हाल हकीकत पेश करते हुए रेल बजट के दौरान यह दो टूक शब्दों में कह दिया गया कि पूर्व के बजटों  में पस्तावित परियोजनाओं को पूरा करने की बात तो दूर, शुरू भी नहीं किया गया है। 30 वर्ष पूर्व राजीव सरकार द्वारा पस्तावित परियोजना का उदाहरण दिया गया है।  दरअसल मोदी सरकार ने महसूस किया है कि नीतिनिर्धारण और कार्यान्वयन की ओवरलैपिंग की भूमिका के कारण फिलहाल रेलवे बोर्ड का कार्य बोझिल हो रहा है। इसीलिए सरकार ने दोनों कार्यें को अलग-अलग करने का पस्ताव दिया है। अपने बजट में रेलमंत्री ने स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख किया कि खराब पबंधन के कारण परियोजनाओं का समय और लागत बढ़ जाने से जबर्दस्त नुकसान हो रहा है। इस नुकसान से बचाने के लिए ही रेलमंत्री ने रेलवे बोर्ड स्तर पर परियोजना पबंधन समूह की स्थापना करने का पस्ताव दिया। रेलमंत्री परियोजनाओं की शुरुआत और उनके समय पर पूरा होने को लेकर कितना चिंतित हैं, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए परियोजना निगरानी एवं समन्वय समूह के गठन का पस्ताव दिया।
किसी भी रेल बजट में समूचे क्षेत्र से उठ रही नई रेलों की मांग की संख्या उपलब्ध कराना संभव नहीं है फिर भी रेलमंत्री ने चुनावी राज्यों में सियासी पटरी बिछाने की कोशिश जरूर की है। महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ बिहार-यूपी पर ध्यान दिया गया है तो मुंबई में दो साल के भीतर 864 नई लोकल ट्रेनें देने का ऐलान किया गया है।
बहरहाल पिछले 10-12 वर्षें से रेलवे यूपीए के सहयोगी दलों के पास था। उन्होंने रेलवे की सेहत के बारे में कम अपने जनाधार के लिए परियोजनाओं की रस्म अदायगी की। पिछले दशक में 100 स्टेशनों के निर्माण की बात हुई किंतु  काम एक पर भी शुरू नहीं हुआ। इसलिए  इस बार सरकार ने अव्यावहारिक घोषणाएं करने से बचने का पयास किया है।
लब्बोलुआब यह है कि यदि बजट को निष्पक्षता एवं दुराग्रहरहित होकर पढ़ें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि मंत्री ने रेल बजट बनाने में बड़ी ही सावधानी बरती है, इसीलिए इसे  संतुलित, व्यावहारिक और दूरदशी आयामों वाला बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। रेलमंत्री ने रेलवे के विकास का ध्यान तो रखा ही है, यात्रियों की सुरक्षा एवं सुविधा पर भी ध्यान दिया है। रेल बजट पर पूरी तरह पधानमंत्री की महत्वाकांक्षी पवृत्तियों की छाप पड़ी है। बुलेट ट्रेन और ट्रेनों की गति बढ़ाने का मतलब ही महत्वाकांक्षी पवृत्ति की परिचायक है।

रेल बजट में जो भी महत्वाकांक्षी बातें की गई हैं, वे सब ठीक हैं किंतु सबसे बड़ा सवाल यह है कि रेलवे की कुल आय एक लाख 45 हजार करोड़ है और खर्च एक लाख 39 हजार करोड़ है। मतलब बचत सिर्फ 6 हजार करोड़ रुपए।  इतनी बचत में मोदी सरकार रेलवे के लिए देखे गए सपनों को भला पूरा कैसे करेगी? कहां से लाएगी रेलवे के आधुनिकीकरण और विश्वस्तरीय सुविधाओं के लिए राशि? सरकार ने एफडीआई और सार्वजनिक व निजी साझेदारी (पीपीपी) की बात की है यानि अतिरिक्त राशि जुटाने के लिए सरकार देशी-विदेशी निजी क्षेत्रों का सहयोग लेगी। सिर्फ कहने में बात बड़ी आसान है कि एफडीआई और पीपीपी से अतिरिक्त राशि जुटा लेगी सरकार किंतु सच तो यह है कि रेलवे का परिचालन अपने हाथ में रखते हुए एफडीआई ला पाना बहुत मुश्किल काम है।

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