Wednesday 23 July 2014

खुद को नाबालिग बताकर भारतीय कानूनों का फायदा उठाएं

भारत के खिलाफ कई आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुट लश्कर--तैयबा ने अब नई रणनीति जो अपनाई है वह हमारे लिए चिन्ता का विषय होनी चाहिए। बेकसूरों और मासूमों की निर्दयता से जानें लेने वाले अपने लड़ाकों को बचाने के लिए वह हमारे ही कानूनों को हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करना चाहते हैं। लश्कर ने जम्मू-कश्मीर में मौजूद अपने लड़ाकों से कहा है कि यदि वह भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा पकड़े जाएं तो अपनी उम्र 18 साल से कम बताएं, जिससे उन्हें कम से कम सजा भुगतनी पड़े। लश्कर की इस नई रणनीति का खुलासा गिरफ्तार किए गए आतंकी मोहम्मद नवेद जट ने किया। जट पूछताछ के दौरान लगातार अपनी उम्र 17 साल की बताता रहा लेकिन जांच में उसकी उम्र 22 साल निकली। पाकिस्तान के मुल्तान निवासी जट को पुलिस ने दक्षिण कश्मीर में पिछले महीने के तीसरे हफ्ते में गिरफ्तार किया था। उसने बताया कि वह अक्तूबर 2012 में छह लड़कों के साथ उत्तर कश्मीर के केरन सेक्टर से कश्मीर पहुंचा था। सेना के रिटायर्ड ड्राइवर के बेटे जट को लश्कर के मखौटा संगठन जमात-उद-दावा के कई मदरसों में ट्रेनिंग की दी गई थी।  जट पर दक्षिण कश्मीर में कई पुलिसकर्मियों की हत्या, सेना, पुलिस बल पर हमला, नेशनल कांफ्रेंस के विधान परिषद सदस्य की हत्या के प्रयास का आरोप है। पूछताछ में जट ने बताया कि सीमापार बैठे लश्कर आकाओं ने उसे अपनी उम्र 17 साल की बताने को कहा था। उसने बताया कि लश्कर ने अपने नए आतंकियों से कहा था कि उन्हें 18 साल से कम उम्र के लड़कों की तरह व्यवहार करना है ताकि उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत नहीं बल्कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला दर्ज हो। भारत में किशोर न्याय अधिनियम के तहत अधिकतम सजा तीन साल है। हालांकि अल्पवयस्क बच्चों से कानून कितनी कड़ाई से निपटेöएक बार फिर से यह मामला सुर्खियों में है। इस बार बाल और महिला मामलों की मंत्री मेनका गांधी ने इस संवेदनशील मुद्दे को न केवल उठाया है बल्कि उनका मंत्रालय इससे जुड़े कानून में असरदार बदलाव की कसरत में भी जुट गया है। राष्ट्रीय रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में अल्पवयस्क अपराधियों के हाथों किए जा रहे अपराधों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वर्ष 2003 से 2010 की अवधि में ऐसे कथित मासूम अपराधियों के हाथों की गई हत्या की वारदातें 465 से बढ़कर 1007 यानि इनमें 117 फीसद की बढ़ोतरी हुई। इसी अवधि में इनके द्वारा अंजाम दी जाने वाली बलात्कार की घटनाएं 466 से छलांग लगाकर 1884 हो गईं यानि 304 फीसद की वृद्धि। आंकड़े साफ तौर पर बताते हैं कि महज नाजुक उम्र का ख्याल कर गंभीर अपराधों में रियायत बरतना अब समाज के लिए बुरा सपना बनता जा रहा है। 16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार में सबसे अधिक हैवानियत दिखाने वाला एक अल्पवयस्क अपराधी है लेकिन विवश कानून उसे महज तीन वर्षों के लिए बाल सुधार गृह में भेजने से अधिक कुछ नहीं कर पाया था जबकि अन्य वयस्क साथियों को अदालत में मौत की सजा सुना दी गई थी। इससे भी बड़ी विडम्बना यह हुई कि इस अपराध के महज छह महीने बाद यह अल्पवयस्क बलात्कारी 18 साल पूरे कर वयस्कों की श्रेणी में आ गया। निर्भया के साथ हुई त्रासदी से टूट चुके उसके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट से इस अल्पवयस्क को भी वयस्कों की श्रेणी वाली सख्त सजा की गुहार लगाई थी पर वह ठुकरा दी गई। अब जब देश के दुश्मन भी इसी कमी का फायदा उठा रहे हैं तो क्या यह जरूरी नहीं  बनता कि अल्पवयस्कों से जुड़े कानून में ऐसे आवश्यक बदलाव किए जाएं जो इन अपराधी किशोरों के मन में कानून का खौफ पैदा कर सकें और इन्हें ऐसे अपराधों से दूर रखने में सहायक हों। उल्लेखनीय है कि अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे विकसित देशों में गंभीर अपराधों के मामलों में अल्पवयस्कों के साथ कोई विशेष रियायत नहीं बरती जाती। अपने देश में अनेक मामले ऐसे देखे गए हैं जिनमें अल्पवयस्क अपराधी को कानून की इस कमजोरी का पता होता है और वह जमकर इसका दुरुपयोग करते हैं। अब तो लश्कर--तैयबा भी इसका फायदा उठाने के चक्कर में है, इसलिए बेहतर होगा कि ऐसे अपराधों के लिए 16 से 18 वर्ष का एक वर्ग बनाया जाए और अपराध की प्रकृति को नजर में रखते हुए सजा दी जाए। वैसे भी जब अल्पवयस्क ऐसे गंभीर अपराध करते हैं (निर्भया केस) तो वह कहां का किशोर रह गया?

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