Sunday 6 July 2014

दिल्ली में भाजपा का तेजी से गिरता ग्रॉफ

राजधानी दिल्ली में भाजपा नेता व कार्यकर्ता जनता से आजकल नजरें बचाए घूम रहे हैं। रेल किराये में  बेमौसम की गई वृद्धि और खाद्य पदार्थों की बढ़ी कीमतों का जवाब किसी भी भाजपाई के पास नहीं है। सिर्प सवा महीने पहले जिन नेताओं से मिलने की लोगों में  लालसा थी, मोदी सरकार में  बढ़ी महंगाई ने उन्हें कटाक्ष का पात्र बना दिया। यह उस दिल्ली का हाल है जहां पर भाजपा सातों की सातों लोकसभा सीटें जीती थी। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी द्वारा बार-बार यह दोहराना कि अच्छे दिन आने वाले हैं, आजकल इस जुमले का विपक्षी जबरदस्त प्रचार कर रहे हैं। कुल मिलाकर यह जुमला लगातार भाजपा पर भारी पड़ रहा है। यदि भाजपा रणनीतिकारों ने इसकी काट नहीं ढूंढी तो लोगों के अच्छे दिन आएं या नहीं आएं लेकिन आने वाले महीनों में विधानसभा चुनावों के दौरान शायद भाजपा के अच्छे दिन पलट जाएं। हाल  ही में सबसे अधिक वोट पाने के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा के विधायकों को तत्काल चुनाव में उतरना पड़े तो उनके हाथ से कुर्सी खिसक सकती है। केंद्र में सरकार बनने के बाद भी दिल्ली की सरकार गठन के मामले पर अब तक राजनीतिक दलों ने पत्ते साफ नहीं किए हैं लेकिन हाल में आए एक सर्वेक्षण में भाजपा की हालत दिल्ली में पतली हुई है। सूत्र बताते हैं कि हर विधानसभा के हिसाब से हाल ही में करीब 40 हजार लोगों पर सर्वे किया गया है। इसमें भाजपा का ग्रॉफ एकाएक नीचे गिरा है। इसकी बड़ी वजह उपभोक्ताओं को मिलने वाली बिजली छूट का खत्म होना, महंगाई बढ़ना, डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ना और रेल  किराये में हुई बढ़ोत्तरी शामिल है। अगर इस स्थिति में भाजपा को चुनाव में जाना पड़े तो इसका सीधा लाभ आम आदमी पार्टी को मिलेगा। क्योंकि कांग्रेस को भी महंगाई की वजह से ही सत्ता गंवानी पड़ी थी। यही वजह है कि भाजपा विधायक नहीं चाहते हैं कि जल्द विधानसभा चुनाव हों। जनता में इस बात का भी रोष फैल रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले महंगाई को लेकर यूपीए सरकार की दलीलों की खिल्ली उड़ाने वाली भाजपा सरकार भी उन्हीं दलीलों को दोहरा रही है। महंगाई रोकने के उपाय तलाशने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही। जमाखोरी, मानसून की कमी इत्यादि-इत्यादि वही दलीलें दी जा रही हैं जो मनमोहन सरकार देती थी। सियासी स्थिति को भांपते हुए अरविन्द केजरीवाल एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। लोकसभा चुनाव में अपनी सियासी चमक दिखाने में असफल साबित हुए सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में अपनी खोई ताकत को वापस पाने की कोशिश में मुस्तैदी से जुट गए हैं। वह राष्ट्रपति, उपराज्यपाल से मिलकर जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से बृहस्पतिवार को की गई मुलाकात भी उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि पहले सरकार बनाने की पहल करने वाली आप अब चुनाव क्यों कराना चाहती है? सियासी गलियारों में चर्चा यह हो रही है कि यदि भाजपा शासित केंद्र सरकार ने आम चुनाव के तुरन्त बाद दिल्ली की विधानसभा भंग कर चुनाव कराने की घोषणा कर दी होती तो इसका जबरदस्त फायदा मिलता। लेकिन दिल्ली के सियासी हालात तेजी से बदल रहे हैं। गर्मी के महीनों में बिजली-पानी की जबरदस्त किल्लत के बाद अब शहर में महंगाई का ग्रॉफ तेजी से बढ़ रहा है। पेट्रोल-डीजल और गैस सिलेंडर की महंगाई के अलावा आलू-प्याज सरीखी खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें भी सरकार के लिए मुसीबत बन रही हैं। कुल मिलाकर धीरे-धीरे ऐसा माहौल बन रहा है जो भाजपा के लिए परेशानी का सबब है। सियासी जानकारों का कहना है कि बिजली-पानी को लेकर कांग्रेस ने शहर में भले ही धरना-प्रदर्शन कर सियासी माहौल को गरमा दिया है लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली वालों ने कुछ ही महीनों पहले इसी महंगाई, बिजली-पानी की किल्लत व घोटालों को लेकर कांग्रेस को नकारा है। पहले विधानसभा में और फिर लोकसभा चुनाव में। ऐसे में वर्तमान सियासी हालात का फायदा कांग्रेस को मिलने की सम्भावना नहीं दिखती। चर्चा इस बात की हो रही है कि यदि केंद्र व दिल्ली सरकार के आगामी बजट से दिल्ली के लोगों को कुछ ठोस हासिल नहीं हुआ है तो केजरीवाल और उनकी आप की स्थिति मजबूत होगी। शायद यही वजह है कि अरविन्द केजरीवाल अब चुनाव की बात करने लगे हैं।

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