Tuesday 15 July 2014

हर हालत में सोनिया गांधी को चाहिए नेता विपक्ष का पद?

लोकसभा में नेता विपक्ष का पद हासिल करने के लिए छटपटा रही कांग्रेस कभी राष्ट्रपति के दरबार पहुंच रही है तो कभी अदालत में जाने की बात कर रही है। वैसे कांग्रेस ने औपचारिक तौर पर लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष अपनी दावेदारी पेश कर दी है। लोकसभा में 10 फीसद सीट जीतने तक नाकाम रही कांग्रेस ने स्पीकर को 60 सांसदों के हस्ताक्षर वाला ज्ञापन सौंपा है। लेकिन स्पीकर की अदालत में अपना दावा पेश करने में कांग्रेस की ओर से जो समय लगा उससे साफ है कि कांग्रेस का केस कमजोर है। दरअसल स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि 55 सीटों से कम संख्या वाले किसी सियासी दल को लोकसभा का नेता विपक्ष का पद हासिल हुआ हो। चुनावों में सबसे शर्मनाक प्रदर्शन के बाद लोकसभा में नेता विपक्ष पद के लायक हैसियत तो पार्टी बचा नहीं सकी। फिर भी वह इस पद के लिए संघर्ष छेड़े हुए है। हालत यहां तक पहुंच गई है कि संसदीय समितियों के अध्यक्ष पद तक के लिए कांग्रेस को लॉबिंग करनी पड़ रही है। मौजूदा 44 लोकसभा सदस्यों के लिहाज से कांग्रेस के खाते में  लोकसभा की तीन संसदीय समितियों के अध्यक्ष पद आते हैं। मगर कांग्रेस लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के साथ-साथ चार संसदीय समितियों के अध्यक्ष पद के लिए सरकार पर दबाव बना रही है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद कांग्रेस को देने से साफ मना कर दिया है। कांग्रेस संसदीय इतिहास को भूल रही है। पंडित जवाहर लाल नेहरू काल में किसी विपक्षी दल को यह पद हासिल नहीं हुआ। 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद गठित कांग्रेस के राम सुमग सिंह को यह पद पहली बार 10 प्रतिशत की सदस्य अर्हता के आधार पर ही हासिल हुआ था। अभी कांग्रेस अपनी दावेदारी के पक्ष में जिस 1977 के अधिनियम का जिक्र कर रही है उसमें नेता विपक्ष के वेतन, भत्तों का जिक्र तो है लेकिन नेता विपक्ष के चयन के मापदंड पर स्पष्टता नहीं है। फिर सवाल यह भी उठता है कि यदि 1977 का अधिनियम वर्तमान में कांग्रेस की दावेदारी को पुष्ट करता है तो खुद कांग्रेस ने 1980 और 1984 में गठित लोकसभाओं में सबसे बड़े विपक्षी दल को नेता विपक्ष का पद क्यों नहीं दिया? केंद्र में मोदी सरकार के तानाशाह रवैये से खुंदक में आईं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने रणनीतिकारों को निर्देश दिया है कि वह लोकसभा में विपक्ष के नेता का  पद हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दें। इसके लिए भले ही संसद के बाहर उन्हें अदालत का दरवाजा भी क्यों न खटखटाना पड़े। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि स्पीकर उनकी मांग पर गम्भीरता से विचार करेंगी। शर्मा ने मोदी सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि वह लोकतांत्रिक परम्पराओं को ध्वस्त करने पर तुली है, इसलिए लोकपाल, सीवीसी इत्यादि महत्वपूर्ण पदों की नियुक्ति में वह विपक्ष को शामिल नहीं करना चाहती ताकि वह अपनी मर्जी और मनमानी कर सके। सरकार की नीयत में खोट है। कुछ विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि भारत सरीखे लोकतंत्र में नेता विपक्ष का पद रिक्त नहीं होना चाहिए। लिहाजा सबसे बड़े विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस को यह पद मिलना चाहिए। सरकारी तौर पर इस तर्प में दम तो नजर आता है पर यह बात न्यायोचित तब होती जब कांग्रेस की सदस्य संख्या अन्य विपक्षी दलों के मुकाबले बहुत अधिक होती। लेकिन ऐसा तो है नहीं। अभी यदि 44 सांसदों वाली कांग्रेस को यह पद दिया जाता है तो ऐसा करना उससे मामूली तौर पर पीछे रही 37 सांसदों वाली अन्नाद्रमुक और 34 सांसदों वाली तृणमूल के साथ अन्याय होगा। यदि फिर भी नेता विपक्ष की कुर्सी भरनी ही है तो यह उस पार्टी को मिलना चाहिए जिसे सबसे ज्यादा विपक्षी सांसदों का समर्थन प्राप्त हो। यदि आवश्यक हुआ तो इसके लिए विपक्षी सदस्यों में मतदान भी कराया जाना चाहिए। बेशक ऐसी कोई परम्परा नहीं रही है लेकिन यह बात भी सही है कि हाल के वर्षों में किसी दूसरे सबसे बड़े दल की हालत इतनी पतली भी नहीं रही। उम्मीद की जाती है कि जल्द यह मसला सुलझ जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

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