Thursday 3 July 2014

दो रुपए के विवाद में दरोगा ने किया छात्रों का एनकाउंटर

महज दो रुपए के टेलीफोन बिल के विवाद में 12 साल पहले बिहार पुलिस ने डकैत बताकर तीन छात्रों को फजी मुठभेड़ में मार दिया था। गत मंगलवार को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने पटना के एक थाना पभारी को फांसी की सजा सुनाई। एक सिपाही व छह व्यापारियों को मरते दम तक उम्रकैद की सजा दी गई। पटना के तदर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रविशंकर सिन्हा ने घटना को विरल से विरलतम (रेयर ऑफ दी रेयरेस्ट) माना है। पदेश में पहली बार फजी मुठभेड़ कांड में आरोपित थाना पभारी शम्से आलम को मौत की सजा सुनाई है। मामला 28 दिसंबर 2002 का है। विकास रंजन, पशांत और हिमांशु फोन करने के लिए आशियाना नगर के पास सम्मेलन मार्केट गए थे। यहां एसटीडी बूथ संचालक कमलेश ने उनसे दो रुपए ज्यादा ले लिए। इस पर उनका विवाद हो गया। कमलेश ने अन्य व्यापारियों के साथ मिलकर तीन छात्रों की जमकर पिटाई कर दी। इसके बाद दुकानों के शटर गिराकर शास्त्राr नगर थाना पुलिस को सूचना दी गई। यह घटना शाम चार बजे की है। पुलिस ने हार्डवेयर इंजीनियरिंग के छात्र विकास रंजन यादव, आरपीएस कॉलेज के  छात्र पशांत सिंह और जाकिर हुसैन के बीएससी पथम वर्ष के छात्र हिमांशु यादव को कुख्यात अपराधी बताते हुए दरोगा ने व्यापारियों के साथ सांठगांठ कर तीनों छात्रों को फजी मुठभेड़ में मार डाला। दरोगा शम्से आलम ने तीनों छात्रों को अपनी सरकारी रिवाल्वर से नजदीक से गोली मारकर हत्या कर दी। दरोगा ने इस घटना को निजी लाभ और इनाम पाने के लालच में अंजाम दिया। दरोगा उन छात्रों को इलाज के लिए अस्पताल नहीं ले गया। तदर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रविशंकर सिन्हा ने फजी मुठभेड़ कांड में फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की। जज ने कहा कि दरोगा ने फजी तरीके से छात्रों के पास से दो देसी पिस्तौल और गोली की बरामदगी दिखाई। दरोगा के निर्देश पर कास मोबाइल के सिपाही अरूण कुमार सिंह ने वायरलेस पर सूचना दी कि तीन कुख्यात अपराधी फोन बूथ में डकैती करने के दौरान एनकाउंटर में मारे गए। मौत की सजा की पुष्टि के लिए अदालत मामले को हाई कोर्ट भेजेगी। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से सजा पर मुहर लगाने के लिए स्टेट अपील दायर करेगी। कोर्ट ने दोषी दरोगा व सिपाही पर 60-60 हजार और छह दुकानदारों पर 15-15 हजार रुपए का जुर्माने भी लगाया। कोर्ट ने कहा कि जुर्माना की राशि घटना में मारे गए तीन छात्रों के परिवार वालों को दी जाएगी। यदि दोषी जुर्माना नहीं देते हैं तो उन्हें एक से दो माह कैद की सजा भुगतनी पड़ेगी। इससे पहले बेउर जेल में बंद शम्से आलम व अन्य आरोपियों को सजा सुनाने के लिए अदालत में 12 बजे कड़ी सुरक्षा के साथ पेश किया गया। दरोगा समेत आठों आरोपित फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दर्ज करा सकते हैं। दिन के 12 बजते ही दोषियों को कड़ी चौकसी में अदालत में पहुंचाया गया। कठघरे में 26 मिनट तक सभी खड़े रहे। 12.22 पर न्यायाधीश ने सजा सुनानी शुरू की। मुजरिम खामोश थे। शायद सोच रहे होंगे कि उन्होंने यह क्या किया?

-अनिल नरेंद्र

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