Tuesday, 8 July 2014

बजट सत्र सुचारु रूप से चलाना सरकार की बड़ी चुनौती है

सारे देश की नजरें सोमवार से शुरू हुए संसद के बजट सत्र पर टिकी हुई हैं। एक माह से अधिक चलने वाले इस सत्र में दोनों रेल बजट और 2014-15 के लिए केंद्रीय बजट पेश किया जाएगा। सारे देश को इस सत्र की प्रतीक्षा कई कारणों से है। यह नरेन्द्र मोदी सरकार का पहला रेल बजट और सालाना बजट होगा। एक महीने पुरानी मोदी सरकार के इस बजट सत्र में विपक्ष द्वारा महंगाई से लेकर नेता विपक्ष जैसे मुद्दे उठाने की सम्भावना है। महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने की तैयारी में है। कांग्रेस भाजपा को घेरने के लिए महंगाई को सबसे बड़ा मुद्दा मान रही है। कांग्रेस में तो यहां तक चर्चा है कि अगर उसे विपक्ष के नेता का दर्जा लोकसभा में नहीं मिलता है तो पार्टी महंगाई के मुद्दे पर आक्रामक हो सकती है। यह सही है कि हाल में कुछ खाद्य पदार्थों के दाम बढ़े हैं लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सरकार अपने स्तर  पर मूल्यवृद्धि पर लगाम लगाने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही है। इसी तरह यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि संसद सुचारु रूप से चले। संसद को सुचारु रूप से चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। इस बैठक में विपक्षी दलों ने जो मुद्दे उठाए, विशेष रूप से महंगाई का मुद्दा, उस पर सरकार बहस कराने के लिए तैयार दिख रही है। बदलते सियासी माहौल में संसद में नए समीकरण भी नजर आएंगे। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस और वाम दल जद (यू), आरजेडी कई मुद्दों पर एक साथ नजर आएंगे। महंगाई पर कांग्रेस और वाम दलों ने मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस और वाम दलों दोनों ने हाथ मिलाया है। दोनों ने एक सुर में मनरेगा खाद्य सुरक्षा विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मोदी सरकार के रुख की कड़ी निन्दा की है। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने कहा कि लोगों को अच्छे दिन का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार मानती है कि लोगों का खानपान बेहतर होने की वजह से महंगाई बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि मनरेगा से लाखों लोगों को रोजगार मिला मगर मोदी सरकार कह रही है कि इस पर ज्यादा खर्च होने की वजह से देश में आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं। मोदी सरकार के सामने अपना पहला संसद का बजट सत्र सुचारु और शांतिपूर्ण ढंग से चलाने की चुनौती है। समस्या यह है कि राजनीतिक दल जब सत्ता में होते हैं तब उनका व्यवहार कुछ और होता है और वही लोग जब विपक्ष में आ जाते हैं तो उनका व्यवहार बिल्कुल बदल जाता है, कभी-कभी विपरीत हो जाता है। रेल किराये में वृद्धि पर भी सरकार घिरेगी। कम संख्या होने के कारण कांग्रेस संसद के अन्दर और  बाहर दोनों जगहों पर सरकार को चुनौती देगी। देश को मोदी सरकार के पहले बजट से बहुत उम्मीदें हैं। अत्यंत खराब अर्थव्यवस्था को नए सिरे से गति देने की सख्त जरूरत है, इसलिए भी कि तीन दशक बाद बहुमत के साथ शासन में आए सत्तापक्ष और हाशिये पर लग गए विपक्ष के बीच कैसा तालमेल देखने को मिलता है उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। सरकार ने कहा है कि वह सबको साथ लेकर चलना चाहती है पर विपक्ष के तेवर और ही संकेत दे रहे हैं। देखें, यह संसद सत्र कैसा चलता है?

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