Wednesday 30 July 2014

गडकरी की जासूसी ः सत्य क्या है सामने आना चाहिए?

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और मोदी सरकार में दो बड़े मंत्रालयों की जिम्मेदारी सम्भाल रहे नितिन गडकरी की जासूसी की खबर से राजनीतिक गलियारों में हड़कम्प मच गया है। गडकरी ने इसे काल्पनिक और मनगढ़ंत करार दिया है लेकिन विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सामान्यत मुंह बंद रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी मामले की जांच की मांग कर दी। क्या है मामला ः एक साप्ताहिक पत्रिका की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हाल में गडकरी के 13, तीन मूर्ति लेन आवास के बैडरूम में जासूसी उपकरण लगे होने का पता चला। इन उपकरणों में बातें सुनने वाले उच्च क्षमता के खुफिया उपकरण (हाई पॉवर लिसनिंग डिवाइस) भी शामिल हैं। गडकरी ने इसे कोरी कल्पना करार देते हुए साफ इंकार किया है कि उनके घर से कोई डिवाइस नहीं मिला। आमतौर पर ऐसे जासूसी उपकरणों का उपयोग पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियां करती हैं। ऐसे में सवाल यह है कि गडकरी के घर इतना उम्दा किस्म का जासूसी उपकरण अगर फिट किया गया तो यह किसने और क्यों किया? उन्हीं की पार्टी के डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है कि यह जासूसी यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान की गई। ऐसे में शक की सुई कई ओर घूम रही है। यह भी कहा जा रहा है कि शायद प्रधानमंत्री कार्यालय ही मंत्रिमंडलीय सहयोगियों पर पूरा विश्वास नहीं कर पा रहा है। ऐसे में दिग्गज मंत्रियों की जासूसी शुरू की गई है। यह अलग बात है कि छपी रिपोर्ट के बाद गडकरी ने ट्विट किया कि इस खबर में कोई दम नहीं, यह मनगढ़ंत और बेबुनियाद है। गडकरी ने अपने ट्विटर संदेश में कहा कि उन्हें खुद जानकारी नहीं है कि उनके घर में किसको यह डिवाइस मिला। यह अफवाह सनसनी फैलाने के लिए मीडिया में फैलाई जा रही है। वैसे यह मामला जितना रहस्यमय है उतना ही चौंकाने वाला भी है। गडकरी के इस खंडन के बावजूद सरकारी स्तर पर इस मामले में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया। गडकरी के जासूसी मामले में फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि इसमें कितनी सच्चाई है। इससे पहले भी जासूसी की कई घटनाओं की खबर मीडिया में आई। जुलाई 2014 ः एनएसए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन द्वारा लीक दस्तावेजों से खुलासा हुआ था कि अमेरिका ने छह राजनीतिक दलों की जासूसी कराने की अनुमति दी थी। इनमें भाजपा भी शामिल थी। फरवरी 2012 ः तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी के ऑफिस में मिलिट्री इंटेलीजेंस के निरीक्षण के दौरान फोन टेपिंग के उपकरण मिले। बाद में हालांकि सरकार ने इसका खंडन कर दिया। जून 2011 में तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शिकायत की थी कि उनके कार्यालय की जासूसी कराई जा रही है। कहा गया कि गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के इशारे पर ऐसा करवाया गया। हालांकि बाद में दोनों पक्षों ने इसे खारिज कर दिया। नवम्बर 2010 में एक अंग्रेजी पत्रिका द्वारा प्रकाशित टेलीफोन बातचीत ने भारतीय सियासत में भूचाल ला दिया। इसमें कारपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया को बड़े-बड़े नेताओं, उद्योगपतियों और मीडिया के नामचीन लोगों के साथ Šजी स्पेक्ट्रम पर सौदेबाजी करते हुए पाया गया। इस सन्दर्भ में इस खबर की अनदेखी नहीं की जा सकती कि भले ही भारत सूचना तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी अहमियत रखता हो, लेकिन इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि अभी ऐसा तंत्र विकसित नहीं किया जा सका है जिससे विदेशी खुफिया एजेंसियां अथवा हैकर्स हमारे गोपनीय मामलों तक न पहुंच सकें। रह-रह कर ऐसे मामले सामने आते ही रहते हैं जो महत्वपूर्ण दस्तावेजों तक किसी न किसी के अनाधिकृत रूप से पहुंच जाने की सच्चाई सामने लाते हैं और जब भी ऐसा होता है तो पक्ष-विपक्ष की ओर से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। ऐसे मामलों की न केवल पूरी सच्चाई ही सामने आनी चाहिए बल्कि ऐसी व्यवस्था भी की जानी चाहिए जिससे ताकझांक की इस प्रवृत्ति पर कारगर तरीके से अंकुश लगे। चूंकि श्री मनमोहन सिंह ने इस पर टिप्पणी की है इससे लगता है कि कांग्रेस इस मामले को आगे बढ़ाएगी। सरकार को चाहिए कि वह इस पर प्रभावी जवाब दे और सत्य को सामने लाए।

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