Sunday, 27 July 2014

चिकित्सा व्यवस्था में चल रहे गोरख धंधे पर हर्षवर्धन ने उठाई आवाज

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने ऐसी समस्या पर हाथ डाला है जिसका सीधा संबंध राजधानी के आम आदमी से जुड़ता है। यह इसलिए भी सराहनीय है कि डाक्टर साहब ने खुद डाक्टर होते हुए इसको उठाया है। मामला है डाक्टरों और पैथोलॉजी जांच सेंटर की मिलीभगत का। पैथोलॉजी लैब का मतलब है खून व अन्य टेस्ट करने वाली जांच एजेंसी। यह मिलीभगत इतनी गहरी हो चुकी है कि मरीजों को छोड़िए खुद जो ईमानदार डाक्टर हैं वह भी इस मिलीभगत से परेशान हो चुके हैं। चूंकि डॉ. हर्षवर्धन दिल्ली के जाने-माने डाक्टर हैं जो हजारों मरीज देखते हैं तो उन्हें पता है इस गोरख धंधे का। मरीज डाक्टर के पास अपनी समस्या लेकर जाता है तो डाक्टर तरह-तरह की जांच कराने को कह देते हैं। कई बार यह जरूरी होती है अधिकतर समय इसकी जरूरत नहीं होती। पैथ लैब जो बिल बनता है जो आमतौर पर मोटा होता है उसमें से पहले से डाक्टर की कमीशन उसे पहुंचा दी जाती है। डॉ. हर्षवर्धन ने यह मामला लोकसभा में भी उठाया है। उन्होंने कहा कि बीमार लोगों की गैर-जरूरी जांच लिखी जाती है ताकि जांच सेंटर का बिजनेस बढ़े और वह बिल में से डाक्टर को कमीशन दे सके। स्वास्थ्य मंत्री ने माना कि इस गोरख धंधे के कारण डाक्टर और पैथ लैब दोनों अनुचित मुनाफा कमा रहे हैं। ज्यादा समय नहीं हुआ जब खबर आई थी कि दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कुछ हृदय रोग विशेषज्ञों ने सोसायटी फॉर लेस इन्वेस्टीगेशन मेडिसिन (सिल्म) नामक पहल शुरू की है जिसका मकसद अत्याधिक जांच कराने की व्यापक बुराई का मुकाबला करना है। इस पहल से जुड़े डाक्टरों ने कहा कि वह जांच संबंधी ऐसे दिशानिर्देश और प्रक्रिया तय कर रहे हैं जिसमें इसका ब्यौरा होगा कि किस परिस्थिति में किस प्रकार की जांच जरूरी है। डाक्टरों और अस्पतालों में भी मिलीभगत चल रही है। बड़े-बड़े अस्पताल डाक्टरों को बाकायदा सालाना पैकेज देते हैं जो लाखों में होता है। इसके एवज में डाक्टरों को सालाना तयशुदा मरीज और बिजनेस देना होता है। जरूरत न भी होने पर डाक्टर अपने लालच को पूरा करने के लिए कभी-कभी जबरन मरीज को अस्पताल में भर्ती होने को कह देते हैं। एक बार मरीज अस्पताल पहुंच गया समझो उसका तो बैंड बज गया। पहुंचते ही सबसे पहला काम यह अस्पताल करते हैं कि मरीजों को रुपए जमा करने को कहते हैं। उसका इलाज ही तब होता है जब वह डिपाजिट दे देता है। दिल्ली के निजी अस्पतालों में इलाज इतना महंगा हो गया है कि गरीब आदमी तो छोड़िए मिडिल क्लास के लोग भी यहां उपचार नहीं करा सकते। यह भी पता चला है कि डाक्टरों और कैमिस्टों में भी साठगांठ होती है। डाक्टर मरीज को खास कैमिस्ट के पास भेजते हैं जो महीने बाद डाक्टर को कमीशन देते हैं। डाक्टरों की फीस इतनी बढ़ गई है कि गरीब आदमी का तो पसीना छूट जाता है, इसलिए भी झोलाछाप डाक्टरों की सेवा लेनी पड़ती है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार ऐसी निगरानी की व्यवस्था करने पर विचार कर रही है जिसमें पैथोलॉजी लैब की डाक्टरों से मिलीभगत और जांच की दरें तय करने में उनके द्वारा गुट बनाकर काम करने की प्रवृत्तियों पर रोक लगाई जा सके। स्लिम पहल से जुड़े डाक्टरों ने कहा था कि विज्ञापन की ताकत के जरिये सालाना पूरी जांच कराने जैसी गैर-जरूरी बातें लोगों के दिमाग में बिठाई गई हैं जबकि अध्ययनों का निष्कर्ष है कि इससे बीमारियों को रोकने में कम ही मदद मिलेगी। एक और बड़ी शिकायत प्राइवेट क्लिनिकों में डाक्टरों के लिए न्यूनतम कमाई की शर्त तय करना है जिसकी वजह से डाक्टर अनावश्यक जांच लिखते हैं और मरीजों को जरूरत से ज्यादा समय तक अस्पतालों में भर्ती रखते हैं। अगर मरीज अस्पताल से इलाज का पूरा ब्यौरा मांगे तो अस्पताल मना कर देते हैं। हाल ही में एक ऐसा केस सामने आया है। खुफिया एजेंसी रॉ की पूर्व अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ने इंस्टीट्यूट ऑफ बिहैवियर एंड एलाइड साइंसेस से अपने चिकित्सा रिकार्ड की मांग की थी जहां वह दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर भर्ती हुई थीं। संस्थान ने यह रिकार्ड देने से मना कर दिया और कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(एच) का हवाला दिया। इस धारा के तहत कोई प्राधिकार ऐसी सूचना अपने पास रख सकता है जिसमें जांच में अवरोध पैदा हो। इस दलील को खारिज करते हुए सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्य ने कहा कि मरीजों को संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत अपना चिकित्सा रिकार्ड हासिल करने का अधिकार है और प्रतिवादी का यह कर्तव्य है कि वह इसे मुहैया कराए। उन्होंने कहा कि सूचना आयोग सरकारी और निजी अस्पतालों के खिलाफ मरीजों को सूचना हासिल करने को लेकर इस अधिकार को बहाल कर सकता है। अस्पतालों का यह कर्तव्य है कि वह सूचना के अधिकार कानून 2005, उपभोक्ता सुरक्षा कानून 1996, चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 तथा वैश्विक चिकित्सीय मूल्यों के तहत सूचना मुहैया कराए। यह अच्छी बात है कि डॉ. हर्षवर्धन ने इन समस्याओं के प्रति जागरुकता तो दिखाई है और हम उम्मीद करते हैं कि वह मेडिकल क्षेत्र में आई बुराइयों को गम्भीरता से दूर करने का प्रयास करेंगे। गरीब आदमी को सस्ता और सही इलाज मिले यह मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में से एक होनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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