Friday, 18 July 2014

वैदिक को बताना होगा, किस मकसद से हाफिज सईद से मुलाकात की


भारत के मोस्ट वांटेड आतंकी और जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद से दो जुलाई को भारतीय पत्रकार वेद प्रताप वैदिक की पाकिस्तान में हुई मुलाकात से देशभर में भारी हंगामा हो रहा है। कहीं वैदिक का पुतला जलाया जा रहा है तो कहीं उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो रहा है। वैदिक जी ने सही किया, क्या एक पत्रकार को किसी भी व्यक्ति भले ही वह आतंकी हो से मिलने का अधिकार है या नहीं, इन सब पर टिप्पणी करने से पहले मैं कुछ महत्वपूर्ण बातें करना जरूरी समझता हूं। श्री वैदिक का मैं बहुत सम्मान करता हूं। उनके साथ हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं। मेरे दादा जी महाशय कृष्ण जी, ताऊ जी वीरेन्द्र जी और पिता जी स्वर्गीय के. नरेन्द्र जी सभी के वैदिक जी से रिश्ते थे। वही रिश्ते मेरे भी हैं। मुझे बड़ी पीड़ा हो रही है श्री वैदिक के बारे में टिप्पणी करने में पर यहां सवाल जान-पहचान, रिश्तेदारी का नहीं यहां सवाल देशहित का है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि एक पत्रकार को किसी से भी मिलने पर चाहे वह आतंकी ही क्यों न हो कोई पाबंदी नहीं। मुझे याद है कि वीरप्पन, नक्सलियों से पत्रकारों की मुलाकात होती रही है और पत्रकारों को इसके लिए कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला गया और देश की शीर्ष अदालत ने पत्रकार को सही माना और रिहा किया पर उन्होंने वीरप्पन या नक्सलियों से जो बातचीत की उसका पूरा ब्यौरा छापा। वह बात तो समझ में आती है पर वैदिक जी ने इंडियाज मोस्ट वांटेड से क्या बात की, इसका न तो कोई साक्षात्कार किसी समाचार पत्र में छापा और न ही सईद के साथ हुई बातचीत का कोई ऑडियो-वीडियो टेप ही जारी किया। जब आपने न छापा और न ही ट्रांसक्रिप्ट दिया तो यह कैसे पता चले कि आपन हाफिज सईद से क्या बातें कीं? क्यों कीं? आपका बातचीत करने के पीछे उद्देश्य क्या था, मकसद क्या था? मुंबई हमले के मास्टर माइंड सईद से किसी भारतीय पत्रकार की मुलाकात सामान्य बात नहीं है। इसमें आईएसआई की भूमिका भी रही होगी। क्योंकि हाफिज सईद न केवल इंडियाज मोस्ट वांटेड ही है बल्कि अमेरिका की आतंकी लिस्ट में शामिल है जिस पर भारी-भरकम इनाम रखा गया है। हाफिज सईद की सुरक्षा पाकिस्तानी सेना व वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई करती है। आईएसआई की मर्जी के बिना सईद किसी भारतीय या अन्य विदेशी पत्रकार से मिल ही नहीं सकता। वैदिक की सईद से मुलाकात कराने में आखिर किसकी कोशिश रंग लाई? इस मुलाकात के लिए या तो पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकारों ने कोशिश की होगी या भारतीय उच्चायुक्त ने मदद की होगी, क्योंकि वैदिक को भारतीय उच्चायुक्त का अच्छा खासा प्रोटोकॉल मिला हुआ था जो आमतौर पर किसी भारतीय पत्रकार को नहीं मिलता। चाहे वह कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो। इस मुलाकात से यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या वैदिक ने सईद को भारत सरकार का कोई संदेश दिया या सईद ने वैदिक के जरिये भारत सरकार को कोई संदेश भेजा है? हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दो टूक कहा है कि श्री वैदिक भारतीय दूत बनकर नहीं गए और न ही सरकार का इससे कुछ लेनादेना है और न ही वैदिक ने जाने से पहले सरकार को बताया और न ही आने के बाद कोई जानकारी दी। खुद श्री वैदिक ने सफाई दी है कि मैं सरकारी दूत बनकर सईद से नहीं मिला। उन्होंने कहा कि वह सरकार या बाबा रामदेव के नौकर नहीं हैं। उनके सभी से पत्रकारिता के नाते सम्पर्प हैं। उन्होंने तो यह भी सवाल उठाया कि क्या किसी से मिलने के लिए प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी पड़ती है? पाकिस्तानी टीवी न्यूज चैनल ने वैदिक का एक इंटरव्यू दोबारा प्रसारित किया है। यह इंटरव्यू चैनल ने 30 जून को वैदिक से लिया था। इसमें कश्मीर के मुद्दे पर वैदिक ने कई विवादित मशविरे दिए हैं। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों कश्मीरी हिस्सों के लोगों की रोजमर्रा की समस्याएं लगभग एक जैसी हैं। यहां दशकों से अमन-चैन की स्थिति नहीं है। कश्मीर के दोनों हिस्सों में यदि आजादी के लिए समझदारी बने और इस पर भारत और पाकिस्तान भी राजी हो तो आजादी देने में कोई बुराई नहीं है। वैदिक की इस टिप्पणी पर संसद में जोरदार हंगामा हो रहा है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि वैदिक आरएसएस के आदमी हैं। वैदिक ने इस बात की भी वकालत की कि पहले दोनों कश्मीरों के बॉर्डर खोले जाएं ताकि दोनों देशों में आवाजाही बढ़े। मेरी इच्छा है कि दोनों हिस्सों को मिलाकर एक मुख्यमंत्री बने और एक राज्यपाल हो। इस पर टीवी पत्रकार ने सवाल दागा कि लेकिन इस व्यवस्था पर कंट्रोल किस देश का होगा तो वैदिक ने कई तरह के अटपटे विकल्प बताए। टीवी एंकर ने यह भी टिप्पणी की कि वैदिक ने यह भी कहा कि वह मोदी के करीबी हैं। दिल्ली लौटने पर भी उन्होंने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि मैंने नरेन्द्र मोदी को पीएम बनने में भारी योगदान दिया है। निसंदेह यह कुपित होने वाली बात है, लेकिन क्या ऐसा भी कोई नियम-कानून है कि जिससे वैदिक या उनके जैसे लोगों के मुंह पर पट्टी बांधी जा सके? एक तो वेद प्रताप वैदिक न तो भाजपा से जुड़े हैं और न ही मोदी सरकार से और दूसरी उनकी ऐसी शख्सियत भी नहीं कि वह किसी मसले पर कुछ कहें और सारा देश उस पर चिन्तन-मनन करने में जुट जाए। मोदी सरकार के स्वयंभू राजदूत व पत्रकार वैदिक ने आतंकी हाफिज सईद से मुलाकात कर और उसे खुद ही लीक कर अपनी और सरकार की फजीहत करवा दी है। भाजपा और मोदी सरकार का मानना है कि उन्होंने सुर्खियों में आने के लिए जो कुछ भी किया व कहा है वह सरकार की घोषित नीति का मखौल उड़ाने वाला है कि वह मुंबई बम कांड के आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहती है। जिस खूंखार आतंकवादी के खिलाफ करोड़ों का इनाम घोषित हो व जिसके प्रत्यर्पण के लिए भारत लगातार पाकिस्तान पर दबाव बनाए हो, उसके साथ वैदिक की मुलाकात और उसके खुलासे से वैदिक जी ने अपने पांव में कुल्हाड़ी ही नहीं मारी बल्कि मोदी सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। अब वैदिक का यह फर्ज बनता है कि वह देश को बताएं कि उनकी हाफिज सईद से क्या बात हुई, उसका पूरा ब्यौरा दें और डॉन टीवी साक्षात्कार का टेप उपलब्ध कराएं ताकि देश को पता चल सके कि आपने किस मकसद से यह सब कुछ किया?

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