Wednesday 2 July 2014

शैतानी चालों से न बाज आने वाला चीन

चीन अपनी फितरत से बाज नहीं आ रहा है। अपने पुराने स्वभाव के मुताबिक उसने ऐसे समय में विवादास्पद बिंदुओं को उभार दिया है जब भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी चीन के बुलावे पर पेइचिंग यात्रा पर हैं। आदतें चाहे अच्छी हों या बुरी, समय के साथ चरित्र का अंतरंग हिस्सा बन जाती हैं। पंचशील की 60वीं वर्षगांठ पर चीन अगर एक तरफ हमारे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को अपना मेहमान बनाकर रिश्तों को आसमानी बुलंदियां देने की बात कर रहा है और दूसरी तरफ अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा दिखाने वाला नक्शा दुनिया को दिखा रहा है तो इसमें कैसा आश्चर्य? चीन के सरकारी मुख्य पत्र पीपुल्स डेली ने चीन का ऐसा मानचित्र प्रकाशित किया है जो भारत के लिए गहरी चिन्ता पैदा करता है। नए मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश के साथ ही जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से को चीन का हिस्सा दर्शाया गया है। पिछले करीब एक हफ्ते से चीन भारत को उकसाने वाले संकेत दे रहा है। चीनी सेना ने उत्तराखंड के बाराहोती इलाके में घुसपैठ की और कुछ देर रहने के बाद पीछे लौटी। इसी तरह लद्दाख स्थित पगोंग झील के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर उस पर अपना दावा जताया। इसके अलावा चीन पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में रेल लाइन बिछाने की योजना बना रहा है। चीन ने अपने पश्चिमी शहर शिनजियांग के काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली रेल लाइन के निर्माण के लिए शुरुआती अध्ययन कराने को लेकर कोष आवंटित किया है। 1800 किलोमीटर चीन-पाकिस्तान रेलवे लाइन इस्लामाबाद तथा कराची तक ले जाने की योजना है। यह वही क्षेत्र है जिस पर आजादी के ठीक बाद 1948 में पाकिस्तानी फौजों के साथ मिलकर कबाइलियों ने भारत पर हमला बोला था और उसका बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में कर लिया था। तब से भारत इस पर अपना दावा प्रस्तुत कर रहा है। इससे भी खतरनाक हरकत वह ब्रह्मपुत्र नदी के साथ छेड़छाड़ करने में दिखा रहा है  जिसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ सकता है। 28 जून 1954 को भारत, चीन और म्यांमार ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के निर्धारक पांच यानि पंचशील पर दस्तखत किए थे। उसके मुताबिक इन देशों ने एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करने, एक-दूसरे की संप्रभुता को मानने, एक-दूसरे पर आक्रमण न करने, एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करना और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के सिद्धांत के प्रति खुद को वचनबद्ध किया था। मगर व्यवहार में जो सामने आया है उस जख्म की पीड़ा से भारत आज तक नहीं उभरा है। चीन ने भारत से अपेक्षा की कि वह उसके हर विस्तारवादी कदम का समर्थन करे। 1962 में उसने भारत पर हमला किया। फिर भारत में नक्सलवादियों को उसने हथियार दिए, उनकी प्रशिक्षण के जरिये मदद की। हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत विरोधी रुख अख्तियार किया। पूछा जा सकता है कि इसमें पंचशील कहां था? दरअसल इस इतिहास का संबंध यह है कि नीयत ठीक न हो तो अच्छे से अच्छे सिद्धांत भी निरर्थक हो जाते हैं। चीन बेशक इन दिनों हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बनने की दिशा में जी-जान से जुटा है लेकिन उसने ऐसे असंतुलित व्यापार का रास्ता बनाया है जिसका तमाम फायदा सिर्प उस तक ही पहुंच रहा है। मोदी सरकार चीन के खतरे और उससे संबंध के फायदों के  बीच बेशक पूंक-पूंक कर पांव रख रही है। मनमोहन सिंह की सरकार के जमाने में अपेक्षित सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर का जाल खड़ा करने की तैयारी शुरू हो गई और इन इलाकों में आबादी बसाने की योजना को भी मूर्त रूप दिया जा रहा है। मुंहतोड़ जवाब के रूप में अरुणाचल प्रदेश के ही सांसद किरण रिजिजू को गृह राज्यमंत्री के रूप में यह तमाम जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया गया है। एक तरफ नए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्तारूढ़ होते ही उसने संबंध सुधारने की दुहाई देनी शुरू कर दी, साथ ही विस्तारवादी नीति का परिचय देते हुए भारत के भूभाग पर दावा भी ठोक रहा है, इसलिए भारत को चीन के साथ संबंधों में बहुत सतर्पता बरतनी होगी। उसकी शैतानी चाल पर अंकुश के लिए आवश्यक यह भी है कि भारत में खपाए जाने वाले अरबों-खरबों के चीनी माल पर पाबंदी लगा दी जाए। यह जरूरी है कि भारत, जापान, वियतनाम व फिलीपींस जैसे चीन से त्रस्त देशों के साथ संबंधों को नए आयाम दिए जाएं। चीन को दो टूक संदेश देना जरूरी है। मोदी सरकार से यही उम्मीद है।

-अनिल नरेन्द्र

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