Thursday, 31 July 2014

कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे का संकट तबाही किसान की

देश के कई हिस्सों में सूखे और बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। किसानों को दोनों ही संकटों से जूझना पड़ रहा है। बिहार और उत्तर पदेश के अधिकतर हिस्सों में सूखे की आशंका थी लेकिन अब इन राज्यों में बाढ़ का खतरा भी मंडराने लगा है। बिहार में एक तरफ 25 जिले सूखे की चपेट में हैं तो दूसरी ओर कुछ शहरों में नदियों का जलस्तर बढ़ गया है। इससे हजारों एकड़ फसलों को नुकसान पहुंचा है। जाहिर है कि सूखा हो या बाढ़, दोनों ही सूरतों में खामियाजा किसानों को ही उठाना पड़ रहा है। अभी दस दिन पहले तक यूपी में सूखे की आशंका जाहिर की जा रही थी। लेकिन इस दौरान इतनी बारिश हुई कि अब बाढ़ का डर पैदा हो गया है। सिंचाई विभाग के अनुसार  शारदा नदी पलिया कला लखीमपुर खीरी और शारदानगर में खतरे के निशान को पार कर गई है। बाराबंकी के एलिगन ब्रिज और अयोध्या में घाघरा नदी खतरे के निशान के ऊपर बह रही है। गंगा नदी बुलंदशहर के नरौरा, रामगंगा, मुरादाबाद और घघरा बलिया के तुतीपार में खतरे के निशान के करीब बह रही है। अनुमान है कि घाघरा नदी बाराबंकी में एलिगन ब्रिज, अयोध्या और बलिया में तुतीपार में खतरे को पार कर जाएगी। नेपाल द्वारा पानी छोड़े जाने पर लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बहराइच, गोंडा, बस्ती, सीतापुर, में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। उत्तराखंड में भारी बारिश के कारण पश्चिमी उत्तर पदेश के बिजनौर, मुरादाबाद, बुलंदशहर में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। कमजोर मानसून के कारण बिहार में सूखे की स्थिति बन गई है। 25 जिलों में बारिश सामान्य से 19 फीसदी कम हुई है। इस सीजन में पहली बार राज्य में बारिश की स्थिति सामान्य से इतनी नीचे पहुंची है। कमजोर मानसून ने किसानों के लिए चेतावनी की घंटी बजा दी है। बिहार में सामान्य बारिश अब तक 417.4 मिमी होनी चाहिए थी जबकि कुछ दिन पहले तक यह आंकड़ा महज 339.1 मिमी तक ही सिमट गया। यानी सामान्य से 19 फीसदी कम बरसात से बिहार जूझ रहा है। बिहार के 25 जिलों में जहां सूखे की स्थिति है वहीं सरयू नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण कई गांवों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है जबकि नेपाल में हुई भारी बारिश और बैराज से पानी छोड़ने से गोपालगंज के 10 गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। इनमें हजारों एकड़ गन्ने और मक्के की फसल बर्बाद होने की आशंका है। पटना जिले के पालीगंज में बारिश न होने के कारण धान की फसल सूखने की कगार पर पहुंच गई है। सूखा हो या बाढ़ दोनों ही सूरतों में नुकसान किसान का होता है। पैदावार कम होने से जहां कीमतें बढ़ती हैं वहीं किसान की माली हालत पभावित होती है। इतने साल बीतने के बाद भी हम बाढ़ और सूखे पर काबू नहीं पा सके। एक ही राज्य में कहीं सूखा है तो कहीं बाढ़। मगर जहां बाढ़ है उसके पानी को सूखे इलाके में पहुंचाने का पबंध होता, रेल हार्वेस्टिंग का पभावी पबंध होता तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था। केंद्र और राज्य सरकारों को इस ओर ध्यान देकर दूरगामी नीति तैयार करनी चाहिए ताकि दोनों ही स्थितियों से बचा जा सके।

-अनिल नरेंद्र

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