Tuesday, 22 July 2014

अमेरिका का वर्चस्व तोड़ने हेतु ब्रिक्स देशों की बड़ी कामयाबी

ब्रिक्स यानि ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का अपना अंतर्राष्ट्रीय बैंक का सुझाव जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिया था पूरा हो गया है। छठा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन विश्व मंच पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति का पहला मौका था और इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय बैंक बनाने के साथ-साथ आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने की बात कर उन्होंने सकारात्मक संदेश भी दिया। हालांकि सबकी उत्सुकता ब्रिक्स बैंक को लेकर थी जिसे मंजूरी मिल गई। यह एक बड़ी उपलब्धि है। इससे 70 वर्ष पहले अमेरिका में न्यू हैम्पशायर ब्रेटन-वुड्स में 44 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की स्थापना के बाद उनकी तर्ज पर समानांतर संस्थाएं  बनाने की कोशिश पहली बार फलीभूत हुई है। विश्व बैंक और आईएमएफ के जरिये अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों द्वारा पूरी दुनिया पर अपना आर्थिक एजेंडा थोपने की शिकायतें गुजरे दशकों में खूब की गईं। ब्रिक्स का उद्देश्य अमेरिका और यूरोप के बरकस एक समानांतर व्यवस्था स्थापित करना है जो पक्षपात से रहित हो, किसी के एजेंडे पर चलने पर मजबूर न करे। ब्रिक्स बैंक का जो प्रशासनिक ढांचा तय हुआ है, इसमें एक देश एक वोट की व्यवस्था है यानि इस बैंक से जुड़े फैसले में कोई भी सदस्य वीटो नहीं कर पाएगा। मतलब यह है कि ब्रिक्स बैंक को विश्व बैंक, जिसमें अमेरिका का घोषित वर्चस्व है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, जो सिर्प यूरोप का हित देखता है की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक वित्तीय संस्था बनाने का लक्ष्य है। अमेरिका और यूरोप का वर्चस्व कम करने की मांग तो उठती रही पर यह संभव न हो सका। इसे ब्रिक्स देशों के नेतृत्व की समझदारी और दूरदर्शिता ही माना जाएगा कि उन्होंने शिकायत और मांगों से उठकर विकल्प तैयार करने का संकल्प लिया। परिणाम है कि ब्रिक्स देशों में विकास परियोजनाओं की मदद के लिए न्यू डेवलपमेंट बैंक और मौद्रिक या वित्तीय संकट के समय प्रत्यक्ष सहायता के लिए आकस्मिक कोष व्यवस्था अब अस्तित्व में आ गई है, लेकिन इस क्रम में चीन और दूसरे देशों के बीच हुई खींचतान ने कुछ आशंकाओं को भी जन्म दिया है। चीन  लम्बे समय तक अड़ा रहा कि नए बैंक और आकस्मिक कोष में वह ज्यादा योगदान करेगा, जिससे उनके प्रबंधन पर उसकी अधिक पकड़ बन जाती। बहरहाल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दूसरे नेताओं के अडिग रुख के कारण चीन को यह मानना पड़ा कि बैंक में पांच सदस्य देशों की समान हिस्सेदारी होगी लेकिन आईएमएफ की तर्ज पर बने आकस्मिक कोष में चीन का आरंभिक योगदान 41 अरब डॉलर होगा जबकि ब्राजील, भारत और रूस 18-18 अरब डॉलर तथा दक्षिण अफ्रीका पांच अरब डॉलर का योगदान करेगा। ब्रिक्स विकास बैंक के शुरू होने में दो साल लगेंगे। ब्रिक्स देशों ने भारत (नरेन्द्र मोदी) के रुख की जोरदार पैरवी करते हुए आतंकवाद के सभी स्वरूपों और उससे जुड़ी गतिविधियों की कड़ी निन्दा की। फोर्टलेजा घोषणा पत्र में जोर देकर कहा गया है कि वैचारिक, राजनीतिक, आर्थिक अथवा धार्मिक मुद्दों पर आधारित आतंकवाद की किसी भी गतिविधि को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। ब्रिक्स शिखर बैठक के बाद जारी 17 पेज के घोषणा पत्र में कहा गया है कि हम सभी इकाइयों को आह्वान करते हैं कि वह आतंकवादी गतिविधियों को वित्तीय मदद देने, प्रोत्साहन देने, प्रशिक्षण देने अथवा किसी दूसरी तरह से सहयोग करने में परहेज करें। मोदी ने यह सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रों की सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया कि आतंकवादियों को कहीं भी शरण न मिले। इसे भारत के पड़ोस की ओर इशारे के तौर पर देखा गया। अगला ब्रिक्स सम्मेलन 2015 में रूस में होगा। ब्रिक्स देशों से शुरुआती अपेक्षा यही है कि वह अपने आपसी विवादों को खत्म करें। मसलन ब्राजील में उठे ठोस कदम के बाद हम क्या यह उम्मीद नहीं कर सकते कि चीन और भारत सीमा विवाद समेत तमाम मुद्दों को हल करने की दिशा में भी आगे बढ़ेंगे। श्री नरेन्द्र मोदी का यह पहला अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन था और इसमें वह भारत के मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में उभरे हैं।

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