Saturday 1 April 2017

हम तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं ः योगी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अवैध बूचड़खानों पर सख्ती को लेकर काफी हो-हल्ला हो रहा है। कुछ मीट बेचने वाली दुकानों ने अपने शटर बंद कर दिए हैं और मीट न सप्लाई होने से बीफ, मटन और चिकन की आपूर्ति प्रभावित हो गई है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को कहा कि हम तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं। 17 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बूचड़खानों पर दिशानिर्देश दिए हैं। योगी बोलेöएनजीटी 12 मई 2015 को इस बारे में आदेश दे चुका है। क्या कानून का पालन नहीं होना चाहिए? हमने कोई नया कानून नहीं बनाया है। जो कानून अस्तित्व में है सिर्फ उसका पालन कर रहे हैं। हम किसी के खिलाफ नहीं हैं। सरकार तो बस कानून का पालन करवा रही है। वैसे बता दें कि अवैध बूचड़खाने बंद करना भाजपा का चुनावी वादा था। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यूपी में 185 बूचड़खाने हैं। इनमें से 45 के पास लाइसेंस हैं। जबकि 140 बूचड़खाने बिना लाइसेंस, बिना अनुमति के चल रहे हैं। हालांकि सरकारी सूत्रों के मुताबिक राज्य में 400 से ज्यादा अवैध बूचड़खाने हैं। इनके बंद होने से राज्य में मीट से जुड़ा 11 हजार करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ है। लखनऊ की मशहूर दुकान टुंडे कबाबी पर ताला लटक गया है। दुकान के मालिक उस्मान ने बताया कि उनके दादा ने यह खास कबाब बनाना शुरू किया था। लेकिन अब मीट और बीफ की सप्लाई न होने की वजह से इसे बंद करना पड़ा। एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रॉड्क्ट्स डेवलपमेंट अथार्टी (एपीईडीए) के मुताबिक 2015-16 में यूपी से 5,65,958 मीट्रिक टन भैंस का मीट निर्यात किया गया था। अभी देश में मीट उत्पादन में यूपी की हिस्सेदारी 19.2 प्रतिशत है। जबकि इसके बाद आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल का नम्बर आता है। प्रदूषण बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि हमारे पास ज्यादा अधिकार नहीं हैं। बोर्ड बूचड़खाना चलाना या न चलने पर सिर्फ सहमति देता है। नगर निकाय के अधिकारी ही इसका लाइसेंस देते हैं। जनता को यह बताना भी जरूरी है कि यह अवैध बूचड़खाने सेहत के लिए घातक हैं। बीमार पशुओं के 60 प्रतिशत रोग उनके मांस खाने वालों में फैलने की आशंका बनी रहती है और विशेषज्ञों का मानना है कि मनुष्यों में टीबी व रेबीज समेत कई गंभीर बीमारियों का स्रोत ऐसे मांस ही हैं। ऐसे में अवैध बूचड़खानों के बाद लाइसेंसशुदा बूचड़खाने भी संदेह के घेरे में हैं। उनके यहां पशुओं को काटने की पूरी प्रक्रिया की निगरानी करने वाली सरकारी प्रणाली भी ध्वस्त है।

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