कश्मीर घाटी में कानून व्यवस्था की स्थिति विस्फोटक
होती जा रही है। जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता का
स्वाद चखने वाली भाजपा का जायका राज्य में सक्रिय अलगाववादियों ने पत्थरबाजों व सहयोगी
पीडीपी नेताओं की आपसी खींचतान ने स्थिति इतनी बिगाड़ दी है जो इससे पहले नहीं देखी
गई। खुद प्रधानमंत्री स्वीकार करते हैं जब वह कहते हैं कि हमारे फौजी कश्मीर में बाढ़
आने पर लोगों की जान बचाते हैं, लोग उनके लिए तालियां बजाते हैं
लेकिन बाद में हमारे
फौजियों पर पत्थर भी बरसाते हैं। ताजा स्थिति यह है कि घाटी में सुरक्षाबलों पर अलग-अलग स्थानों पर प्रतिदिन औसतन आठ बार पत्थर बरसाए जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक
आतंकियों के सर्च अभियान में बाधा डालने पर ही सुरक्षाबलों द्वारा सख्त कार्रवाई
होती है। अन्य मामलों में भी हमारे बहादुर जवान पत्थर झेलकर भी संयम बरतने पर मजबूर
हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल में पत्थरबाजों की 2784 घटनाएं हुई हैं। हर माह औसतन 240 बार पत्थरबाजी हो रही
है। पिछले साल अप्रैल में 97 स्थानों पर पत्थरबाजी की घटनाएं
हुई थी। अप्रैल के 15 दिनों में 60 से अधिक
घटनाएं हो चुकी हैं। श्रीनगर उपचुनाव के बाद पत्थरबाजी की घटनाएं और बढ़ गई हैं। आतंकी
बुरहान वानी की मुठभेड़ में मौत के बाद जुलाई 2016 में उपद्रवियों
ने सुरक्षाबलों पर 837 स्थानों पर पत्थर बरसाए। पर इन दिनों कश्मीर
में कानून व्यवस्था की हालत इतनी खराब है उतनी हाल के इतिहास में शायद ही कभी रही हो।
अब तो स्कूली छात्र क्लासों से निकलकर यूनिफार्म में सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने लगे
हैं। मुश्किल से पखवाड़े भर पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य में मेनानी-नराटी सुरंग का उद्घाटन करते हुए राज्य के युवाओं से अपील की थी कि उनके पास
दो विकल्प हैं-टूरिस्म (पर्यटन)
और टेरोरिज्म (आतंकवाद) जिनमें
से वे चुन लें। रोजगार और शिक्षा के जरिए घाटी में गुमराह युवाओं और छात्रों को मुख्यधारा
से जोड़ने का प्रयास जरूरी है। पहले उनसे संवाद स्थापित किया जाए और उनका भरोसा जीता
जाए। लेकिन यह करना तो पीडीपी सरकार को है। क्या जम्मू-कश्मीर
में राष्ट्रपति शासन लगाना बेहतर विकल्प होगा? थलसेना अध्यक्ष
जनरल विपिन रावत के जम्मू-कश्मीर के दौरे के बाद जो रिपोर्ट सरकार
को सौंपी गई उसमें राज्य में कानून व्यवस्था की हालत को चिंताजनक बताए जाने के साथ
ही इसकी मूल वजह महबूबा मुफ्ती सरकार की पत्थरबाजों के साथ बरती जाने वाली नरमी को
बताया गया है। कुछ इसी तरह की रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल एनएन वोहरा और राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार अजीत ढोभाल ने
भी दी है। भाजपा ने जो कुछ भी सोचकर राज्य में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का
जो फैसला किया था वह तजुर्बा फेल हो गया। कश्मीर में इससे बदतर हालात नहीं हो सकते।
सूत्रों की मानें तो भाजपा ने राज्य में तलाक के लिए अपना मन बना लिया है लेकिन तलाक
से पहले वह एक आखिरी कोशिश करना चाह रही है इसी के चलते भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का 29 अप्रैल को जम्मू दौरा तय किया गया है। वहीं राम माधव की पीडीपी नेताओं से राज्य
की कानून व्यवस्था को लेकर लंबी चर्चा हुई। दरअसल भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर काफी भावनात्मक राज्य रहा है परंतु जिस तरह से राज्य में लगभग गृहयुद्ध
की स्थिति बनी हुई है उससे कहीं न कहीं भाजपा को यह भय सताने लगा है कि यदि वह सत्ता
में बनी रही और राज्य के हालात नहीं सुधरे तो 2019 में विपक्षी
दल इसे जोर-शोर से चुनावों में उठाएंगे तो पाकिस्तान भी पत्थरबाजी
की घटनाओं की आड़ में इसे पुन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसे आजादी की लड़ाई के रूप में प्रचारित करने लगेगा। जिसका असर न
सिर्फ भाजपा की राष्ट्रवाद छवि पर पड़ सकता है बल्कि इसका उसे चुनावी राजनीति में खामियाजा
भुगतना पड़ सकता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना भी बेहतर विकल्प हो सकता है।
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