Saturday 29 April 2017

मोदी की लहर में बह गए क्षेत्रीय क्षत्रप

दिल्ली के तीनों नगर निगम का चुनाव परिणाम आंकड़ों की जुबानी भी बहुत कुछ बयां कर गए। मोदी लहर में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो फिसड्डी साबित हुई हीं, राष्ट्रीय राजनीति में अच्छा दखल रखने वाली क्षेत्रीय पार्टियां तो बह ही गईं। जद (यू), लोजपा, राकांपा एवं रालोद को जहां एक भी सीट नहीं मिली वहीं बसपा, सपा, इनेलो भी बस इज्जत बचा सकी हैं। चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि जनता अब सिर्फ काम चाहती है, कागजी अथवा खोखले वादों पर उसे मूर्ख बनाने का समय चला गया। गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में, जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल बिहार में, इंडियन नेशनल लोकदल हरियाणा में, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र में, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पश्चिम बंगाल में खासा रसूख रखती हैं। इन पार्टियों के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, मायावती, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ओम प्रकाश चौटाला, सीताराम येचुरी, डी. राजा, शरद पवार व उद्धव ठाकरे का देश की राजनीति में भी बड़ा नाम है। बावजूद इसके दिल्ली नगर निगम चुनाव में इनका सिक्का नहीं चला। तीनों एमसीडी के 272 में से 270 वार्डों पर हुए चुनाव के  लिए खड़े हुए 2576 उम्मीदवारों में से 1803 की जमानत जब्त हो गई। इनमें कांग्रेस के 92, आम आदमी पार्टी के 38 और हैरानगी की बात है कि भाजपा के पांच उम्मीदवारों की भी जमानत जब्त हो गई। ये उम्मीदवार जमानत बचाने के लिए जरूरी टोटल डाले गए वोट का 16.33 फीसदी हिस्सा नहीं ले पाए। दिल्ली चुनाव आयोग ने बताया कि इस चुनाव में निर्दलीयों के अलावा 18 विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे। इनमें से 1139 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाए। नगर निगम चुनाव में भाजपा ने उम्मीद के अनुसार बम्पर कामयाबी हासिल की है, लेकिन इस चुनाव में भाजपा के मुस्लिम कैंडिडेट जनता को रास नहीं आए। भारतीय जनता पार्टी ने इस वर्ष निगम चुनाव में पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन चुनाव में एक भी उम्मीदवार भाजपा के लिए जीत नहीं दिला सका। गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव में भाजपा ने अपना एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा था। भाजपा की इस नीति के चलते उस पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा था। उत्तर प्रदेश चुनाव में लगे आरोपों को धोने के लिए भाजपा ने नगर निगम चुनाव में पांच प्रत्याशी उतारे। पर एक भी उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर सका। भाजपा की जीत की एक बड़ी वजह रही मौजूदा पार्षदों को टिकट न देने का मोदी फार्मूला। पिछले 10 वर्ष की निगमों की एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर को काटने के लिए यह फार्मूला कामयाब रहा। भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस ने भी यही रणनीति अपनाई। दरअसल राजनीतिक दलों की भांति मतदाताओं ने भी पुराने चेहरों पर अधिक विश्वास नहीं किया। चुनाव में करीब 45 वर्तमान पार्षदों और 30 पूर्व पार्षदों ने किस्मत आजमाई थी, मगर 17 वर्तमान पार्षद ही चुनाव जीत सके। इस तरह तीनों नगर निगमों के सदन में 270 वार्डों में 245 नए पार्षद पहुंचेंगे। मजेदार तथ्य यह भी है कि भाजपा और कांग्रेस से बगावत कर पूर्वी दिल्ली में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाला कोई भी प्रत्याशी नहीं जीत पाया है। जनता ने बागियों को पूरी तरह से नकार दिया। पटपड़गंज सीट से भाजपा की पार्षद रहीं संध्या वर्मा ने पार्टी से टिकट न मिलने पर विद्रोह कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। नतीजा हार का मुंह देखना पड़ा। इसी तरह न्यू अशोक नगर सीट पर भाजपा की बागी निक्की सिंह भी बगावत कर चुनाव में कूदीं और 5223 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहीं। इसी तरह कांग्रेस से बागी विनोद चौधरी ने आईपी एक्सटेंशन से कांग्रेस का टिकट मांगा था। टिकट न मिलने पर वह निर्दलीय चुनाव लड़े। उन्हें 2000 से कम वोट मिले। इसी तरह पांडव नगर से कांग्रेस से टिकट मांग रहीं सावित्री शर्मा भी टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ीं और हार गईं। नगर निगम चुनाव में हुई करारी हार के बाद इस्तीफों का दौर आरंभ हो गया है। बुधवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन, कांग्रेस के प्रभारी (दिल्ली) पीसी चॉको और आप की दिल्ली इकाई के संयोजक दिलीप पांडे ने इस्तीफा दे दिया। दिल्ली की सत्ता में लगातार 15 वर्षों तक काबिज रहने वाली कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) के खिलाफ बने माहौल में भी नगर निगम चुनाव में दूसरे पायदान पर नहीं आ सकी। इसके पीछे सबसे अहम कारण यह माना जा रहा है कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को किनारा कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने अपने स्तर पर अहम निर्णय लिए। चुनाव नतीजे आने के बाद कई कांग्रेसी नेताओं ने त्वरित प्रतिक्रिया में कहा कि कांग्रेस में वन मैन शो ने पूरी लुटिया डुबाई। नगर निगम के लिए टिकट बंटवारे के बाद से ही कांग्रेस में फूट उभरकर सामने आ गई थी। अरविन्दर सिंह लवली, बरखा शुक्ला सिंह जैसे कई पुराने नेता भाजपा में शामिल हो गए। अब कांग्रेस के सामने पार्टी को बचाने की चुनौती खड़ी होती दिख रही है। दूसरी ओर कई उम्मीदवार ऐसे भी हैं जो तीसरी-चौथी बार भी जीतने में सफल रहे। इन लोगों के काम, जनता से सीधा सम्पर्क उन्हें जिताने की बड़ी वजह रही।

No comments:

Post a Comment