पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अप्रैल
महीने के शिकार बनने से बाल-बाल बच गए हैं। दरअसल,
इसी महीने अतीत में पाकिस्तानी हुक्मरानों का तख्तापलट हुआ है, उन्हें
उम्रकैद की सजा मिली है और फांसी पर लटकाया गया है। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की
ओर से 3-2 से दिए गए बंटे हुए फैसले के कारण नवाज शरीफ अपनी
कुर्सी बचाने में फिलहाल बृहस्पतिवार को कामयाब रहे। बता दें कि पाकिस्तानी सुप्रीम
कोर्ट पनामा पेपर्स मामले में केस की सुनवाई कर रहा था। पिछले साल अमेरिका स्थित खोजी
पत्रकारों के अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने पनामा पेपर्स के नाम से लीक दस्तावेज दुनिया
से साझा किए। अवैध निवेशकों की सूची में शरीफ और उनके परिवार का नाम भी शामिल है। भ्रष्टाचार
के चलते शरीफ को संसद सदस्यता से अयोग्य घोषित करने वाली याचिका पर पांच सदस्यीय सुप्रीम
कोर्ट पीठ की तीन सदस्य आरोपों की जांच करने के पक्ष में थे जबकि दो जज शरीफ को अयोग्य
घोषित करने के पक्ष में थे। बहुमत के आधार पर आए 540 पेज के फैसले
के आरोपों की जांच के लिए संयुक्त दल (जेआईटी) बनाने का फैसला किया गया, जिसके समक्ष शरीफ और उनके बेटों
हसन और हुसैन को पेश होना होगा। इस जांच दल में फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी,
नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो, सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज
कमिशन और मिलिट्री इटेलिजेंस के अधिकारी होंगे। जेआईटी के हर दो हफ्ते की जांच की प्रगति
रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश करनी होगी और 60 दिनों में
फाइनल रिपोर्ट देनी होगी। दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उसी महीने में आया
है जिस महीने अब से पहले शरीफ को सन
2000 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और उनकी सरकार
1993 में बर्खास्त कर दी गई थी। प्रधानमंत्री शरीफ की सरकार को तत्कालीन
राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने कथित भ्रष्टाचार को लेकर अप्रैल 1993 में बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद 6 अप्रैल
2000 को कुख्यात विमान अपहरण मामले में एक अदालत ने उन्हें उम्रकैद की
सजा सुनाई थी। हालांकि अन्य पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों के लिए भी अप्रैल का महीना
बुरा रहा है। 4 अप्रैल 1979 को पूर्व प्रधानमंत्री
जुल्फिकार अली भुट्टो को एक प्रमुख नेता की हत्या की आपराधिक साजिश रचने को लेकर फांसी
के फंदे पर लटका दिया था। इसके कई वर्ष बाद 26 अप्रैल 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को अदालत के एक आदेश की अवहेलना
का दोषी ठहराया गया। उसी दिन गिलानी को इस्तीफा देना पड़ा था। पाक प्रधानमंत्री नवाज
शरीफ को फिलहाल राहत जरूर मिल गई है पर उनकी अर्थारिटी जरूर कम होगी। पाकिस्तान में
अब सेना और ज्यादा हावी हो जाएगी। इस वजह से भारत-पाकिस्तान के
रिश्तों में कड़वाहट और बढ़ सकती है। हालांकि दोनों देशों के रिश्तों में पहले ही काफी
तनाव है। कुछ हद तक यह रिश्ते कुलभूषण जाधव के भविष्य पर भी टिके हुए हैं। चूंकि नवाज
शरीफ पहले से और कमजोर होंगे इसलिए सेना का उनकी सरकार पर और हावी होना स्वाभाविक है।
पनामा पेपर्स मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश नवाज शरीफ को दो तरह से प्रभावित करता
है। कोर्ट ने शरीफ को गद्दी से तुरंत हटाने लायक सुबूत नहीं माने हैं हालांकि कहीं
कुछ ठीक-ठाक गड़बड़ पहली नजर में देखी है। जांच टीम के गठन से
नवाज राजनीतिक और नैतिक दोनों ही स्तर पर कमजोर पड़ते लग रहे हैं। इसलिए इमरान खान
और अन्य नेताओं ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी है। आने वाले दिनों में नवाज के और कमजोर
होने से अब वह सेना के रहमोकरम पर हैं। सेना इस नई डिवेलपमेंट का पूरा फायदा उठाएगी
और मनमानी कर सकती है।
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