सुप्रीम
कोर्ट ने सोमवार को साफ कर दिया है कि सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए
सरकार आधार कार्ड की अनिवार्यता लागू नहीं कर सकती। हालांकि शीर्ष अदालत ने यह भी कहा
कि आईटी रिटर्न और खाता खोलने जैसी गैर-कल्याणकारी योजनाओं के लिए वह आधार मांगने से सरकार और उसकी एजेंसियों को रोक
भी नहीं सकती। चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ
ने कहा कि गैर-लाभकारी योजनाओं मसलन बैंक खाते खोलने,
आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए सरकार आधार मांग सकती है मगर गांव में
रहने वाले गरीबों को पेंशन देने के लिए आधार की मांग नहीं की जा सकती। पीठ ने कहा कि
लाभकारी योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य नहीं किया जा सकता। इस पीठ में डीवाई चन्द्रचूड़
और संजय कौल भी शामिल थे। पीठ ने आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं
पर सुनवाई की तारीख तय करने से भी मना कर दिया। इन याचिकाओं में नागरिकों की निजता
के अधिकार के उल्लंघन को आधार बनाया गया है। पीठ ने कहाöइसके
लिए सात जजों की पीठ गठित की जाएगी। फिलहाल यह संभव नहीं है। सोमवार को राज्यसभा में
वित्त विधेयक 2017 पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने सरकार पर कई गंभीर
आरोप लगाए। इसने कहा कि सरकार भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दे रही
है, टैक्स अधिकारियों को असीमित अधिकार देकर लोगों में डर पैदा
कर रही है और आधार के जरिये लोगों की जिन्दगी में झांकने की कोशिश कर रही है। ये सबके
लिए फाइनेंस बिल में प्रावधान किए गए हैं। कांग्रेस, सपा और बसपा
और वामदलों ने किसानों के कर्ज माफ करने की भी मांग की। चर्चा शुरू करते हुए कांग्रेस
के कपिल सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक दलों के कंपनियों के चन्दे की ऊपरी सीमा खत्म कर
दी है। कंपनियों के लिए इसे सार्वजनिक नहीं करने का प्रावधान भी कर दिया गया है। सिब्बल
ने कहा कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण
जेटली ने आधार का विरोध किया था। इसे धोखाधड़ी का औजार तक बताया गया था। मगर अब यह
सरकार आधार पर कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने मामले
पर संज्ञान लिया है और यह हमारे दिमाग में भी है। हम एक-एक करके
सभी मामलों की सुनवाई करेंगे।
-अनिल नरेन्द्र
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