बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की याचिका
पर सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अब लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत दूसरे वरिष्ठ भाजपा नेताओं
के खिलाफ मुकदमा चलाने का जो आदेश दिया है, वह एक बड़ा फैसला
तो है ही साथ-साथ इसके निहितार्थ भी व्यापक है। अदालत ने माना
है कि केस में पहले ही काफी देर हो चुकी है, इसलिए अब रोज सुनवाई
करके इसे दो साल के अंदर निपटाना होगा। मामले को रायबरेली से लखनऊ स्पेशल कोर्ट हस्तांतरित
कर दिया गया है। शीर्ष अदालत अब तक हुए विलंब पर कितनी गंभीर है, यह इससे भी जाहिर होता है कि सुनवाई पूरी न होने तक इससे जुड़े किसी भी न्यायाधीश
का न तो तबादला होगा और न ही बिना किसी ठोस कारण के सुनवाई न टाले जाने जैसी व्यवस्थाएं
भी उसने साथ-साथ दे दी हैं। 13 आरोपियों
में से तीन का निधन हो चुका है, इसलिए मुकदमा 10 के खिलाफ ही चलेगा। इसमें एक यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अभी
राजस्थान के राज्यपाल हैं। इसलिए उनके खिलाफ फिलहाल मुकदमा उनके इस पद से हटने के बाद
चलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट इस मामले को लेकर काफी गंभीर है। याद रहे, 6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या
पहुंचकर बाबरी ढांचा गिरा दिया था, जिसके बाद देश भर में सांप्रदायिक
दंगे हुए थे। बाबरी विध्वंस के बाद दो एफआईआर की गई थीं। एक उन अनाम कार सेवकों के
खिलाफ जिन्होंने विवादित ढांचे को गिराया था, दूसरी उत्तेजक भाषण
देने और द्वेष फैलाने के आरोप में बीजेपी, शिवसेना और विश्व हिन्दू
परिषद के वरिष्ठ नेताओं के विरूद्ध। बाबरी ढांचा ढहाए जाने के पीछे तर्क यह था कि यह
राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई है और यह वहां स्थित है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
इस तरह यह हिन्दू आस्था का प्रश्न बन गया। 25 वर्षों से लटका
यह मामला अगर आगे भी अन सुलझा रह गया तो जनमानस की उलझन भी बरकरार रहेगी और सांप्रदायिक
तनाव बना रहेगा। इस लिहाज से यह देश हित में ही है कि यह विवाद हमेशा-हमेशा के लिए सुलझे। जमीन-जायदाद का मामला अलग है और
सुप्रीम कोर्ट ने इसे आपसी बातचीत से सुलझाने की सलाह सभी पक्षों को दी है। बेशक सीबीआई
ने मुकदमा चलाने की सलाह तो दी है पर 25 साल पुराने इस मामले
के साक्ष्य और सुबूत इकट्ठा कर इसे तार्किक अंत तक पहुंचाना उसके लिए भी चुनौती होगी। इसी तरह इस
मामले में केन्द्र सरकार को भी अपना रुख स्पष्ट करना होगा। उसने अयोध्या मामले में
राम मंदिर निर्माण को भले ही अपनी प्राथमिकता में रखा है, पर
यह भी कहा है कि वह इस मामले में अदालत के निर्देशों के अनुसार चलेगी। चूंकि शीर्ष
अदालत ने बाबरी विध्वंस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का
मुकदमा चलाए जाने का निर्देश देने के साथ मुकदमे की रोज सुनवाई करने और दो साल में
पूरी प्रक्रिया खत्म करने का निर्देश दिया है, ऐसे में केंद्र
सरकार के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है कि सीबीआई के साथ सहयोग करते हुए इस मामले को
वह किस तरह उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाती है? कुछ लोग सीबीआई
द्वारा केस चलाने की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं। यह फैसला तब आया है जब अगले राष्ट्रपति
के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने टिप्पणी
की है कि यह सब आडवाणी के नाम को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से काटे जाने के लिए
पीएम की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। भले ही आपराधिक मामला
चलते रहने के दौरान चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है, लेकिन लाल कृष्ण
आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं के लिए आपराधिक साजिश का मुकदमा तगड़ा झटका
माना जा सकता है। दरअसल ये दोनों शीर्षस्थ नेता जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव
की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल हैं। इन कयासों को तब बल मिला जब भुवनेश्वर में भाजपा
की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जोशी को
रात के खाने पर आमंत्रित किया था। हालांकि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सुप्रीम
कोर्ट के आदेश के कारण किसी के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की संभावना नहीं होती। हालांकि
पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इन नेताओं के खिलाफ आपराधिक
साजिश का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है इसलिए नैतिक आधार पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार
के लिए इन नेताओं के नाम की चर्चा की संभावना क्षीण पड़ गई है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष
कश्यप ने कहा कि चूंकि इन नेताओं पर महज आपराधिक साजिश का आरोप है इसलिए इनके चुनाव
लड़ने पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई जा सकती है। पूर्व अडिशनल सॉलिस्टिर जनरल सिद्धार्थ
लूथरा कहते हैं कि मामले को अब सिर्फ नैतिकता की कसौटी पर देखना होगा। कानून में कहीं
भी चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है, लेकिन मामला नैतिकता का है। किसी
के खिलाफ फौजदारी केस अगर पेडिंग है तो चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है, इतना ही नहीं अगर कोई राष्ट्रपति या राज्यपाल चुन लिया जाता है तो उसे संविधान
के अनुच्छेद-361 के तहत छूट मिली है। यानि उसके खिलाफ कार्रवाई
नहीं चल सकती। सवाल राष्ट्रपति पद के चुनाव का है और यहां नैतिकता का सवाल अहम है।
क्योंकि ऐसे पद के लिए उन लोगों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए जिसके खिलाफ दो समुदायों
में नफरत फैलाने वाले भड़काऊ भाषण व बाबरी ढांचे को गिराने की साजिश का आरोप हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति
पद की गरिमा है और इन आरोपों के साथ उस पद के लिए चुनाव लड़ना नैतिकता के खिलाफ है।
शिकायती कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पाfिरत किया है। ऐसे में कोर्ट ने जब साजिश के आरोपों के मामले में भी ट्रायल
चलाने की बात कही है तो अब राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के कयास पर विराम लगाना ही बेहतर
विकल्प होगा। कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी के दोनों हाथों में लड्डू
दे दिया है सुप्रीम कोर्ट ने। बीती सदी में नब्बे के दशक में सबसे बड़ा सियासी मुद्दा
राम मंदिर था। अब अगले दो साल तक फिर से केंद्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु अयोध्या
मुद्दा ही होगा। फैसले के बाद इस मुद्दे के नए सिरे से गरमाने के आसार हैं। चूंकि प्रतिदिन
सुनवाई होगी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसले के लिए तय दो साल का समय ठीक अगले लोकसभा
चुनाव के दौरान अप्रैल वर्ष 2019 में समाप्त होगा। ऐसे में राम
मंदिर मुद्दा 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान फिर से सबसे बड़ा
मुद्दा बन सकता है। जैसा मैंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दोनों हाथों में
लड्डू हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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