Thursday, 13 April 2017

अयोध्या मसले को गंगा-जमुनी संस्कृति तहजीब से सुलझाओ

हमारे देश में न्यायिक प्रणाली इतनी ढीली है कि महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण केस भी सालों लटक जाते हैं। मामले कानूनी दांव-पेंच में ऐसे उलझते हैं कि किसी भी अंजाम तक पहुंचना मुश्किल लगने लगता है। ऐसा ही केस अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद ढांचे का है। सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या के विवादित ढांचे ढहने के मुकदमे की सुनवाई पिछले 25 साल से लंबित रहने पर चिंता जताना स्वभाविक ही है। अदालत ने कहा कि इस मामले की सुनवाई रोजाना करें तो साल में निपटना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह सिर्फ बेशक टिप्पणी है पर संकेत अहम है। कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत कई भाजपा नेताओं का मुकदमा रायबरेली की अदालत से लखनऊ स्थानांतरित करने और संयुक्त आरोप पत्र के आधार पर एक साल मुकदमा चलाने के भी संकेत दिए हैं। इस मामले को तकरीबन 25 साल होने वाले हैं लेकिन उससे जुड़े मामले अभी तक अदालत में चल रहे हैं। इनमें एक मामला वह है जिसमें 49 लोगों के खिलाफ बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने का आरोप है, जबकि दूसरा मामला बाबरी मस्जिद ढांचे के विध्वंस के लिए रचे गए आपराधिक षड़यंत्र का है। सीबीआई ने एसएलपी दाखिल कर ढांचा ढहने के मामले में आरोपी आडवाणी, जोशी सहित अन्य नेताओं पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की मांग की है। सीबीआई ने हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के आदेश को चुनौती दी है। इसमें हाई कोर्ट ने 21 नेताओं को आरोप मुक्त कर दिया था इनमें से आडवाणी, जोशी सहित आठ नेताओं पर रायबरेली की अदालत में मुकदमा चल रहा है, लेकिन उसमें साजिश के आरोप नहीं हैं। बाकी के 13 लोग पूरी तरह छूट गए थे। इन 13 में से 7 की मृत्यु हो चुकी है। बचे लोगों में कल्याण सिंह प्रमुख हैं जो ढांचा ढहने के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं। इस बीच मामले में 183 गवाहियां भी पेश हो चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह एक गंभीर मामला है और ऐसे मामले को सिर्फ तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी वादी या प्रतिवादी किसी के पक्ष में नहीं, बल्कि मामले को ठीक से चलाए जाने के बारे में है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे मामलों में राजनीतिक दबावों से भी गुजरना पड़ता है। कई मौकों पर यह कहा गया कि प्रदेश सरकार इस मामले को दबा रही है तो कई अन्य मौकों पर इसके विपरीत आरोप भी सामने आए। दिलचस्प पहलू यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट जब इस मामले को फिर से चलाने की बात कर रही थी तब ज्यादातर लोगों को उम्मीद थी कि सीबीआई इसका विरोध करेगी, लेकिन अदालत में सीबीआई ने कहा कि वह इस षड्यंत्र के मामले को दोबारा चलाने के पक्ष में है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मामले को दोबारा आगे किस तरह बढ़ाया जाएगा? जो गवाहियां पहले हो चुकी हैं, क्या वह दोबारा होंगी? इसका फैसला कब आएगा हमें पता नहीं लेकिन पिछले 25 साल में बहुत कुछ बदल चुका है। रामनवमी मेला बीतने के साथ ही रामनगरी अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट की भावना के अनुरूप आपसी सहमति से इस विवाद को हल करने के प्रयास नए सिरे से शुरू हो गए हैं। बाबरी मस्जिद के मुद्दई और मरहूम हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी ने हनुमान गढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास से भेंट की। इस भेंट में आपसी सहमति से मसले के हल के प्रयासों पर विचार किया गया। आपसी सहमति के लिए समर्थन जुटाने की ही गर्ज से महंत ज्ञानदास को दूरभाष पर हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि ने भी समर्थन का आश्वासन दिया है। जल्द ही तारीख तय कर विवाद से जुड़े पक्षों की बैठक कर आपसी सहमति का मसौदा तैयार किया जाएगा। कोर्ट का आदेश आने के करीब देखकर पूर्व से आपसी सहमति के लिए प्रयासरत महंत ज्ञानदास के अनुसार मंदिर-मस्जिद विवाद में मुख्यत चार पक्ष हैं। इनमें से स्वामी चक्रपाणि व मो. इकबाल सहित निर्मोही अखाड़ा उनके साथ आपसी सहमति के लिए एक मंच पर आने को तैयार भी हैं। चौथा पक्ष रामलला के सखा का है। महंत ज्ञानदास के अनुसार आपसी सहमति की दिशा में आगे बढ़ने पर रामलला के सखा को भी टटोला जाएगा। दोनों समुदाय अयोध्या मामले का कानूनी तरीके से समाधान चाहते हैं। हम धर्म के सौदागर नहीं हैं, राजनीतिज्ञ नहीं हैं, हमें कुर्सी की लालसा नहीं होनी चाहिए। अयोध्या मामला करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। हम सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुसार इस मामले का हल मिल बैठकर करने के पक्ष में है। यही बात लखनऊ  से आए मौलानाओं के प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई कर रहे नदबतुल उलमा इस्लामिक इंटरनेशनल कालेज के प्राध्यापक ताहीर आलम नदवी ने कहा कि हम गंगा जमुनी संस्कृति तहजीब के हिमायती हैं। सुप्रीम कोर्ट का सुझाव सराहनीय है और अयोध्या मसले का हाल आपसी बातचीत से ही संभव है। खुद देश के प्रधान न्यायाधीश यही सलाह दे रहे हैं कि मामले को बातचीत से सुलझाना बेहतर रास्ता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता का प्रस्ताव भी दिया है। उम्मीद की जा रही है कि वर्षों से लंबित इस विवाद को सभी पक्ष मिल बैठकर सुलझाने का गंभीर प्रयास करेंगे।

öअनिल नरेन्द्र

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