Sunday 2 April 2017

व्हाट्सएप से सीमा पार से संचालित पत्थरबाजी

कश्मीर में आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए सुरक्षा बलों के जवानों को स्थानीय युवकों के विरोध और हिंसा का लगातार सामना करना पड़ रहा है वह बेहद गंभीर और चिन्ताजनक मामला है। पिछले मंगलवार को बड़गांव के एक गांव में आतंकियों का मुकाबला करते हुए सुरक्षा बल के जवानों को पत्थरबाजी का सामना करना पड़ा जिससे 60 से अधिक जवान घायल हो गए तो जवाबी कार्रवाई में तीन प्रदर्शनकारी भी मारे गए। यह आंकड़ा बताता है कि पिछले पांच महीनों में सुरक्षा बलों के खिलाफ स्थानीय लोगों के हिंसक विरोध के कारण 25 आतंकवादी भागने में सफल हो गए। घाटी में मौजूदा हालात बहुत गंभीर हैं। श्रीनगर और अनंतनाग लोकसभा सीटों पर उपचुनावों ने और मामला गरम कर दिया है। घाटी में ताजा हिंसा और पत्थरबाजी की घटनाओं के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी गुटों का हाथ माना जा रहा है। सरकार को मिली जानकारी के मुताबिक घाटी में अलगाववादी तत्व और पाक समर्थित आतंकी मिलीभगत करके श्रीनगर और अनंतनाग में होने वाले उपचुनाव को बाधित करना चाहते हैं। घाटी में अलगाववादी पत्थरबाजों को फिर से सक्रिय करने का प्रयास कर रहे हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं को लेकर कश्मीर पुलिस की परेशानी का आलम इसलिए है क्योंकि व्हाट्सएप ग्रुपों के माध्यम से अब कश्मीर की पत्थरबाजी की ऑनलाइन और लाइव रिपोर्टिंग होने से सीमा पार बैठे पाक आका आतंकियों की ही तरह अब पत्थरबाजों को भी व्हाट्सएप से कंट्रोल कर उनकी पत्थरबाजी को संचालित करने लगे हैं। हाल ही में श्रीनगर में दर्ज एक मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आरोप लगाया है कि पत्थरबाजी के लिए कई व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं, जिनके एडमिन पाकिस्तानी हैं। अधिकारी बताते हैं कि इन ग्रुपों में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे एनकाउंटर की सटीक लोकेशन और समय भेजा जाता है, फिर युवाओं से वहां पहुंचने को कहा जाता है। कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि जैसे ही एनकाउंटर शुरू होता है पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के लोग लोकेशन के बारे में सटीक जानकारी भेजकर युवाओं को एक जगह इकट्ठा होने को कहते हैं। इन व्हाट्सएप ग्रुपों में एक एरिये के युवाओं को अगले एरिये के युवाओं से जोड़ने के लिए भी लिंक डाले जाते हैं। डीजीपी एसपी वैध का कहना है कि यह तथ्य है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल देश के दुश्मनों द्वारा किया जा रहा है। इस बीच जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन के इस्तेमाल को लेकर होने वाली आलोचनाओं और सुप्रीम कोर्ट की ओर से इसके विकल्प तलाशने के निर्देशों के बीच मंगलवार को केंद्र ने इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि दंगाइयों को काबू करने के सभी विकल्पों के समाप्त होने की स्थिति में ही सुरक्षा बल पैलेट गन का इस्तेमाल कर सकते हैं। लोकसभा में एक सवाल पूछा गया था कि कश्मीर में पैलेट गन से सैकड़ों लोगों की आंखों की रोशनी जाने की रिपोर्ट के मद्देनजर सरकार इसके इस्तेमाल की समीक्षा कर रही है? केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम ने बताया कि 26 जुलाई 2016 को एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति को जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वह गैर घातक हथियारों के रूप में पैलेट गन के अन्य संभावित विकल्पों की तलाश करे। समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और उचित क्रियान्वयन के लिए सरकार ने उसकी सिफारिशों का संज्ञान लिया है। उन्होंने बतायाöउसी के अनुसार सरकार ने फैसला किया है कि सुरक्षा बल दंगाइयों को खदेड़ने के लिए विभिन्न उपायों का इस्तेमाल करेंगे। इनमें गोले और ग्रेनेड, आंसू गैस गोले शामिल हैं। अगर ये उपाय नाकाफी साबित होते हैं तो पैलेट गन का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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