Friday 21 April 2017

क्या सिर्फ जेनेटिक दवाओं से ही स्वास्थ्य क्षेत्र ठीक हो जाएगा?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सूरत में दिए इस बयान का स्वागत है कि जनता को सस्ती दवा उपलब्ध हो और इसके लिए उनकी सरकार काम कर रही है। आज के समय में जिसके पास पर्याप्त धन राशि नहीं हो उस परिवार में कोई गंभीर बीमारी आ जाए तो वह इलाज के बोझ तले ही दब जाता है। दवाइयों और अन्य चिकित्सा सामग्रियों जिनमें अस्पताल शामिल है के दाम इतने ज्यादा हैं कि उसकी कमर टूट जाती है। देश में सस्ती दवाएं उपलब्ध तो हैं लेकिन मरीजों तक उनकी पहुंच नहीं है। दवा कंपनियों और ज्यादातर डाक्टरों की मिली-भगत से सस्ती जेनेटिक दवाओं पर ब्रांडेड दवाएं हावी हो रही हैं। निजी कंपनियां जेनेटिक और ब्रांडेड दोनों ही तरह की दवा बनाती हैं। मगर जेनेटिक की मार्पेटिंग नहीं होती और सुनिश्चित तरीके से इसे मरीजों तक पहुंचने से रोक दिया जाता है। अगर सरकार इस मामले में कानून लाती है तो निश्चित रूप से आम जनता को इसका फायदा मिलेगा। दवा दुकानों पर सस्ती जेनेटिक दवाएं मिलती नहीं हैं। उनका तर्क है कि मरीज खरीदता नहीं हैं। मरीज इसलिए नहीं खरीदता क्योंकि डाक्टर लिखते ही नहीं हैं। जब डाक्टर लिखेंगे ही नहीं तो कैमिस्ट के पास मांग नहीं आती। जेनेटिक दवा वह है, जिसे उसके मूल सॉल्ट के नाम से जाना जाता है। वह दवाएं जिनके पेटेंट खत्म हो चुके होते हैं। ऐसी दवाएं जो सिर्फ एक सॉल्ट से बनी हों। अमेरिका या डब्ल्यूएमओ के अनुसार जिस दवा का पेटेंट खत्म हो चुका हो। मगर भारत के संदर्भ में पेटेंट मुद्दा नहीं है। इधर पिछले दस साल में और कुछ नई दवाओं को छोड़ दिया जाए तो देश में तमाम दवाएं पेटेंट के बन रही हैं। हालांकि नरेन्द्र मोदी सरकार ने करीब 700 दवाओं को सस्ता किया है, लेकिन कम ही डाक्टर हैं, जो इस सूची की दवा लिखते हैं। डॉक्टरोंअस्पतालों और दवा निर्माताओं की मिलीभगत के कारण आम आदमी का इलाज के नाम पर इतना शोषण हो रहा है जिसकी पहले शायद कल्पना तक नहीं की गई हो पिछले तीन दशक से स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ते निजीकरण और व्यावसायीकरण के कारण डाक्टरों ने ब्रांडेड दवाओं का परचा चला रखा है। इससे दवा कंपनियों की आय बड़ी है और डाक्टरों का कमीशन बढ़ा है, जबकि आम आदमी परिजनों की बीमारी में अपना घर-बार गिरवी रख रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री का यह कहना भविष्य के लिए उम्मीद पैदा करता है कि देश के डाक्टर जेनेटिक दवाएं लिखें, इसके लिए जल्द कानून बनेगा। इस कानून को जितनी जल्दी सामने लाया जाए उतना ही अच्छा है पर केवल कानून बनने से ही सब कुछ ठीक हो जाएगा ऐसा भी नहीं माना जा सकता, जब तक यह कमीशन और अन्य उपहारों की आदत डाक्टर की दूर नहीं होती तब तक समाधान मुश्किल है।

-अनिल नरेन्द्र

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