Friday, 28 April 2017

क्या केजरीवाल सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है?

दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणाम लगभग उसी लाइन पर आए हैं जैसा कि उम्मीद की जा रही थी। भारतीय जनता पार्टी ने जीत की हैट्रिक लगाई है तीनों निगमों पर और सत्ता पर अपना कब्जा बरकरार रखा। वहीं इस चुनाव में आप और कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। एग्जिट पोल और फाइनल परिणाम में इतना फर्क जरूर रहा कि एग्जिट पोल में भाजपा को 200 से ज्यादा सीटों का अनुमान लगाया गया था जो घटकर 181 सीटें रहीं। वहीं आप को 48 और कांग्रेस को 30 सीट पर संतोष करना पड़ा। बेशक यह चुनाव तो छोटे थे पर चुनाव पर दांव बड़े थे। तीनों नगर निगमों के चुनाव में इस बार एक अलग राजनीतिक माहौल बना। बेशक यह चुनाव पार्षदों का था लेकिन इस छोटे चुनाव पर बड़े-बड़े धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर थी। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में पिछले दिनों हुए चुनाव के बाद अब नगर निगम चुनाव के नतीजे साबित करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की आंधी अब भी चल रही है। वहीं ये नतीजे प्रचंड बहुमत के साथ दो साल पहले सत्ता में काबिज हुए अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार की कारगुजारी पर एक तरह से जनमत संग्रह था। कांग्रेस के गिरते ग्राफ पर कोई रोक नहीं लगी और वह औंधे मुंह गिरी है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी की खोती जमीन। दो साल पहले प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल करने वाले केजरीवाल की हार की यह हैट्रिक है। आप के लिए तो अब संकट ही संकट है। वह दिल्ली विधानसभा चुनाव के अपने प्रदर्शन के आसपास भी नहीं ठहरी। विधानसभा चुनावों में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आप 272 वार्डों में से 90 फीसदी से ज्यादा में बढ़त पर थी लेकिन उसे सिर्फ 48 वार्ड ही मिले। ईवीएम मशीनों की खराबी का रोना रोकर जनता का दिल नहीं जीता जा सकता। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को नगर निगम चुनाव के नतीजों को स्वीकारना ही होगा। इस बार केजरीवाल चाहकर भी नतीजों के लिए ईवीएम को दोष नहीं दे पाएंगे। क्योंकि इस बार ईवीएम पर आरोप लगाया तो विधानसभा में उनकी संख्या भी संदेह के घेरे में आ जाएगी। राज्य चुनाव आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक इस नगर निगम चुनाव में करीब 30 हजार ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल हुआ है। इनमें से करीब आठ हजार मशीनें राजस्थान निकाय चुनाव से आई हैं। शेष मशीनें वही हैं जो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में इस्तेमाल हुई थीं। ऐसे में अगर केजरीवाल इन मशीनों के टेम्पर या हैक होने का आरोप लगाएंगे तो वर्ष 2015 में उन्हें मिली अप्रत्याशित जीत भी संदेह के घेरे में आ जाएगी। यह उनके लिए ठीक वैसी ही स्थिति हो जाएगी कि एक अंगुली दूसरे पर उठाने से चार अंगुलियां खुद पर उठ जाएंगी। पानी माफ, बिजली का बिल हाफ के बाद हाउस टैक्स खत्म करने का लुभावना लालच देने वाली आप को अगर इस कदर दिल्ली का वोटर काट रहा है तो यह स्वाभाविक रूप से केजरीवाल के लिए चिन्ता की बात होनी चाहिए। पहले पंजाब और गोवा फिर दिल्ली विधानसभा की राजौरी गार्डन सीट और अब दिल्ली नगर निगम हार की हैट्रिक लगाने के लिए खुद अरविन्द केजरीवाल जिम्मेदार हैं। दिल्ली में सरकार बनाने के साथ ही आप सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के और तरह-तरह के आरोप लगने लगे। सरकार का कोई मंत्री फर्जी डिग्री में तो कोई सेक्स सीडी में फंसा। केजरीवाल पीएम मोदी पर व्यक्तिगत आरोप लगाने व हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। कई बार तो सीमा लांघते हुए केजरीवाल ने मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी तक की। दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री चुना पर हिटलरी स्टाइल में यह कभी गोवा तो कभी गुजरात तो कभी पंजाब में सरकार बनाने के सपने देखने लगे। पार्टी में जो कोई भी आलोचना करता है उसे हिटलरी स्टाइल में पार्टी से निकाल दिया जाता है। दिल्ली में अगर आज विधानसभा चुनाव हो जाएं तो इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एक सर्वे में दो-तिहाई आंकड़े तक भी नहीं पहुंचेगी आप। दिल्ली नगर निगम चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व जीत के साथ ही केजरीवाल सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। क्योंकि आम आदमी पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक पार्टी संयोजक अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ जबरदस्त असंतोष है और विधायकों का एक बड़ा गुट विद्रोह की तैयारी में जुटा हुआ है। इसकी झलक चुनाव से पहले बवाना के विधायक वेद प्रकाश दिखा चुके हैं। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि खुद केजरीवाल के ऊपर इस्तीफे का जबरदस्त दबाव है। केजरीवाल की कार्यशैली और लगातार मिल रही हार ने विधायकों का मनोबल बुरी तरह तोड़ दिया है। इन विधायकों को मालूम है कि अब उनके लिए आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। ऊपर से लाभ के पद मामले पर दर्जनों विधायकों की सदस्यता खत्म होने का खतरा बरकरार है। राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव किसी भी समय हो सकते हैं। इन परिणामों से भाजपा हाई कमान और जीते पार्षदों पर बड़ी जिम्मेदारी भी आ गई है। पिछले 10 साल से भ्रष्टाचार-युक्त नगर निगम में बेशक पार्टी ने अधिकतर मौजूदा पार्षदों को हटाकर नए चेहरों को टिकट दिया पर अब यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी की जिम्मेदारी बनती है कि नगर निगमों में वह भ्रष्टाचार-मुक्त, स्वच्छ प्रशासन दें। इस बार भाजपा पार्षदों की राह इतनी आसान नहीं होगी। उनकी हर गतिविधि पर प्रदेश नेतृत्व की कड़ी नजर होगी। उनके कामकाज और व्यवहार के बारे में लगातार फीड बैक भी लिया जाएगा। निगम क्षेत्र में कहां-कहां कमियां हैं और उन्हें कैसे दूर किया जाए अब इसकी जिम्मेदारी भाजपा नेतृत्व पर आ गई है। हो सके तो हाउस टैक्स या तो समाप्त किया जाए या कम तो जरूर किया जाए और इससे होने वाले राजस्व के नुकसान को भ्रष्टाचार कम करके पूरा किया जाए। यहां यह याद रहे कि केजरीवाल ने बिजली-पानी के बिल आधे कर दिए थे। अगर केजरीवाल कर सकता है तो आप क्यों नहीं। दिल्ली विधानसभा चुनाव तीन साल में होने हैं। नगर निगमों में अगर भाजपा अच्छा प्रशासन देती है तो इसका सीधा असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। नौकरशाही पर कड़ी नजर और सुधार अत्यंत जरूरी है। नगर निगम में अधिकारी भ्रष्टाचार की जड़ हैं। माहौल बहुत अच्छा है, देखना यह है कि योगी सरकार की तरह दिल्ली नगर निगम में पार्टी क्या एक्शन करके भी दिखा सकती है?

-अनिल नरेन्द्र

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