पाकिस्तान की सेना अदालत
ने सोमवार को भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण सुधीर जाधव को जासूसी और अशांति
फैलाने में मौत की सजा देकर दोनों देश में न केवल एक नया विवाद ही खड़ा किया है बल्कि भारत-पाक संबंधों में बहुत भारी तनाव पैदा कर दिया है।
भारत में इसके खिलाफ आक्रोश स्वाभाविक है। हमारे किसी निर्दोष नागरिक को कोई देश अपहरण
कर मौत की सजा सुना दे तो फिर देश के
शांत रहने का कोई कारण नहीं है। पाकिस्तान की एक फौजी अदालत ने
कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाकर यह साफ कर दिया है कि इस देश में सभ्य जीवन मूल्यों
की आज भी कोई कदर नहीं है। न्याय की वैश्विक धारणा का दरकिनार कर बगैर किसी सबूत के
बंद कमरे में किसी को इस तरह सजा सुनाने का तो यही मतलब निकलता है। पाकिस्तान की सैन्य
अदालत ने एक बार फिर दिखा दिया कि किस तरह उसने अंतर्राष्ट्रीय मानकों का माखौल उड़ाया
है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सैन्य अदालत के फैसले की क्षमता पर भी सवाल उठाया है। एमनेस्टी
के साउथ एशिया डायरेक्टर पटनायक ने कहा ः कुलभूषण जाधव को मौत की सजा देना दर्शाता
है कि किस तरह पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों की धज्जियां उड़ाई
है। उन्होंने बयान जारी कर कहा ः बचावकर्ता को उनके अधिकारों से वंचित करना और कुख्यात
गोपनीय तरीके से काम कर सैन्य अदालतें न्याय नहीं करती बल्कि उसका मजाक उड़ाती हैं।
उनकी व्यवस्था काफी गलत है जिन्हें केवल सैन्य अनुशासन के मुद्दों से निपटना चाहिए
न कि अन्य अपराधों से। मामला कुछ यूं हैं ः पाकिस्तान ने सोमवार को कहा कि रॉ के एजेंट
और नेवी अफसर कमांडर कुलभूषण जाधव उर्फ हुसैन मुबारक पटेल को मौत की सजा सुनाई गई है।
उन पर पाकिस्तान के खिलाफ विध्वंसक गतिविधियां चलाने का और जासूसी करने का आरोप है।
पिछले साल कुलभूषण की गिरफ्तारी के बाद से ही भारत सरकार छह बार वहां के विदेश मंत्रालय
को लिखकर दे चुकी है कि वे सेना के रिटायर्ड अधिकारी हैं और ईरान से अपना व्यापार करते
थे। रॉ से उनका कोई कनेक्शन नहीं है, उन्हें छोड़ दिया जाए। मंगलवार
को संसद में भी सभी सांसदों की यही राय थी। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज खुद यह स्वीकार कर चुके हैं कि जाधव
के भारतीय जासूस साबित करने के लिए ठोस सबूत उनकी सरकार के पास नहीं हैं। भारत जब सबूत
मांगता है तो पाकिस्तान जाधव की चंद मिन्टों की एक रिकार्डिंग दिखाता है, जिसे कम से कम पचास जगहों पर एडिट किया गया है। इस ढीलापन के बावजूद पाकिस्तान
की फौजी अदालत को जाधव के लिए मृत्युदंड ही उचित लगा तो उसकी नीयत को समझना होगा। पाकिस्तानी
सुप्रीम कोर्ट में इस अदालत के खिलाफ पहले से ही मुकदमा चल रहा है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान इकलौता मुल्क है जिसकी
फौज सड़क चलते लोगों
को उठाकर बंद कमरे में उन पर मुकदमा चलाती है। समस्या यह है कि पाकिस्तान में निर्वाचित
सरकार की महिमा इतनी नहीं है कि वह सेना के किसी फैसले को रोक सके या उसे फैसला बदलने
को कहे। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार इस समय एक साथ कई प्रकार के दबावों से fिघरी है और वह सेना की मुखापेक्षी की अवस्था में है। वैसे भी नवाज शरीफ कहते
हैं कि हर परिस्थिति से निपटने को पाकिस्तान तैयार है। लेकिन इस मामले में पाकिस्तान
को दुनिया के किसी देश का शायद ही समर्थन मिले। सारी दुनिया जानती है कि कुलभूषण केस
में न्याय न्यूनतम तकाजों का पालन भी पाकिस्तान ने नहीं किया। वियना संधि के मुताबिक
किसी विदेशी नागरिक को पकड़कर वहां के उच्चायोग या दूतावास को बाजाब्ता इसकी सूचना
दी जाती है। फिर उच्चायोग
या दूतावास अपने नागरिक से मिलकर उसे कानूनी सहायता पहुंचाना चाहता है तो इसकी अनुमति
उसे मिलती है। पाकिस्तान से 13 बार आग्रह किया गया कि भारतीय
उच्चायोग को कुलभूषण से मिलने दिया जाए
पर इजाजत नहीं मिली। यह भी नहीं बताया गया कि उस पर कहां और किस
आरोप में मुकदमा चलाया जा रहा है। दूसरी ओर भारत में तो मुंबई आंतकी हमलों के बाद अजमल
कसाब पर दो साल मुकदमा चला, सारे सबूत खुली अदालत में पेश हुए
और पाकिस्तान को उनमें से एक पर भी एतराज नहीं हुआ। इतना ही नहीं, भारत-पाक बंटवारे के बाद से भारत ने जितने भी पाक जासूस
पकड़े, एक को भी सजा-ए-मौत नहीं दी। पाकिस्तान को सोचना होगा कि निराधार आरोप के तहत एक भारतीय को
सबसे बड़ी सजा सुनाकर वह दोनों देश के रिश्तों को इतना खराब कर लेगा fिक वहां से वापसी बहुत मुश्किल हो जाएगी।
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