यूरोपीय संसद में ब्रेग्जिट समझौते पर मुहर लगने
के बाद 31 जनवरी को ब्रिटेन यूरोपीय संघ से औपचारिक
रूप से अलग हो गया। ब्रेग्जिट को लेकर ब्रिटेन के लोगों द्वारा जनमत संग्रह के करीब
साढ़े तीन साल बाद ब्रिटेन शुक्रवार को ईयू से औपचारिक रूप से अलग हो गया। 23
जून 2016 को जनमत संग्रह में 52 प्रतिशत मतदाताओं ने ब्रेग्जिट का समर्थन किया और 48 प्रतिशत ने इसका विरोध किया था। इस मौके पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस
जॉनसन ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि बहुत सारे
लोगों के लिए यह उम्मीद की घड़ी है। जो उन्हें लगा था कि यह कभी नहीं आएगी। हालांकि
बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो परेशान हैं और नुकसान होने जैसा महसूस कर रहे हैं। मैं सभी
की भावनाओं को समझता हूं और बतौर सरकार यह हमारी जिम्मेदारी है कि मैं देश को साथ लेकर
चलूं और आगे बढ़ाऊं। कंजरवेटिव पार्टी के नेता बोरिस जॉनसन पिछले साल ब्रेग्जिट की
कवायद को आखिरी मुकाम तक पहुंचाने के संकल्प के साथ देश के प्रधानमंत्री बने थे। 2016
में हुए जनमत संग्रह से अब तक ब्रिटेन में दो बार प्रधानमंत्री बदले
हैं। ब्रेग्जिट पर आए जनता के फैसले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पद
छोड़ा था। ब्रिटेन ने ब्रेग्जिट इसलिए छोड़ा कि ब्रिटेन के लोग सोचते हैं कि यूरोपीय
यूनियन बिजनेस के लिए बहुत सारी शर्तें लादता है और कई बिलियन पाउंड की वार्षिक मेंबरशिप
फीस लेता है। बदले में ज्यादा फायदा नहीं होता। इसकी वजह से ब्रिटेन पीछे जा रहा है।
ब्रिटेन चाहता है कि वह दोबारा अपनी सीमाओं पर नियंत्रण पा ले और उनके देश में काम
या रहने के लिए आने वाले बाहरी लोगों की संख्या घटा दे। ब्रिटेन 1973 में एकजुटता के संदेश के साथ ब्रेग्जिट पर शामिल हुआ था। 47 साल बाद ब्रिटेन इस समूह को अलविदा कह रहा है। इस तरह अब ईयू 27 देशों वाला समूह रह जाएगा। ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन अपने फैसले लेने के लिए
स्वतंत्र होगा और वह किसी भी देश के साथ बिना यूरोपीय संघ की मंजूरी के व्यापारिक समझौते
को अंजाम दे सकता है। लेकिन ऐसे समय जब वैश्विक अर्थव्यवस्था सुस्ती से गुजर रही है,
ब्रेग्जिट दुधारी तलवार जैसा भी है। एक ओर जहां ब्रिटेन यूरोपीय संघ
की व्यापार संबंधी बाध्यताओं से बाहर निकल जाएगा तो दूसरी ओर उसे इसका सदस्य होने के
नाते जो रियायत मिलती थी, वह नहीं मिलेगी। इसके बाद वह यूरोपीय
संघ के अन्य सदस्य देशों के साथ शुल्क मुक्त व्यापार नहीं कर सकेगा और शुल्क से आयात
का खर्च बढ़ेगा और अंतत उसकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। ब्रेग्जिट के प्रभाव से भारत
भी अछूता नहीं रहेगा, जिसकी इस समय तकरीबन 800 कंपनियां ब्रिटेन में हैं और जैसा कि विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि पाउंड
की कीमत में गिरावट आ सकती है, ऐसे में इन कंपनियों के मुनाफे
पर असर पड़ सकता है। वास्तव में ब्रेग्जिट के आंकलन में थोड़ा वक्त लगेगा।
-अनिल नरेन्द्र
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