Wednesday, 19 February 2020

सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देते हैं, देश छोड़ना ही बेहतर होगा

दूरसंचार विभाग को 1.47 लाख करोड़ रुपए चुकाने के फैसले पर अमल नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार और टेलीकॉम कंपनियों को फटकार लगाते हुए ऐसी बातें कह दीं जिनसे माननीय अदालत की नाराजगी साफ प्रकट हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश रोकने वाले दूरसंचार विभाग के डेस्क अफसर के पत्र पर नाराज जस्टिस अरुण मिश्रा ने मजबूरन यहां तक कह दिया कि मैं हैरान और परेशान हूं। कोर्ट के आदेश के बावजूद एक भी पैसा नहीं दिया गया। इस देश में क्या हो रहा है? एक अफसर ने कोर्ट का आदेश रोकने का दुस्साहस कैसे किया? क्या कोर्ट के आदेश की कोई कीमत नहीं है? क्या देश में कोई कानून नहीं बचा है? मुझे अब इस देश में काम नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देना चाहिए। देश छोड़ना ही बेहतर होगा। दौलत के दम पर वह कुछ भी कर सकते हैं। कोर्ट का आदेश भी रोक सकते हैं। डेस्क ऑफिसर ने संवैधानिक अथॉरिटीज को लिखा था कि कंपनियों पर बकाया भुगतान का दबाव न बनाएं और न ही कार्रवाई करें। इससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल रुक गया था। सुप्रीम कोर्ट ने डेस्क ऑफिसर को और टेलीकॉम कंपनियों को अवमानना का नोटिस भी दिया है। इन टेलीकॉम कंपनियों को 94 हजार करोड़ रुपए की बकाया राशि सरकार के पास नहीं जमा कराने पर सीधे-सीधे मानहानि का मामला तो है लेकिन इसमें एक और तथ्य तब जुड़ गया जब एक सरकारी आदेश ने ही उन्हें पैसा न जमा कराने का तर्प दे दिया। इन कंपनियों को यह धनराशि इस साल 23 जनवरी तक जमा करवानी थी, लेकिन अनेक कंपनियों ने यह रकम जमा नहीं कराई। 94 हजार करोड़ की रकम कम नहीं होती, खासकर तब जब मंदी के कारण सरकारी संस्थानों पर काफी दबाव है। कहा यह भी जा रहा है कि अदालत की सख्ती के बाद वोडाफोन-आइडिया जैसी कंपनियां बाजार से बाहर भी हो सकती हैं। जिसे 53 हजार करोड़ रुपए का बकाया चुकाना है, जबकि दिसम्बर तिमाही में उसे 6,438.80 करोड़ रुपए का घाटा हुआ हो। लेकिन इन कंपनियों का समर्थन इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि लाइसेंस एग्रीमेंट पर दस्तखत करने के बाद बकाया चुकाना उनका फर्ज है। इसके अलावा देश में दूरसंचार क्षेत्र के लगातार फैसले टाले जाने का लाभ उन्होंने उठाया है और खुद पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का दबाव उपभोक्ताओं पर वह डालती है। विगत दिसम्बर में ही दूरसंचार कंपनियों ने शुल्क बढ़ाने के अलावा ग्राहकों को मिलने वाली कई छूटें खत्म भी कर दी थीं। लिहाजा शीर्ष अदालत के फैसले का पालन तो उन्हें करना ही पड़ेगा। यह अलग बात है कि कंपनियों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का असर एक बार फिर उपभोक्ताओं पर ही पड़ने वाला है।

-अनिल नरेन्द्र

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