Friday 21 February 2020

शाहीन बाग को लेकर अगले सात दिन महत्वपूर्ण

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शाहीन बाग को लेकर अगले कुछ दिन महत्वपूर्ण हैं। शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरुद्ध करीब दो महीने से शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र में विरोध के अधिकार और प्रदर्शनों के जरिये जनजीवन को ठप कर देने के फर्प को उचित ही रेखांकित किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि लोकतंत्र विचार व्यक्त करने की तो इजाजत देता है, लेकिन इसकी सीमाएं और रेखाएं भी हैं। उल्लेखनीय है कि शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों ने वह सड़क बंद कर रखी है, जो दिल्ली और नोएडा को जोड़ती है। इससे नोएडा और दिल्ली के बीच सफर करने वालों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा है कि यह मुद्दा जनजीवन को ठप करने की समस्या से जुड़ा है। पिछली सुनवाई में भी उसने कहा था कि सार्वजनिक जगह पर अनंत काल के लिए प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। अदालत की चिन्ता यह है कि शाहीन बाग की तर्ज पर लोग अगर समाज और सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए सार्वजनिक जगहों पर प्रदर्शन करने लगें तो बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी। लिहाजा अदालत ने कहा कि प्रदर्शन करने के लिए जंतर-मंतर निर्धारित है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सड़क खाली कराने का कोई निर्देश देने के बजाय प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिए। शाहीन बाग की धरना दे रही महिलाओं का कहना है कि अगली तारीख पर सुप्रीम कोर्ट ने रास्ता खाली करने का निर्णय दिया तो सभी प्रदर्शनकारी उसे स्वीकार करेंगे। महिलाओं ने सोमवार को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर सोमवार सुबह से ही शाहीन बाग में सबकी सांसें थमी हुई थीं। दोपहर करीब दो बजे निर्णय आने के बाद हर कोई उसे जानने के लिए उत्सुक दिखा। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को प्रदर्शनकारियों से बातचीत करनी चाहिए। अदालत की ओर से प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह को मध्यस्थ नियुक्त करने का धरने पर बैठी महिलाओं ने तालियां बजाकर स्वागत किया। दादी बिलकिस ने मंच से दूसरी महिलाओं को इसकी जानकारी दी। दादियों ने कहा कि वह मध्यस्थों के समक्ष अपनी बात विस्तार से रखेंगी। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि वह मध्यस्थों से बातचीत करेंगी लेकिन पुलिस के किसी भी अधिकारी से नहीं। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण में पुलिस की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही है। उधर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले शाहीन बाग में मामूली भीड़ थी, लेकिन इसके बाद वहां लोग जमा हो गए। कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत भी बता रहे थे। यह दुख की बात है कि रास्ता खुलवाने का भी काम सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ रहा है। यह काम सरकार का है। अगर सरकार के स्तर पर पहले ही प्रदर्शनकारियों से बातचीत की पहल की जाती तो संभवत हल निकल सकता था। लेकिन उससे उलटा किया गया। अब भी मौका है सरकार चाहे तो बातचीत से हल निकल सकता है पर बातचीत तो करें?

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