Thursday 20 February 2020

असहमति लोकतंत्र का सुरक्षा वाल्व है

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के विरोध में देश के कई हिस्सों में विरोध पदर्शन हो रहे हैं। माननीय न्यायाधीश ने शनिवार को कहा कि असहमति को लोकतंत्र के सुरक्षा वाल्व की तरह देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि असहमति को एक सिरे से राष्ट्र विरोधी और लोकतंत्र विरोधी बता देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के मूल विचार पर चोट करता है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है। जो कानून के शासन का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि असहमति का संरक्षण करना यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक रूप से एक निवार्चित सरकार हमें विकास एवं सामाजिक समन्वय के लिए एक न्यायोचित औजार पदान करती है, वे उन मूल्यों एवं पहचानों पर कभी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो हमारी बहुलवादी समाज को परिभाषित करती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विचार-विमर्श वाले संवाद का संरक्षण करने की पतिबद्धता पत्येक लोकतंत्र का खासतौर पर किसी सफल लोकतंत्र का एक अनिवार्य पहलू है। न्यायमूर्ति ने कहा कि लोकतंत्र की असली परीक्षा उसकी सृजनता और उन गुंजाइशों को सुनिश्चित करने की उसकी क्षमता है जहां हर व्यक्ति बगैर किसी भय के अपने विचार पकट कर सके। उन्होंने कहा कि संविधान में उदारवाद में विचार की बहुलता के पति पतिबद्धता है। संवाद करने के लिए पतिबद्ध एक वैध सरकार राजनीतिक पतिवाद पर पाबंदी नहीं लगाएगी, बल्कि उसका स्वागत करेगी। उन्होंने परस्पर आदर और विविध विचारों की गुंजाइश के संरक्षण की असहमति पर भी जोर दिया। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उस पीठ के हिस्सा थे, जिसने यूपी में सीएए के खिलाफ पदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से क्षतिपूर्ति वसूल करने के लिए जिला पशासन द्वारा कथित पदर्शनकाfिरयों को भेजी गई नोटिस पर जनवरी में पदेश सरकार से जवाब मांगा था। न्यायमूर्ति के मुताबिक बहुलवाद को सबसे बड़ा खतरा विचारों को रखने से और वैकल्पिक या विपरीत विचार देने वाले लोकपिय एवं अलोकपिय आवाजों को खामोश करने से है। उन्होंने कहा कि विचारों को बढ़ाना राष्ट्र की अंतरात्मा को दबाना है। उन्होंने यह भी कहा कि व्यक्ति या संस्था भारत की परिकल्पना पर एकाधिकार करने का दावा नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत या मुस्लिम भारत के विचार को खारिज कर दिया थे। उन्होंने सिर्प भारत गणराज्य को मान्यता दी थी।

-अनिल नरेन्द्र

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