Thursday 27 February 2020

सड़क से गली- मोहल्लों तक हिंसा

देश में एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर अहमदाबाद और आगरा होते हुए सोमवार रात को दिल्ली पहुंचे, वहीं दूसरी तरफ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की आग एक बार दोबारा से दिल्ली के उत्तर-पूर्व जिले में फफक उठी। यह कहना गलत नहीं होगा कि सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट अब क्रिमिनल एंड आर्म्स (सीएए) में तब्दील हो चुका है। लेकिन इस बार आमना-सामना सीएए विरोधियों व समर्थकों के बीच है। दिल्ली में सोमवार को भड़की हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस के एक हवलदार रतन लाल शहीद हो गए। भीड़ द्वारा मौजपुर और गोकुलपुरी में किए गए पथराव व आगजनी में हैड कांस्टेबल रतन लाल शहीद हो गए। जबकि शाहदरा जिले के डीएसपी (उपायुक्त) अमित शर्मा पथराव में जख्मी हो गए। वहीं दंगाइयों की पत्थरबाजी में आईबी कांस्टेबल अंकित शर्मा की भी मृत्यु हो गई। इसके अलावा 60 से ज्यादा अन्य पुलिस कर्मी घायल हो गए। 20 अन्य लोगों जिनमें प्रदर्शनकारी और अन्य नागरिक शामिल हैं, की मौत की खबर है। मरने वालों की संख्या अब 22 हो गई है। नागरिकता कानून के विरोध में पूर्वी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में हुई हिंसा को पुलिस सुनियोजित बता रही है। पुलिस के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सोमवार को भारत दौरे पर आ रहे थे। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की छवि विश्व पटल पर खराब करने के इरादे से इस पूरी हिंसा की एक क्रिप्ट लिखी गई। इसका माहौल गुरुवार रात से ही बनना शुरू हो गया था। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक शाहीन बाग में काफी दिनों से सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकार लोगों से बात कर रहे थे। ऐसे में वहां शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन की इमेज बनाए रखने के लिए दूसरी जगहों पर हिंसक प्रदर्शन की पटकथा लिखी गई। स्पेशल ब्रांच सूत्रों की ओर से दावा किया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को लेकर पहले से ही अंदेशा जाहिर किया गया था कि माहौल को जानबूझ कर खराब किया जा सकता है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस हिंसक घटना के पीछे ऐसी बाहरी शक्तियां शामिल हो सकती हैं। इसके लिए कम उम्र के युवाओं को मोहरा बनाया गया। करावल नगर रोड स्थित शेरपुर चौक पर सोमवार सुबह से ही बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हो गए थे। एक तरफ सीएए के विरोध में लोग अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे, तो दूसरी तरफ समर्थन में लोग लामबंद थे। डीसीपी नॉर्थ-ईस्ट वेदप्रकाश सूर्या की ओर से कहा गया था कि वह दोनों पक्षों से बात कर रहे हैं। उन्हें प्रदर्शन नहीं करने को लेकर समझाया जा रहा है। हालांकि नतीजा एकदम उलट हुआ। लोग माने नहीं और आमने-सामने आ गए। इससे भी भयंकर हालात मौजपुर में देखने को मिले। लगभग 50 मीटर की दूरी पर दोनों गुटों के लोग नारेबाजी करते रहे। न केवल उपद्रवियों ने पुलिस के सामने तलवारें लहराईं बल्कि पुलिस के ऊपर पथराव भी कर दिया। यह सिलसिला रुक-रुक कर चलता रहा। पुलिस इन उपद्रवियों को काबू कर पाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई। स्थिति यह थी कि मौजपुर में घरों से लोग पत्थरबाजी कर रहे थे। दूसरी ओर से भी पथराव हुआ तो घरों के शीशे टूट गए। मौजपुर में उपद्रवियों ने बड़ी संख्या में दुकानों में तोड़फोड़ भी की। यही हालत चांद बाग में हुई। विरोध और समर्थक पक्ष आपस में भिड़ गए और दोनों तरफ से पथराव शुरू हो गया। इसी दौरान करीब 155 बजे दंगाइयों ने भजनपुरा स्थित पेट्रोल पंप पर पहले तो गाड़ियों में आग लगाई और फिर पेट्रोल पंप को भी पूंक डाला। उधर सूचना मिलते ही जब दमकल की गाड़ियां मौके पर पहुंचीं तो दंगाइयों ने दमकल की दो गाड़ियों को घेर लिया और एक गाड़ी में जमकर तोड़फोड़ की। वहीं दमकल कर्मियों के साथ हाथापाई भी की। यही हालत बाबरपुर में भी रही। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण करने के लिए कई बार आंसू गैस के गोले भी छोड़े। बहुत से उपद्रवियों में कुछ ऐसे थे जो पहचान छिपाने के इरादे से मुंह को रूमाल से कवर किए हुए थे। गुंडागर्दी का आलम यह कि वह सड़क पर हाथों में लाठी-डंडे लेकर दिनभर उत्पात मचाते रहे। जाफराबाद में पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे तो भीड़ पहले के मुकाबले ज्यादा उग्र हो गई। उपद्रवी लोगों ने दूसरे पक्ष के लोगों को पीटना शुरू कर दिया। करीब एक घंटे तक वह लोगों के घरों में पथराव करते रहे। यह सब पुलिस देखती रही। देर रात हिंसा सड़क से गली-मोहल्लों तक चली गई। भजनपुरा की गलियों के अंदर भी घरों में आग लगा दी गई। किसी मुद्दे पर समर्थन या विरोध को सुलझाने का रास्ता अगर बातचीत हो, तब किसी समाधान तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन दोनों पक्ष न केवल आमने-सामने आ गए, बल्कि उनके बीच टकराव शुरू हो गया। दोनों तरफ से हुई पत्थरबाजी और आगजनी ने दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए। सवाल है कि हिंसा में लिप्त होने वाले दोनों ही समूहों के लोग क्या यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अगर समय रहते इस टकराव को खत्म नहीं किया गया तो यह किस खतरनाक रास्ते की ओर बढ़ सकता है? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि विरोध और समर्थन में खड़े लोग अगर टकराव और हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ते हैं तो इसका परिणाम कुछ भी अच्छा नहीं हो सकता। पुलिस और राजनीतिक दलों को सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिस तरह कुछ नेताओं ने चेतावनी के लहजे में लोगों के बीच हिंसा और आक्रोश को भड़काने वाली भाषा का इस्तेमाल किया। उन पर रोक लगाई जाए और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। अगर दोनों पक्षों में कोई आशंका खड़ी हो रही है तो उस पर बातचीत के जरिये समाधान की राह तलाशना। अगर केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है तो इसमें दिल्ली सरकार को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। मामले को डिफ्यूज करना पहली प्राथमिकता है।

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