Friday 21 February 2020

महिलाएं किसी से कम नहीं, सरकार बदले अपनी दकियानूसी सोच

आज के दौर में महिलाओं ने हर स्तर पर यह साबित कर दिया है कि वह घर से लेकर बाहर तक किसी भी मोर्चे पर जटिल से जटिल हालात में काम करने में सक्षम हैं। उनकी क्षमताओं को कठघरे में खड़ा करना अपने आप में बेहद अफसोसजनक है। अब वह भी सेना में किसी सैन्य टुकड़ी की कमान संभाल सकेंगी। सोमवार को यह दूरगामी ऐतिहासिक फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया। केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को लेकर केंद्र को दकियानूसी मानसिकता बदलनी होगी। कमान नियुक्तियों में महिलाओं को शामिल न करना गैर-कानूनी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि महिला अफसरों को सेना के 10 विभागों में स्थायी कमिशन दिया जाए। अदालत ने इसे लेकर केंद्र की पिछली 25 फरवरी को स्थायी कमिशन नीति को मंजूरी दी। हालांकि पीठ ने साफ कहा, चूंकि जंगी भूमिका के लिए महिला अफसरों की तैनाती नीतिगत मामला है, इसे सरकार तय करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहाöदो सितम्बर 2011 को हमने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, फिर भी केंद्र ने फैसले को लागू नहीं किया। हाई कोर्ट के फैसले पर अमल नहीं करने की कोई वजह या औचित्य नहीं है। महिलाओं की शारीरिक क्षमताओं पर केंद्र के विचारों को कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि 70 साल बाद भी सरकार ने अपने नजरिये और मानसिकता में बदलाव नहीं किया। सेना में सच्ची समानता लानी होगी। असल में 30 प्रतिशत महिलाएं युद्ध क्षेत्रों में तैनात हैं। स्थायी कमिशन से इंकार करना पूर्वाग्रह से ग्रस्त और पुरातनपंथी है। महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं, उनकी सहायक नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि महिलाएं अपने पुरुष अधिकारियों के साथ कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। महिला अधिकारी अपने पराक्रम में कहीं से भी कम नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को शारीरिक आधार पर परमानेंट कमिशन न देना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। स्थायी कमिशन से लेकर यूनिट और कमान के नेतृत्व यानि कमांड पोस्टिंग को लेकर सरकार का रुख बेहद नकारात्मक था और अदालत में जिस तरह की दलीलें दी गईं, वह न केवल बेहद उथली थी, बल्कि बराबरी के मूल्यों पर आधारित एक आधुनिक समाज की परिकल्पना के खिलाफ भी। जहां खुद सरकार को समाज में फैली महिलाओं के प्रति पिछड़ी और सामंती धारणाओं को दूर कर लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ने देना चाहिए था। वहां उसने अदालत में महिलाओं की क्षमता को कठघरे में खड़ा किया और यहां तक कि महिला के विरुद्ध औसत पुरुषों की मानसिकता में बैठी पुंठा को अपने तर्प में पेश किया। 51 महिलाओं को यह जंग जीतने का श्रेय जाता है जो अपने हक के लिए लड़ती रहीं। बता दें कि यह फैसला 51 अफसरों की याचिका पर आया है। सेना में 1653 महिला अफसर हैं, जो अफसरों की संख्या का 3.9 प्रतिशत है। 30 प्रतिशत महिलाएं लड़ाकू क्षेत्रों में तैनात हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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