Thursday 13 February 2020

भाजपा मुक्त दिल्ली

8 फरवरी को मतदान के बाद जब एग्जिट पोल आए तो भाजपा ने इसे मानने से इंकार कर fिदया। दिल्ली चुनाव की पकिया शनिवार को पूरी होते ही भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह ने मैराथन बैठक की। शनिवार को रात 8 बजे शुरू हुई यह बैठक तड़के तीन बजे तक चली। इस दौरान दोनों नेताओं ने पदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी और दिल्ली के सांसदों से एक-एक सीट का फीडबैक लिया। दोनों नेताओं की दिलचस्पी यह जानने की थी कि रणनीति के अनुसार बूथ कमेटियों के कार्यकर्ता अपने समर्थकों का अधिकतम मतदान कराने में सफल रहे या नहीं? लोकसभा में राजधानी में क्लीन स्वीप करने के बाद अमित शाह ने विधानसभा में 70 फीसदी का लक्ष्य निर्धारित किया था। अलग-अलग बूथ कमेटी के सदस्यों के साथ कई अन्य स्थानीय नेताओं को अधिक मतदान कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो साफ हो गया कि भाजपा अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई। यह तभी साफ हो गया था कि भाजपा हार गई है पर फिर भी मनोज तिवारी 48 सीटें जीतने का दावा करते रहे। 8 महीने में दिल्ली का सियासी मिजाज पूरी तरह बदल गया। इसी का नतीजा है कि लोकसभा में सभी सातों सीटें (संसदीय) जीतने वाली भाजपा को विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस पर झाड़ू फेर दी। भाजपा की तरफ से बेशक खुद पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वोट मांगे, गृहमंत्री अमित शाह ने पचार की कमान सम्भालकर वोटरों को अपनी ओर खींचने का जोर लगाया, लेकिन सत्ता की चांबी लोगों ने अरविंद केजरीवाल को ही थमाई। भाजपा के दिल्ली में सत्ता पाने के इंतजार के 22 सालों में पांच और साल जुड़ गए हैं। शुरुआत में केजरीवाल की हवा तेज थी लेकिन अमित शाह के आकामक पचार ने हालात भाजपा के लिए बदलने का पयास किया। केजरीवाल ने बेहद चालाकी से दिल्ली के मुद्दों पर फोकस करना जारी रखा। उन्होंने न नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर कड़े पहार किए और न  भाजपा की ओर से उठाए जा रहे मुद्दों पर ज्यादा बयानबाजी की। यह आम आदमी पार्टी के पक्ष में गया। कांग्रेस ने मानों शुरू से ही हार मान ली और जब कांग्रेस को लगा कि उनका उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवार को हराने की स्थिति में नहीं और अगर वह अपना पचार जारी रखता है तो वोट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में बंट जाएंगे जिससे भाजपा को सीधा फायदा होगा तो उसने अपने वोट आम आदमी पार्टी की ओर ट्रांसफर कर दिए और नतीजा सबके सामने है। दिल्ली की जनता ने साबित कर दिया कि उनके जीवन को सीधे पभावित करने वाले मुद्दे सबसे महत्वपूर्ण हैं तो उन्होंने आम आदमी पार्टी को बंपर विजय दिलाई। भाजपा का न तो राष्ट्रवाद चला, न शाहीन बाग चला और न ही धुव्रीकरण की ओछी रणनीति ही रंग लाई। बिजली, पानी, स्वास्थ्य, बुजुर्गों की तीर्थ यात्रा सहित दिल्ली के स्कूलों में हुए सुधार पर वोट पड़े। दिल्ली की पब्लिक ने स्थानीय मुद्दों पर वोट fिदया। स्लम, अनियमित कालोनियों और ग्रामीण इलाकों में केजरीवाल की पार्टी ने जबरदस्त पदर्शन किया। केजरीवाल सरकार ने जिस तरह 200 यूनिट तक बिजली फी कर दी, पानी का बिल माफ कर दिया, सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए काम किया और मोहल्ला  क्लीनिक खोले, ये जनता को भा गया। धारा 370, एनआरसी और राम मंदिर जैसे मुद्दे जमीनी हकीकत में दफन हो गए। आम दिल्ली वालों को आप का झाड़ू अपना लगा। भावानात्मक मुद्दों से दिल्ली की जनता पभावित नहीं हो पाई। अरविंद केजरीवाल की व्यक्तिगत छवि का फायदा आप को मिला। जैसे केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की छवि है वैसे ही आप कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल की छवि पेश की। आम लोगों तक उनकी आसान पहुंच ने भी आप की लोकपियता में इजाफा किया। दूसरी ओर भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो दिल्ली को संभाल सके। शायद अगर डा. हर्षवर्धन को आगे करती तो फायदा होता। दिल्ली में मनोज तिवारी भाजपा के अध्यक्ष हैं, लेकिन कभी उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बताया गया। पार्टी ने सिर्प मोदी के चेहरे पर भरोसा किया पर दिल्ली की जनता ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर तो स्वीकार किया पर दिल्ली में नहीं। यह चुनाव पॉजीटिव चुनाव था। जैसे शीला दीक्षित ने विकास के नाम पर पन्द्रह साल राज किया लगभग उसी तरीके से अरविंद केजरीवाल ने पॉजीटिव चुनाव लड़ा।

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