Friday, 14 February 2020

केजरीवाल की जीत ऐतिहासिक है, भाजपा की हार उससे भी ऐतिहासिक

देश की राजधानी दिल्ली में 1998 से लगातार सत्ता से बाहर भाजपा को एक बार फिर विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। नई रणनीति, अहम राष्ट्रीय मुद्दे और पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा के हिस्से में 70 में से मात्र आठ सीटें आई हैं यानि पिछली बार से मात्र पांच ज्यादा। हालांकि उसका वोटर शेयर भी छह प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। लेकिन सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के मुफ्त बिजली, पानी, महिलाओं को डीटीसी में फ्री यात्रा, मोहल्ला क्लिनिक का भाजपा कोई तोड़ नहीं निकाल सकी। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए पिछले दो सालों में सात राज्यों से सत्ता गंवा चुकी है। पिछली बार दिल्ली में महज तीन सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। हालांकि यह अनुमान गलत साबित हुए। इसी के साथ भाजपा के लिए देश का सियासी नक्शा भी नहीं बदला। दिल्ली समेत 12 राज्यों में अब भी भाजपा विरोधी दलों की सरकारें हैं। एनडीए के पास 16 राज्यों में सरकार है। दिल्ली में केजरीवाल की जीत ऐतिहासिक है लेकिन भाजपा की हार उससे भी ऐतिहासिक है। देश के इतिहास में भाजपा पहली बार इतनी बुरी तरह हारी है। हो सकता है कि आंकड़े इसका समर्थन न करते हों, हो सकता है कि लोग कहें कि भाजपा 1984 में लोकसभा में सिर्प दो सीटें लाई थी। दिल्ली में भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्प तीन सीटें लाई थी फिर यह हार सबसे बड़ी हार कैसे कही जा सकती है? लेकिन यह हार आम हार नहीं है। केंद्र में जो भाजपा 1984 में हारी उस समय केंद्र में उसकी सरकार भी नहीं थी। न उसके पास अनंत संसाधन ही थे। दिल्ली चुनाव में जब पिछली बार भाजपा हारी तो भी उसने इतनी बड़ी बाजी नहीं खेली थी। इस बार का चुनाव खास है। थोड़ा बहुत नहीं 350 चुनाव जीतने के एक्सपर्ट सांसद इस बार दिल्ली की सड़कों का इंच-इंच नाप रहे थे ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। भाजपा के चाणक्य समझे जाने वाले अमित शाह इस तरह टूटकर चुनाव में इससे पहले कभी भी नहीं उतरे थे। गृहमंत्री अमित शाह खुद गली-गली घूमकर वोट मांग रहे थे। उन्होंने अपने हाथ से पर्चे तक बांटे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोरदार भाषणों से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। अमित शाह ने अपने अंदाज में हर तरह से प्रशासन को दांव पर लगा दिया। शाहीन बाग में तमंचा चलाने के मामले में कपिल गुर्जर नामक ल़ड़का पकड़ा गया तो खुलकर दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी का नाम तक ले लिया। भाजपा के सारे मुख्यमंत्री दिल्ली में लोगों को लुभाने में लगे थे। कुछ धर्म के नाम पर वोट मांग रहे थे तो कुछ कसमें खिला रहे थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं जानबूझ कर ऐसे इलाकों में रखी गईं, जहां मुस्लिम आबादी बहुत थी और तनाव की संभावना पूरी थी। इन इलाकों में जाकर उन्होंने उग्र भाषण भी दिए। लेकिन भाजपा हार गई। इससे बड़ी हार क्या हो सकती थी? हार इसलिए भी सबसे बड़ी हार है कि पार्टी ने अपना तुरुप का पत्ता बेकार फेंका। धर्म के नाम पर वोट कमाने के लिए पार्टी के सांसद प्रवेश वर्मा ने यहां तक कह दिया कि मुसलमान शाहीन बाग के धरने से उठकर घरों में घुस जाएंगे। इस बयान के लिए उन्हें चुनाव आयोग ने प्रतिबंधित तक किया। देश के वित्तमंत्री के खिलाफ गोली मारो वाले बयान के लिए एफआईआर तक दर्ज हुई। प्रतिबंध भी लगा। सिर्प इतना ही नहीं, भाजपा ने अपने सबसे खास साख वाले चेहरों को भी दांव पर लगा दिया। शाहीन बाग को लेकर पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने लगातार फेक वीडियो प्रसारित किए। दिल्ली में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे वोट मांगे और सभाएं कीं। यहां तक कि संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस में भी प्रधानमंत्री ने वही भाषण दिया जो उनका दिल्ली में चुनावी भाषण था। इस बार भाजपा ने दिल्ली के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार के लिए 350 से अधिक नेताओं और उम्मीदवारों का इस्तेमाल किया। भाजपा शासित राज्यों के अधिकांश मुख्यमंत्री और एनडीए के सदस्यों ने भाजपा के प्रचार के लिए हाथ मिलाया। लेकिन पार्टी हार गई यह भाजपा की सबसे बड़ी हार है।

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