Wednesday, 18 April 2012

तालिबानी हमले से कांपा अफगानिस्तान

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 18 April 2012
अनिल नरेन्द्र
तालिबान ने काबुल में अफगानिस्तानी संसद और कई देशों के दूतावासों पर हमला कर यह संकेत दे रहा है कि तालिबान पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुका है। यह हमला तालिबान की ताकत का तो अहसास कराता ही है पर साथ-साथ यह भी बताता है कि अफगानिस्तान का भविष्य अंधकार में है, तालिबान के निहायत खतरनाक इरादे हैं। ओसामा बिन लादेन की बरसी से 17 दिन पहले तालिबान ने दुनिया को चुनौती दी है। आत्मघाती हमलावरों ने रविवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और रूस के दूतावासों पर हमले किए। साथ ही नेशनल असेम्बली में घुसने की भी कोशिश की। इसके अलावा तीन और शहरों में भी हमले हुए। कुल 11 जगहों पर हुए हमलों में 48 लोग मारे गए हैं। इनमें 19 आतंकी भी शामिल हैं। आतंकियों ने राकेट, ग्रेनेड और मशीनगनों से फायरिंग की। दिन के तीन बजे शुरू हुई गोलीबारी कुछ जगहों पर देर शाम तक चलती रही। 2001 के बाद से इसे काबुल पर अब तक का सबसे भीषण हमला बताया जा रहा है। तालिबान प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने हमलों की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि यह महज शुरुआत है। हमले की तैयारी एक माह से चल रही थी। आने वाले समय में और हमले होंगे। इस हमले के पीछे हक्कानी गुट का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। 1994 से सक्रिय इस समूह का संचालन पाकिस्तान से होता है। अमेरिका कई बार पाक को हक्कानी पर लगाम लगाने की हिदायत दे चुका है। गुट की कमान मौलवी जियाउद्दीन हक्कानी और उसके बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी के हाथों में है। संगठन तालिबान से मिला हुआ है। हक्कानी गुट पर इसलिए शक जाता है क्योंकि विगत सितम्बर में अमेरिकी दूतावास को इसी ने निशाना बनाया था। दरअसल पिछले दिनों अमेरिकी अधिकारियों की तालिबान के साथ बातचीत के पटरी से उतर जाने के बाद से ही अफगानिस्तान में आतंकवादी हिंसा की आशंका जताई जा रही थी। 2014 में अमेरिका और उसके सहयोगी अफगानिस्तान से कूच करने की तैयारी में हैं। यह चिन्ता का विषय है कि लगभग 1,25,000 नाटो सैनिकों की उपस्थिति के बावजूद हामिद करजई सरकार राजधानी काबुल की सुरक्षा में भी सक्षम नहीं दिखती। जाहिर है कि तालिबान का मनोबल इसलिए भी बढ़ा हुआ है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि अमेरिका और उसके सहयोगी अब अफगानिस्तान में चन्द दिनों के ही मेहमान हैं। जाते-जाते अमेरिकी सैनिक भी ऐसी हरकतें कर रहे हैं जिससे आग और ज्यादा भड़के। कुरान को जलाना, एक अमेरिकी सैनिक द्वारा 16 निर्दोष अफगानियों को मौत के घाट उतारने से भी तालिबान को बल और जन समर्थक बढ़ा है। पिछले ही दिनों में हामिद करजई ने विदेशी सैनिकों को ग्रामीण इलाकों को छोड़ शहरी क्षेत्र में मुख्य कैम्पों में लौट जाने को कहा था। काबुल की मांग यह भी है कि अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से वापसी की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दें। समझ नहीं आता कि करजई किस बिनाह पर ऐसा कह रहे हैं। अफगानिस्तान के मौजूदा परिदृश्य से हमें भी चिंतित होना चाहिए। यह राहतकारी है कि ताजा कार्रवाई से भारतीय दूतावास अछूता रहा, लेकिन यह सही समय है जब भारत सरकार इस पर गम्भीरता से विचार करे कि अफगानिस्तान के पुनरुत्थान में वह जो अरबों रुपये खर्च कर रही है उससे भारत को क्या हाथ लगने वाला है?
Afghanistan, Anil Narendra, Daily Pratap, Taliban, Vir Arjun

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