Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 13 April 2012
अनिल नरेन्द्र
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। देश के अन्दर तो उनकी इतनी चर्चा नहीं हो रही जितनी विदेशों में है। अमेरिका के प्रतिष्ठित समाचार पत्र वाशिंगटन पोस्ट के स्तम्भकार सीमोन डेयनार ने एक रिपोर्ट में लिखा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 के आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद के सबसे सशक्त दावेदार होंगे। भारत में काफी लोग उन्हें रोल मॉडल के रूप में देखते हैं। कुछ लोगों की नजर में वह देश के सबसे योग्य नेता हैं। हालांकि एक बड़ा वर्ग आज भी उन्हें मुसलमानों के सामूहिक नरसंहार के लिए माफ नहीं कर पाया है। रिपोर्ट में लिखा है कि नरेन्द्र मोदी को भारत की राजनीति में सबसे जटिल व्यक्तित्व वाला राजनेता माना जा सकता है। मोदी की अगुवाई में गुजरात जैसे राज्य की अर्थव्यवस्था ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। लेकिन मुख्यमंत्री की हिन्दू राष्ट्रवादी छवि से काफी लोगों को लगता है कि उनके नेतृत्व में कट्टर धार्मिक शक्तियों को बल मिलेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी जैसे नेता की अगुवाई में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पुरानी सैक्यूलर छवि को धक्का लग सकता है। नरेन्द्र मोदी को राज्य में भ्रष्टाचार खत्म करने के साथ आर्थिक और औद्योगिक विकास को नई गति देने का श्रेय जाता है। तेजी से आगे बढ़ती गुजरात की अर्थव्यवस्था में न सिर्प देशी कम्पनियां बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी कम्पनियों ने भी गुजरात में निवेश किया है। मोदी के आलोचक भी उन्हें निजी तौर पर भ्रष्ट नहीं मानते। साल 2014 में होने वाले आम चुनाव के बाद भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार हो सकते हैं नरेन्द्र मोदी।
श्री नरेन्द्र मोदी की इस प्रकार की प्रोजेक्शन से जहां मुसलमान समुदाय परेशान है वहीं उनकी अपनी पार्टी के कुछ लोग भी खुश नहीं हैं। प्रवासी भारतीयों के बीच मोदी को मिल रहे व्यापक समर्थन के चलते संघ परिवार के भीतर भी समीकरण बदल रहे हैं। इसका कारण है कि संघ की प्रवासी भारतीयों में गहरी पैठ है। अमेरिका, चीन और जापान का उद्योग क्षेत्र मोदी के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में लगा है। हालांकि भाजपा और संघ का एक बड़ा वर्ग मोदी को किनारे लगाने में लगा है ताकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में ताकतवर होकर न उभर पाएं। इसलिए संगठन स्तर पर मोदी की छवि खलनायक वाली बनाने की भी कोशिश हो रही है और कुछ हद तक मोदी खुद ऐसी छवि बनाने के लिए बारूद दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार न करना और पिछले वर्ष दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में न आना मोदी की संगठन विरोधी गतिविधियों को दर्शाता है। बहुत से भाजपाइयों का कहना है कि मोदी अपने आपको पार्टी से ऊपर समझने लगे हैं। मोदी के दिमाग में अब गरूर आ गया है। दुनिया के 100 प्रभावशालियों के लिए कराए जा रहे टाइम्स पत्रिका के सर्वे में मोदी ने ओबामा और ब्लादिमीर पुतिन को पछाड़ दिया है। माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन देश-विदेश में हो रहे सर्वेक्षणों में लोकप्रियता के हिसाब से नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी से पीछे हैं।
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श्री नरेन्द्र मोदी की इस प्रकार की प्रोजेक्शन से जहां मुसलमान समुदाय परेशान है वहीं उनकी अपनी पार्टी के कुछ लोग भी खुश नहीं हैं। प्रवासी भारतीयों के बीच मोदी को मिल रहे व्यापक समर्थन के चलते संघ परिवार के भीतर भी समीकरण बदल रहे हैं। इसका कारण है कि संघ की प्रवासी भारतीयों में गहरी पैठ है। अमेरिका, चीन और जापान का उद्योग क्षेत्र मोदी के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में लगा है। हालांकि भाजपा और संघ का एक बड़ा वर्ग मोदी को किनारे लगाने में लगा है ताकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में ताकतवर होकर न उभर पाएं। इसलिए संगठन स्तर पर मोदी की छवि खलनायक वाली बनाने की भी कोशिश हो रही है और कुछ हद तक मोदी खुद ऐसी छवि बनाने के लिए बारूद दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार न करना और पिछले वर्ष दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में न आना मोदी की संगठन विरोधी गतिविधियों को दर्शाता है। बहुत से भाजपाइयों का कहना है कि मोदी अपने आपको पार्टी से ऊपर समझने लगे हैं। मोदी के दिमाग में अब गरूर आ गया है। दुनिया के 100 प्रभावशालियों के लिए कराए जा रहे टाइम्स पत्रिका के सर्वे में मोदी ने ओबामा और ब्लादिमीर पुतिन को पछाड़ दिया है। माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन देश-विदेश में हो रहे सर्वेक्षणों में लोकप्रियता के हिसाब से नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी से पीछे हैं।
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