Sunday, 22 April 2012

नए फतवे ः मुस्लिम महिलाएं ब्यूटी पार्लर में काम न करें, मर्द दूसरी शादी से बचें

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22 April 2012
अनिल नरेन्द्र
देवबंदी मसलक के सबसे बड़े इस्लामिक तालीमी केंद्र दारुल उलूम के फतवे एक बार फिर चर्चा में हैं। देवबंद ने एक फैसले में महिलाओं के ब्यूटी पार्लर में काम करने से मना करते हुए कहा है कि ऐसा करना शरीयत के खिलाफ है। देवबंद के इस फैसले पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। कुछ मुस्लिम नेताओं ने इस फैसले को औरतों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान की दृष्टि से गलत तो माना है। कांग्रेस के प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कन्नी काटते हुए कहा कि किसी मजहबी मामले में प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं है। वहीं भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमण का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को आगे बढ़ने की उसी तरह स्वतंत्रता होनी चाहिए जिस तरह दूसरे धर्मों में महिलाओं को मिली हुई है। फतवे महिलाओं के आर्थिक-सामाजिक विकास में बाधा नहीं बनने चाहिए। दूसरी ओर राज्यसभा के निर्दलीय सांसद मोहम्मद अदीब का कहना है, देखना चाहिए कि देवबंद ने यह फतवा क्यों जारी किया? उनका कहना है कि दारुल उलूम से किसी ने पूछा होगा कि यदि किसी ब्यूटी पार्लर में मर्द भी आते हैं तो क्या ऐसे पार्लर में महिलाओं का काम करना उचित होगा? इसके जवाब में यह फतवा आया होगा कि ऐसी जगहों पर औरतों का काम करना ठीक नहीं है। इसके उलट सामाजिक कार्यकर्ता रजनी कुमारी ने इस फतवे को पूरी तरह गलत बताया। उनका कहना है कि ऐसे फैसले औरतों के आर्थिक-सामाजिक विकास में बाधक बनते हैं। धार्मिक संस्थाओं को ऐसे फतवे जारी करने से पहले सामाजिक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों को ध्यान में रखना चाहिए। महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर आज रोजगार का प्रमुख जरिया बने हुए हैं और इसके जरिए यदि कोई महिला अपने परिवार का पालन करता है तो इसमें आखिर क्या बुराई हो सकती है?
दूसरी सलाह मुसलमानों द्वारा दूसरी शादी करने संबंधी है। दारुल उलूम ने अपने रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाते हुए एक से अधिक शादियां करने से बचने की सलाह दी है। मुस्लिम कानून के अंतर्गत एक से अधिक शादी जायज है पर अब देवबंद ने दूसरी शादी के इच्छुक एक व्यक्ति को सलाह दी है कि आधुनिक समय की मांग और जरूरत के हिसाब से यह ज्यादा सही और ज्यादा भारतीय है कि एक ही पत्नी काफी है। इस व्यक्ति की पहली शादी से दो बच्चे हैं। शरिया के अनुसार एक मुस्लिम व्यक्ति को एक ही साथ दो बीवियां रखने का हक है। लेकिन दारुल इफ्ता, जो कि दारुल का ऑनलाइन फतवा जारी करने का विभाग है, ने कहा है कि इस तरह की बातें (एक से अधिक शादी) सामान्यत भारतीय परम्पराओं में मान्य नहीं है। भारत में ऐसा करना सैकड़ों मुसीबतों को दावत देना है। इसके अलावा इस तरह की शादी में दोनों बीवियों के साथ बराबरी का सलूक करना किसी भी आदमी के लिए काफी मुश्किल है। इसलिए आप दूसरी शादी का इरादा त्याग दीजिए। फतवा कमेटी के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारुकी ने कहाöबिना किसी ठोस आधार या कारण के दूसरी और तीसरी शादी नहीं करनी चाहिए। घर के छोटे-मोटे झगड़ों को तलाक और दूसरी शादी का आधार कभी नहीं बनाना चाहिए। शरिया ने एक मुस्लिम आदमी को एक साथ चार शादियां करने की इजाजत जरूर दी है पर साथ ही साफ-साफ कहा है कि चारों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। ऑल इंडियन मुस्लिम पर्सनल-लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ. नईम हामिद का कहना है कि पहले बहुविवाह की इजाजत इसलिए थी कि कई गरीब लड़कियां विभिन्न आर्थिक और सामाजिक कारणों से पुंआरी ही रह जाती थीं पर अब मुस्लिम लोगों को चार तो क्या दूसरी शादी से भी बचना चाहिए। दूसरी शादी करना पारिवारिक ढांचे को बुरी तरह प्रभावित करता है। पहले दारुल उलूम बहुविवाह को मना नहीं करता था पर अब उसका अधिक फोकस मुसलमानों को आर्थिक और सामाजिक रूप से उठाना है।

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