पाकिस्तान में सेना और जरदारी सरकार में मतभेद हैं इसका एक उदाहरण हमें पाक सेनाध्यक्ष अशफाक परवेज कयानी के ताजा सियाचिन संबंधी बयान से मिलता है। बहुत कम पब्लिक में बोलने वाले जनरल कयानी ने पिछले दिनों कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को सियाचिन से अपनी सेना वापस बुला लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को सियाचिन के मुद्दे को बातचीत से सुलझाना चाहिए। ज्ञात हो कि सियाचिन में इस महीने की शुरुआत में हिमस्खलन में 125 पाक सैनिक सहित 139 लोग दब गए थे। जहां हमें इस बात का दुख है कि इतने पाक सैनिकों की मृत्यु हुई और हम उनके परिवारों के दुख में शरीक हैं वहीं हम यह भी कहना चाहेंगे कि हमें जनरल कयानी की बातों पर ज्यादा यकीन नहीं है। इधर जनरल कयानी का बयान आया तो उधर कुछ देर बाद ही पाक विदेश मंत्रालय ने स्पष्टीकरण दे दिया कि सियाचिन मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख में कोई तब्दीली नहीं हुई। इससे सवाल उठता है कि क्या जनरल कयानी के सियाचिन के उस जगह दौरे जहां बर्प में धंसने से पाक सैनिकों की मौत हुई थी वह इस अति दुर्गम स्थल पर मौत के तांडव के प्रति उनकी महज जज्बाती प्रतिक्रिया थी? क्या हम इसका यह मतलब भी निकाल सकते हैं कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिशों को पाक सेना का समर्थन प्राप्त है? संयोग से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी जरदारी की भारत यात्रा का समर्थन किया और सरकार से मांग की कि सियाचिन मुद्दे का हल ढूंढने के लिए वह अपनी ओर से पहल करें। मुश्किल यह है कि पाकिस्तान की कथनी और करनी में बहुत फर्प है। पाकिस्तान से मिलने वाले विरोधाभास संदेश अकसर दुविधा पैदा कर देते हैं। वैसे हाल में पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं। मसलन गृहमंत्री रहमान मलिक का भारत को आगाह करना कि तालिबानी आतंकवादी भारत में घुसपैठ कर सकते हैं और इसे रोकने के लिए पाकिस्तान भारत से पूरा सहयोग करने को तैयार है। लेकिन इन्हीं रहमान मलिक ने नवाज शरीफ के इस सुझाव की निन्दा कर दी कि पाकिस्तान को एकतरफा कदम उठाते हुए सियाचिन से अपनी फौज हटा लेनी चाहिए। ऐसे सन्दर्भों की वजह से हम जनरल कयानी की बातों को गम्भीरता से नहीं ले सकते। जो देश अपने अस्तित्व को भारत से दुश्मनी के सन्दर्भ में परिभाषित करता रहा हो और जहां विभाजन के अपूर्ण एजेंडे को पूरा करने की बातें खुलेआम कही जाती हों, वहां के सेनाध्यक्ष की ऐसी बातों पर सहज विश्वास न होना स्वाभाविक ही है। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने कम से कम तीन बार सियाचिन से भारत की फौजों को हटाने के लिए असफल सैन्य अभियान किए। यहां का मौसम इतना जानलेवा है कि युद्ध की बनिस्पत हिमस्खलन और शीत से ज्यादा लोग मरते हैं। दोनों ही देशों को यहां अपनी रक्षा सेनाओं पर जितना खर्च करना प़ड़ता है, उसकी तुलना में उन्हें कोई खास लाभ नहीं। भारत का कहना है कि हम अपनी सेनाओं की वापसी पर बातचीत कर सकते हैं पर इससे पहले दोनों भारत और पाक की फौजें इस समय कहां-कहां हैं, इसे अडेंटीफाई किया जाए और यह करने को पाक तैयार नहीं है।
Anil Narendra, Daily Pratap, General Kayani, Indo Pak War, Pakistan, Siachin, Vir Arjun
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