Tuesday 10 April 2012

आखिर कितने दिन का युद्ध लड़ सकती है हमारी सेना?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 10 April 2012
अनिल नरेन्द्र
सेना की दो इकाइयों द्वारा 16-17 जनवरी में दिल्ली की ओर बढ़ने को लेकर खबरें पहले से ही पक रही थीं और इसकी भनक सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह को भी थी। यह मार्च में ही एक अंग्रेजी पत्रिका को दिए उनके इंटरव्यू से पता चलता है। उन्होंने कहा था, `मान लीजिए, हमारी एक कोर या डिवीजन या ब्रिगेड अभ्यास कर रही तो कोई कहेगा कि ओह.. उन्होंने अभ्यास किया। यह अभ्यास नहीं था, वे कुछ और करना चाहते थे।' उन्होंने कहा, `अब आप इससे एक खबर बनाएंगे। इन दिनों कई लोग गलत मकसद से खबरें बनाना चाहते हैं।' उधर अंग्रेजी अखबार द गार्डियन ने दावा किया है कि सेना के दिल्ली कूच की खबर के पीछे एक केंद्रीय मंत्री का हाथ है। मंत्री का नाम नहीं बताया पर यह कहा गया है कि मंत्री के करीबी रिश्तेदार का संबंध रक्षा खरीद से जुड़ी लॉबी का है और यह लॉबी दोनों रक्षा मंत्री एके एंटनी और सेनाध्यक्ष जनरल सिंह से परेशान थी। आर्म्स लॉबी एंटनी के इसलिए खिलाफ थी क्योंकि एंटनी एक ईमानदार मंत्री हैं जो खरीद में कोई गड़बड़ी नहीं होने देना चाहते। एंटनी का भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान से हथियार सप्लायर, उनके एजेंट, विदेशी कम्पनियां और सेना का एक वर्ग खिलाफ है और यह चाहते हैं कि इन्हें रक्षा मंत्रालय से हटाया जाए। पिछले महीने ही एंटनी ने छह हथियार कम्पनियों को बैन किया था। इनमें चार विदेशी कम्पनियां (इजरायली मिलिट्री इंडस्ट्री, सिंगापुर टेक्नोलॉजी कारपोरेशन डिफेंस (रूस) और एक स्विट्जरलैंड की कम्पनी शामिल है।) जनरल वीके सिंह के खिलाफ यह साजिश (अगर साजिश थी) इसलिए रची गई, क्योंकि वह रक्षा सौदे में कमीशनों का धंधा नहीं चलने दे रहे थे। कूच की खबर को लीक करने के पीछे जनरल के खिलाफ राजनीतिक दलों को एकजुट करना था। सेनाध्यक्ष की साख बिगाड़ने तथा सैन्य ट्रेनिंग से जुड़ी गतिविधियां ठप करना भी एक उद्देश्य हो सकता है। भ्रष्टाचार के आरोपों से सैन्य खरीद की रफ्तार कम हुई है।अगर विद्रोह के काल्पनिक डर से सेना की ट्रेनिंग एक्सरसाइज की आजादी छिनी तो फौज की मारक क्षमता प्रभावित होगी।
भारतीय थलसेना की मारक क्षमता का सवाल जनरल वीके सिंह ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में उठाया था। अब एक न्यूज चैनल ने अपनी रिपोर्ट में सेना के पास गोला-बारुद की कमी की भयानक तस्वीर पेश की है। रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध होने की स्थिति में सेना के पास सिर्प 10 दिनों तक लड़ने के लिए गोला-बारुद मौजूद है। यह पहली बार नहीं जब इस तरह की खबरें आई हैं। सेना काफी पहले से राजनीतिक नेतृत्व को आगाह करती आ रही है कि उसके पास जंग के लिए गोला-बारुद जैसे जरूरी सामग्री जरूरी स्तर से काफी नीचे पहुंच गया है। किसी खतरे का सामना करने की स्थिति में सेना की तैयारियों को लेकर कैग की रिपोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं। खतरे की घंटी ः 125 एमएम टैंक के लिए गोला-बारुद जरूरी स्तर से काफी कम है। 16 हजार राउंड के लिए रूस से गोला-बारुद मिलने का इंतजार। 122 एमएम हाई एनर्जी रिड्यूस चार्ज 1.27 दिन तक चल पाएंगे। ओएफबी द्वारा मुहैया कराए गए गोला-बारुदों में काफी खराबी पाई गई। सरकार का दावा है कि युद्ध होने पर सेना के पास 30 दिनों तक का लड़ने के लिए पर्याप्त मात्रा में गोला-बारुद है। गोला-बारुद की इस कमी की बड़ी वजह घोटालों के चलते कई रक्षा कम्पनियों पर प्रतिबंध लगाना भी है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई तोपों में दूसरे विश्वयुद्ध के जमाने की तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। यदि कोई 16-17 जनवरी की खबर और उसके बाद प्रकाशित हो रही खबरों को विस्तार से पढ़े तो उसे मानना होगा कि स्थिति बेहद चिन्ताजनक है। यह निष्कर्ष भी निकलता है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सेना और सरकार के संबंध सबसे निचले स्तर पर हैं।
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