Friday 13 April 2012

मिलिए पाकिस्तान के युवराज बिलावल भुट्टो से

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 13 April 2012
अनिल नरेन्द्र
24 वर्षीय बिलावल भुट्टो को भारतवासियों ने पहली बार करीब से देखा जब वह अपने पिता आसिफ जरदारी के साथ हाल ही में अजमेर शरीफ जियारत करने आए थे। उनका कम्पैरिजन भारत के युवराज राहुल गांधी से किया जा रहा है। यह कहना शायद गलत न हो कि अगर राहुल गांधी भारत के युवराज हैं तो बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के युवराज हैं। बिलावल भुट्टो ने इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई पूरी की है। अपनी मां बेनजीर भुट्टो के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के एक महीने पहले सितम्बर 1988 में पैदा हुए बिलावल को अपनी मां की हत्या के तीन दिन बाद ही उनको पार्टी (पीपीपी) की बागडोर सम्भालनी पड़ी जिसे भुट्टो परिवार ने अपने खून से सींचा था। उनकी जिन्दगी ने भी कुछ वैसी ही करवट ली है जैसी उनकी मां बेनजीर भुट्टो की जिन्दगी ने अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद ली थी। हालांकि बिलावल अपनी मां बेनजीर के संघर्ष का एक लम्बा इतिहास लिखने की शुरुआतभर करते दिख रहे हैं। बिलावल पर लगता है कि सबसे ज्यादा प्रभाव अपनी मां बेनजीर का पड़ा है। राजनीतिक और निजी कारणों से वह अपने नाम के पीछे भुट्टो लिखना पसंद करते हैं जरदारी नहीं। कायदे से उनका पूरा नाम बिलावल जरदारी होना चाहिए था पर वह बिलावल भुट्टो लिखना ज्यादा पसंद करते हैं। बिलावल के बचपन पर पाकिस्तान की राजनीति का प्रभाव चाहे-अनचाहे तरीके से हमेशा ही पड़ा। जब 11 साल की उम्र में उन्होंने पाकिस्तान छोड़ा उनकी मां अपने राजनैतिक भविष्य की लड़ाई लड़ रही थीं और उनके पिता और अब देश के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी जेल में थे। बिलावल का बचपन और पढ़ाई अधिकतर पाकिस्तान से बाहर हुई। पढ़ाई उनकी दुबई और ब्रिटेन में हुई। अपनी मां की तरह उन्होंने भी ऑक्सफोर्ड से अपनी पढ़ाई की है। पिछले साल अपने पिता आसिफ अली जरदारी की तबीयत खराब होने पर वह पाकिस्तान वापस आए और पाकिस्तान की तूफानी राजनीति में पूंक-पूंककर कदम रख रहे हैं। अपने स्टेटस की वजह से वह ब्रिटेन में भी सामान्य स्टूडेंट की तरह नहीं रह पाए। आतंकवादियों का टारगेट होने की वजह से ब्रिटिश सरकार को भी ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान उनकी सुरक्षा पर साल में लगभग एक मिलियन पाउंड यानि लगभग 8 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। उनकी मां ने उनका नाम बिलावल रखा, जिसका मतलब होता है `जिसके बराबर कोई न हो।' जून 2010 में बिलावल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी कर स्वदेश लौट आए हैं। जब वह दिल्ली और अजमेर हाल में आए तो 7 रेसकोर्स रोड में उनकी मुलाकात भारत के युवराज राहुल गांधी से हुई। राहुल, बिलावल की बिल्कुल बराबर वाली कुर्सी पर बैठे थे। दोनों के बीच अनौपचारिक बातचीत कई दौरों में हुई। दोनों के बीच कई समानताएं भी हैं। दोनों के परिवार अपने-अपने मुल्कों में अहम राजनीतिक हैसियत रखते हैं। अगर राहुल के पिता राजीव गांधी आतंकवाद का शिकार हो चुके हैं तो बिलावल की मां बेनजीर की हत्या भी आतंकियों ने की। खानदानी विरासत के चलते बिलावल को पार्टी मुखिया का पद `तश्तरी' में सजा हुआ मिल गया। कुछ ऐसे ही राहुल की राजनीति में बढ़ता ग्रॉफ देखा जा सकता है। हां एक फर्प है कि राहुल ने बिलावल की तरह एकाएक पार्टी अध्यक्ष का पद नहीं सम्भाला है। बिलावल पाकिस्तान में एक नई आव-ओ-हवा, सोच ला सकते हैं पर उन्हें ऐसा करने के लिए बहुत लम्बे संघर्षपूर्ण रास्ते को तय करना होगा। फिलहाल बिलावल भारत में एक अच्छा इप्रेशन छोड़ गए हैं और एक नई उम्मीद।
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