Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 11 April 2012
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी भारत के बुलावे पर भारत नहीं आए। वह अपनी मर्जी से भारत आए। जियारत करने वह अजमेर शरीफ आए और जियारत ही उन्होंने की। दिल्ली तो उन्हें इसलिए आना पड़ा, क्योंकि रास्ता यही बनता था। वह सीधे अजमेर तो जा नहीं सकते थे। जब वह दिल्ली आ ही रहे थे तो भारत अपनी मेहमाननवाजी को कैसे भूल सकता था। भारत के प्रधानमंत्री ने उनके लिए दोपहर का लंच रखा। दोनों नेताओं में बन्द कमरे में 40-45 मिनट बातचीत भी हुई। बाद में कहा गया कि भारत ने आतंकवाद और विशेषकर हाफिज सईद पर कार्रवाई का मुद्दा उठाया। मनमोहन सिंह ने 26/11 के गुनाहगारों को दंडित करने पर भी जोर दिया बताया जा रहा है। भारत के खिलाफ पाक जमीं से सिर उठा रहे आतंकवाद को कुचलने की जरूरत पर भी पीएम ने सदर जरदारी का ध्यान खींचा। उधर जरदारी साहब ने कश्मीर-सर क्रीक, सियाचिन मुद्दों को सुलझाने पर जोर दिया। पाक वैज्ञानिक खलील चिश्ती की कैद का मसला पाक की ओर से उठाया गया पर मनमोहन सिंह ने सरबजीत की फांसी का मुद्दा उठाना उचित नहीं समझा। अपनी-अपनी राय हो सकती है। हमारा मानना यह है कि राष्ट्रपति जरदारी की इस यात्रा का कोई खास महत्व नहीं है। आज की तारीख में उनकी अपने मुल्क में स्थिति बहुत कमजोर है। एक तरफ सेना और दूसरी तरफ पाक सुप्रीम कोर्ट। जरदारी साहब की लोकप्रियता भी जीरो है। ऐसे समय जब उन पर अपने मुल्क में इतना दबाव हो तो वह पता नहीं अजमेर शरीफ क्या दुआ मांगने आए? साथ बेटे को भी ले आए। बेटे बिलावल को भी एक तरह से अंतर्राष्ट्रीय सीन पर इंट्रोड्यूस करा दिया। जरदारी साहब का प्रयास यही होगा कि उनके बाद युवराज बिलावल पाक में सत्ता सम्भाले। कहा यह भी जा रहा है कि दोनों मुल्कों के युवराजों का आपस में मिलना अच्छा रहा। बताया गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन और सदर जरदारी के बीच 40 मिनट की वन टू वन बातचीत हुई। इसमें हमें तो संदेह है कि महज 40 मिनट की बातचीत में कश्मीर, आतंकवाद, सियाचिन, सर क्रीक, वीजा सुविधा, हाफिज सईद, 26/11 के दोषियों को सजा दिलवाना, व्यापार से लेकर क्रिकेट आदि मुद्दों पर विस्तार से और किसी नतीजे पर पहुंच सकने लायक वार्ता हो सकती है, बस अभी तो यह कहा जा सकता है कि इन मुद्दों पर सरसरी चर्चा हुई और भविष्य का रोड मैप तैयार हुआ। जरदारी साहब आज इस स्थिति में नहीं कि वह किसी भी मुद्दे पर किसी भी प्राकर की कमिटमेंट कर सकें। पाकिस्तान में असल सत्ता पाक सेना के पास है। वही फैसला करती है कि किस मुद्दे पर पाकिस्तान की क्या पॉलिसी होनी है। इतिहास इस बात का भी गवाह है कि पाकिस्तानी लीडर भारत में तो वादा कर देते हैं पर अपने वतन पहुंचने पर वादे से मुकर जाते हैं। जरदारी के ससुर जुल्फिकार अली भुट्टो जब शिमला समझौते के लिए आए थे तो तरह-तरह की बातें, वादे करके गए थे पर पाकिस्तान लौटते ही सबसे मुकर गए। जरदारी साहब के पास आज की तारीख में वह मैनडेट ही नहीं कि वह किसी भी मुद्दे पर भारत से बातचीत कर सकें। इस बैठक से न तो इधर और न ही उधर कोई खास उम्मीद थी। जरदारी साहब आज अपने घर में बुरी तरह समस्याओं से घिरे हुए हैं। वैसे देखा जाए तो भारत के पीएम भी कम घिरे नहीं हैं पर पाकिस्तान में जिस प्रकार की समस्या जरदारी झेल रहे हैं वह भारत से भिन्न हैं। पाकिस्तान की मुश्किल उसकी सेना और खुफिया एजेंसी ही नहीं, उसके अंदरूनी हालात भी हैं। उसके सामने नया संकट अमेरिका से खराब रिश्ते का भी है। हालांकि पाकिस्तान अमेरिका को चुनौती देता दिख रहा है, लेकिन इसका प्रमुख कारण पाकिस्तान में अमेरिका के प्रति बढ़ रही नाराजगी है। पाकिस्तान अकेले चीन के समर्थन पर सारी दुनिया से नहीं लड़ सकता। इसलिए भी पाकिस्तान का अब प्रयास है कि पड़ोसी भारत से रिश्ते सुधरें। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा है कि जरदारी किसी के इशारे पर भारत आए। पिछले कुछ दिनों से आतंकवाद का मुद्दा छोड़कर व्यापार आदि क्षेत्रों में पाकिस्तान के रवैये में थोड़ी तब्दीली आई है पर पाकिस्तान को यह समझना होगा कि भारत की उससे सबसे बड़ी शिकायत आतंकवाद को अपनी सरजमीं में बढ़ावा देना है और इस पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण आसिफ जरदारी लगाने में सक्षम नहीं हैं। एक बयान में उन्होंने कहा था कि हाफिज सईद पर उनकी राय वही है जो पाकिस्तान सरकार की है। उनकी दूसरी महत्वपूर्ण टिप्पणी यह थी कि उन्हें पाकिस्तान से जाने के लिए कह दिया गया था। ये दोनों बयान प्रकारांतर से यह भी कहते थे कि भारत उनसे बहुत उम्मीद न करे। बात सही भी है। सेनाध्यक्ष कयानी और आईएसआई व जेहादी नेता ही पाक सत्ता प्रतिष्ठा में असल कर्ताधर्ता हैं।
Ajmer Shrif, Anil Narendra, Asif Ali Zardari, Bilawal Bhutto, Daily Pratap, India, Pakistan, Rahul Gandhi, Vir Arjun
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